वामपंथियों का भगत सिंह पर दावा खोखला


भगत सिंह को लेकर वामपंथियों या साम्यवादियों की दावेदारी और उनका यह कहना कि दक्षिणपंथियों को भगत सिंह से ख़ुद को जोड़ने का कोई हक़ नहीं है, मेरे ख़्याल से बिल्कुल अनर्गल और निराधार है.
भगत सिंह की एक मात्र विचारधारा प्रखर देखभक्ति और भारत की स्वतंत्रता थी.
भगत सिंह की विचारधारा को समझने के लिए ध्यान रखना चाहिए कि उनकी शहादत के वक्त उनकी उम्र क्या थी और देश-दुनिया की परिस्थितियाँ कैसी थीं.
भगत सिंह 1926 के आसपास समाजवादी विचारधारा और उसके साहित्य के क़रीब आए. उन दिनों देश में समाजवादी विचारधारा की काफ़ी चर्चा हो रही थी.
उन्हीं दिनों के बारे में चर्चा करते हुए क्रांतिकारी सचिंद्रनाथ सान्याल जो कि हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी के संस्थापक थे, ने अपनी किताब विचार विनिमय में लिखा है कि जब मैं अंडमन की जेल से छूटकर आया तो मैंने पाया कि समाजवाद की चर्चा तो बहुत हो रही है पर इसका कोई अध्ययन करने वाला मुझे नहीं मिला.
रूस का प्रचार
यह वही दौर था जब रूस की ओर से एक ज़ोरदार प्रचार की आंधी चल रही थी कि रूस की धरती पर मजदूरों के लिए एक स्वर्ग क़ायम हो गया है और वहाँ एक शोषणविहीन और समतामूलक समाज की स्थापना हो गई है.
इसकी सच्चाई से तो कोई वाकिफ़ था नहीं पर इतना ज़रूर था कि नौजवान इस प्रचार से काफ़ी प्रभावित थे. उन्हें समतामूलक समाज का विचार उन्हें बहुत प्रभावित करता था.
सचिंद्रनाथ सान्याल के जरिए ही भगत सिंह 1924 में क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े थे. क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ने के बाद भी इस बात के प्रमाण हैं कि भगत सिंह 1928 तक आर्यसमाज से जुड़े रहे. वो 1928 में जब कलकत्ता गए तो आर्यसमाज में ही रुके थे.
इस दौरान समाजवादी विचारधारा लोकप्रिय थी इसलिए भगत सिंह ने उसे जानने का प्रयास ज़रूर किया पर इसका यह मतलब नहीं कि वो समाजवादी हो गए थे या कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता हो गए थे.
वामपंथियों ने यह झूठा प्रचार किया है कि भगत सिंह उनकी विचारधारा के थे या उनसे जुड़े थे और इसका उनके पास कोई आधार भी नहीं है.
नास्तिक होने का मतलब...
भगत सिंह ने 1930 में जेल में रहते हुए एक लेख लिखा- मैं नास्तिक क्यों हूँ. हाँ, मगर उनके नास्तिक होने का मार्क्सवाद या समाजवाद से कोई संबंध नहीं था.
उन्होंने किसी दार्शनिक आधार पर ख़ुद को नास्तिक नहीं बताया था. भगत सिंह नेशनल कॉलेज, लाहौर के तत्कालीन प्रिंसिपल छबीलदास से संपर्क में थे. छबीलदास नास्तिक हो गए थे. ऐसी ही कुछ बातों से भगत सिंह का भावुक युवा मन भी प्रभावित हुआ होगा जिसके कारण वो नास्तिक हो गए थे.
भगत सिंह की एक नोटबुक है जो उन्होंने जेल में लिखी है. इस नोटबुक में भगत सिंह ने उन पुस्तकों के नोट्स लिए हैं जिनको वो जेल में रहते हुए पढ़ रहे थे. इन नोट्स के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि वो उस विचारधारा से सहमत थे जिसके बारे में उन्होंने नोट्स लिए.
भगत सिंह की शहादत की खूँटी पर वामपंथी अपनी मुर्दा विचारधारा की लाश लटकाने की कोशिश कर रहे हैं.
दरअसल, वामपंथी भगत सिंह की शहादत को आज भी भुनाना चाहते हैं ताकि उनकी लगभग मर चुकी विचारधारा और पार्टी में फिर से कुछ दमखम आ सके.

Digg Google Bookmarks reddit Mixx StumbleUpon Technorati Yahoo! Buzz DesignFloat Delicious BlinkList Furl

1 comments: on "वामपंथियों का भगत सिंह पर दावा खोखला"

prakharhindutva said...

आपका लेख निश्चय ही युवा वर्ग को प्रेरित करने वाला है... जी हाँ ये साम्यवादी हर देश से लतियाए जाने के बाद अब भारत में भी अपने अस्तित्व को लेकर चिन्तित हैं इसलिए सत्ता प्राप्ति के लिए महान् राष्ट्रभक्तों को अपने विचारों की पुष्टि के लिए अपने साथ जोड़ने का निष्फल प्रयास करते रहते हैं। ऐसे में हमें एक मंच पर आकर इन साम्यवादियों और मुसलमान जो देश के प्रबल शत्रु हैं, इनकी विचारधारा का संहार करना चाहिए और इन्हें यथासम्भव प्रयासों से देश से बाहर खदेड़ना चाहिए।