भारत की राजनीति में कई ऐसे नेता हैं जिन्हें न देश की चिंता है, न देशवासियों की। उन्हें चिंता है तो सिर्फ अपनी राजनीतिक दुकान की। यह दुकान चलती रहे इसके लिए वे कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं।
जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती बाप-बेटी की पार्टी पी.डी.पी. के दबाव में आकर सी.आर.पी.एफ. ने कुछ समय पहले अपनी कुछ चौकियां खाली कर दी थीं। अब पी.डी.पी. और नैशनल कांफ्रैंस के नेता यह दबाव बना रहे हैं कि रमजान के महीने में संघर्ष विराम हो यानी सेना आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई रोक दे।
‘‘राह अलगाव की चाह सद्भाव की,
दो तरह का चलन तो मुनासिब नहीं।’’
सेना में कुछ बड़े अधिकारी दबी जुबान में यह मानते हैं कि कुछ नेता ऐसे हैं जो राष्ट्र विरोधी हैं, कौम के दुश्मन हैं। संघर्ष विराम लागू करने की मांग का एक ही मकसद है कि आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की रफ्तार कम हो जाए। यदि यह मांग मान ली गई और आतंकवादियों को थोड़ी भी राहत दी गई तो उन्हें गोलाबारूद इकट्ठा करने का मौका मिल जाएगा। कौम के दुश्मन ये नेता सुरक्षा बलों से तो संघर्ष विराम का आग्रह करते हैं, आतंकवादी गिरोहों से क्यों नहीं कहते कि रमजान के दौरान वे अपनी गतिविधियां बंद कर दें।
पी.डी.पी. के संस्थापक नेता मुफ्ती मोहम्मद वही व्यक्ति है जिसके भारत का गृहमंत्री रहते उसकी बेटी रूबिया को आतंकवादी उठा ले गए थे और उसे अपहर्ताओं से मुक्त कराने के लिए फिरौती में पांच दुर्दांत आतंकवादी रिहा करने पड़े थे। तभी एक शायर ने कहा थो
‘‘देश के दुश्मनों से सुलह के लिए,
कितना कमजोर यह बाप का प्यार है,
आबरू की हिफाजत वे करेंगे क्या,
जिनके हाथों में सौंपी यह सरकार है।’’
आज भी पाकिस्तान में 50 से ज्यादा आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं। इनमें से तीस शिविर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हैं। चार से पांच हजार तक प्रशिक्षित आतंकवादी सीमा पार करने की फिराक में हैं।
इन हालात में पी.डी.पी. या नैशनल कांफ्रैंस जम्मू-कश्मीर में सेना में कटौती करने या संघर्ष विराम की मांग करते हैं तो ऐसे दलों और इनके नेताओं को कौम का दुश्मन ही कहा जाएगा।
मैं भारतीय सेना के जवानों की बहादुरी और जनरलों की निर्भीकता का हमेशा प्रशंसक रहा हूं। सियाचिन से सेनाएं हटाने की चर्चा चली तो भारत के थलसेनाध्यक्ष जनरल जे.जे. सिंह ने इसका डटकर विरोध किया। अब घाटी में संघर्ष विराम की मांग का भी वहां के सैन्य अधिकारी कड़ा विरोध कर रहे हैं। उनका तो यहां तक कहना है कि सीमा पार से घुसपैठ को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए वर्तमान से दस गुणा ज्यादा फौज की तैनाती की जरूरत है। उनका मानना है कि थोड़ी भी ढील घाटी में हालात को बिगाड़ सकती है।
नेता तो आतंकवाद की आग में अपने हाथ सेंकने का मौका चाहते हैं और सेना के जनरल और जवानों की हर समय यह कोशिश रहती है केि
‘‘वादियों में लगी आग की यह तपन,
क्यारियों में खिले फूल मुरझा न दे,
झील के खूबसूरत शिकारे कहीं,
गोलियों की दनादन यह बिखरा न दे।’’
राष्ट्र विरोधी सोच रखने वाले दलों और नेताओं को लोकतांत्रिक व्यवस्था का अनुचित लाभ उठाने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। रमजान मुस्लिम भाइयों का बहुत बड़ा धार्मिक त्यौहार है। यह पूरी श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाना चाहिए। आतंकवादियों का तो कोई धर्म है ही नहीं। उनकी नजर में न इन्सानियत की कोई कीमत है न इन्सान की। उनका तो एक ही काम हैेसमाज में आतंक फैलाना। उनका रमजान से क्या संबंध? उन्हें थोड़ी भी राहत देने का अर्थ है आतंक फैलाने की छूट देना। आतंकवादियों के साथ पी.डी.पी. और नैशनल कांफ्रैंस के नेताओं की हमदर्दी हो सकती है आम देशवासियों की नहीं। वे तो अपने सभी त्यौहार अमनचैन और शान से मनाना चाहते हैं।
जम्मू-कश्मीर में संघर्ष विराम की मांग करने वाले नेता नहीं चाहते कि राज्य के लोग अपने त्यौहार अमनचैन के माहौल में मनाएं। ऐसे नेताओं को राष्ट्र विरोधी और जनता के दुश्मन ही कहा जाएगा। वे किसी हमदर्दी के पात्र नहीं हैं।
‘‘ओ मेरे देश के नौजवां रहबरो,
राहजनों को पुन: सिर उठाने न दो,
इस मुकुट की हिफाजत करो शक्ति से,
स्वाभिमानों को यूं लड़खड़ाने न दो।’’
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