मोदी सरकार बनाम माकपा सरकार

45 मिनट में गुजरात की सम्पन्नता और गुजराती स्वाभिमान की बाबत अगर आपको कुछ जानना है तो अमदाबाद, सूरत, वडोदरा, राजकोट आदि-आदि पर इंटरनेट खंगालना छोड़िए, तालीबानी मिडीया जो विदेशी धन पर अपना भरन पोसन करती है और अपने सरकारी आका को खुश करने के लीये चुनाव के समय ओपरेसन कलन्क लेकर आती है। मयंक जैन का बनाया वृत्तचित्र 'इंडिया टुमोरो' यानी 'कल का भारत' देख लीजिए। गुजरात में विकास के सोपान किस खूबी से तय किए जा रहे हैं और औद्योगिक, आर्थिक, सांस्कृतिक क्रांति जन-जन को स्वाभिमान के भाव से कैसे भर रही है,वहीं अपने-अपने क्षेत्र की प्रमुख विभूतियों ने गुजरात सरकार की दूरदृष्टिपूर्ण सोच की तारीफ की है। तत्कालीन राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम, प्रतिपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी, वाणिज्य मंत्री श्री कमलनाथ, शीर्ष उद्योगपति रतन टाटा, मुकेश अंबानी और कुमारमंगलम बिरला ने गुजरात में पूंजी निवेश को समझदारी भरा कदम कहा है और यह भी कि खुशहाल वातावरण देने में गुजरात का कोई सानी नहीं है।
जिस तरह का वातावरण तलीबानी सेकुलरों, विदेशी समाचार चैनले के पत्रकार ने मोदी शासन के विरुध्द अल्पसंख्यकों के मन में बनाया था वह इसके जरिए तार-तार हो गया है। गुजरात के ही अनेक आम मुस्लिमों ने इस वृत्तचित्र में कहा है कि वे खुद को गुजरात में सुरक्षित महसूस करते हैं और राज्य की प्रगति में हिस्सेदारी कर रहे हैं।
गुजरात राज्य में तेजी से हो रहे ग्रामीण और औद्योगिक विकास की झलक है कैसे मोदी शासन ने इसे आतंक रहित राज्य बनाया है। पिछले कुछ वर्षों से आतंक की कोई बड़ी घटना नहीं घटने दी गई है (भारत सरकार को कुछ सीखना चाहीय)। इसमें गुजरात की तुलना उन राज्यों, खासकर मार्क्सवादियों के शासन वाले बंगाल से की गई है जहां स्थितियां काबू से बाहर होती रही हैं। सिंगूर और नंदीग्राम जहा पर कामरेड हाथ मे बन्दुक और बम लेकर आम नागरीको डराते और मारते है।
बताया गया है कि कैसे साल के 60 प्रतिशत मानव श्रम दिवस बंगाल में हड़तालों के कारण काम के बगैर गुजरे हैं जबकि, मुकेश अंबानी के शब्दों में, 'गुजरात में पिछले एक साल में रिलायंस ने एक भी मानव श्रम दिवस का घंटा गंवाया नहीं है।' रतन टाटा कहते हैं, 'गुजरात सबसे अधिक प्रगतिशील राज्य है।' कुमारमंगलम बिरला तो मोदी के दमदार नेतृत्व से अभिभूत हैं जबकि केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री कमलनाथ कहते हैं, 'गुजरात को सामने रखकर हम भारत को प्रस्तुत करते हैं।' कुछ समय पहले अमदाबाद में देश-विदेश के शीर्ष उद्योगपति, पूंजी निवेशक और व्यवसायी वायब्रेन्ट गुजरात सम्मेलन में एकत्र हुए थे। इस सम्मेलन के पीछे मुख्यमंत्री मोदी की यही दूरदर्शी सोच थी कि प्रदेश सरकार ओद्यौगिक विकास के लिए जो प्रयास कर रही है उसकी पूरी जानकारी संबंधित वर्ग के लोगों को होनी चाहिए। इसीलिए उन्होंने सबको गुजरात बुलाया था और उनके सामने पूंजी निवेश की असीम संभावनाएं दर्शाई थीं। उद्यमियों ने प्रभावित होकर अरबों रुपए के निवेश की घोषणा की थी और गुजरात को निवेशकों की पहली पसंद बताया था।
हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने एक अध्ययन किया है जिसका निष्कर्ष यह है कि 2007 के दौरान सीधे विदेशी निवेश के जरिए भारत को कुल 69 अरब डॉलर पूंजी मिलेगी। यह आंकड़ा करीब 380 लाख करोड़ रुपए के बराबर है। उसमें से 25.8 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश अकेले गुजरात राज्य में आया। यानि एक चौथाई से ज्यादा। इससे कम, घटते हुए क्रम में, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में विदेशी पूंजी निवेश हुआ। बाकी राज्यों में तो और भी कम। गुजरात में भारत के पांच प्रतिशत लोग हैं और 6 प्रतिशत भूमि इसका क्षेत्रफल है। गुजरात का निर्यात देश का 12 प्रतिशत है। भारत के शेयर बाजार में इस राज्य की भागीदारी 30 प्रतिशत है। गुजरात में गरीबी रेखा के नीचे की आबादी लगभग 15 प्रतिशत है। करीब 40 प्रतिशत लोग शहरों में रहते हैं।
''सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी'' के अनुसार आद्योगीकरण के क्षेत्र में गुजरात अन्य राज्यों से कहीं आगे प्रथम स्थान पर है। सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाले राजीव गांधी फाउंडेशन ने अपने अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला था कि गुजरात में सर्वाधिक आर्थिक स्वतंत्रता है। गुजरात की शिक्षा दर 70 प्रतिशत से ज्यादा है। 2003, 2005 और 2007 में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'वाइबंरेट गुजरात' महासम्मेलन का आयोजन किया था। विश्व भर से उद्योगपति और निवेशक वहां आए। रतन टाटा, मुकेश अंबानी और कुमार मंगलम बिड़ला जैसे उद्योगपतियों ने गुजरात की आर्थिक गतिविधियों और चौमुखी विकास की जबरदस्त सराहना की। विशेष आर्थिक क्षेत्रों के मामले में भी गुजरात देश में प्रथम स्थान पर है। गुजरात में इस समय 51 से अधिक एसईजेड (विशेष आर्थिक क्षेत्र) कार्य कर रहे हैं। आर्थिक क्षेत्र के मामले में महाराष्ट्र को गुजरात ने पीछे छोड़ दिया है। गुजरात के लगभग 19000 गांवों में तीन फेज बिजली की आपूर्ति 24 घंटे होती है।इंग्लैण्ड में रहने वाले कपैरो ग्रुप के लॉर्ड स्वराज पाल ने कहा है कि मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य में उच्च कोटि का बुनियादी ढांचा खड़ा किया है। गुजरात में उत्कृष्ट सड़कें हैं।गुजरात में अब पानी का संकट नहीं है। वनवासियों को भी दूर गांव से पानी लाने की जरूरत नहीं है। उच्च शिक्षा और कम्प्यूटरीकरण के मामले में गुजरात तीव्रतर विकास करने वाला राज्य है। ई-गवर्नेन्स से अर्थात कम्प्यूटर के जरिए प्रशासन संभालने का सफल प्रयोग गुजरात में हुआ है। नतीजा यह है कि पिछड़े से पिछड़े गांव के गरीब से गरीब परिवार के खतरनाक बीमारियों से जूझ रहे रोगियों को सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ दिया गया है। आवश्यकता होने पर वह श्रेष्ठतम चुनिन्दा अस्पतालों में इलाज करवा सकते हैं। गर्ववती महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं का विशेष ध्यान रखा गया है।
'इण्डिया टुडे' ने पिछले पांच वर्षों में गुजरात को दो बार सर्वोत्तम शासन मुहैया कराने वाला राज्य कहा है। भाजपा और नरेन्द्र मोदी के कट्टर से कट्टर विरोधी भी विकास के सवाल पर नरेन्द्र मोदी का लोहा मानते हैं। प्रशासन में शुचिता और मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत ईमानदारी के सवाल पर प्राय: उनका लोहा माना जाता है। प्रसिध्द अन्तर्राष्ट्रीय कंसलटेंसी कम्पनी 'अर्नस्ट एण्ड यंग' ने अपने विशद अध्ययन पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। उसमें गुजरात को भारत की विकास यात्रा और आत्म निर्भरता के मामले में एक सुनहरा उदाहरण बताया है। कहा है कि गुजरात सरकार ने 72 अभिनव पहल किए हैं और उन प्रायोगों की उपलब्धियों का व्योरा दिया है।
वैसे प्रचार की आंधी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आज भी है। पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी को प्रसिध्द भेंटवार्ताकार करन थापर ने अपने साप्ताहिक कार्यक्रम में बुलाया। उनकी कोशिश यही थी कि घूम-फिर कर गुजरात दंगों के लिए बदनाम किए गए नरेन्द्र मोदी को इस पुरानी जमीन पर खड़ा कर दिया जाए। मोदी उनके सवालों के जवाब, बिना राजनीतिक मात खाए हुए, टालू मुद्रा में दिया। मगर करन थापर भी कुछ कम नहीं थे। वह छवि के सवाल पर घूम-फिर कर गुजरात के दंगों पर आ जाते थे। अंतत: यह हुआ कि सिर्फ चार मिनट बाद ही नरेन्द्र मोदी ने एक गिलास पानी पिया और भेंटवार्ता का बहिर्गमन कर दिया। पश्चिम बंगाल की प्रसिध्द लेखिका महाश्वेता देवी का मानना है कि बुध्दिजीवियों के बीच वामपंथी मोर्चा जिस प्रकार से अलग-थलग पड़ता जा रहा है, उससे पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में अपने 30 वर्ष के शासन के बाद भी उसने वहां कुछ भी तो नहीं किया है।नई दिल्ली में आयोजित नौंवे डी.एस. बोर्कर स्मृति व्याख्यान में 'माई विजन ऑफ इण्डिया: 2047 एडी' विषय पर भाषण देते हुए महाश्वेता देवी ने पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार को विकास का कोई भी कार्य न कर पाने के लिए निकम्मा ठहराया और नरेन्द्र मोदी की गुजरात सरकार द्वारा जमीनी स्तर से विकास कार्य को बहुत ऊंचाई तक ले जाने के लिए प्रशंसा की।उन्होंने कहा कि मैं इस बात से अत्यंत प्रभावित हुई हूं कि गुजरात में कार्य-संस्कृति अत्यंत सुदृढ अवस्था में पहुंच गई है। शहरी और गांव की सड़कें बहुत अच्छी बनी हुई हैं, यहां तक कि दूर-दराज के गांवों तक में भी बिजली और पेयजल उपलब्ध है। मैं विशेष रूप से पंचायतों और स्थानीय स्तर पर बने स्वास्थ्य केन्द्रों में प्राप्त डाक्टरी सुविधाओं से बहुत प्रभावित हुई हूं। यहां की स्थिति पश्चिम बंगाल जैसी नहीं है, जहां अब तक भी गांवों और पंचायती क्षेत्रों में कहीं भी बिजली के दर्शन तक नहीं हो पाते है और सरकार की तथाकथित स्वास्थ्य परिसेवा कहीं दिखाई नहीं पड़ती है। महाश्वेता देवी ने आगे कहा कि पश्चिम बंगाल में 30 वर्षों से सीपीआई(एम) की वामपंथी सरकार का शासन चल रहा है, फिर भी वहां कोई उपलब्धि दिखाई नहीं पड़ती है। उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल में भूखमरी से होने वाली मौतें और बाल मृत्यु दर का दौर-दौरा है।महाश्वेता देवी ने कहा कि मैंने इतिहास, लोक-संगीत और लोक-कहावतों की पुस्तकें पढ़ी है। जरूरत इस बात की है कि गांवों का दौरा किया जाए और ग्रामवासियों से मिला जाए। शायद मैंने इसी प्रकार भारत को जानना शुरू किया। आज 82 वर्ष की आयु में भी नन्दीग्राम का दौरा कर मैं यही कर रही हूं।
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अमेरीका से कुछ सीख ले भारत

भारत हमेसा से आतकवाद के विरुद्द लड़ने मे अमेरीका का मुह देखता है और कहता है कि अमेरीका भारत का सर्मथन नही करता है क्या भारत सरकार इस लायक है कि उसका कोई सर्मथन करे क्या इसमे इतना ताकत है कि ये आतकवाद को समाप्त कर सके शायद नही । भारत और अमेरीका मे आतकवाद के विरुद्द लड़ने का कितना दम है मद्दा है इसके लिए एक उदाहरण प्रस्तुत है। अनीति के पृथकतावादी नेता सैय्यद अलीशाह गिलानी जब तक स्वस्थ था भारतीय तन्त्र के विरुध और जम्मू कश्मीर मे सशस्त्र आतकवाद को बढावा देने मे कभी भी पीछे नही हटे और जब मुम्बई मे उसका इलाज चल रहा था तो उसको यही चिन्ता सता रही थी कि क्या कश्मीर मे उसका विक्लप मैजुद है? उसकी राष्ट्र विरोधी गतिविधियो के बावजूद भारत सरकार ने अमरीका मे उपचार हेतु भारत सरकार ने उसे पासपोर्ट जारी किया, प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिह ने हर सभव चिकित्सकीय सहयता देने का आश्वासन दिया, दूसरी और यह अमरीका ही है जिसने गिलानी को वीजा देने से मना कर दिया। उसी गिलानी की भारत विरोधी गतिविधियो को नजरअन्दाज करने का ही दुष्परिणाम है कि पाव पर खड़ होते ही श्रीनगर मे भारत विरोधी रैली का आयोजन किया जिसमे कई आतन्कवादी गुट के बैनर तथा नकाबपोश आतन्कवादी शामिल हुए बाद मे उसी गिलानी ने कश्मीर मे गैर कश्मीर मजदूरो को घाटी से बाहर जाने का फ़तवा जारी किया।
यह हम सब के लिया चिन्ता क विषय है कि एक ओर आतन्कवादी के प्रति नरम रवैया है, कातिल से हाथ मिलाने का दस्तूर है, अलगावादियो एव आतन्कवादी के बिना पासपोर्ट के भी पाकिस्तान की सीमा लाघने पर कुछ नही कहा जाता, सन्सद के हमलावर को मौत की सजा तक रोक दी जाती है, भारतीय सम्प्रभुता की रक्षा के लिए प्राण - न्योछावर करने वालो ससद के रणबाकुरो के परिजनो द्वारा शहादत के सम्मान मे दिये गये शोर्य पदक लौटाए जाने पर भी राष्ट्र आतन्कवाद के प्रति मौन है।
दूसरी ओर अमरीका अन्तराष्टीय आतन्कवादी गुट अलकायदा से लोहा लेने के लिये हजारो मील का सफर तय कर अफगानिस्तान पर चठाई कर देता है। वह ओसामाविन लादेन के गढ मे जाकर आतन्कवादीयो को मारता है, ईराक मे सद्दाम हुसौन की तानाशाही मे सेध लगा देता है और आतन्कवाद से लड़ने मे तुष्टीकरण की राजनीति का शिकार हुये भारत के लिए भी यह आदर्श प्रस्तुत करता है कि मानवता के दुश्मनो को कैसे सबक सिखाया जाता है और भारत की नपुसक सरकार है जो आतन्कवाद को खात्मे के लिए ठोस कदम नही उठा रही है।
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कलयुगी रावण

रामायण जैसे पवित्र ग्रंथ में जब राम ने रावण को परास्त कर दिया था तब राम ने लक्ष्मण को रावण के पास ज्ञान लेने के लिए भेजा था। लक्ष्मण ने रावण से ज्ञान देने के लिए आग्रह तो किया लेकिन मरे मन से। लेकिन फिर भी रावण ने लक्ष्मण को ज्ञान दिया। साथ ही रावण ने एक बात और भी कही कि हे राम! इस धरती पर जब भी कोई तुम्हारा नाम लेगा तो उसका विषय मेरे नाम लिये बिना खत्म नहीं होगा। ऐसा ही होता भी है, कोई भी मनुष्य जब राम का जिक्र करता है तो वह रावण का नाम भी अवश्य ही लेता है। कहने का आशय रावण ने सतयुग के दौर में भले ही अपनी शक्तियों के बल पर तीनों लोकों में हाहाकार क्यों ना मचाया हो लेकिन उसके सरीखा विद्वान ब्राह्मण आज तक मनुष्य जाति में नहीं हुआ। अपने उसी ज्ञान के चलते कई स्थानों में रावण का मंदिर भी स्थापित भी है। लेकिन आज के समाज में कई स्थितियां बदल चुकी हैं, जहां एक ओर सतयुग से कलयुग हो चुका है तो वहीं आज राम का पता ही नहीं है सभी स्थानों पर रावण ही रावण नजर आते हैं। विशेष बात तो यह है कि उनके लिए रावण का नाम इस्तेमाल किया जाता है वह असली रावण भी नहीं है। क्योंकि रावण जो पाप कर रहा था उसके विषय में वह भली भांति जानता भी था। लेकिन जैसे भी हो आज समाज में कई प्रकार के रावण मौजूद हैं। जो समाज को लगातार खोखला कर रहे हैं। लेकिन आज सोचने की बात यह है कि उस दौर में रावण को समाप्त करने के उद्देश्य से उतरे राम कहीं नहीं दिख रहे हैं। ना ही दूर तक किन्हीं मर्यादा पुरुषोत्तम के आने की कोई उम्मीद नहीं है। क्या इस परिप्रेक्ष्य में जिस दशहरे को मनाने की तैयारी हम कर रहे हैं उसे उचित कहा जा सकता है? यह अपने आप में सोचने का प्रश्न है कि हम लगातार रावण पर रावण जला रहे हैं लेकिन ना तो हमने कभी राम के गुणों को अपनाने की कोशिश की और ना ही कभी रावण के अवगुणों को त्यागने की।
लगातार विकास की सीढ़ियां चढ़ता मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के देश में आज दशमुखी नहीं वरन बहुमुखी रावण सामने आ रहे हैं। गौर करें तो तो दस ऐसी समस्यायें हैं जो रावण बने हमारे सामने हैं। जिसमें प्रमुख तौर पर मुस्लीम आतंकवाद, भ्रष्टाचार, साम्राज्यवाद, लालफीताशाही, अपराधीकरण, बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी, मुस्लीम साम्प्रदायिकता, सामाजिक शोषण ( बाल श्रम, महिला, निम्न वर्ग) जैसे दस रावण हमारे सामने हैं, जो हमारे समाज पर अपनी अलग-अलग समस्यायें छोड़ रहे हैं। यदि विस्तृत तौर पर इन समस्याओं का प्रभाव देखें तो वह बड़ा ही व्यापक है।
सर्वप्रथम यदि आतंकवाद की बात करें इस समस्या ने आज समूचे विश्व को अपने पाश में कैद कर लिया है। यूरोप से लेकर एशिया तक आज यह समस्या वृहद आकार ले चुकी है। वर्तमान उदाहरण ले लें तो लुधियाना के श्रृगांर सिनेमा में हुआ धमाका। इस समस्या ने निश्चित ही आज देश में सोचने पर मजबूर कर दिया है।वहीं दूसरे स्थान पर भ्रष्टाचार अपना स्थान रखता है। आज यह हमारी व्यवस्थाओं पर घुन की तरह लग चुका है। सभी इसके दायरे में आ चुकी हैं। नगर पालिकाओं से लेकर संसद तक में ये घुन पहुंच चुके हैं। आम आदमी इससे त्रस्त है। आज की तिथि में कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो बिना इन घुनों को चारा दिये संपन्न हो सके। इस रावण ने भी देश में पाप का साम्राज्य फैलाया हुआ है। इसके बाद आती है साम्राज्यवाद की समस्या। अपनी नीतियों के माध्यम से दूसरे देशों पर राज करने का नाम आज साम्राज्यवाद बन चुका है। कभी किसी दौर में इससे लड़ने वाला अमेरिका आज स्वयं एक साम्राज्यवादी ताकत ब चुका है। उसकी कोशिश यही है कि जो वह कर रहा है बस वही करे और कोई ना। विशेष तौर पर अब वह आथिक नीतियों के रुप में हो या सामरिक नीतियों के रुप में। वाम दलों के अनुसार भारत पर यह समस्या परमाणु करार के उपहार स्वरूप आ रही है। जिसे ना लेना ही बेहतर होगा। उसी पर विवाद चल रहा है।
समाज में जो रावण के चौथे मुख के रूप में मौजूद है वह है लालफीताशाही। हमारे सभी नौकरशाहों पर जिन आकाओं के हाथ के चलते आज वह महज पैसे वालों के होकर रह गये हैं। आम आदमी उनके लिए कुछ मायने नहीं रखता। जो पैसे दिखाता है उसी की फाइल आगे बढ़ती है। राम का देश आज इस समस्या से बूरी तरह से जूझ रहा है। यही नहीं रावण का पांचवा मुंह आज समाज में अपराधिकरण का है। यह वही राम का देश है जहां किसी दौर में घर में ताले नहीं लगते थे लेकिन आज ताले तोड़ना तो दूर घर में घुसकर हत्यायें हो रही हैं। अपराध का स्तर लगातार बढ़ रहा है।रावण का छठा मुंह ताने बेरोजगारी हमारे सामने है। पढ़े लिखे नौजवान आज बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हैं। बेरोजगारी का आलम क्या है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज ग्रामीण भारत का ५० फीसदी से ज्यादा युवा शहरों की ओर पलायन कर चुका है। लेकिन रोजगार रूपी राम अभी भी बहुत दूर लगते हैं।यही नहीं इस देश का सातवां रावण आज गरीबी है। जिसका प्रभाव महानगरों से लेकर ग्रामीण भारत तक स्पष्ट दिखाई देता है। एक अरब की जनसंख्या में यदि आंकड़ों की बात करें तो २६ करोड़ से ज्यादा हिंदुस्तानी आज गरीबी रेखा से नीचे का जीवन व्यापन करने को मजबूर हैं।सातवां मुंह ताने मुस्लीम साम्प्रदायिकता का रावण हमे गाहे-बगाहे परेशान करता ही रहता है। आजादी के मुस्लीम प्रायोजित दगा हो या गोधरा मे जलाये गये राम भक्त सभी में हमें अपने ही भाई-बहनो को खोना पड़ा है। लेकिन ऐसा नहीं है कि इतिहास की इतनी भयावहताओं के बाद भी हम संभल रहे हों। मुस्लीम कठमूल्ले आज भी हमारे समाज में मौजूद हैं। जो समय-समय पर धार्मिक मान्यताओं को भड़का कर तनाव फैलाने की कोशिश करते हैं। सामाजिक शोषण रूपी दशवा रावण जो एक साथ कई समस्यायों को लिए हुए है हमारे बीच में मौजूद है। बाल श्रम, नारी हिंसा, निम्न वर्ग की बदहाल हाालात सभी अपना मुंह ताने खड़ी हैं। संपूर्ण देश की बात को यदि क्षण भर के लिए भूल जाये और देश की राजधानी की बात करें, तो महिला हिंसा का प्रतिशत यहां लगातार बढ़ता ही जा रहा है। दिल्ली में उस तबके को भी देखा जा सकता है जिसे निम्न वर्ग कहा जाता है। उसकी हालत और भी खराब है। कुल मिलाकर इस देश में हम इस वर्ष भी दशहरा मनाने जा रहे हैं। हर बार की तरह इस बार भी तीन पुतले जलेंगें। यदि हम चाहते हैं कि वास्तव में रावण के दुगुणों को हटायें तो उसके लिए जरुरी है कि हम उस जलते हुए रावण के अपने अंदर के रावण को मारे। क्योंकि अगर इस देश में वास्तव में रावण को जलाना है तो इस बार भी वार नाभि में करना होगा।
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मुसलमानों का तालिबानी संस्कृति और हिन्दुस्तान

क्या भारत के मुसलमानों का रवैया लोकतंत्र, पंथनिरपेक्षता और नागरिक अधिकारों जैसे शाश्वत मूल्यों के बारे में शेष विश्व के मुसलमानों से भिन्न है? क्या हमारे देश में पंथनिरपेक्षता के मापदंड अलग-अलग समुदाय के लिए भिन्न-भिन्न है? इन यक्ष प्रश्नों का उत्तार हाल की कुछ घटनाओं में निहित है। जहां कहीं भी मुसलमान अल्पसंख्या में होते है तो साधारणतया वे पंथनिरपेक्षता का समर्थन करते है, किंतु जैसे ही उनकी संख्या एक सीमा से बढ़ जाती है तो लोकतंत्र और पंथनिरपेक्षता जैसे मूल्य 'कुफ्र' हो जाते है। इस्लाम सर्वोपरि हो जाता है एवं गैर मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक बन जाते है। बांग्लादेश और पाकिस्तान इसके उदाहरण है। इसका छोटा रूप हम हरियाणा में करनाल से सटे मुंडोरगारी गांव में देख सकते है। यहां मुसलमानों की आबादी पांच हजार है और गांव में केवल एक ही गैर-मुसलमान दलित परिवार है। यहां कठमुल्लों का इतना दबदबा है कि गांव में एक भी टेलीविजन नहीं है। बाहरी दुनिया का हाल जानने के लिए केवल रेडियो सुनने की अनुमति है। फोटो खिंचवाने पर प्रतिबंध है। उच्च शिक्षा पर मनाही है। महाभारत कालीन सभ्यता का केंद्र रहे और आज एक प्रगतिशील राज्य के रूप में पहचान बनाने वाले हरियाणा में यह तालिबानी संस्कृति का एक द्वीप कैसे और क्यों विकसित हुआ?
दूसरा उदाहरण पिछले सप्ताह का है। हैदराबाद के मेहदीपट्टनम स्थित नारायण जूनियर कालेज के मुसलमान छात्र भड़क उठे। देर से आए दो छात्रों ने जब रमजान का महीना होने और सहरी के कारण थक जाने को देरी का कारण बताया तो प्रोफेसर ने कथित तौर पर इसे 'सिली एक्स्क्यूज' कहा। इस बात पर मुसलमान छात्रों ने कालेज में हंगामा खड़ा किया और भवन को भारी नुकसान पहुंचाया। ंप्रोफेसर द्वारा माफी मांगने के बावजूद छात्रों का आक्रोश थमा नहीं। इस घटना से पूर्व विगत 13 जुलाई को हैदराबाद के ही सेंट एन महिला कालेज में छात्राओं ने भी खासा बवाल मचाया था। राजनीति शास्त्र की शिक्षिका प्रशांति ने सलमान रुश्दी की चर्चा करते वक्त कथित तौर पर इस्लाम की आलोचना की थी। इसके विरोध में मुसलमान छात्राओं ने विरोध प्रदर्शन किया और शिक्षिका को गिरफ्तार करने की मांग की। मजलिस-ए-इत्तोहादुल मुस्लमीन, तेलंगाना राष्ट्र समिति, तेलगुदेशम जैसे कथित सेकुलर दल छात्राओं के समर्थन में फौरन आ खड़े हुए। शिक्षिका ने क्षमायाचना की, फिर भी उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया। अब वह जमानत पर रिहा है।
गांधी जयंती अब दुनिया में इस वर्ष से अहिंसा दिवस के रूप में मनाई जाएगी, किंतु कश्मीर में हालात कुछ और ही है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने गांधी जयंती के अवसर पर एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, ''..गांधी दर्शन ही प्रगति का मार्ग है।'' यह बात वहां के मुसलमानों को रास नहीं आई। कश्मीर के मुफ्ती बशीरुद्दीन ने इसकी कड़ी आलोचना करते हुए कहा, ''गांधी अपने समुदाय के लिए प्रासंगिक हो सकते है, किंतु मुसलमानों के लिए केवल पैगंबर साहब ही अनुकरणीय है।'' मुफ्ती ने आजाद से 'इस्लाम विरोधी' टिप्पणी के लिए प्रायश्चित करने को कहा है। गांधी जी ने मुस्लिमों की हर उचित-अनुचित मांगों का समर्थन किया। कठमुल्लों से प्रभावित मुस्लिम समाज को संतुष्ट करने के लिए खिलाफत आंदोलन में कांग्रेस को भी घसीट ले गए, किंतु वह जीवनपर्यत मुसलमानों का विश्वास नहीं जीत पाए। स्वतंत्रता संग्राम में मुसलमानों की भागीदारी नाम मात्र की थी। पाकिस्तान के निर्माण तक अधिकांश मुसलमानों ने अपना समर्थन अपने दीन की पार्टी-मुस्लिम लीग को ही दिया। विभाजन के साथ खंडित भारत में तमाम लीगी नेताओं ने रातोंरात कांग्रेस का पंथनिरपेक्षता का चोला पहन लिया, क्योंकि विभाजन के बाद भारत में मुसलमानों का जनसंख्या अनुपात आधे से भी कम रह गया था। कश्मीर में मुसलमानों ने गांधी जी के बारे में जो कहा उसमें कुछ नया नहीं है।
लखनऊ के अमीनाबाद पार्क में सन 1924 में मुस्लिम नेता मोहम्मद अली ने कहा था, ''मिस्टर गांधी का चरित्र कितना भी पाक क्यों नहीं हो, मेरे लिए मजहबी दृष्टि से वह किसी भी मुसलमान से हेय है।. हां, मेरे मजहब के अनुसार मिस्टर गांधी को किसी भी दुराचारी और पतित मुसलमान से हेय मानता हूं।'' आज शेष भारत में तो गांधी जी मुसलमानों और 'सेकुलरिस्टों' के लिए आदर्श है,परंतु जम्मू-कश्मीर में केवल 'काफिर' मात्र। क्यों? इस बात में दो राय नहीं कि किसी भी समुदाय की आस्था पर आघात सभ्य समाज में स्वीकार नहीं होना चाहिए।
यदि पैगंबर साहब का अपमानजनक कार्टून बर्दाश्त नहीं है तो हिंदू देवी-देवताओं और भारत माता का अश्लील चित्रण करने वाले एफएम हुसैन सेकुलर बिरादरी के हीरो क्यों है? क्यों जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय उन्हे सम्मानित करने की घोषणा करता है? किस नैतिकता से प्रेरित होकर मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह इस जलसे में मुख्य अतिथि होने की सहमति देते है? इससे पूर्व केरल की सेकुलर सरकार ने विगत 17 सितंबर को हुसैन को 'राजा रवि वर्मा' सम्मान देने की घोषणा की थी। केरल उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए हुसैन को सम्मानित करने पर रोक लगा दी। क्या कोई पैगंबर साहब का अपमान करने वाले डच कार्टूनिस्ट को भारत में सम्मानित करने का दुस्साहस कर सकता है? करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़े श्रीराम के विषय में द्रमुक नेता करुणानिधि निरंतर विषवमन कर रहे है, किंतु क्या किसी सेकुलरिस्ट ने उनकी आलोचना की?
भारत के प्रधानमंत्री डच कार्टूनिस्ट की तो संसद में निंदा करते है। भारत सरकार प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से इस घटना पर अपना खेद प्रकट करती है, पर भगवान राम के अपमान पर मौन क्यों? करुणानिधि का बचाव करते हुए माकपा के महासचिव प्रकाश करात ने 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' का संकेत देते हुए यह कहा कि उन्हे भी आस्तिकों की तरह अपना विचार रखने का अधिकार है। स्वाभाविक प्रश्न है कि यह अधिकार केवल हिंदुओं से जुड़े मामलों में ही क्यों महत्वपूर्ण हो जाता है? यदि प्रकाश करात नास्तिक है तो वह मुस्लिम जमात के साथ डच कार्टूनिस्ट के खिलाफ सड़कों पर क्यों उतरे थे? विगत आठ मई को एक प्रतिष्ठित ईरानी विश्वविद्यालय के कला विभाग के प्रोफेसर को निलंबित कर दिया गया था। उन्होंने एक बुर्कानशीं छात्रा के पूर्णत: ढके होने पर टिप्पणी कर दी थी। इससे पूर्व अरब के जायद विश्वविद्यालय की प्रोफेसर क्लाडिया कोबोर्स को ईशनिंदा वाले कार्टून का प्रदर्शन करने के कारण निलंबित कर दिया गया था।
सऊदी अरब के शिक्षामंत्री शेख नाहयान बिन मुबारक ने अरब में 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' होने की बात तो की, किंतु साथ ही यह भी कहा कि इस स्वतंत्रता के नाम पर इस्लाम, इस्लाम की शिक्षाओं और परंपराओं की निंदा अथवा आलोचना बर्दाश्त नहीं की जाएगी। सऊदी अरब, ईरान आदि इस्लामी देश है, इसलिए उनके द्वारा अपने मजहब और संस्कृति का सम्मान करना स्वाभाविक है, किंतु आखिर पंथनिरपेक्षता का उद्घोष करने वाले भारत के सेकुलरिस्टों की चाल और चरित्र समुदायों के आधार पर क्यों बदलती है?
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आतंकवाद और हम

पहले जब विदेशी आक्रांता भारत की भूमि पर आतंक फैलाये हुए थे तब के दृष्टिकोण व आज जब विदेशियों द्वारा भाड़े पर स्थानीय लोगोंको भड़काकर आतंक फैलाया जा रहा है तो वर्तमान दृष्टिकोण में कोई विशेष अंतर दिखलाई नहीं देता है।
१०२३ ई. में महमूद गजनी ने सोमनाथ के पवित्र मंदिर पर हमला किया था तो मंदिर के पुजारियों ने उसके सामने मूर्ति तोड़ने व बदले में मुंहमंगा धन लेने का प्रस्ताव रखा था परन्तु महमूद ने अट्टाहास करते हुए कहा था कि वह बुत फरोश नहीं है बल्कि बुत शिकन है और यह कहते हुए उसने प्रतिमा के टुकड़े कर दिये थे एवं मंदिर की अकूत सम्पदा को लूट लिया गया था। हिन्दूओं ने उस समय एकजुट होकर लुटेरे महमूद का सामना नहीं किया था और उसके बाद तो जैसे उसके मुंह में खून ही लग गया था जिससे प्रेरित होकर उसने कुल १७ बार भारत पर आक्रमण किया और उसका सामना प्रभावपूर्ण तरीके से एकजुट होकर न जब किया था और न ही आतंकवादियों के विरूद्ध आज किया जा रहा है। आज भी आतंकवादी देश के विभिन्न स्थानों पर, मंदिरों पर हमले कर रहे हैं। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि १९९० और २००६ के बीच १६ वर्ष में मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर घाटी में ४०,००० लोग आतंकवाद के शिकार हुए हैं तथा १७० से अधिक मंदिरों को नष्ट व भ्रष्ट किया गया है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ७१२ ई. में मोहम्मद बिन कासिम के सिंध पर हमले के बाद से मंदिरों के विध्वंस का जो क्रम चालू हुआ था वह आज भी थमा नहीं है।
तब के आक्रमणकारियों का मुख्य उद्देश्य मंदिरों व मूर्तियों को तोड़ना, हिन्दुओं का कत्लेआम कर उनकी बहू व बेटियों की इज्जत लूटकर उनमें हीन भावना जाग्रत करना, उनके पवित्र धर्मग्रन्थों को जलाना व देश की अकृत धन सम्पदा को लूटकर इस्लाम का परचम फहराना था। यही सब उद्देश्य आज के आतंकवादियों के भी है, जो जेहाद के नाम पर अपनी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। भारत सरकार व भारत के देशवासियों ने आतंकवाद से लड़ने की अपनी नीति को परिभाषित नहीं किया है। अफसोस यह है कि सरकार अभी गंभीरता से आतंकवाद व अलगावाद से लड़ने का मन इसलिए नहीं बना पा रही हैं क्योंकि उसके सामने चुनावों से सत्ता प्राप्ति के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण का महत्वपूर्ण मुद्दा रहता है। तभी सरकार आतंकवाद को न तो परिभाषित ही कर पा रही है और न ही उसके विरूद्ध लड़ने की कोई रीति-नीति व कार्ययोजना बना सकी है। देश के वर्तमान मंदिर, वैज्ञानिक संस्थान, परमाणु संयंत्र, बड़े-बड़़े बांध, आथिक शक्ति के प्रतीक चिन्ह, हमारे कल-कारखाने, भीड़भाड़ के स्थल और रेलों इत्यादि को लक्ष्य करके उनका विध्वंस किया जा रहा हैं। सरकार परमाणु संस्थानों पर बढ़ते खतरे की बात को स्वीकार भी कर चुकी है परन्तु आतंकवाद के प्रभावपूर्ण तरीके से लड़ने के लिए सरकार ने अपनी पुलिस, सेना व सुरक्षा बलों के हाथ बांध रखे हैं। भारतीय जनता भी महमूद गजनी के युग की तरह आज भी एकजुट होकर सरकार पर आतंकवाद व अलगावाद को रोकने के लिए कोई दबाव नहीं बना पा रही है क्योंकि सरकार व अन्य राजनैतिक दलों ने देश की जनता को क्षेत्र, जाति, धर्म, लिंग व अन्य अनेक आधारों पर विखण्डित कर रखा है। भारत लगभग ५० वषो से आतंकवाद के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जूझ रहा है। भारत में आतंकवाद से लड़ने के लिए कोई प्रभावी कानून ही नहीं है। एक पोटा था जो मुस्लिम तुष्टिकरण की भेंट पहले ही चढ़ चुका है। अनलॉफुल एक्टिविटीज जिसकी सरकार दुहाई देती है, एक बेहद ही लचर कानून है जिससे पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों का मनोबल गिर रहा है। आतंकवाद घटना होने पर हमारे राजनेता मात्र यही रटारटाया जवाब देते हैं कि हम आतंकवादियों से सख्ती से निपटेंगे और भारतीय जनता को आधुनिक हथियारों से लैस आतंकवादियों के सामने ऐसे डाल देते हैं जैसे कि शेर के सामने मेमने को। अब यह लगभग स्पष्ट हो चुका है कि जेहादी आतंकवादी संगठन तीन चरणों में अपने लक्ष्य की प्राप्ति करना चाहते हैं प्रथम चरण में वे जम्मू व कश्मीर को मुक्त कराना चाहते हैं। द्वितीय चरण में हैदराबाद व जूनागढ़ को हिन्दुओं के कथित आधिपत्य से छीनना चाहते हैं और तुतीय चरण में अन्य प्रदेशों के मुसलमानों को आजाद कराना चाहते हैं। इन आतंकवादी संगठनों का मानना है कि भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश में विश्व के ४५ प्रतिशत मुसलमान रहते हैं, इन सभी को मिलाकर दक्षिण एशिया में एक इस्लामिक राज्य की स्थापना होनी चाहिए। इसके लिए ही आतंकवादी संगठन भारत में एक भयानक स्थिति उत्पन्न करने की निरंतर कोशिश कर रहे हैं। अलकायदा के जवाहिरी ने हिन्दुओं के प्रति तो कुछ बोला नहीं है अपितु जम्मू व कश्मीर को आजाद करने की व पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ पर हिन्दुओं से सांठ-गांठ करने का आरोप लगाया है। अलकायदा ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए कई संगठन खड़े किए हुए हैं, जिसमें लश्कर-ए-तोयबा, हरकत उल मुजाहिदीन, हरकत उल जेहाद इस्लामी, जैश-ए-मोहम्मद इत्यादि है। भारत में अलकायदा का नेटवर्क सभी राज्यों में फैल चुका है।
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काग्रेस की देशभक्ती पर सन्देह

असम में ताकतवर माने जाने वाले छात्र संगठन अखिल असम छात्र संघ (आसू) को पिछले दिनों काफी निराशा के दौर से गुजरना पड़ रहा था. इसका कारण यह था कि उसे अवैध बांग्लादेशियों के मुद्दे को फिर से उभारने में कामयाबी नहीं मिल रही थी. इसके विपरीत बार-बार की सरकार के साथ बैठकों के कारण उसकी एक समझौतापरस्त और सरकारपरस्त छवि बनती जा रही थी.
लेकिन अचानक ही पड़ोस के अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड के सीमावर्ती जिलों के छात्र संगठनों ने अपने यहां से अवैध नागरिकों को वापस भेजने का अभियान शुरू कर दिया. बाद में यह मुहिम मिजोरम में भी शुरू कर दी गई. यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि अवैध नागरिकों की असम और इन तीन राज्यों की परिभाषा में अंतर है. इन तीनों पहाड़ी राज्यों में (और मणिपुर के भी कुछ जिलों में) जाने के लिए भारतीय नागरिकों को भी विशेष अनुमति लेनी पड़ती है. इसे इनर लाइन परमिट कहा जाता है.
इसलिए इन राज्यों के छात्र जब कहते हैं कि वे अवैध नागरिकों को राज्य के बाहर खदेड़ेंगे तो उनका तात्पर्य यह होता है कि वे उन सभी लोगों को राज्य के बाहर भेज देंगे, जिनके पास वैध इनर लाइन परमिट नहीं है. इस तरह अरुणाचल प्रदेश के छात्र संगठन ने करीब 24 हजार लोगों को प्रदेश छोड़ देने का फरमान जारी किया और ये लोग जबरन वापस भेजे जाने का इंतजार किए बिना ही असम के लिए कूच कर गए. इस तरह जुलाई महीने के दूसरे पखवाड़े में बसों में इन लोगों का असम में आने का तांता लगा रहा.
काग्रेस की देश विरोधी मानसिकता
असम आने वाले इन लोगों में सभी बंगलाभाषी मुसलमान थे और अरुणाचल प्रदेश में मजदूरी करते थे. इनको लेकर असम में राजनीति गरम हो गई. आसू का कहना था कि ये लोग बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं. कई जगह इन मजदूरों को छात्र नेताओं ने सीधे पुलिस को सौंप दिया. कुछ मंत्रियों के हस्तक्षेप के बाद इन लोगों को पुलिस सुरक्षा में उनके गृह जिलों में पहुंचाया गया. नगालैंड से भगाए गए लोगों के साथ भी यही सलूक हुआ.
अब राज्य में इस विवाद के इर्द-गिर्द राजनीति गर्म हो गई कि दोनों पड़ोसी राज्यों से भगाए गए लोग बांग्लादेशी थे या भारतीय नागरिक. आसू जहां उनकी नागरिकता पर संदेह व्यक्त करता रहा, वहीं सत्ताधारी कांग्रेस उन्हें क्लीनचिट देती रही. इधर मुसलमानों के एक और पैरोकार बदरुद्दीन अजमल वाले असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एयूडीएफ) ने भी इन विस्थापित मजदूरों के पक्ष में आवाज उठानी शुरू कर दी. पूर्वोत्तर राज्यों के विभिन्न छात्र संगठनों के फेडरेशन "नेसो' के सम्मेलन में पूर्वोत्तर को अवैध घुसपैठियों से खाली कराने का संकल्प लिया गया.
छह अगस्त से शुरू हुए असम विधानसभा के मानसून सत्र में भी यही मुद्दा छाया रहा. एयूडीएफ के विधायक तो एक दिन खास तरह की टोपी और लूंगी पहनकर विधानसभा में गए और यह संदेश देने की कोशिश की कि राज्य में हर टोपी-लूंगीधारी को बांग्लादेशी घुसपैठिया नहीं समझा जाना चाहिए. अलबत्ता इस "प्रदर्शन' का राज्य के बढ़ते सांप्रदायिक तापमान में उल्टा ही असर हुआ और हिंदुत्ववादियों ने इसे असम विधानसभा के भविष्य का स्वरूप करार दिया.
बहरहाल असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के रवैये से साफ जाहिर है कि वे अवैध घुसपैठियों को "परेशान' करने के लिए कुछ नहीं करने जा रहे. आसू तथा विपक्षी दलों द्वारा बनाए गए दबाव के आगे झुकने से इनकार करते हुए उन्होंने कह दिया कि पड़ोसी राज्यों से असम में आने वाले विस्थापितों में एक भी बांग्लादेशी या संदिग्ध नागरिकता वाला व्यक्ति नहीं था.
सोनिया गांधी का फरमान
हालांकि न तो तब और न ही अब, कांग्रेस राज्य में 31 फीसदी के आंकड़े को छूने वाले मुसलमान समुदाय को नाराज करने का जोखिम उठा सकती है. लेकिन भला हो आईएमडीटी कानून का, कि एक भी बांग्लादेशी को देश के बाहर किए बिना गोगोइर् हिंदुओं के खैरख्वाह बन बैठे और दुबारा गद्दी हासिल करने में कामयाब हो गए.
लेकिन राजनीति में एक ही फार्मूला ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता. ताजा स्थिति में तरुण गोगोई ने अपने-आपको मुसलमानों के संरक्षक के रूप में पेश करने का मन बना लिया है. राष्ट्रीय राजनीति के दबाव भी इसके पीछे काम कर रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की नजरें आगामी लोकसभा चुनावों पर हैं. असम के माध्यम से वे देश भर में एक संदेश देना चाहती हैं. इसके लिए जमीयत उलेमा–ए-हिंद उनके लिए काम का संगठन साबित हो सकता है. गोगोई ने जमीयत के आगे झुकने से एक बार इनकार कर दिया था. लेकिन गोगोई की जिद के आगे झुककर सोनिया बाकी भारत में, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में, कांग्रेस की डूबती नैया में एक छेद और नहीं करना चाहती. उन्होंने गोगोई को इसके लिए मना लिया है कि बदरुद्दीन अजमल को वापस कांग्रेस में ले लिया जाए और आगामी पंचायत चुनाव उनके साथ मिलकर लड़े जाएं और बांग्लादेशी मुस्लमान को जीतना फायदा दे सकते है दे दे।
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जागो हिन्दू जागो

वैसे तो पिछले डेढ़ वर्ष से केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के बाद से संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन ने एक के बाद एक मुस्लिम तुष्टीकरण के ऐसे कदम उठाये हैं जो पिछले सारे रिकार्ड धवस्त करते हैं. पिछले वर्ष दो निजी टेलीविजन के साथ साक्षात्कार में कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी ने स्वीकार किया था कि मुसलमान कांग्रेस के स्वाभाविक मित्र हैं और उन्हें अपने पाले में वापस लाने का पूरा प्रयास किया जायेगा. यह इस बात का संकेत था कि मुसलमानों को कुछ और विशेषाधिकार दिये जायेंगे.
इसी बीच केन्द्र सरकार ने सेवा निवृत्त न्यायाधीश राजेन्द्र सच्चर की अध्यक्षता में एक आयोग बनाकर समाज के प्रत्येक क्षेत्र में मुसलमानों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का आकलन करने का निर्णय लिया. सेना में मुसलमानों की गिनती सम्बन्धी आदेश को लेकर उठे विवाद के बाद उस निर्णय को तो टाल दिया गया परन्तु न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका में मुस्लिम भागीदारी का सर्वेक्षण अवश्य किया गया.
राजेन्द्र सच्चर आयोग ने अब अपनी विस्तृत रिपोर्ट प्रधानमन्त्री को सौंप दी है. इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से पूर्व ही जिस प्रकार प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह ने मुसलमानों की बराबर हिस्सेदारी की बात कह डाली वह तो स्पष्ट करता है कि सरकार ने मुसलमानों को आरक्षण देने का मन बना लिया है. इसकी झलक पहले भी मिल चुकी है जब आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमन्त्री ने अपने प्रदेश में मुसलमानों को आरक्षण दिया परन्तु आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने उसे निरस्त कर दिया. फिर भी सरकार का तुष्टीकरण का खेल जारी रहा. संघ लोक सेवा आयोग में मुस्लिम प्रत्याशियों के लिये सरकारी सहायता, रिजर्व बैंक से मुसलमानों को ऋण की विशेष सुविधा, विकास योजनाओं का कुछ प्रतिशत मुसलमानों के लिये आरक्षित करना ऐसे कदम थे जो मुस्लिम आरक्षण की भूमिका तैयार कर रहे थे. अब सच्चर आयोग ने आरक्षण की सिफारिश न करते हुये भी मुस्लिम आरक्षण के लिये मार्ग प्रशस्त कर दिया है.
मुसलमानों को बराबर की हिस्सेदारी का सवाल उठा ही क्यो? इसका उत्तर हे कि हमारे सेक्यूलर वामपंथी उदारवादी दलील देते हैं कि इस्लामी आतंकवाद मुसलमानों के पिछड़ेपन का परिणाम है. इसी तर्क के सन्दर्भ में दो महत्वपूर्ण तथ्यों को समझना समीचीन होगा. सच्चर आयोग ने ही अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश की जेलों में बन्द कैदियों की संख्या में मुसलमानों की संख्या उनकी जनसंख्या के अनुपात से काफी अधिक है. भारत की जेलों में कुल 102,652 मुसलमान बन्द हैं और उनमें भी 6 माह से 1 वर्ष की सजा काट रहे मुसलमानों की संख्या का प्रतिशत और भी अधिक है. कुछ लोग इसका कारण भी मुसलमानों के पिछड़ेपन को ठहरा सकते हैं पर ऐसा नहीं है.
केवल भारत में ही नहीं फ्रांस, इटली, ब्रिटेन, स्काटलैण्ड और अमेरिका में भी जेलों में बन्द मुसलमानों का प्रतिशत उनकी कुल जनसंख्या के अनुपात में अधिक है. इसका कारण मुसलमानों का पिछड़ापन नहीं वरन् जेलों में गैर मुसलमान कैदियों का मुसलमानों द्वारा कराया जाने वाला धर्मान्तरण है. अभी हाल में मुम्बई में आर्थर रोड जेल में डी कम्पनी के गैंगस्टरों द्वारा हिन्दू कैदियों को धर्मान्तरित कर उन्हें मदरसों में जिहाद के प्रशिक्षण का मामला सामने आया था. यह उदाहरण स्पष्ट करता है कि मुसलमान का एकमेव उद्देश्य अपना धर्म मानने वालों की संख्या बढ़ाना है. इस कट्टरपंथी सोच को आरक्षण या विशेषाधिकार देने का अर्थ हुआ उन्हें अपना एजेण्डा पालन करने की छूट देना.
दूसरा उदाहरण 22 जून 2006 को अमेरिका स्थित सेन्ट्रल पिउ रिसर्च सेन्टर द्वारा किया गये सर्वेक्षण की रिपोर्ट है 6 मुस्लिम बहुल और 7 गेर मुस्लिम देशों में किये गये सर्वेक्षण के आधार पर प्रसिद्ध अमेरिकी विद्वान डेनियल पाइप्स ने निष्कर्ष निकाला कि दो श्रेणी के देशों के मुसलमान अलग-थलग और कट्टर हैं एक तो ब्रिटेन जहाँ उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त है और दूसरा नाइजीरिया जहाँ शरियत का राज्य चलता है. अर्थात विशेषाधिकार मुसलमानों को और कट्टर बनाता है. ब्रिटेन का उदाहरण भारत के लिये प्रासंगिक है क्योंकि भारत की शासन व्यवस्था और राजनीतिक पद्धति काफी कुछ ब्रिटेन की ही भाँति है.
इन दृष्टान्तों की पृष्ठभूमि में केन्द्र सरकार के मुस्लिम तुष्टीकरण के पागलपन को समझने की आवश्यकता है विशेषकर तब जब जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी सार्वजनिक रूप से श्रीमती सोनिया गाँधी के साथ इस्लामी संगठनों के सम्पर्क की बात कह चुके हैं. ऐसा लगता है इस्लाम बहुसंख्यक हिन्दू समाज की कनपटी पर बन्दूक रखकर आतंकवादी घटनाओं के सहारे अपने लिये विशेषाधिकार चाहता है.
वे जनसंख्या उपायों का पालन नहीं करेंगे और जनसंख्या बढ़ायेंगे , देश के किसी कानून का पालन नहीं करेंगें और ऊपर देश में बम विस्फोट कर आरक्षण तथा विशेषाधिकार भी प्राप्त करेंगे. यह फैसला हिन्दुओं को करना है कि उन्हें धिम्मी बनकर शरियत के अधीन जजिया देकर रहना है या फिर ऋषियों की परम्परा जीवित रखकर इसे देवभूमि बने रहने देना है.
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करुणानिधि का दुराग्रही चिंतन

ब्रितानियों ने बनियों व ब्राह्मणों को सत्ता हस्तांतरित की है इसलिए हम भारत की आजादी नहीं स्वीकार करते।. यह कहना था जस्टिस पार्टी के नेता रामास्वामी पेरियार का। 15 अगस्त, 1947 के स्वतंत्रता दिवस को उन्होंने शोक दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया था। उन्होंने ब्रितानियों के बांटो और राज करो की नीति के अंतर्गत प्रचारित आर्य-द्रविड़ सिद्धांत पर आधारित उत्तर भारत और ब्राह्मण विरोध का आंदोलन खड़ा किया। हिंदू देवी-देवताओं का सार्वजनिक अपमान किया। पेरियार की पत्नी मनियामाई ने रामलीलाओं के मंचन की निंदा करते हुए चेन्नई में रावणलीला का आयोजन किया। आज राम और रामायण के खिलाफ विषवमन करने वाले करुणानिधि और उनका दल द्रमुक उसी साम्राज्यवाद प्रसूत अलगाववादी चिंतन के मानसपुत्र हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि इस ईशनिंदा अभियान में करुणानिधि को मा‌र्क्सवादियों का पूरा समर्थन मिला है। रामास्वामी पेरियार यदि दक्षिण भारत को शेष भारत से अलग कर एक स्वतंत्र द्रविड़स्तान की कल्पना करते थे तो यहां के कम्युनिस्ट भी भारत को एक एकीकृत भारत के रूप में नहीं देखते थे। उनके चिंतन में भारत 16 राष्ट्रों का समूह था और अंग्रेजों के जाने के बाद उसे उतने ही हिस्सों में खंडित हो जाना चाहिए था। इसीलिए दोनों ने ही जिन्ना के पाकिस्तान सपने को साकार करने के लिए पूरा सहयोग दिया। यदि पेरियार ने हर तरह से अंग्रेजों की साम्राज्यवादी सत्ता के पक्ष में आवाज उठाई तो भारतीय कम्युनिस्टों ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में ब्रितानी हुकूमत का साथ दिया। प्रथम विश्वयुद्ध के समय मद्रास में एनी बेसेंट की थियोसोफिकल सोसायटी ने होम रूल आंदोलन आरंभ किया और मांग की कि युद्ध के बाद भारतीयों के लिए स्व-शासन का प्रावधान हो। इससे अंग्रेजों में स्वाभाविक चिंता हुई और इसकी काट के लिए उनके आशीर्वाद से साउथ इंडियन लिबरेशन फ्रंट की स्थापना हुई, जिसका नाम बदलकर 1917 में जस्टिस पार्टी रखा गया। जस्टिस पार्टी ने कांग्रेस आंदोलन को ब्राह्मणवादी आंदोलन कहकर लांक्षित किया और भारत में अंग्रेजों का राज सदा के लिए बना रहे, इसकी पुरजोर कोशिश की। जस्टिस पार्टी के इस राष्ट्रविरोधी चिंतन में तत्कालीन ईसाई मिशनरियों की बहुत बड़ी भूमिका थी। इसी जस्टिस पार्टी से पहले डीके और बाद में डीएमके आंदोलन का जन्म हुआ। अगड़ी जातियों, खासकर ब्राह्मणों को मतांतरित करने में विफल रहे ईसाई मिशनरियों ने दक्षिण के गैर-ब्राह्मणों के माध्यम से अपना उल्लू साधना चाहा। पेरियार का सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट, जस्टिस पार्टी और बाद में इन दोनों के विलय से खड़ा डीके मूवमेंट वस्तुत: चर्च और ब्रितानी साम्राज्यवाद का संकर नस्ल है। पेरियार सभी तरह की सामाजिक बुराइयों के लिए उत्तर भारत, ब्राह्मणों, हिंदी वेद, पुराण, धर्मशास्त्र को दोषी ठहराते थे। सामाजिक न्याय और वर्ण व्यवस्था के विरोध के नाम पर पेरियार ने स्वाधीनता आंदोलन का विरोध और देश के शहीदों का अपमान किया। उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य को पुष्ट करने के उद्देश्य से समाज को खंडित करने का भी काम किया। अपने इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए उन्होंने सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव भी रखा, जिसे कांग्रेस और गांधीजी ने नकार दिया। आज उसी मानसिकता से प्रेरित करुणानिधि राम और रामायण के अस्तित्व का प्रमाण मांग रहे हैं। आस्था का वैज्ञानिक साक्ष्य क्या होगा? और यह प्रमाण केवल हिंदुओं से ही क्यों मांगा जाता है? राम नहीं थे; इस बात का प्रमाण करुणानिधि सामने रखें। इस बात का ऐतिहासिक साक्ष्य दें कि पैगंबर साहब चांद-तारों की राह जन्नत गए। इस बात का प्रमाण दें कि सूली पर टांग दिए जाने के बाद ईसा मसीह पुन: प्रकट हुए। सबसे बढ़कर करुणानिधि इस बात का ऐतिहासिक प्रमाण दें कि तमिल द्रविड़ नस्ल के हैं और आर्य बाहर से आए थे। ब्रितानियों द्वारा पोषित जिस आर्य-द्रविड़ संघर्ष का द्रमुक बखेड़ा खड़ा करता है उसका एक भी साक्ष्य न तो उत्तर भारत के आर्षग्रंथों में है और न ही तमिल साहित्य में। 1937 में हिंदी के खिलाफ आंदोलन छेड़ने के उपरांत अक्टूबर, 1938 को सलेम में आयोजित एक जनसभा को संबोधित करते हुए पेरियार ने कहा था, तमिलों की आजादी की रक्षा करने का श्रेष्ठ मार्ग शेष भारत से अलग होने के लिए संघर्ष करना है। यह इतिहास सम्मत है कि रामास्वामी पेरियार ने जिन्ना के अलग पाकिस्तान की मांग का समर्थन करते हुए 1938 में इरोड में आयोजित एक जनसभा में कहा था, जिन्ना का विभाजन प्रस्ताव मेरे लिए आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि मैं खुद भी पिछले बीस सालों से अलग द्रविड़नाडु की मांग कर रहा हूं। हिंदू-मुस्लिम समस्या को सुलझाने के लिए जिन्ना के प्रस्ताव से अच्छा विकल्प कोई दूसरा नहीं है। क्या कभी कोई देशभक्त भारतीय अखंडता और उसकी बहुलतावादी संस्कृति को नकार कर तथाकथित सामाजिक न्याय के नाम पर अलग देश की मांग कर सकता है? 21 जनवरी, 1940 को मद्रास को मद्रास प्रांत के राज्यपाल ने अनिवार्य हिंदी पाठ को निरस्त कर दिया। तब जिन्ना ने उन्हें टेलीग्राम भेजकर द्रविड़नाडु की दिशा में पहली जीत के लिए बधाई दी थी। अप्रैल, 1941 में मद्रास में आयोजित मुस्लिम लीग के 28वें वार्षिक अधिवेशन में जिन्ना ने अपने भाषण में द्रविड़स्तान का समर्थन करते हुए गैर-ब्राह्मणों के प्रति अपनी पूरी सहानुभूति और उन्हें अपना पूर्ण समर्थन देने की बात की थी। दिसंबर,1944 में कानपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए पेरियार ने उत्तर भारत के गैर-ब्राह्मणों से अपनी हिंदू पहचान छोड़कर खुद को द्रविड़ घोषित करने का आह्वान किया। उत्तर भारत तो दूर, क्या पेरियार दक्षिण भारत में ही सफल हो पाए? उन्होंने विनायक की प्रतिमा तोड़ी, आज गणपति की पूजा तमिलनाडु में चारों ओर होती है। उन्होंने राम की तस्वीरें फाड़ी, उन पर चप्पलों की माला डालीं, किंतु कुछ साल पूर्व तमिलनाडु के कारसेवक बड़ी संख्या में रामशिला लेकर अयोध्या पहुंचे थे। उन्होंने अंधविश्वासों से लड़ने की मुहिम छेड़ी, किंतु आज द्रमुक-अन्नाद्रमुक के अनुयायी अपने नेता के दीर्घायु होने के लिए सिर मंुडवाते हैं। स्वयं करुणानिधि और उनके परिजन साईं बाबा के चरण रज सिर से लगाते हैं। यह स्पष्ट है कि करुणानिधि 2007 में भी आज से 90 वर्ष पूर्व 1917 के तमिलनाडु से वैचारिक रूप से बंधे हुए हैं। इस बीच गंगा से बहुत पानी बह चुका है। आज न तो पेरियार के चिंतन की तमिलनाडु में स्वीकार्यता है और न ही उसे आशीर्वाद व संरक्षण देने वाले अंग्रेज आका शेष हैं। अन्नाद्रमुक की नेता जयललिता ब्राह्मण हैं और करुणानिधि से कम लोकप्रिय नहीं हैं। आज तमिलनाडु में आस्थावान हिंदुओं की कमी नहीं है। राम और रामायण के अस्तित्व को नकारते हुए करुणानिधि और कम्युनिस्ट अपने आप में कुछ मौलिक नहीं कर रहे हैं, बल्कि भारतीय अस्मिता पर कुठाराघात कर देश को खंडित करने के अंग्रेजों के अधूरे काम को पूरा करने की कुचेष्टा कर रहे हैं।
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कश्मीर में मारे गए मेजर की शादी इस महीने होने वाली थी

पिछले सप्ताह मेजर के. पी. विनय ने अपने पिता से फोन पर बात की थी और कहा था कि विवाह के लिए तैयार किए गए निमंत्रण कार्ड सभी दोस्तों को वे भेंज दें। दरअसल विनय की शादी इसी महीने के 29 अकटूबर को होने वाली थी।
बुधवार को 30 वर्षीय मेजर विनय के शव के लिए उनका परिवार हैदराबाद में इंतजार कर रहा था। दरअसल श्रीनगर से विमान के द्वारा उनका शव अंतिम संस्कार के लिए यहां लाया गया। गौरतलब है कि मंगलवार को जम्‍मू और कश्मीर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में मेजर विनय की मृत्यु हो गयी थी। मंगलवार की शाम मेजर विनय के परिवार के लिए सबसे ज्यादा दर्दनाक रही, जब सेना विभाग ने उनके परिवार को फोन के द्वारा यह सूचना दी कि बारामूला जिले में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में मेजर विनय की मृत्यु हो गयी है। कश्मीर से सेना के अधिकारियों ने मेजर विनय के बड़े भाई विक्रम को फोन पर यह जानकारी दी थी। उनके भाई सिर पर और सीने पर गोली लगी। उस वकत मेजर विनय की मां जयंती अपने बेटे के विवाह को लेकर तैयारी कर रही थीं।
शहीद विनय कि शादी शायद हिन्दुस्तान के नेताओ को यह मंजूर नहीं थी।
भारत की राजनीति में कई ऐसे नेता हैं जिन्हें न देश की चिंता है, न देशवासियों की। उन्हें चिंता है तो सिर्फ अपनी राजनीतिक दुकान की। यह दुकान चलती रहे इसके लिए वे कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती बाप-बेटी की पार्टी पी.डी.पी. के दबाव में आकर सी.आर.पी.एफ. ने कुछ समय पहले अपनी कुछ चौकियां खाली कर दी थीं। अब पी.डी.पी. और नैशनल कांफ्रैंस के नेता यह दबाव बना रहे हैं कि रमजान के महीने में संघर्ष विराम हो यानी सेना आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई रोक दे। सेना में कुछ बड़े अधिकारी दबी जुबान में यह मानते हैं कि कुछ नेता ऐसे हैं जो राष्ट्र विरोधी हैं, कौम के दुश्मन हैं। संघर्ष विराम लागू करने की मांग का एक ही मकसद है कि आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की रफ्तार कम हो जाए। यदि यह मांग मान ली गई और आतंकवादियों को थोड़ी भी राहत दी गई तो उन्हें गोलाबारूद इकट्ठा करने का मौका मिल जाएगा। कौम के दुश्मन ये नेता सुरक्षा बलों से तो संघर्ष विराम का आग्रह करते हैं, आतंकवादी गिरोहों से क्यों नहीं कहते कि रमजान के दौरान वे अपनी गतिविधियां बंद कर दें। पी.डी.पी. के संस्थापक नेता मुफ्ती मोहम्मद वही व्यक्ति है जिसके भारत का गृहमंत्री रहते उसकी बेटी रूबिया को आतंकवादी उठा ले गए थे और उसे अपहर्ताओं से मुक्त कराने के लिए फिरौती में पांच दुर्दांत आतंकवादी रिहा करने पड़े थे।
आतंक का सामना करने की बात जब आती है तो भारत की तस्वीर एक नपुंसक राष्ट्र के रूप में उभरती है। पुलिस और नेता पुराना राग अलापते हैं लेकिन वास्तव में कोई मौलिक परिवर्तन नहीं होता। मुंबई बार-बार आतंकवादियों के निशाने पर चढ़ता है और सीरियल बम ब्लास्ट होते है। दिल्ली का भी बार-बार आतंकवादी चीर-हरण करते रहे हैं। चार माह में हैदराबाद को भी आतंकवादियों ने दो बार तार-तार करने का दुस्साहस किया है , बेंगलुरू में इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस पर भी हमला किया गया। आतंकवादियों के हौसले बुलंद हैं और एक एक करके नए शहर उनके निशाने पर चढ़ते जा रहे हैं और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।
स्थितियां भयावह हैं। चिंताजनक पहलू यह है कि हमारा तंत्र आतंकवादी हमलों को रोकने में तो नाकाम है ही साथ में कसूरवार को पकड़कर अंजाम तक पहुंचाने में भी उसका रेकॉर्ड अच्छा नहीं है। 1993 के मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में अभियुक्तों को अंजाम तक पहुंचाने में 14 साल लग गए। अभी तक उसके असली षडयंत्रकारी खुलेआम घूम रहे हैं। हमारे तंत्र में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति की कमी सदैव खलती है। और इससे भी खतरनाक है , ऐसे तत्वों के बारे में राजनीतिक प्रटेक्शन की कहानियों का बाजार में होना। 9/11 के बाद आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी कार्रवाई की चौतरफा निंदा भले ही हो रही हो लेकिन दुनिया के सामने आज यह एक सच्चाई है कि 2001 के बाद से अमेरिका की ओर आतंकवादियों ने आंख उठाकर भी नहीं देखा है। कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि आतंकवाद के प्रति अमेरिका के अप्रोच का हम समर्थन कर रहे हैं। लेकिन कब तक हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे और निर्दोष लोगों को आतंकवादियों के हाथों मरते देखते रहेंगे ? वक्त आ गया है कि हम आतंकवाद पर जवाबी हमला बोलें या हिन्दुस्तानी नेता और जनता को नपुंसक घोषीत कर दे।
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Why its Happen Only with Hindu? Think......

The contents of the appeal are as follows


1. Daily 6000 illegal Bangladeshi infiltrators cross into Indian territory. You feed Lakhs of such Bangladeshis; residing in Mumbai. Hindus are thrown out of Kashmir & made to live as refugees. Illegal Bangladeshis are given ration cards.
2. Temples, Ram Setu are demolished, whereas Churches & Madarssas are protected. Places Sacred to Hindus are under threat of Islamic terrorists.
3. POTA is abolished to protect minorities Quota introduced to split Hindus.
4. 2 Dalit Policemen are brutally murdered by Muslim mob in Bhiwandi the helpless government keeps mum
5. Hindu temple Trusts are taken over by Government and its earnings are used to feed non-Hindus projects. Non-Hindu places of worship are allowed to mushroom uncontrolled.
6. A Hindu is unsafe everywhere. - In Parliament, Trains, Buses, Temples, Market place and even at Home and none is bothered.
7. Terrorist Ishrat Jahan is killed in encounter; Politicians compensate her family with Lakhs of Rupees.
8. Parliament attack mastermind Afzal's death sentence is unduly postponed.
9. Terrorist Masood Azhar gets free passage to Afghanistan, Coimbatore blast mastermind - Madani is served Biriani & given Massage service in Jail, whereas Hindu religious Head Shankaracharya is arrested on Diwali day & treated as criminal.
10. Terrorist Sanjay Dutt moves freely and is compared to Mahatma Gandhi.
11. Prime Minister wishes to 'Give first claim on Resources to Muslims' There is special census for Muslim head count in Government offices. Reservation in Public, Private Sector and even in Police & Army is proposed.
12. Subsidy is given to HAJ Pilgrims whereas Service tax is imposed on Amarnath, Mansarovar pilgrims. Muslims dare to refuse - singing of Vande Mataram.
13. Terrorist organization like SIMI is given clean chit by Mulayam & Arjun.
14. Government (Banerjee Report) projects Godhra Train Carnage as an meager accident while Gujarat riots are blown out of proportion.
15. Supreme Court shows disrespect & suspicions on its own Gujarat Courts and transfers Best Bakery Trial from Gujarat to Mumbai.
16. Media continuously targets Hindus & Hindutva in a planned manner. Black Magic bill is introduced to put an end to all Hindu rituals and to term them as superstitions.
17. Some so called 171 Intellectuals like Barkha Dutt, Testa, Ashutosh Guavarikar etc, propose 'Bharat Ratna' for M.F.Hussain who dares to insulted Bharatmata & Hindu Gods & Goddesses.
18. Most Convent schools ban Kumkum, Mehandi, Bangles, Rakhi & Hindu symbols.
19. Despite Court verdict, film like Da-Vinci code (which shows cruel face of True Christianity), is banned in 8 states. Exponents of Freedom of Expression keep mum.
20. Missionaries convert poor Hindu families under the garb of convent Education & Social service.
21. Thousands of Cows - sacred to Hindus are slaughtered in Mumbai, everyone keeps mum.
Keeping Mum is Suicidal . .

To Protect Our Nation, Hindu Religion & Family
To Support Hindu Manavadhikar Manch
SMS I AM WITH YOU on 9819041467
Email: hindumanavadhikarmanch@yahoo.co.in
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भारतीय प्रजातंत्र पर इस्लामिक साया

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह रात भर नहीं सो पाये। अत्यंत चिंता का विषय है क्योंकि देश के प्रधानमंत्री का स्वस्थ होना जरूरी है, पर उससे ज्यादा चिंता का विषय उनकी बीमारी है। ग्लासगों हवाई अड्डे के बम धमाकों में तब आरोपित और अब रिहा डॉक्टर हनीफ के परिवार की हालत देखकर प्रधानमंत्री अत्यधिक विचलित हो गये और रात भर सो नहीं सके। देश के चारों तरफ खून खराबा हो रहा है। कश्मीर में लाखों कत्ल हो चुके हैं। वहां आतंकवाद अभी भी बदस्तूर जारी है। असम एवं उत्तरपूर्व के अन्य राज्यों में भी आतंकवादी हत्याएं हो रही है। अनेक राज्यों में माओवादी आतंकवादी खून खराबा कर रहे है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। बंगाल एवं अनेक राज्यों में भूख से मौतें हो रही हैं, परन्तु प्रधानमंत्री जी को आराम से नींद आती है। इस मुद्दे पर अकेले प्रधानमंत्री जी हो ही दोष देना निरर्थक होगा क्योंकि आज सारा देश और सभी राजनेता इस्लाम के पिट्ठू हो गये हैंं और सिर्फ मुसलमानों के वोट बैंक के पीछे भागते रहते है। राष्ट्रपति के चुनाव में मुसलमानों के वोट बैंक के भय से श्रेष्ठ उम्मीदवार जैसे डॉ. कर्णसिंह, भैरों सिंह शेखावत, शिवराज पाटिल, बसंत साठे जैसे लोगों को किसी ने घास नहीं डाली और एक सामान्य महिला श्रीमती प्रतिभा पाटिल उच्चतम शिखर पर जा बैठीं। इसी प्रकार उपराष्ट्रपति पद पर तो ऐसा लग रहा है जैसे कि यह पद मुस्लिमों के लिए ही आरक्षित हो गया हो। सभी दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार मुसलमानों को ही बनाया। थर्ड फ्रंट ने मुस्लिम वोट बैंक के भय के कारण सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार उपराष्ट्रपति श्री भैरों सिंह शेखावत को समर्थन ही नहींे दिया, अपितु राष्ट्रपति चुनाव में अनुपस्थित रहे। उसने भी एक मुस्लिम श्री रशीद मसूद को अपना उपराष्ट्रपति पद हेतु उम्मीदवार बनाया। अब प्रश्न यह है कि भारतीय राजनेताओंे का इतना पतन क्यों हो गया कि वे राष्ट्र एवं समाज की जरा भी चिंता क्यों नहीं करते। इसका सबसे प्रमुख कारण वोट बैंक का लालच है। मुस्लिम वोट बैंक देश का सबसे बड़ा एवं कट्टरवादी वोट बैंक है जो हमेशा अपने सम्प्रदाय के समर्थकों को ही वोट देता है। इस कारण सभी नेता इस्लामिक साम्प्रदायिकता को आदाब करते हैं। इस साम्पद्रायिक मानसिकता का दूसरा प्रमुख कारण यह है कि भारत के बड़ी संख्या में सेकुलर नेता एवं विचारक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई एस आई एवं अन्य अरब देशों में मोटा पैसा विभिन्न माध्यमों से लेते रहते हैं। भारतीय सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी श्री मलय कृष्ण धर ने अपनी पुस्तक ओपन सीक्रेट में इस नेटवर्क का विस्तृत वर्णन किया है। इस पैसे के बल पर अनेक भारतीय नेता मुस्लिम साम्प्रदायिकता की वकालत करते नजर आयेंगे। एक अन्य कारण यह है कि वैचारिक स्तर पर आज एक परम्परा बन गयी है कि कोई विचारक अगर हिन्दू धर्म का मखौल उड़ाता है तथा इस्लाम के गुण गाता है, तो उसे उच्च स्तर का विद्वान माना जाता है। उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म में पर्दा हिन्दू धर्म की कुरीति है, तो इस्लाम में धार्मिक है। हिन्दुओं में रोज सरकारी हस्तक्षेप होते हैं, परन्तु शरियत में कभी कोई संशोधन नहीं होता। इतना ही नहीं, जम्मू एवं कश्मीर में तो शरियत कानून वहां के संविधान का अंग है। इस समस्त वर्णन से स्पष्ट है कि देश में समानता नाम मात्र की भी नहीं है। इस्लाम और शरियत कानून भारत के संविधान से भी ऊपर हैं। इसी तरह धर्म निरपेक्षता सिर्फ हिन्दुओं के लिए ही है। भारत का राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश, मुसलमान बन सकते हैं परन्तु कश्मीर में कभी भी हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। अगर देश की धर्म निरपेक्षता का यही हाल रहा तो आने वाले समय में देश में और कट्टर इस्लामीकरण होगा तथा देश आतंकवाद और कट्टरवाद की प्रयोगशाला बन जायेगा। जो आज कश्मीर घाटी में हो रहा है वह सारे देश में होगा।
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