भारतीय प्रजातंत्र पर इस्लामिक साया

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह रात भर नहीं सो पाये। अत्यंत चिंता का विषय है क्योंकि देश के प्रधानमंत्री का स्वस्थ होना जरूरी है, पर उससे ज्यादा चिंता का विषय उनकी बीमारी है। ग्लासगों हवाई अड्डे के बम धमाकों में तब आरोपित और अब रिहा डॉक्टर हनीफ के परिवार की हालत देखकर प्रधानमंत्री अत्यधिक विचलित हो गये और रात भर सो नहीं सके। देश के चारों तरफ खून खराबा हो रहा है। कश्मीर में लाखों कत्ल हो चुके हैं। वहां आतंकवाद अभी भी बदस्तूर जारी है। असम एवं उत्तरपूर्व के अन्य राज्यों में भी आतंकवादी हत्याएं हो रही है। अनेक राज्यों में माओवादी आतंकवादी खून खराबा कर रहे है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। बंगाल एवं अनेक राज्यों में भूख से मौतें हो रही हैं, परन्तु प्रधानमंत्री जी को आराम से नींद आती है। इस मुद्दे पर अकेले प्रधानमंत्री जी हो ही दोष देना निरर्थक होगा क्योंकि आज सारा देश और सभी राजनेता इस्लाम के पिट्ठू हो गये हैंं और सिर्फ मुसलमानों के वोट बैंक के पीछे भागते रहते है। राष्ट्रपति के चुनाव में मुसलमानों के वोट बैंक के भय से श्रेष्ठ उम्मीदवार जैसे डॉ. कर्णसिंह, भैरों सिंह शेखावत, शिवराज पाटिल, बसंत साठे जैसे लोगों को किसी ने घास नहीं डाली और एक सामान्य महिला श्रीमती प्रतिभा पाटिल उच्चतम शिखर पर जा बैठीं। इसी प्रकार उपराष्ट्रपति पद पर तो ऐसा लग रहा है जैसे कि यह पद मुस्लिमों के लिए ही आरक्षित हो गया हो। सभी दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार मुसलमानों को ही बनाया। थर्ड फ्रंट ने मुस्लिम वोट बैंक के भय के कारण सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार उपराष्ट्रपति श्री भैरों सिंह शेखावत को समर्थन ही नहींे दिया, अपितु राष्ट्रपति चुनाव में अनुपस्थित रहे। उसने भी एक मुस्लिम श्री रशीद मसूद को अपना उपराष्ट्रपति पद हेतु उम्मीदवार बनाया। अब प्रश्न यह है कि भारतीय राजनेताओंे का इतना पतन क्यों हो गया कि वे राष्ट्र एवं समाज की जरा भी चिंता क्यों नहीं करते। इसका सबसे प्रमुख कारण वोट बैंक का लालच है। मुस्लिम वोट बैंक देश का सबसे बड़ा एवं कट्टरवादी वोट बैंक है जो हमेशा अपने सम्प्रदाय के समर्थकों को ही वोट देता है। इस कारण सभी नेता इस्लामिक साम्प्रदायिकता को आदाब करते हैं। इस साम्पद्रायिक मानसिकता का दूसरा प्रमुख कारण यह है कि भारत के बड़ी संख्या में सेकुलर नेता एवं विचारक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई एस आई एवं अन्य अरब देशों में मोटा पैसा विभिन्न माध्यमों से लेते रहते हैं। भारतीय सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी श्री मलय कृष्ण धर ने अपनी पुस्तक ओपन सीक्रेट में इस नेटवर्क का विस्तृत वर्णन किया है। इस पैसे के बल पर अनेक भारतीय नेता मुस्लिम साम्प्रदायिकता की वकालत करते नजर आयेंगे। एक अन्य कारण यह है कि वैचारिक स्तर पर आज एक परम्परा बन गयी है कि कोई विचारक अगर हिन्दू धर्म का मखौल उड़ाता है तथा इस्लाम के गुण गाता है, तो उसे उच्च स्तर का विद्वान माना जाता है। उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म में पर्दा हिन्दू धर्म की कुरीति है, तो इस्लाम में धार्मिक है। हिन्दुओं में रोज सरकारी हस्तक्षेप होते हैं, परन्तु शरियत में कभी कोई संशोधन नहीं होता। इतना ही नहीं, जम्मू एवं कश्मीर में तो शरियत कानून वहां के संविधान का अंग है। इस समस्त वर्णन से स्पष्ट है कि देश में समानता नाम मात्र की भी नहीं है। इस्लाम और शरियत कानून भारत के संविधान से भी ऊपर हैं। इसी तरह धर्म निरपेक्षता सिर्फ हिन्दुओं के लिए ही है। भारत का राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश, मुसलमान बन सकते हैं परन्तु कश्मीर में कभी भी हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। अगर देश की धर्म निरपेक्षता का यही हाल रहा तो आने वाले समय में देश में और कट्टर इस्लामीकरण होगा तथा देश आतंकवाद और कट्टरवाद की प्रयोगशाला बन जायेगा। जो आज कश्मीर घाटी में हो रहा है वह सारे देश में होगा।
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