पोटा जैसे कानून लाए जाएं

हैदराबाद में शनिवार को हुए सीरियल बम धमाकों में किनका हाथ है, यह अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है लेकिन साफ है कि इस शहर में आतंकवादियों की घुसपैठ काफी मजबूत हो गई है। कट्टरपंथी तबके का यहां बोलबाला हो गया है। यहां लश्कर, हिजबुल मुजाहिदीन व हरकत उल जेहादी इस्लामी से जुड़े कई स्थानीय सेल्स हैं जिनका मकसद हर हाल में दहशत फैलाना है। सांप्रदायिक सौहार्द्रता को बिगाड़ने की कोशिश भी है जिसे मक्का मस्जिद में हुए हमले की पृष्ठभूमि में भी साफ देखा जा सकता है। विस्फोटकों और नकली नोटों की बरामदगी से भी साफ है कि आतंकवादी यहां अफरातफरी फैलाना चाहते हैं। अब सवाल यह है कि इन्हें चोट पहुंचाने के लिए किया क्या जाए? जाहिर है जिस एक उपाय पर आज लोग सबसे कम ध्यान दे रहे हैं वह है पोटा जैसे कानून की जरूरत। ऐसा कानून जो पकड़े गए आतंकवादियों को फांसी या सख्त सजा सुनाए।
पोटा को निरस्त कर मेरी समझ से अच्छा नहीं किया गया। अतिवादियों को इससे राहत ही मिली होगी। आज जिस जैश के आतंकवादी यहां इतने सक्रिय हैं अगर उसके सर्वेसर्वा मसूद अजहर को फांसी दे दी गई होती तो यकीनन संगठन कमजोर होता। अभी अफजल को फांसी दिये जाने में देरी हो रही है इसका भी फायदा आतंकवादी संगठन उठा लें तो कोई आश्चर्य नहीं। आतंकवादियों का मनोबल तोड़ने के लिए हमें न्यायिक प्रक्रिया में भी बदलाव लाना चाहिए। इसके तीव्र गति से मामलों का निष्पादन करना होगा, खासकर राष्ट्रदोह जैसे मामलों में। मैं जब पंजाब में था तो आतंकवादियों के विरूद्ध अभियान चलाने में मुझे मानवाधिकारवादियों की फिजूल रूकावटों का भी सामना करना पड़ा। वहां हर कार्रवाई पर उनका विरोध करना एक सामान्य बात हो गई थी, लेकिन किसी ने यह ध्यान नहीं दिया कि मानवाधिकार हनन की घटनायें कितनी सही थी। इक्का-दुक्का मामला हो भी तो इसे भूल-चूक समझा जाना चाहिए न कि सुरक्षा बलों की सोची-समझी अतिवादी कार्रवाई। फिर सुरक्षा बलों के अधिकारों के दायरे में भी बढ़ोतरी की जानी चाहिये ताकि वे अपने तरीके से काम कर सकें। सेना व सुरक्षा बलों के लिए आज भी सरकार की मंशा क्या है, इसे समझना टेढ़ी खीर होती है। सरकारें वोट बैंक के दायरे में रह कर काम करती हैं। एक सरकार जो कानून बनाती है दूसरी आते ही उसे निरस्त कर देती है। फिर केंद्र सिमी को आतंकी संगठन घोषित करता है तो कुछ राज्य नहीं। ऐसे मामले सुरक्षा बलों को न सिर्फ कनफ्यूज करते हैं बल्कि आतंकवादियों से निपटने में आप कितने ढीले हैं यह भी दर्शाते हैं। जैसे-जैसे आतंकवादियों का नेटवर्क भारत के भीतरी भागों में फैल रहा है इसके खिलाफ ठोस, कारगर व पारदर्शी नीति अपनानी होगी। आईबी और रॉ को मजबूती देनी होगी। अब खुफिया तंत्र को जिला स्तर पर फैलना होगा। आम लोग, वे चाहे किसी मजहब के हों- उन्हें शांति का माहौल बनाए रखने की दिशा में न्यूर्ट्रल न होकर सकारात्मक होना होगा।
दरअसल जैशे मोहम्मद, लश्करे तैयबा, हरकत उल मुजाहिदीन, हिजबुल मुजाहिदीन, हरकत उल जेहादे इस्लामी की जड़ें देश में इतनी गहरी हो गई हैं कि इनके खिलाफ सख्ती व सतत कार्रवाई जरूरी है। इन संगठनों के देश में सैकड़ों सेल हैं। एक आतंकवादी को योजना की उतनी ही जानकारी होती है जितना उनका काम होता है। इससे एक से दूसरे तक पहुंचने का सूत्र ब्रेक होता है। किया यही जा सकता है कि जो पकड़े जाए, उनसे जितनी हो सके तत्काल खुफिया जानकारी लें और उन्हें कड़े दंड दे दिए जाएं। इन्हें जेल में रखने का कोई फायदा नहीं।
( श्री गिल पूर्व पुलिस महानिदेशक एवं
आंतरिक सुरक्षा विशेषज्ञ हैं)
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