एक देश में दो विधान निश्चित टूटेगा हिन्‍दुस्थान


खबर पढ़ी (टेलीविजन देखने का समय नही मिल रहा, और कोई टी0वी चैनल देखने लायक है भी नही) की चन्‍द्र मोहन अब से मियॉं चाँद मुहम्‍मद के नाम से जाने जायेगे। ऐसा क्‍यो हुआ, इसके लिये हमारा स‍ंविधान, व्‍यवस्था और सरकार दोषी है। आखिर कब तक इस देश में धर्म के नाम पर अलग-अलग कानून होगे? कब तक हिन्‍दू प्रेमिका पाने के लिये मुस्लिम बनते रहेगे। आज देश के सभी नागरिको के लिये समान नागरिक संहिता की जरूरत है। नही तो एक देश में दो विधान निश्चित टूटेगा हिन्‍दुस्थान ।
read more...

हिन्दुस्ताने के नेता और अमेरिका के नेता

मुम्बई में इस्लामिक आतंकवाद के बाद के घटनाकम्र पर अगर हम नजर डालें तो हमें क्या नजर आता है। क्या कुछ नया नजर आया । मुझे एक बात नया इस बार नजर आया कि इस इस्लामिक आतंकी घटना के बाद काग्रेस का कलह सतह पर आ गया काग्रेंसी नेता का देश की जगह कुर्सी प्रेम साफ झलक गया। बेचारे शिवराज पाटिल को कुर्सी पर से उठा कर पटक दिया गया। जैसे कि आज तक जितने आतंकी घटना हुआ उसका नैतिक जिम्मेदारी सिर्फ शिवराज पाटिल ही हैं और कोई नही। हमें याद है सिर्फ शिवराज पाटिल ही नही काग्रेंस के हर एक नेता ताल ठोक कर पोटा जैसा कानून हिन्दुस्तान में लागु नही करने का कसम खाते थें। उन सभी नेताओं को काग्रेंस बाहर का रास्ता नही दिखाया निकाला गया तो सिर्फ शिवराज पाटिल को। काग्रेंस के सहयोगी दल जो सरकार में काग्रेंस के साथ में गलवहिया डाले घुमतें हैं जिन्होंने तो खुल कर आतंकवाद का सर्मथन किया लालु प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, काग्रेंस के खुद सबसे बडें नेता अर्जुन सिंह, काम्यूनिष्ट के नेतागण , इन सबके तरफ काग्रेंस ने देखा तक नही, बेचारे शिवराज पाटिल को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया जिससें हम जनता समझें काग्रेंस आतंकवादीयों के खिलाफ भयानक कदम उठा रहा है। शिवराज पाटिल को निकाल बाहर करने के बाद अब हिन्दुस्तान में कभी किसी तरह की कोई आतंकी घटना होगा ही नही जैसे शिवराज पाटिल को निकाल कर हिन्दुस्तान में पोटा लगा दिया गया है। शिवराज पाटिल के बाहर निकालने का सिर्फ एक कारण है चार राज्यों में चुनाव है काग्रेस को वहा भी जाकर सभी को मूँह दिखाना है इस लिये शिवराज पाटिल को धन्यवाद कह दिया गया और जो असली समस्या है उसे अनदेखा कर दिया गया। काग्रेंस ने फिर से आतंकवादीयों के खिलाफ ठुलमुल नीति अपनाई और किसी तरह का कोई कठोर कानून कागज के पन्नों और मीटिंग से बाहर निकल कर नही आया। हमें अपने देश के नेताओं को और अमेरिका के नेताओं का मिलान करना चाहियें इस आतंकि घटना में अमेरिका के कुछ नागरीक भी मारे गयें हैं सिर्फ इस बात पर अमेरिका ने पाकिस्तान में अपने विदेश मंत्री को भेज कर वहा के प्रधानमंत्री का गिरेवान तक पकर लिया और कह दिया या तो तुम आतंकवादीयों के खिलाफ कठोर कदम उठाओ नही तो अमेंरिका खुद पाकिस्तानी आतंकियों को मार गिरायेगा। इस पुरी घटना कम्र में हिन्दुस्तान के नेताओं का कुर्सी प्रेम और अमेंरिकी नेताओं का देशप्रेम साफ झलक रहा है। हमारे देश में 1970 से अभी तक पुरे देश में 4100 आतंकि हमला हो चुका है। लेकिन अभी तक एक बार भी ठोस कदम नही उठाया गया। लेकिन अमेरीका में सिर्फ एक आतंकी घटना के कारण उसनें कई देशों मे घुस कर उसने आतंकियों के खात्मा करने का कसम खा लिया।

आतंक से बार-बार लहू-लुहान होने के बाद भी हम अपने तथाकथित विदेशनीतिक सिद्धांतों के पाखंड से चिपके रहते हैं। यह हमारी राजनीति ही नहीं अफसरशाही और कूटनीति का भी किस्सा है। अगर हम वास्तव में आंतक से लड़ने के लिए कटिबद्ध हैं। अगर दहशतगर्दी के विरूद्ध निर्णायक मुकाबला करना चाहते हैं तो हमें दोस्तों और दुश्मनों का अब वक्त आ गया है कि चुनाव साफ-साफ करना होगा। अपने दम पर किसी से मुकाबला करना गौरव की बात होती है लेकिन जब बार-बार हम मुकाबला करने के नाम पर सिर्फ चोटे ही खा रहे हों तो ऐसे में अकेले मुकाबले का पाखंड नहीं करना चाहिए। यह साबित करने की जरूरत है कि भारत आज दुनिया में आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीड़ित है हालांकि हाल के सालों में अमेरिका दहशतगर्दी का सबसे बड़ा हमला झेला है। ९/११ के रूप में। लेकिन तथ्य यह भी है कि अमेरिका ने इस हमले के बाद से आंतकवादियों की कमर तोड़ कर रख दी है। नौ व ग्यारह के बाद अमेरिका में बडी तो छोड़िए आतंक की छोटी वारदात भी नहीं हुई।
read more...

मुम्बई आक्रमण से क्या सीखें?

मुम्बई पर आतंकवादी आक्रमण को आज चार दिन बीत गये हैं और आज कहीं जाकर मेरा कुछ लिखने का मन हो रहा है। कुछ भी न लिख पाने के पीछे दो मुख्य कारण हैं। एक तो इस घटना ने मुझे इतना दुखी और स्तब्ध कर दिया कि तीन दिन तक ठीक से सो भी नहीं सका। दूसरा कारण कुछ भी न लिखने के पीछे यह था कि प्रत्येक आतंकवादी आक्रमण के बाद चर्चायें होती हैं, मीडिया में बहस होती है, टीवी पर विशेषज्ञ आते हैं और सुझाव देते हैं और फिर यह कर्मकाण्ड कुछ दिनों बाद समाप्त हो जाता है और फिर सब कुछ सामान्य और प्रतीक्षा अगले आतंकवादी आक्रमण की होने लगती है। 26 नवम्बर को मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण के बाद से ताज होटल में अंतिम आतंकवादी के मार गिराये जाने तक मैं पूरा घटनाक्रम टीवी पर चिपक कर देखता रहा। इस घटनाक्रम को देखते हुए एक प्रश्न मेरे मस्तिष्क में बार बार कौंध रहा था कि क्या वास्तव में इससे कोई सबक लेगा और निश्चित रूप से मुझे यही लगा कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला। क्योंकि आतंकवादी आक्रमण कोई पहला नहीं है और मानवीय क्षति के सन्दर्भ में इससे भी बडी घटनायें हो चुकी हैं। तो फिर इस आतंकवादी आक्रमण के सन्दर्भ में नया क्या है? एक तो यह घटना देश के उस शहर में हुई जिसे देश की आर्थिक राजधानी माना जाता है और मुम्बई में हुई अन्य घटनाओं की अपेक्षा इस बार इसका अंतरराष्ट्रीय सन्देश अधिक था और यही वह कारण है जिसने इस आक्रमण को विश्वव्यापी स्तर पर चर्चा में ला दिया। जिस प्रकार विदेशी नागरिकों और विशेष रूप से अमेरिकी, ब्रिटिश और इजरायल और भारतीय यहूदियों को निशाना बनाया गया उसने इस बात की आशंका बढा दी कि इस आतंकवादी आक्रमण की पीछे कहीं न कहीं वैश्विक जेहादी आन्दोलन और नेटवर्क की भूमिका है।

मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण के बाद दो तीन दिनों तक पूरे विश्व का ध्यान भारत की ओर लगा रहा कि हम इस स्थिति से कैसे निपटते हैं। मुम्बई का यह संकट समाप्त होने के उपरांत इसकी समीक्षा आरम्भ हुई है। विश्व के अनेक देशों की खुफिया एजेंसियाँ इस बात पर एकमत हैं कि इस आक्रमण के पीछे पाकिस्तान स्थित इस्लामी आतंकवादियों की भूमिका है परंतु उनका यह भी मानना है कि यह आक्रमण कुछ नये संकेत भी दे रहा है। एक तो यह कि अल कायदा अब आतंकवादी आक्रमण करने वाला आतंकवादी संगठन मात्र ही नहीं रह गया है वरन वह एक विचारधारा बन चुका है जो विश्व के अनेक क्षेत्रों में विभिन्न इस्लामी उग्रवादी संगठनों को एक छतरी के नीचे लाकर उनसे घटनाओं को अंजाम दिलाता है और निर्णय और विचार उसका होता है और घटनायें विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय इस्लामी उग्रवादी संगठन करते हैं। मुम्बई में हुए आतंकवादी आक्रमण से यही संकेत मिलता है कि यह योजना अल कायदा की है और इसे अंजाम देने का दायित्व भारत में अपनी पैठ जमा चुके लश्कर-ए- तोएबा को दी गयी।

मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण से समस्त विश्व हिल गया है क्योंकि इस आक्रमण ने जेहादी इस्लामी आन्दोलन की विश्वव्यापी पहुँच को रेखाँकित किया है। अमेरिका के खुफिया एजेंसी के अधिकारी और आतंकवाद विषय के विशेषज्ञ मानते हैं कि अल कायदा अमरिका की वर्तमान स्थिति को देखते हुए किसी बडी घटना को क्रियान्वित करने की फिराक में है ताकि बुश को बिदाई दी जा सके और बराक ओबामा का स्वागत किया जा सके। इस आधार पर इस बात की आशंका व्यक्त की जा रही है कि मुम्बई का आतंकवादी आक्रमण अल कायदा की योजना का ही परिणाम है क्योंकि जिस लश्कर ने आतंकवादियों को प्रशिक्षित किया वह 1998 में ओसामा बिन लादेन द्वारा गठित किये गये इण्टरनेशनल इस्लामिक फ्रंट का घटक है।

इस्लामी आतंकवाद और अल कायदा विषयों के विशेषज्ञ डां रोहन गुणारत्ना के अनुसार अल कायदा अब एक विचार बन चुका है और मध्य पूर्व, एशिया, उत्तरी अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में अपनी गहरी पैठ बना चुका है। अब अल कायदा एक केन्द्रीय कमान के रूप में कार्य करने के स्थान पर विभिन्न इस्लामी उग्रवादी संगठनों को अपनी योजना और निर्णय को आउटसोर्स कर रहा है। अल कायदा ने जिस प्रकार मीडिया, इंटरनेट के सहारे मुस्लिम उत्पीडन की अवधारणा के द्वारा समस्त विश्व के मुसलमानों के मध्य एक वातावरण बना दिया है कि इस्लाम खतरे में है और उसे निशाना बनाया जा रहा है और इस प्रचार ने सामान्य मुसलमानों को ध्रुवीक्रत किया है और विशेष रूप से नयी पीढी के मुसलमानों को अधिक कट्टरपंथी और मुखर बनाने का कार्य किया है। अल कायदा के इसी अभियान का परिणाम है कि अमेरिका की विदेश नीति और इजरायल तथा अरब देशों का संघर्ष सभी मुसलमानों के मध्य न केवल चर्चा का विषय बन चुका है वरन इस्लामी आतंकवादियों के आक्रमणों को कुछ हद तक न्यायसंगत ठहराने का माध्यम भी बन चुका है।

भारत के प्रसिद्ध आतंकवाद प्रतिरोध के विशेषज्ञ बी रमन ने मुम्बई पर आतंकवादी आक्रमण के बाद अपने एक आलेख में इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि नवम्बर 2007 में उत्तर प्रदेश के न्यायालयों में श्रृखलाबद्ध विस्फोटों के बाद इसकी जिम्मेदारी लेनेवाले इंडियन मुजाहिदीन संगठन को लेकर भारत सरकार और खुफिया एजेंसियों के पास अत्यन्त कम सूचनायें हैं। जबकि इसने 2007 से 2008 के मध्य अनेक बडी घट्नायें अंजाम दी हैं। इंडियन मुजाहिदीन के कुछ लोग जब दिल्ली में हुए विस्फोटों के बाद पकडे गये तो उनका कार्य करने का ढंग, उनकी प्रेरणा और मीडिया का उनका उपयोग पूरी तरह अल कायदा से प्रभावित था और उनके पास से फिलीस्तीनी इस्लामी आतंकवादी अब्दुल्ला अज़्ज़ाम का साहित्य भी मिला था जो ओसामा बिन लादेन का गुरु है और अल कायदा उसी की जेहाद की भावना से प्रेरित है। इसी प्रकार मुम्बई पुलिस ने कुछ महीनों पूर्व जब इंडियन मुजाहिदीन के मीडिया विंग के लोगों को पकडा था तो उसमें भी अनेक तकनीक विशेषज्ञ पकडे गये थे। इंडियन मुजाहिदीन को जिस प्रकार से हल्के में लिया गया वह भारी पड सकता है क्योंकि इंडियन मुजाहिदीन के कार्य करने का तरीका पूरी तरह अल कायदा से प्रभावित है और यह इस आशंका को पुष्ट करता है कि विभिन्न देशों में विभिन्न इस्लामी संगठन सामने आ रहे हैं जो आवश्यक नहीं कि अल कायदा से सीधे सीधे निर्देश ग्रहण करते हों पर वे उसी इस्लामी जेहादी विचार को आगे बढाने के लिये कार्य कर रहे हैं।

मुम्बई में हुए आतंकवादी आक्रमण के बाद एक बात पूरी तरह स्पष्ट है कि अब इस समस्या से अनेक स्तरों पर लडना होगा। इस प्रकार के आतंकवाद से लड्ने में खुफिया विभाग की सक्षमता, आतंकवाद प्रतिरोध संस्थाओं का राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता प्रमुख तत्व हैं पर इसके अतिरिक्त इस समस्या से विचारधारागत स्तर पर भी लडना आवश्यक है। जिस प्रकार इस्लामी आतंकवादियों ने समस्त विश्व में 48 घण्टे से अधिक समय तक टीवी पर लोगों को अपनी ताकत देखने के लिये बाध्य किया उसके दो निहितार्थ हैं एक तो इससे सामान्य लोगों में आतंकवादियों के एजेण्डे को जानने की उत्सुकता होती है और दूसरा खौफ और अराजकता फैलती है जो राज्य को कमजोर बनाता है। इसके अतिरिक्त इस प्रकार के कार्य न केवल फिदायीन बन कर जन्नत प्राप्त करने की इस्लामी आतंकवादियों की मंशा को उजागर करते हैं वरन और अधिक युवकों के मुजाहिदीन के रूप में भर्ती होने को प्रेरित करते हैं। क्योंकि ऐसे आतंकवादियो के लिये वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के भरभराते भवन, मैरियट होटल का धू धू कर जलता दृश्य अधिक प्रेरित करता है। इस बात को समझने की आवश्यकता है और इसलिये इस्लामी जेहाद के इस आन्दोलन को उसकी समग्रता में समझ कर उसका समाधान करने की आवश्यता है।

आज इस बात पर बहस करने से कोई लाभ नहीं है कि इस्लाम शांति की शिक्षा देता है कि नहीं और इसका भी कोई मतलब नहीं है कि कितने इस्लामी संगठनों ने आतंकवाद के विरुद्ध फतवा जारी किया आज मानवता के अस्तित्व का प्रश्न है और इस अस्तित्व पर प्रश्न खडा किया है ऐसे इस्लामवादी आन्दोलन ने जो विश्व पर फिर से इस्लामी साम्राज्य स्थापित करने की आकाँक्षा लिये शरियत का शासन स्थापित करना चाहता है और इसके लिये कुरान और हदीथ का उपयोग कर रहा है। इस इस्लामवादी आन्दोलन ने प्रथम विश्व युद्ध से द्वितीय विश्व युद्ध के मध्य हुए नाजी आन्दोलन, फासीवादी आन्दोलन और शीत युद्ध में चले कम्युनिस्ट आन्दोलन से अधिनायकवादी विचार लेकर एक नया आन्दोलन खडा किया है जिसने इस्लाम के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण से एक सन्देश स्पष्ट है कि अब यदि समस्या को नही समझा गया और इसके जेहादी और इस्लामी पक्ष की अवहेलना की गयी तो शायद भारत को एक लोकतांत्रिक और खुले विचारों वाले देश के रूप में बचा पाना सम्भव न हो सकेगा और यही चिंता समस्त विश्व को हुई है कि कहीं इस्लामवादी आन्दोलन अब मध्य पूर्व के बाद दक्षिण एशिया में अपनी पैठ न बना ले क्योंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश पहले ही इस्लामी चरमपंथियों के हाथ में खेल रहे हैं और भारत सहित दक्षिण एशिया की मुस्लिम जनसंख्या कुल जनसंख्या के 57 प्रतिशत से भी अधिक है और यदि यह क्षेत्र इस्लामी कट्टरपंथियों के हाथ में आ गया तो विश्व का नक्शा क्या होगा?

अब पाकिस्तान और बांग्लादेश को दोष देने से ही काम नहीं चलेगा और इन देशों की खुफिया एजेंसियों द्वारा जिस प्रकार भारत में इस्लामी तत्वो में घुसपैठ की गयी है उस पर कठोर कदम उठाना होगा और विभिन्न इस्लामी विचारधाराओं चाहे वह अहले हदीस. बरेलवी, देवबन्द, सलाफी, वहाबी हो इनसे सम्बन्धित मस्जिदों, मदरसों, आर्थिक स्रोतों पर नजर रखते हुए इनके इस्लामवादी आन्दोलन के साथ सम्बन्धों की जाँच करते रहनी होगी। आज पाकिस्तान और बांग्लादेश की खुफिया एजेंसियों ने भारत के हर हिस्से में अपनी पैठ कर ली है फिर वह उत्तर पूर्व हो, दक्षिण भारत हो, उत्तर भारत हो, मध्य भारत हो या पश्चिम भारत हो। मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण ने हमें अंतिम अवसर दिया है कि हमारे राजनेता आतंकवाद को वोट बैंक की राजनीति से जोडकर देखने के बजाय समस्या की गहराई को समझें और जानें कि आतंकवाद क्या है? इसके पीछे सोच क्या है? इसे कौन सहायता दे रहा है? न कि इस्लामी आतंकवाद के समानांतर हिन्दू आतंकवाद को खडाकर स्थिति को और अधिक उलझायें।

मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को गहरा धक्का पहुँचाया है और हमारी कमजोरियों की पोल खोल दी है आज विश्व स्तर पर भारत सरकार की नरम नीतियों को लेकर लेख लिखे जा रहे हैं फिर भी लगता है कि कुछ ही दिनों में घटिया राजनीति फिर आरम्भ हो जायेगी और केन्द्र सरकार आतंकवाद को अल्पसंख्यक वोट से जोडकर बयानबाजी और आरोप प्रत्यारोप आरम्भ कर देगी।
read more...

आंतकवादीयों से कोई उसका धर्म तो पुछ लो।

आतंकवादीयों का धर्म सिर्फ आंतक फैलाना है आखिर किसने बताया कि आतंकवादीयों सिर्फ आंतक फैलाना है क्या नाम है उस आंतकवादी का उस आतकवादी के बारे में हम सभी को पता होना चाहिये। शायद कोई नही है यह सिर्फ भर्म फैलाया जा रहा है कि आंतकवादी का धर्म सिर्फ आतंक फैलाना है। सबसे बडी़ बात है कि हमारे देश के रहनूमा इस देश से आतंकवाद का खात्मा करना ही नही चाहते हैं। हमेशा हर आतंकवादी घटना के बाद हमारे प्रधानमंत्री का रटा - रटाया ब्यान आता है पाकिस्तान का हाथ हैं तो अगर पाकिस्तान का हाथ है तो हमें हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने चाहिये। निर्दोश नागरिकों को तड़प-तड़प के मरने देना चाहिये क्या करना चाहिये अगर पाकिस्तान का हाथ है तो। पाकिस्तान के पास परमाणु बम है तो क्या हमारे पास छुरछुरी है। क्या पाकिस्तान अमेरीका जैसा महाशक्ती है जिसके भिख से हमार देश पल रहा है। अखिर क्या कारण है पाकिस्तान जैसे अदना सा देश से हमारे नेता डर कर बैठे हैं। पाकिस्तानियों से तो लड़ने के लिये हमें आर्मी का जरुरत भी नही पडे़गा सिर्फ बिहार में रहने बाले बेरोजगार अपना डंडा ले कर चले गये तो सभी पाकिस्तानीयों की घीघ्घी बंध जायेगा। लेकिन क्या कारण है कि हमारे प्रधानमंत्री पाकिस्तान को सिर्फ एक बन्दर घुरकी तक मारने के नाम से पसीना छुटता है। क्या हमारे देश के नेता इसका कारण बतायेंगे। कारण सिर्फ एक है हिन्दुस्तान में रहने वाले पाकिस्तान सर्मथक कही नाराज ना हो जाये उसका वोट पाने के लिये हम आतकवाद से लड़ने नही चाहतें हैं। बस नित्य नये वहाने बना कर अगला आतंकवादीयों के घटना का इन्तजार करते हैं और फिर से वही बेतुकी ब्यानवाजी का सिलसीला सुरु हो जाता है। हर आतंकवादी घटना के बाद रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, काम्यूनिष्ट जैसे सिमी सर्मथक नेताओं के भी अन्दर देशभक्ती का ज्वार फूटने लगता है।
हम सभी जानते हैं कि हिन्दुस्ताने में कौन है जो आतंक फैला रहा है और उसका कारण भी क्या है सभी जानते हैं। आखिर क्या कारण है कि सिर्फ हिन्दूओं कि ओर से आवाज आती है कि निरोधक कानून लगाया जायें। यहां तक कि कुछ राजनितीक पार्टीयाँ सिर्फ इस लिये निरोधक कानून इस देश में नही लागा रहा है कि हिन्दुस्तान में रह रहें आतंकवादीयों के खिलाफ सोफ्ट पालिसी रखने वाले उस पार्टी को वोट नही देगा। मुम्बई में जो कुछ हुआ सारा देश देखा और तो और अब आगे जो कुछ नही होगा उसे भी हम देखेंगे । आज आतंक की लडाई में हिन्दुस्तान का नम्बर 0 है शुन्य यह राष्टृ आतंक की लडाई में नपुंस्क है। अगर हिन्दुस्तान आतंकवादियों से लडना चाहता है तो सबसे पहले कार्यवाही वैसे तत्वों से लड़ना होगा जो आतंकवादियों के साथ मेल-जोल रखतें है। क्या किसी ने सोचा है कि आखिर पाकिस्तानीयों को मुम्बई के रास्तो का पता कैसे चला उन्हें कैसे पता चला कि ताज होटल कहां है। ताज होटल का गेट किधर है आखिर किस ओर से ताज होटल में घुसा जाता है। किसने बताया मुम्बई के रास्तो का आखिर किसने बताया ये सब। कुछ समाचार चैनल वालों के अनुसार कुछ आंतकवादी नरीमन प्वांट के एक घर में पिछले छ: महीना से रह रहा है। आखिर कैसे एक आतंकवादी हमारी अपनी ही धरती में रह कर छ: महीना से इस देश को बर्बाद करनें का शाजिश रचता रहा है और हामारे किसी खुफिया एंजेसी को पता नही चला। हिन्दुस्तान ही एक यैसा देश है जहाँ 9 तरह के खुफिया एंजेसी काम करती है और सबसे ज्यादा आतंकी हमला भी हिन्दुस्तान में ही होता है। नेता इस बारें में कुछ करने धरने वाले नही है हर आतंकवादी हमले के बाद उनके पास रटा - रटाया एक ब्यान है आतंकवादी हमले में पाकिस्तान का हाथ है। मुम्बई में आतंकी हमले के सिर्फ 2 घंटे बाद समाचार चैनल में ये खबर आने लगा कि सरकार की तरफ से ब्यान आया है कि इस घटना में पाकिस्तान का हाथ हैं क्या सरकार के खोजी मंत्री ये बतायेंगे की आखिर हिन्दुस्तान का कौन सा खुफिया एंजेसी है जो कि सिर्फ दो घंटा में पता लगा लिया कि आतंकी हमला में पाकिस्तान का हाथ है और अगर खुफिया एंजेसी इतना तेज है तो फिर 26 आतंकी समुन्द्र के रास्ते हमारे देश में घुस गये किसी नेता और खुफिया एंजेसी को क्यों नही पता चला। अरे जब अपना सिक्का अगर खोटा हो तो दुसरे को गाली देने से कोई फायदा नही। क्या सही में हम लडना चाहते है आतंकवाद से। मैं एक प्रतिष्ठीत समाचार पढ़ रहा था उसमें लगभग सब जगह सिर्फ मुम्बई आतंकवाद और आतंकवादीयों का चर्चा नजर आया लेकिन कही भी नही लिखा था कि ये आतंकवादी मुस्लमान है लेकिन एक जगह बाक्स बना कर उसे अच्छी तरह हाइलाइट करके उसमें लिखा था कि 20-22 साल के युवक जिसके एक हाथ में ए.के.47 था और दुसरे हाथ में कलावा (पुजा में हिन्दुओं के द्वारा बाधें जाने वाला रक्षा शुत्र) जिसके कारण ये आतंकवादी हिन्दु आतंकवादी है। सोच सकते हो आज आंतकवादीयों क पहूँच कहा तक हो गया है।

मुझे हिन्दुस्तान के पुलिस, आर्मी और खुफिया एंजेसी पर किसी तरह का कोई शक नही है उन्हें 1 सप्ताह के लिये गृह मंत्रालय के अन्दर से हटा दिया जाये ये जाबांज सिर्फ जमीन पर रहने वाले आतंकियों को ही नही अगर किसी के गर्भ के अन्दर भी छिपा होगा तो ये उसे ये पाठ पढा़ देगे इसमें किसी भी हिन्दुस्तानीयों को शक नही है। लेकिन क्या किया जाय हमने अपने आस्तिन में ही सांप पाल कर रखे हैं और हमारे रहनुमा उस सांप को दुध पीला कर तैयार कर रहें हैं जो मैका मिलने पर हमें ही काटने को तैयार हैं। हर आतंकी घटना के बाद हमारे प्रधानमंत्री जी का ब्यान आता है हम आतंकवादी से लडेंगे आज तक प्रधानमंत्री जी ने कभी नही बताया कि कब लडेंगे और कितने मासूम के खुन बहने के बाद लड़गे। आतंक से लडाई का शुभ मुहुर्त आखिर कब आयेगा। प्रधानमंत्री के अनुसार हमारा कानून इन आतंकीयों से लडने के लिये सक्षम है। हमारे प्रधानमंत्री के मुह से मिठा मिठा बातें तो निकलेगा ही क्यों की खुद तो सुरक्षा के लिये हिन्दुस्तान के सबसे काबिल कंमाण्डो के साथ घुमतें है सोनिया गाँधी और उनके बच्चों के लिये तो सुरक्षा के सभी उपाये किये गये चाहे उसके लिये कानून का ही संसोधन क्यों ना करना परे। उन सबके लिये तो कानून सख्त है लेकिन हम मासूम के लिये आतंकवाद रोकने के लिये कौन सा कानून है अगर हमारा कानून इतना सक्ष्म है तो फिर हर 10 वे दिन ये आतंकी घटना क्यों क्या प्रधानमंत्री बतायेंगे। अगर इनमें सक्षम कानून बनाने का ताकत नही है तो फिर गद्दी छोड़ क्यों नही देते।

आतंकवादीयों से अब हम आम जनता को ही लडना होगा क्यों कि ये देश भी हमारा है इस देश पर मुसीबत आतें ही विदेशी तो अपने बाल बच्चे के साथ इटली चले जायेंगे। हम कहाँ जायेंगे। चुनाव नजदीक है वोट डालने जरुर जाये वोट डालने से पहले आँख बन्द करके एक बार उन चित्तकार करते हुये चेहरा को जरुर देख ले जिसका अपना इस आंतकी घटना में मारा गया है फिर अपना वोट डाले।
read more...

मुम्बई में जिहादी आतंकी हमला

मुम्बई में फिर से जोड़दार जिहादी आतंकी आक्रमण हुआ लगभग 100 से ज्यादा आदमीयों को जिहादीयों ने मार गिराया। इस घटना ने पुरे देश के समझदार आदमीयों को शायद झकझोड़ कर रख दिया। लेकिन मेरा कुछ अलग ही चिन्ता है।

मेरा पहला चिन्ता हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्रीयों श्री मनमोहन सिंह जी को लेकर है। अगर कोई आतंकवादी जिन्दा बच गया तो बेचारे प्रधानमंत्री को रात भर निन्द नही आयेगा। 6 महीना के अन्दर जिहादीयों ने लगभग 1000 बेगुनाह आदमीयों को मार गिराया हमारे प्रधानमंत्री को इस का चिन्ता नही है। लेकिन काग्रेस ने कसम खा रखा है कि इस देश से वे जिहादीयों के खिलाफ किसी तरह का कारवाही नही करेंगे काग्रेस आतंकवादी निरोधक कानून नही लागु करेगा चाहे जिहादीयों के द्वारा कितना भी खून बहाया दिया जाये। क्यों कि मुस्लमानों के द्वारा दिये गये वेट बैंक खिसकने का डर है। ये भी सोचने लायक बात है आखिर मुस्लमान यैसी ही राजनितीक पार्टीयों को ही अपना सर्मथन क्यों देतें हैं जो आतंकवाद के खिलाफ नरम भाव रखतें हैं कई मुस्लमानों को हमेंशा से यही चिन्ता रहती है कि हिन्दुस्तान के सभी मुस्लमान आतंकवादी नही है तो फिर मुस्लमानों आमंकवादीयों से का इस तरह का प्रेमभाव क्यों। हम तो प्रधानमंत्री से मांग करते हैं कि संविधान में संसोधन करके महीना में 4दिन निश्चित कियों जायें जिस दिन आतंकवादी देश के किसी भी हिस्से में खुलेआम कत्ले आम मंचा सकते हैं उन्हें किसी तरह का कोई पुलिस के द्वारा रोक-टोक ना किया जाय। क्यों की हमारे देश के नेतो में आंतकियों को रोकने का शक्ति नही है ये अपना सारा शक्ति निर्दोश हिन्दुओं को आंतकवादी सिद्ध करनें में लगा दिये है।

दुसरा चिन्ता कांग्रेस सरकार के मानव संसाधन मंत्री श्री अर्जुन सिंह जी को लेकर है इस वाटला हाउस में जिहादीयों का सख्या कम था उनका केश लडने के लिये 1-2 वकिल से काम चल जाता लेकिन यहाँ मुम्बई में तो आतंकियों का संख्या ज्यादा कांग्रेस सरकार के मानव संसाधन मंत्री श्री अर्जुन सिह जी को तो इनका केस लड़ने के लिये ज्यादा वकिल का इंतजाम करना होगा। और तो और पैसा भी ज्यादा लगेगा लेकिन मुझे पैसे का चिन्ता नही है नेताओं के पास पैसा का कोई कमी नही रहता है हिन्दुस्तान के नेताओं के चलते तो स्विस बैक इतना फल फुल रहा है। नही तो इस मंदी की मार में स्विस बैंक भी बन्द हो गया होता। जिस तरह से मुम्बई में आतंकी घटना हुआ है आंतकीयों का सख्या लगभग 15 से 20 लगभग होगा अब इतने आंतकवादीयों के लिये वकिल भी ज्यादा चाहिये। कांग्रेस सरकार के मानव संसाधन मंत्री श्री अर्जुन सिंह को एक मुफ्त का सजेशन देता हू अगर वकील कम पड जाये तो वे अपने ही पार्टी के नेताओं का सेवा ले सकतें है आखिर घर बाले कभी तो काम में आने चाहीये।

तीसरा चिन्ता श्री शिवराज पाटील के बारे में हैं रहने दो इनके बारें में सोचना ही बेकार है अभी कही व्यस्त होगें अपना कपडा सिलवाने या धुलवानें में या फिर अपना पुराना पेपड़ खोजने में जिसमें अनका पिछला व्यान छपा था क्यों कि कुछ देर में हिन्दुस्तान के सबसे तेज चैनल के तेज पत्रकार तेजगती से श्री शिवराज पाटील जी का ब्यान लेने आ जायेगा। मेरा मुफ्त का सजेशन तेज चैनलों के बारें में क्यों अपना समय बर्बाद करते हो तेज पत्रकारों श्री शिवराज पाटील जी का पुराना रिकार्डीग निकालो कमप्यूटर के द्वारा उन्हें आठ - दस तरह के नये कपडें पहनाओं और दिखा दो आखिर श्री शिवराज पाटील जी अभी 10-12 दिन पहले तो ब्यान दिये थी आतंकीयों के खिलाफ जब आसाम में धमाका हुआ था। अब इतना जल्दी नया ब्यान लेने का जरुरत क्या है।

चौथा चिन्ता श्री माननीय अमर सिंह जी के बारे में है इस बार उनका पैसा कुछ ज्यादा खर्च होने वाला है। आखिर आतंकवादीयों के सच्चे हित्तैसी इस देश में कोई है तो वे हैं श्री अमर सिंह उन्हे आतंकवादीयों का हमेंशा से ख्याल रहता हैं। आंतकवादीयों के परिवार वालें के लिये उनकी पार्टी समाजवादी पार्टी में जिलाध्यक्ष का पद रिजर्व रहता है। और अगर सुरक्षाबल के ना-समझी के कारण कोई आंतकी मारा गया तो श्री अमर सिंह जी है उन पुलिस वाले के खैर खबर लेने के तैयार रहतें है और आतंकवादीयों का परिवार वालें को देने के लिये श्री अमर सिंह जी ने का फंड है 10 लाख रुपये। लेकिन इस बार शायद आतंकी मदद फंड का पैसा कुछ घटाना होगा क्यों कि आंकवादीयों का सख्या वाटला हाउस से ज्यादा है अगर मुम्बई में आतंकियों का संख्या 15 से 20 रहा तो सोच सकते है कि अमर सिंह जी का कितना पैसा इस बार खर्च होगा 1 करोड से ज्यादा। मेरा मुफ्त का सजेशन श्री आतंकी रक्षा मंच के सस्थापक श्री अमर सिह जी के लिये माननिय अमर सिंह जी इस बार क्यों न इस बार इन आतकीयों के परिवार वालों को गलत साइन किया हुआ चेक दे दिया जाये। क्यों की चेक तो आपके सामने कोई बैंक में डालेगा नही कुछ दिन बाद डालेगा तब तक हिन्दुस्तान के सभी मुस्लमानों के बीच ये खबर तो पहूच ही जायेगा कि आपने आतंकवादीयों को 10 लाख का सहायता प्रदान किया वैसे भी आपको चेक पर गलत साईन करने का आदत तो है मुस्लमानों का वोट आपके लिये भी पक्का साला देश जाये भाड़ में।

मेरा अंतीम चिन्ता बहुत ही तेज मिडीया वालों के लिये है कम से कम दो दिन तक इन बेचारे क्या करेंगे मुझे समझ नही आ रहा है क्यों कि रात के 9 से 10 बजे का समय तो कम से कम दो दिन के लिये ही सही मुम्बई धमाकों पर घरीयालि आँसु तो बहायेंगे । हिन्दु धर्म गुरु को गरीयाने के लिये दो दिन का झुट्टी मिल गया इन्हें।

पाढ़को आपका भी कोई चिन्ता होगा तो निचे कामेंन्ट में लिख दिजीयें
read more...

मालेगाँव मामले में जाँच हो रही है या कुछ और?

29 सितम्बर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगाँव में हुए विस्फोट के पश्चात जिस प्रकार जाँच के बहाने हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा का सृजन करने का प्रयास हुआ है उसके अपने निहितार्थ हैं और अब तक यदि पूरे घटनाक्रम में बयानबाजी से लेकर मीडिया ट्रायल को ध्यान से देखा जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह जाँच नहीं कुछ और है और यह कुछ और क्या है इसका निर्णय आप कुछ तथ्यों के आधार पर स्वयं करें।

29 सितम्बर को मालेगाँव विस्फोट में महाराष्ट्र एटीएस की ओर से जाँच की प्रक्रिया आरम्भ ही की गयी थी कि 5 अक्टूबर को एनसीपी के नेता शरद पवार ने घोषणा कर दी कि आतंकवादी मामलों में मुसलमानों को बदनाम किया जाता है लेकिन हिन्दू आतंकी गुटों पर कार्रवाई नहीं हो रही है। इससे दो बातें स्पष्ट हैं कि एक तो शरद पवार ने जाँच से पूर्व ही घोषित कर दिया कि मालेगाँव विस्फोट हिन्दुओं ने किया है और वे आतंकवादी हैं। इसके बाद तो जाँच मात्र औपचारिकता ही रह गयी थी जिसकी दिशा स्पष्ट थी। शरद पवार के बयान के एक सप्ताह पश्चात मालेगाँव विस्फोट मामले में साध्वी प्रज्ञा को एटीएस ने पूछताछ के लिये सम्पर्क किया। इसी के साथ महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर.आर.पाटिल भी समाचार माध्यमों से कहते रहे कि आरोपियों के विरुद्ध ठोस साक्ष्य हैं।

इसके बाद आरम्भ हुआ जाँच की प्रक्रिया के दौरान कुछ चुनी हुई खबरों को लीक करने का दौर। सबसे पहले एटीएस ने भारत के सबसे तेज हिन्दी न्यूज चैनल को कान में बताया कि साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित ने अपनी पूछताछ और नार्को टेस्ट में एक धर्मगुरु और हिन्दू संगठन के बडे नेता का नाम लिया है। इसके बाद मीडिया को इस बात का लाइसेंस मिल गया कि वह किसी भी धर्माचार्य को ललकारे और उसे कटघरे में खडा कर दे। इस पूरी कसरत में स्टार न्यूज और एनडीटीवी की भूमिका अग्रणी रही।

एटीएस द्वारा धर्माचार्य का नाम लेकर संशय की स्थिति निर्माण करने के पीछे प्रयोजन कुछ भी रहा हो परंतु इस बहाने देश के कुछ बडे संतों को पूरे मामले में घसीटने का प्रयास हुआ। इसी बीच एटीएस ने मीडिया को बताया कि इस विस्फोट के आरोपियों के उन विस्फोटों से सम्बन्ध होने की जाँच की जा रही है जिसमें मुसलमान ही मारे गये हैं और यह विस्फोट हैं समझौता ट्रेन विस्फोट, मक्का मस्जिद विस्फोट, अजमेर शरीफ विस्फोट। इस विषय को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया कि सन्देह के आधार पर सम्बन्धित एजेंसियों या राज्य सरकारों की पुलिस की जाँच को अंतिम निष्कर्ष मान कर प्रस्तुत किया और एनडीटीवी ने तो अपने कार्यक्रम हम लोग में तो बकायदा इन विस्फोटों को हिन्दू आतंकवादियों पर चस्पा करते हुए हिन्दू आतंकवाद पर बहस ही आरम्भ कर दी। अब प्रश्न यह है कि इन विस्फोटों की पूरी जाँच होने से पूर्व इसे कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा और दयानन्द पांडे के माथे मढने के पीछे मंतव्य क्या था? जब इन विस्फोटों की जाँच करने के लिये सम्बन्धित राज्यों की पुलिस ने कर्नल पुरोहित से सम्पर्क किया तो पता लगा कि इन विस्फोटों अर्थात समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद विस्फोट और अजमेर विस्फोट से इन आरोपियों का कोई सम्बन्ध नहीं है। इस पूरे मामले में जिस प्रकार एटीएस ने अति सक्रियता दिखाई और जाँच को मीडिया केन्द्रित रखा उससे स्पष्ट है कि एटीएस निष्पक्ष रूप से कार्य करने को स्वतंत्र नहीं है। इस बीच एटीएस का बयान देना फिर खण्डन करने का दौर भी चलता रहा। यहाँ तक कि समझौता एक्सप्रेस में आरडीएक्स से विस्फोट करने की कहानी आयी और फिर उसका खण्डन एटीएस ने किया।

इन बयानबाजियों के बाद पूरी कहानी में मोड आया जब मालेगाँव विस्फोट के दायरे को बढा कर कुछ वर्ष पूर्व हुए बम विस्फोटों की सीबीआई जाँच को भी इसके साथ जोड दिया गया। यह प्रयास भी यही सिद्ध करता है कि अब इतनी सक्रियता क्यों? आखिर इन मामलों की जाँच पहले क्यों नहीं की गयी और यदि की गयी तो क्या अब उस जाँच पर भरोसा नहीं रह गया।

वास्तव में एटीएस और उनके राजनीतिक आकाओं के सामने एक समस्या है कि इस पूरी जाँच को ये लोग दो स्तर पर प्रयोग करना चाहते थे। एक तो देश में हिन्दू आतंकवाद का एक सुव्यवस्थित नेटवर्क दिखाने का प्रयास ताकि न्यायालय में इसे साक्ष्य बनाया जा सके और सामान्य जनता को दिखाया जा सके कि देश में हिन्दू आतंकवाद है। वास्तव में आतंकवाद की परिभाषा है और इसके अनुसार आतंकवाद के लिये एक नेट्वर्क होना चाहिये, उसकी वित्तीय सहायता होनी चाहिये, आतंकवादियों के प्रशिक्षण के लिये लोग और हथियार होने चाहिये, आतंकवादियों को हथियार मिलने चाहिये और उसे उपलब्ध कराने वाले लोग चाहिये। यही कारण है कि एटीएस ने इन तथ्यों के लिये साक्ष्य प्राप्त करने में गोपनीयता बरतने के स्थान पर मीडिया को समय समय पर लीक किया और कुछ समाचार चैनलों और समाचार पत्रों को इस आधार पर कपोलकल्पित कहानियाँ बनाने का पूरा अवसर दिया।

लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में जो सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है वह यह कि जिस प्रकार कुछ राजनीतिक दल और मीडिया संस्थान हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा सृजित करने में दिन रात लगे हुए हैं उसके अपने निहितार्थ हैं।

अब कुछ समाचार चैनलों की अति सक्रियता पर दृष्टि डालें। स्टार न्यूज, एनडीटीवी और न्यूज 24 ने इस विषय में अति सक्रियता दिखाई। इसमें न्यूज 24 और एनडीटीवी की बात तो समझ में आती है कि एक तो कांग्रेस के बडे नेता का चैनल है और दूसरे का सम्बन्ध कम्युनिस्ट पार्टी से है। परंतु स्टार न्यूज की सक्रियता इस लिये महत्वपूर्ण है कि यहाँ पूरा जिम्मा इस चैनल में सबसे बडे पद पर बैठे एक सदस्य ने उठा रखा है जो एक समुदाय विशेष से हैं। इन सज्जन के बारे में बताया जाता है कि जब दिल्ली में जामिया नगर में एनकाउंटर हुआ था तो इन्होंने सभी मीडिया के लोगों को एसएमएस कर आग्रह किया था कि इस पूरे मामले में संयम रखें और जामिया नगर का नाम न लें और न ही जामिया मिलिया विश्वविद्यालय का नाम लें क्योंकि इससे स्थान और संस्थान बदनाम होता है। इसके साथ ही उनका तर्क था कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। लेकिन यही सिद्धांत तब गायब हो गया जब मालेग़ाँव में हिन्दू आरोपी बनाये गये। ये सज्जन पूरे मामले में व्यक्तिगत रूचि लेकर न्यूज फ्लैश चलाने से लेकर स्क्रिप्ट बनाने तक का पूरा विषय स्वयं देखते हैं और पूरे चैनल को इनका निर्देश है कि मालेगाँव मामले को विशेष कवरेज दिया जाये। इन सज्जन की व्यक्तिगत रूचि थी कि साध्वी की दीक्षा को इन्होंने आतंकवाद से जोड्ने का प्रयास किया। साध्वी प्रज्ञा के गुरु को ललकारा और कहा कि वे भाग खडे हुए हैं। जबकि बाद में इन्हीं संत ने अपनी प्रेस कांफ्रेस में बताया कि वे कथाओं में व्यस्त थे और उनकी कथाओं का सीधा प्रसारण कुछ टीवी चैनल पर भी हो रहा था। इसी प्रकार इन सज्जन ने श्री श्री रविशंकर को भी इस पूरे मामले में घसीटने का प्रयास किया।

आज यदि स्टार न्यूज को ध्यान से देखा जाये तो यह बात साफ तौर पर दिखाई देती है कि इस चैनल की मालेग़ाव विस्फोट की जाँच में विशेष रूचि है। यह मामला अत्यंत संवेदनशील है कि यदि किसी चैनल के शीर्ष पद पर बैठा कोई व्यक्ति पत्रकारिता के सिद्धांतों के अतिरिक्त किसी अन्य भाव से प्रेरित है तो यह बात निश्चय ही चौंकाने वाली है।

स्टार न्यूज ने मकोका अदालत में मालेगाँव विस्फोट के 7 आरोपियों की पेशी पर जिस प्रकार स्वयं अदालत से पहले निर्णय सुना दिया और संवाददाता शीला रावल ने मकोका अदालत में साध्वी के आरोपों पर सुनवाई से पूर्व ही अपना निर्णय सुना दिया और कह दिया कि ये आरोप निराधार हैं और इन्हें सिद्ध करना साध्वी और अन्य आरोपियों के लिये आसान नहीं होगा। यह जल्दबाजी क्यों जबकि मकोका अदालत इन आरोपों पर सुनवाई मंगलवार को करेगी। सारे चैनल जब साध्वी के आरोपों पर एटीएस को घेर रहे थे उस समय स्टार न्यूज का एटीएस की पैरवी करना कुछ सन्देह पैदा करता है। आखिर स्टार न्यूज ने यही पुलिस प्रेम जामिया नगर एनकाउंटर में क्यों नहीं दिखाया था? यही नहीं यदि मीडिया का कार्य सूचनाओं को सामने लाना ही है तो एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे के बारे में कुछ समाचार माध्यमों में सनसनीखेज तथ्य आने पर इस बारे में कोई खोज क्यों नहीं हुई कि जब वे रोजा इफ्तार में कांग्रेस की पार्टी में शामिल हुए। अपने पुत्र के सऊदी अरब के व्यवसाय में वे कांग्रेसी नेताओं के सम्पर्क का लाभ उठाते हैं और इससे भी बडी बात कि वे पहले रा ( रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) में थे और कन्धार विमान अपहरण में अपनी लापरवाही के चलते वहाँ से हटा दिये गये थे। बाद में काफी लाबिंग के बाद वे महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख बने। अब सारे न्यूज चैनल जो हिन्दू आतंकवाद से सम्बन्धित सारी खोजी पत्रकारिता कर रहे हैं इस मामले में कोई खोज क्यों नहीं करते जबकि यह अत्यंत गम्भीर तथ्य हैं।

मालेगाँव विस्फोट की पूरी जाँच ने भारत में एक नये युग का पदार्पण किया है और इससे देश में राजनीतिक, बौद्धिक और मानवाधिकार के स्तर पर एक स्पष्ट ध्रवीकरण देखने को मिल रहा है। आज देश में सेक्युलरिज्म के नाम पर राजनीति कर रहे दल, कुछ मीडिया संस्थान, मानवाधिकार संगठन और बुद्धिजीवी लोग पूरी तरह मुस्लिम परस्त और एकांगी हो गये हैं। इस जाँच ने एक बडा जटिल सवाल खडा किया है कि हिन्दू जिसका इस विश्व में केवल एक देश है और बहुसंख्यक होकर भी अपने देश में बेबस है तो वह क्या करे? आखिर बिडम्बना देखिये कि देश में जेहाद के नाम पर इस्लाम और अल्लाह के नाम पर इस्लामी आतंकवादी मन्दिरों, संसद और बाजारों में आक्रमण करते हैं और निर्दोष हिन्दुओं का खून बहाते हैं और फिर सरकार इस्लामी आतंकवाद से लड्ने के स्थान पर हिन्दुओं को अपमानित, लाँक्षित और प्रताडित करती है। इस विषम स्थिति का क्या करें कि दोनों ओर से हिन्दुओं को ही मरना है आतंकवादी आक्रमण मुसलमान करें, जेहाद वे करें, चिल्ला चिल्ला कर कहें कि हम इस्लाम और अल्लाह के नाम पर हिन्दुओं को मार रहे हैं तो मुस्लिम समाज को खुश करने के लिये और इस्लाम की छवि सुधारने के लिये हिन्दुओं को प्रताडित किया जाये। ऐसा न्याय और आतंकवाद के विरुद्ध ऐसी लडाई विश्व के किसी कोने में न तो लडी गयी और न भविष्य में लडी जायेगी। अमेरिका और यूरोप ने अपने देशों पर हुए आक्रमणों के बाद इस्लामी आतंकवाद का उत्तर ईसाई आतंकवाद की अवधारणा सृजित कर नहीं दिया और न ही इजरायल ने इस्लामी आतंकवाद के समानान्तर यहूदी आतंकवाद को सृजित किया फिर भारत में ऐसा आत्मघाती कदम क्यों?

आज इस विषय पर बहस होनी चाहिये कि सेक्युलर दल और मीडिया ऐसा केवल वोट बैंक की राजनीति के चलते कर रहे हैं या फिर इसके पीछे कोई अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र है। अभी एक दिन पूर्व कुछ समाचार पत्रों ने समाचार प्रकाशित किया कि खुफिया एजेंसियाँ उन संतों और संगठनों पर नजर रखे हुए हैं जिनमे इजरायल के साथ अच्छे सम्बन्ध हैं क्योंकि उन्हें शक है कि कहीं एक लोग इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद से तो नहीं जुडे हैं। अर्थात भारत को एक सक्षम, सशक्त और सम्पन्न बनाने के गैर सरकारी प्रयासों के लिये समाज में शंका का भाव उत्पन्न किया जा रहा है।

जिस देश में सेक्युलरिज्म के नाम पर कोयम्बटूर बम धमाकों के आरोपी को सरकार के आदेश पर जेल में पंच सितारा सुविधायें दी जाती हैं। जिस देश में फिलीस्तीनी नेता और सैकडों यहूदियों को इंतिफादा में मरवाने वाले यासिर अराफात के नाम पर केरल के विधानसभा चुनावों में वोट माँगे जाते हैं उसी देश में खुफिया एजेंसियों को आदेश दिया जाता है कि इजरायल के साथ सम्बन्ध रखने वालों पर नजर रखी जाये।

मालेगाँव विस्फोट की जाँच को इसके व्यापक दायरे में समझने की आवश्यकता है यह विषय वोट बैंक की राजनीति से भी बडा है और ऐसा प्रतीत होता है कि शरियत के आधार पर विश्व पर शासन करने की आकाँक्षा से प्रेरित इस्लामवादी आन्दोलन ने भारत की व्यवस्था में अपनी जडें जमा ली हैं और व्यवस्था उनका सहयोग कर रही है और देश में हर उस प्रयास और संस्था को कमजोर करने का प्रयास हो रहा है जो इस्लामवादी और जेहादी आन्दोलन को चुनौती दे सकता है।
read more...

हिन्दु आतंकवादी: नेता, चर्च और मिडीया का घालमेल

हिन्दु आतंकवादी के नाम पर आज हिन्दुस्तान जिस तरह हिन्दु और हिन्दु संत को बदनाम किया जा रहा है इसके पिछे चर्च का खतरनाक साजिश पर ध्यान जाता हैं। इसमें नेता, चर्च और मिडीया का घालमेल अब खुलकर नजर आने लगा है। हमें अब समझ जाना चाहिये कि चर्च किस तरह से हिन्दु को बदनाम करने का साजिश रच रहा है इसमें चर्च के पैसा से चल रहे न्यूज चैनल का भी पुरा सहयोग मिला है। हाल के कुछ दिनें के घटना पर अगर ध्यान दे तो ये खतरनाक साजिश समझ में आता है। सबसे पहले संत श्री आशाराम बापू के उपर लगाऎ गये आरोप पर ध्यान देना चाहिये।

आशाराम बापू के स्कूल में पढ़ रहें स्कूल में दो छात्र स्कूल से भाग कर घुमने निकलते हैं और उनके साथ हादसा हो जाता है इस बात को मिडीया ने जिस जोर शोर से उठाया जैसे छात्र का हत्या खुद संत श्री आशाराम बापू ने किया है। मिडीया के द्वारा संत श्री आशाराम बापू के बारे में नित्य झुठा प्रचार किया जाने लगा। उनके बेटा के बारे में भी आग उगला जाने लगा। इस कांड का जाँच खुद C.B.I. ने किया लेकिन जल्द दुध का दुध और पानी का पानी निकल कर आ गया और संत श्री आशाराम बापू जी फिर से सस्मान अपने धार्मिक कार्य के द्वारा समाज सेवा का कार्य सुरु किया। और किसी मिडीया चैनल वालों ने आशाराम बापू के बारें किये गये झूठी, मंगढ़त कुप्रचारा और जनता को गुमराह करने की गलती के बारें में माफी भी नही माँगा। हम सभी को पता हिन्दुस्तान में जितने भी संत और साधु है उनमें से लगभग सभी का अपना अनाथालय और स्कूल चलता है तथा विभीन्न तरह से ये समाज सेवा के द्वारा गरीब एंवम उपेक्षीत जनता के सेवा करते हैं। ये बाते चर्च को खटकता है क्यों कि साधु सन्यासीयों के द्वारा चलाये जा रहे स्कूल, अनाथालय सेवा कार्य चर्च के धर्मान्तंरण कार्य में हमेशा से बाधा बनतें हैं वैसे संत श्री आशाराम बापू के शिष्य द्वारा झारखण्ड में चर्च धर्मान्तरण का जोरदार विरोध किया गया था। जो संत श्री आशाराम बापू को चर्च का दुश्मन बना दिया जिसका नतीजा सभी के सामने है उन्के अपने देश हिन्दुस्तान में ही जलिल किया गया। चर्च के द्वारा चलाये जा रहे स्कूल भी धार्मान्तरण का एक माध्यम है। जितनें भी चर्च के स्कूल हैं वहाँ खुले आम हिन्दु देवी - देवता का मजाक उडा़या जाता है और क्रिश्चीचीनि धर्म मनने को कहा जाता है। चर्च के द्वारा चलाये जा रहे अनाथालय का भी यही हाल है वहा जो भी अनाथ बच्चा जाता है उसके गले सबसे पहले क्रास लटकाया जाता है उसके बाद मिशनरी बाले अनाथालय के अन्दर लेकर जाते है। चर्च सिर्फ मिडीया के द्वारा ही साधु - संतो पर आक्रमण नही करवा रहा है चर्च के कार्य में जो भी रोडा अटकाता है ये उनका हत्या करने भी गुरेज नही करतें हैं इस काम में वामपंथी भी उनका साथ देते हैं केरल और कंधमाल में संत लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या जिस तरह से हुइ सभी को पता है।
हाल के घटना पर अगर नजर डाले तो कुछ बातें खुल कर सामने आ जायेगा कि किस तरह चर्च के पैसा से चलने बाला मिडीया चैनल इस देश के गरिमा को नुकसान पहुचा रहा है। मालेगांव धमाका में जिस तरह से एक के बाद एक साधु संतो के उपर में आरोप लगाया जा रहा है हम देख रहें है। हमें इस मामले में थोडा और गहराई से सोचना होगा आखिर मिडीया वाले के द्वारा किस तरह से गंदा खेल खेला जा रहा हैं। मालेगांव के पहले और बाद में भी हिन्दुस्तान में आतंकवादीयों के द्वारा कई धमाके किये गयें लेकिन इसके बारे में आज तक कभी भी चर्चा नही किया जा रहा है। समाचार चैनल वालों ने ये नही बताया है कि इन धमाकों के कौन कौन से आंतकवादी पकडें गये हैं तथा इनका कितना बार नार्को टेस्ट किया गया है और नार्को टेस्ट का क्या नतीजा निकता लेकिन मांलेगाव धमाके में पकडें गये सभी आरोपी को ये मिडीया वालों ने सिर्फ आरोप लगने पर ही जो अभी तक न्यायालय द्वारा सिद्ध भी नही हुआ है साध्वी प्रज्ञा सिंह को नया नाम विषकन्या दे दिया। जिस तरह से मालेगांव के धमाके के आरोपियों के बारें में मिडीया वाले अपने न्यूज में बताते हैं मुझे लगता है इन आरोपियों से पुछ-ताछ किसी ए.टी.स के कार्यालय में नही मिडीया चैनल के स्टुडियों में किया जाता है। नार्को टेस्ट होनें के साथ ही समाचार में ये दिखाया जाने लगता है कि किस आरोपी ने टेस्ट में आज क्या कहा जैसे प्रेस रिपोर्टर कैमरा लेकर नार्को टेस्ट के दैरान मौजुद था।

आखिर मिडीया के द्वारा हिन्दु समाज को बदनाम करने कि साजिश नई नही है। कुछ दिन पहले उडी़सा के बडीपदा नामक जगह पर एक नन का बलात्कार के घटना के बारे में समाचार चैनल बालों लगातार कई दिनों तक हल्ला मचाया लेकिन जब पुलिस के द्वारा जाँच किया गया तो पता चला कि नन का बलात्कार किया नही हुआ था सिर्फ हिन्दु संगठन को बदनाम करने के लिये हिन्दु के उपर आरोप लगाये गये थे। तो पुलिस के इस खुलासे को आज तक किसी भी समाचार चैनल वालों नें नही दिखाया।

आज हिन्दुस्तान में जितने भी समाचार के ज्यादा तर चैनल में क्रिश्चन मिशनरी का पैसा लगा है और वांमपथी सर्मथन के द्वारा इस चैनल को चलाया जा रहा है। ये वांमपथी वही हैं जो हिन्दु साधु - संत को गाली देते नही थकते, हिन्दु को भज-भज मंडली कह कर पिछडें मानसिकता वाला करार देतें है धर्म को अफिम कहतें हैं लेकिन क्रिश्चन धर्म में किसी को अगर को अगर संत सर्टीफिकेट मील जाये तो फुले नही समाते। वामंपथीयों को ये पता नही है कि हिन्दु कि तरह क्रिश्चन भी एक धर्म है और अगर धर्म अफिम है तो हिन्दु धर्म की तरहा क्रिश्चन धर्म भी एक अफिम है। अगर वामंपथीयों को ये सब पता है और जान बुझ कर हिन्दु धर्म को गाली देते हैं तो उन्हे अपना नारा बदल कर नया नारा रखना चाहिये हिन्दु धर्म अफिम है और सब धर्म अच्छा है। क्यों कि हिन्दु धर्म में हिंसा का कोई जगह नही है, हिन्दु स्वाथी नही होतें है सर्वे भन्तु सुखीना सर्वे भन्तु निर्माया के सिद्धान्त पर चलता है।

हमें जागरुक रह कर देखना होगा कि कौन है जो हिन्दु को इस तरह से प्रताडी़त कर रहा है। इसके पीछे किस तरह का मानसिकता काम कर रहा है। अखिर कौन है जो हिन्दु को निचा दिखा रहा है उसके पिछे आखिर क्या स्वार्थ छिपा है।
read more...

हिन्दू होना अपराध हो गया?

आज जब मैं यह लेख लिखने बैठा तो मुझे पहली बार आभास हुआ कि 1975 में आपातकाल के समय देश में क्या वातावरण रहा होगा? देश की स्वतंत्रता के श्रेय का पेटेंट कराने वाला देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल जब देश की अखण्डता और एकता की बात करता है तो यह सबसे बडा मजाक लगता है और ऐसा लगता है कि ये शब्द या तो इनके लिये मायने खो चुके हैं या फिर इनके लिये देश की अखण्डता और एकता का अर्थ हिन्दुओं का अपमान और तिरस्कार है। 29 सितम्बर को मालेगाँव धमाके की जाँच को लेकर जो रवैया केन्द्र सरकार उसके सहयोगियों और मीडिया ने अपना रखा है उससे तो लगता है कि हिन्दू हित की बात करने से किसी को भी भी आतंकवादी सिद्ध किया जा सकता है। उसके लिये केवल किसी हिन्दू संगठन से जुडा होना, देश की स्वतंत्रता का मूल्याँकन करते हुए काँग्रेस की भूमिका की समीक्षा करते दिखना चाहिये और हिन्दू स्वाभिमान की बात करते हुए दिखाई देना चाहिये। मालेगाँव धमाके की जाँच के बाद से देश में अघोषित आपातकाल का वातावरण बना दिया गया है और एटीएस मीडिया के साथ मिलकर न्यायालय से पहले ही किसी को भी अभियुक्त सिद्ध कर दे रहा है, किसी भी संत, राजनेता का नाम सन्देह के दायरे में लाकर खडा कर दे रहा है। परंतु उसके बाद सूचना असत्य होने पर किसी भी प्रकार का खेद प्रकाश नहीं किया जा रहा है। इस पूरे प्रकरण में जिस प्रकार मीडिया का उपयोग एटीएस ने किया है वह और भी चिंताजनक है। भारत में मीडिया और राजनीतिक दल जिस प्रकार राजनीतिक रूप से सही होने के सिद्धांत का पालन केवल मुस्लिम समाज की भावनाओं के लिये करते हैं वह और भी चिंताजनक है। देश में पिछले वर्षों में अनेक आतंकवादी आक्रमण हुए और सभी आक्रमणों में इस्लामी संगठन लिप्त पाये गये फिर भी जाँच एजेंसियों ने कभी भी मीडिया को ऐसे उपयोग नहीं किया और न हि मीडिया संगठनों ने इस प्रकार साहस पूर्वक खडे होकर मस्जिदों में इमामों या मुस्लिम धर्मगुरुओं के ऊपर कोई कहानी बनाई। आखिर ऐसा क्यों? अभी कुछ दिन पहले पहले आजमग़ढ में एक मुस्लिम सम्मेलन में भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल को नाथूराम गोड्से के बाद दूसरा आतंकवादी घोषित किया गया परंतु किसी टीवी चैनल ने इस सम्मेलन का लाइव नहीं किया क्यों? इसी प्रकार जब भी आतंकवादी आक्रमणों की जाँच के सिलसिले में किसी मस्जिद के इमाम या मौलवी से पूछताछ होने को हुई तो मुस्लिम समाज सड्कों पर उतरा लेकिन जनता को सच्चाई बताने का दावा करने वाले मीडिया संगठनों ने ऐसे स्थलों पर अपने संवाददाताओं को भेजना भी उचित नहीं समझा क्यों? इसका सीधा उत्तर है कि मीडिया भी जानता है कि कौन हिंसक प्रतिरोध कर सकता है और कौन सिर नीचे करके अपने धर्म का अपमान सहन कर सकता है।
जब से मालेगाँव विस्फोट की जाँच आरम्भ हुई है एक प्रकार का प्रचार युद्ध चलाया जा रहा है और इसमें मीडिया जाने अनजाने उपयोग हो रहा है। जिस दिन विस्फोट के सम्बन्ध में साध्वी प्रज्ञा को गिरफ्तार किया गया उसी दिन कांग्रेस के नेता राजीव शुक्ला के टीवी चैनल न्यूज 24 पर एक विशेष कार्यक्रम प्रसारित हुआ और साध्वी को हिन्दू आतंकवादी घोषित कर दिया गया। यह वही चैनल है जो मालेग़ाँव विस्फोट से पूर्व किसी भी आतंकवादी आक्रमण के बाद यही कहता था कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। इसके बाद इंडिया टीवी ने प्रज्ञा साध्वी के गुरु द्वारा दिये गये दीक्षा मंत्र को आतंक का मंत्र घोषित करना आरम्भ कर दिया। इसी बीच साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के नार्को टेस्ट और ब्रेन मैपिंग के बाद आज तक ने दहाड दहाड कर आवाज लगाई कि हरियाणा का आनन्द मन्दिर ही वह स्थान है जहाँ आतंकी हमले की साजिश रची गयी। संवाददाता एक ओर मन्दिर के अहाते में खडा होकर कह रहा था कि यही वह जगह है जहाँ मालेगाँव विस्फोट की साजिश रची गयी तो वहीं कुछ सेकण्ड बाद हरियाणा पुलिस का बयान आ रहा था कि इस प्रदेश में अनेक आनन्द मन्दिर हैं और यह पता नहीं कि एटीएस किस आनन्द मन्दिर की बात कर रही है। अब प्रश्न यह है कि ऐसे गैर जिम्मेदार समाचारों को क्या नाम दिया जाये।

मीडिया के गैरजिम्मेदारान रवैये का सबसे बडा उदाहरण तो यह है कि उत्तर प्रदेश में एटीएस के आते ही जिस प्रकार धर्मगुरु शब्द का प्रयोग कर सभी धर्मगुरुओं का मीडिया ट्रायल किया गया और यह क्रम दो दिनों तक चलता रहा और कभी किसी स्वामी का नाम तो कभी किसी स्वामी का नाम चटखारे ले लेकर लिया जाता रहा वह आखिर किस मानसिकता का परिचायक है। यह पहला अवसर नहीं है जब मीडिया ने किसी व्यक्ति या संस्था की अवमानना की हो और बेशर्मी से कभी यह भी न कहा हो कि उससे भूल हुई या उसे खेद है। मैं इस सम्बन्ध में क्रिकेट का एक उदाहरण देना चाहता हूं कि किस प्रकार 2000-1 में भारत को एकमात्र विश्व कप दिलाने वाले कप्तान कपिल देव के ऊपर क्रिकेट खिलाडी मनोज प्रभाकर द्वारा लगाये गये मैच फिक्सिंग के आरोप को लेकर मीडिया ने उनका मीडिया ट्रायल किया था और बाद में उनके आरोपमुक्त होने पर कभी यह भी नहीं सोचा कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। आज वही कपिल देव और 1983 विश्व कप मीडिया का सबसे बडा बिकाऊ माल है।
इसी प्रकार एक उदाहरण प्रसिद्ध समाचार चैनल स्टार न्यूज चैनल से सम्बन्धित है जब काँची के शंकराचार्य की गिरफ्तारी के बाद इस चैनल की संवाददाता शीला रावल ने काँची मठ से रिपोर्ट दी कि शंकराचार्य ने जाँच एजेंसियों से समक्ष रोते हुए अपनी भूल मानकर हत्या में संलिप्त्ता मान ली है यदि यह समाचार उस समय सही था तो शंकराचार्य को न्यायालय से सजा क्यों नहीं दी? लेकिन इस चैनल ने शंकराचार्य के रिहा होने पर यह याद भी नहीं किया होगा कि उसकी ओर से ऐसा कोई समाचार प्रसारित हुआ था। इसी प्रकार कितने ही उदाहरण हैं जब हिन्दू धर्मगुरुओं का उपहास किया गया, उनके ऊपर आरोप लगाये गये, उन्हें असम्मानित ढंग से सम्बोधित किया गया पर ऐसा साहस न तो कभी इस्लाम के सम्बन्ध में किया गया और न ही ईसाई धर्म के सम्बन्ध में। आखिर यह कैसा सेक्युलरिज्म है जो कहता है कि हिन्दू को बिना आरोप दोषी सिद्द कर दो और मुसलमानों के सम्बन्ध में कहो कि किसी समुदाय विशेष ने ऐसा किया वैसा किया।
आज देश में यदि मीडिया या राजनेता एकाँगी सेक्युलरिज्म का पालन कर रहे हैं तो उसके पीछे केवल यही कारण है कि हिन्दू की स्थिति एक गाय की तरह है जो मक्खी हटाने के लिये केवल पूँछ का प्रयोग करती है और सींग का उपयोग करना तो उसे आता ही नहीं।
मालेगाँव विस्फोट की जाँच भारतीय समाज और राजनीति के लिये एक टर्निंग प्वाइंट है। इस जाँच के दौरान मुझे व्यक्तिगत रूप से अनेक प्रदेशों का दौरा करने का अवसर मिला और इसमें से कुछ वे प्रदेश भी हैं जहाँ विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। इन प्रदेशों में सामान्य लोगों से बातचीत में जो बात उभर कर आयी वह दीर्घगामी स्तर पर उन नेताओं के लिये शुभ नहीं है जो मुस्लिम वोट के लिये हिन्दुओं को अपमानित करने के बाद भी हिन्दुओं के वोट की आस लगाये हैं। मध्य प्रदेश में मैं कुछ क्षणों के लिये एक नाई की दूकान पर ठहरा और प्रज्ञा मामले में पूछने लगा तो उसकी सहज सामान्य बात सुनकर सोचने को विवश हुआ कि यदि हमारी राजनीति देश में ऐसा विभाजन कर रही है तो इसका परिणाम क्या होगा? उस नाई ने सहज रूप में कहा कि देखिये देश तो पूरी तरह विभाजित हो चुका है और कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है और भाजपा हिन्दुओं की। मैने पूछा कि ऐसा उसे क्यों लगता है तो उसका उत्तर किसी बडे विशेषज्ञ या मँजे हुए की भाँति था कि देश में पिछले अनेक वर्षों में कितने ही आतंकवादी विस्फोट हुए हैं पर किसी भी मामले में आरोपी पकडे नहीं गये और यदि पकडे भी गये तो उन्हें जेल में बैठा कर रखा गया और अब चुनाव को देखकर कांग्रेस साध्वी प्रज्ञा को मोहरा बना रही है। यही भाव मुझे सर्वत्र दिखाई दिया। और तो और अनेक सम्पन्न और सम्भ्रांत लोग तो साध्वी प्रज्ञा को साहस का प्रतीक मानकर उसका अभिनन्दन करते हैं और इसे हिन्दू शौर्य का प्रकटीकरण मानने से संकोच नहीं करते।

अनेक प्रदेशों में ग्रामीण क्षेत्रों में भी दौरा करते हुए मैने यही पाया कि पिछले चार वर्षों में जिस प्रकार केन्द्र सरकार ने आतंकवाद के प्रति नरमी दिखाई उसे वोटबैंक से जोडकर देखा जा रहा है और अब अचानक सरकार जिस प्रकार हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा का सृजन कर इस्लामी आतंकवाद को संतुलित करने का प्रयास कर रही है उससे देश में साम्प्रदायिक विभाजन और ध्रुवीकरण अधिक तीव्र हो गया है। आज आतंकवाद पर चर्चा केवल शहरों या महानगरों तक सीमित नहीं है। हर दो तीन गाँवों के आसपास छोटा बडा बाजार है और इन बाजारों में युवा उसी प्रकार एकत्र होता है जैसे नगरों में और उन्हीं विषयों पर चर्चा करता है जैसा नगर के युवक करते हैं। उसकी चर्चा क्रिकेट, फिल्म, देश की आंतरिक और विदेश नीति, अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव से लेकर ओसामा बिन लादेन, तालिबान और देश में पनप रहे आतंकवाद तक होती है। देश में आ रहे इस परिवर्तन को हमारे राजनेता समझने में असफल हैं और देश को नगर और गाँव के रूप में विभाजित कर इस बात की खुशफहमी पाले बैठे हैं कि गाँव की भोली जनता अब भी उनके तर्कों से भी प्रभावित होती है और उसका अपना कोई वैचारिक आधार नहीं है। यही परिवर्तन पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस की लगातार हो रही पराजय का कारण है और अब जिस प्रकार कांग्रेस ने मुस्लिम वोट प्राप्त करने के लिये न्यूनतम राजनीतिक हथखण्डे अपनाये हैं उससे उसकी छवि में काफी गिरावट आयी है।

पिछ्ले कुछ वर्षों में देश में हिन्दुओं की धर्म और संस्कृति के प्रति बढ रही आकाँक्षा को नजरअन्दाज किया गया है। 1990 के दशक से हुए आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण के बाद जिस प्रकार सूचना की अबाध प्राप्ति होने लगी और विदेशों में बसे हिन्दुओं को अपनी जडों और अपनी नयी पीढी को संस्कारित करने की प्रवृत्ति बढी तो अनिवासी हिन्दुओं में भारत की हिन्दू पहचान को लेकर जो उत्सुकता बढी उससे भारत में बसे हिन्दुओं में पिछली पीढी की अपेक्षा हीन भावना कम हो गयी और यही कारण है कि भारत की नयी पीढी का रूझान एक ऐसे राष्ट्रवाद के प्रति है जो कांग्रेसी राष्ट्रवाद नहीं वरन हिन्दुत्व आधारित राष्ट्रवाद है।

मीडिया और अधिकाँश राजनीतिक दल यदि इस बदलाव को अनुभव कर पाते तो शायद वे देश के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को कुछ हद तक रोक पाते लेकिन कांग्रेस सहित तमाम सेक्युलर दल यह भूल 1991 के बाद से लगातार करते आ रहे हैं। पहले राम मन्दिर आन्दोलन को समझने की भूल, फिर गोधरा काँड के बाद हुए दंगों को समझने की भूल और अब आतंकवाद के इस्लामी स्वरूप को समझकर उसका समाधान न कर पाने की भूल दीर्घगामी स्तर पर अत्यंत खतरनाक सिद्ध होने वाली है।

आज देश में मीडिया, सेक्युलर दलों को इस बात पर शोध करना चाहिये कि इनके सेक्युलरिज्म के प्रचार के बाद भी हिन्दुत्ववादी संगठनों का समाज पर क्यों बढ्ता जा रहा है। इस पर गम्भीर शोध की आवश्यकता है न कि खीझ में आकर उन्हें गाली देकर बदनाम करने की। आज यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विहिप या भाजपा का विस्तार हो रहा है और उन्हें साम्प्रदायिक और देश की एकता के लिये खतरनाक बताने के बाद भी जनता का विश्वास उनके साथ है तो निश्चित ही इसके पीछे कोई ठोस कारण होगा। आज यदि मीडिया और सेक्युलर दल इस कारण के मूल में जाने का प्रयास करते तो उन्हें सार्थक उत्तर मिलते कि किस प्रकार देश में बहुसंख्यक अपने ही देश में डरा और सहमा है। उसकी अतीन्द्रिय मानसिकता में मुस्लिम शासन की 600 वर्ष की पराधीनता और अफगानिस्तान में तालिबान शासन की भयावह तस्वीर गहरी जड जमा चुकी है। विश्व पर शासन की आकाँक्षा लिये कट्टरपंथी इस्लाम का आन्दोलन उसके लिये दुस्वप्न सा लगता है और अपने ही देश में धिम्मी होने का भय किसी भी प्रकार नहीं जाता और ऐसे में सेक्युलरिज्म के नाम पर जब हिन्दू लाँछित और अपमानित होता है तो उसका भय और भी बढ्ता है।

जिस देश में प्रधानमंत्री को मुस्लिम के आरोपी बनाये जाने पर या सन्देह के आरोप में आस्ट्रेलिया में हिरासत में लेने पर रात भर नींद नहीं आती उसी प्रधानमंत्री की ओर से कोई बयान तब नहीं आता जब उडीसा में 40 वर्षों से आदिवासियों की सेवा कर रहे हिन्दू संत की 84 वर्ष की अवस्था में हत्या कर दी जाती है। क्या भारत के कांग्रेसी प्रधानमंत्री की संवेदना भी सेक्युलर है जो तभी विचलित होती है जब मुसलमान या ईसाई को दर्द होता है। जिस देश में करोडों रूपये हज सब्सिडी पर दिये जाते हैं उसी देश में हिन्दुओं को जम्मू में अपनी तीर्थयात्रा के लिये भूमि के लिये संघर्ष करना पड्ता है। जिस देश में संसद पर आक्रमण के लिये मृत्युदण्ड प्राप्त आतंकवादी को फाँसी नहीं होती और उसका खुलेमाम बचाव किया जाता है वहीं मालेग़ाँव विस्फोट के लिये आरोपी बनायी गयी साध्वी को मीडिया द्वारा दोषी सिद्ध होने से पहले ही आतंकवादी ठहरा दिया जाता है। केन्द्र सरकार के घटक दल खुलेआम इस्लामी आतंकवादी संगठन सिमी के पक्ष में बोलते हैं और बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश की नागरिकता देने की वकालत करते हैं और विद्या भारती द्वारा संचालित विद्यालयों के पाठ्यक्रम को प्रतिबन्धित करने की बात करते हैं क्योंकि वे शिवाजी, राणाप्रताप को आदर्श पुरुष बताते हैं। रामविलास पासवान का तर्क है कि विद्याभारती के विद्यालय गान्धी के स्वाधीनता आन्दोलन में भूमिका पर प्रश्न खडे करते हैं इसलिये इस पर प्रतिबन्ध लगना चाहिये। अर्थात देश में विचारों की स्वतंत्रता पर आघात होगा।
इतना तो स्पष्ट है कि हिन्दू धर्म और संस्कृति एक बार फिर अत्यंत कठिन दौर से गुजर रहा है जब सेक्युलरिज्म के नाम पर हिन्दू होना अपराध ठहराने का प्रयास किया जा रहा है।
read more...

हिन्दु आतंकवादी कंलक धोने की कवायत

पिछले काफी समय से कांग्रेसी, वामपंथी और सत्ता में उनके साथी इस जुगाड़ में थे कि उनके मुख से आतंकवादियों के समर्थक और उनके प्रति नरम रूख अपनाने का कलंक कैसे मिटे? २९ सितम्बर को हुए मालेगांव कांड में कुछ हिन्दू के उपर आरोप मंढ कर हिन्दु संगठन को बदनाम करने का साजिश रचा गया और साजिश के घेरे में सम्पूर्ण संघ परिवार को ले लिया है। सच तो यह है कि गत पांच साल के कांग्रेस और वामपंथियों के शासन में सैकड़ों विस्फोट हुए,
हिन्दू की बात बोलने वाला हर संगठन उन्हें भारत को मुस्लिम और ईसाई देश बनाने की राह में बाधा लगता है
पर एक भी अपराधी का सजा नहीं दी जा सकी। सिमी, इंडियन मुजाहिदीन आदि मुस्लिम आतंकी गिरोहों के सैकड़ों लोग पकड़े गये हैं अफजल जैसे आतंकवादीयों को न्यायलय से फांसी की सजा मिलने के बावजूद अफजल को बचाया जा रहा है। ऎसे सैकडों मुस्लिम आतंकवादी आज हिन्दुस्तान में खुले आम घुम रहें हैं इन पर कार्यवाही होना तो दूर इन्हें कुछ राजनीतिक पार्टी अपने पार्टी में सम्मलित कर देश का भाग्यविधाता बनाने का सपना देख रहा है, इतना ही नही अपनी जान गंवाकर इन्हें पकड़ने वालों पर ही संदेह किया जा रहा है। लालू, मुलायम, शिवराज पाटिल, रामविलास आदि भूलते हैं कि वे इन सुरक्षाकर्मियों के कारण ही सुरक्षित हैं। इसके बाद भी इन पर झूठे आरोप लगा रहे हैं। मुस्लिम वोट के लालच में आतंकियों के समर्थन का अगला चरण है हिन्दू संस्थाओं को कोसना। हर भगवा वेशधारी उन्हें कूपमंडूक और देशद्रोही नजर आता है। हिन्दू की बात बोलने वाला हर संगठन उन्हें भारत को मुस्लिम और ईसाई देश बनाने की राह में बाधा लगता है इसलिए उन्हें गाली दिये बिना उनका खाना हजम नहीं होता। ये हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स के कलियुगी चेले हैं। उसका मत था कि यदि झूठ को सौ बार बोलें, तो वह सच हो जाता है। उसकी दूसरी मान्यता यह भी थी कि झूठ इतना बड़ा बोलो कि घोर विरोधी भी उसका दस-बीस प्रतिशत तो सच मान ही ले। उनका यह रैवया सदा से रहा है। गांधी जी के हत्यारे नाथूराम ने स्पष्ट कहा था कि यक काम उसने अपनी इच्छा से किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इसमें कोई हाथ नहीं है। न्यायालय ने भी संघ को निर्दोष पाया, नेहरू सरकार ने ही संघ से प्रतिबंध हटाया। फिर भी आज तक संघ को उस हत्याकांड में घसीटा जाता है। कई लोगों को इस कारण न्यायालय में माफी मांगनी पड़ी है, फिर भी वे अपने झूठ पर डटे हैं।
read more...

हिन्दु आतंकवादी: कांग्रेस खुद फंसी अपने जाल में

साध्वि प्रज्ञा सिंह काग्रेस सरकार के गले कि फांस बन गई है अब काग्रेस इस मुद्दे को ना निगल पा रही है और ना उगलने में बन रहा है। हो भी क्यों ना बिना विचारे जो करे वो पिछे पश्चाताये कहावत चरिथार्थ हो रहा है। मुद्दाविहीन और संवेदहीन काग्रेस सरकार लालू यादव, राम विलास पासवान और अब अमर सिंह जैसे नेताओं के द्वारा लगभग पाँच साल तक खिंचा लेकिन इस देश को काग्रेस सरकार जिहादी विस्फोट के अलावा और कुछ दे नही पाया, जिसके नतीजतन काग्रेसी रणनीतिकार ने एक नया सगुफा छेड़ना पडा़ और हिन्दु आतंकवाद का नया राग छेड़ना सुरु किया लेकिन नया राग बेसुरा हो गया नतिजा काग्रेस रणनीतिकार को उसी तरह मुह कि खानी पडी जैसे कभी जवाहर लाल नेहरु द्वारा सरदार पटेल के हाथ से काश्मिर को अपने हाथ में लेकर नासुर बना कर किया, इन्दरा गांधि के द्वारा इमरजेन्सी लगा कर हिन्दुस्तानीयों को अपने घर में कैद कर दिया था , राजीव गांधी के द्वारा श्री लंका में अपने 3000 हजार सैनिकों को जान से हाथ धो कर करवाया था। लेकिन साध्वि प्रज्ञा सिह का मुद्धा कुछ ज्यादा तुल पकड लिया है सरकार के सामने अब समस्या है कि साध्वि प्रज्ञा सिंह को झूठे मुद्दे में पकड तो लिया गया है लेकिन झूठे सबूत कहा से पैदा करे। साध्वि प्रज्ञा सिंह का बार बार वैज्ञानिक विधी द्वारा टेस्ट करवाया गया लेकिन हमेशा ढाक के दो पात कुछ नही निकला, आज फिर से नार्को टेस्ट होने जा रहा है। इस मामले में कुछ नेताओं का समाजवादी कुरुप चेहरा भी देखने को मिला। जो एक ओर खुलेआम जिहादी आतंकियों का समर्थन करते नजर आते हैं और दुसरी ओर निर्दोश हिन्दु के बारे में कहा गया कि इन्हे बीच चौराहा में गोली मार देना चाहिये। सरकार एटीएस से झुठ पर झुठ बुलवाये जा रही है। किस तरह से झूठ का सहारा लेकर साध्वि को फँसाया जा रहा है एटीएस के बयान से समझ में आ जाता है।

एटीएस के अनुसार साध्वि प्रज्ञा सिंह का जन्म ग्वालियर में हुआ है लेकिन साध्वि प्रज्ञा सिंह का जन्म भिंड नामक शहर में हुआ थ। और पढा़ई के लिये ग्वालियर गई थी। साध्वि प्रज्ञा सिंह का हिन्दु सगठन से सबन्ध के बारे में भी एटीएस का बयान में सदेह नजर आ रहा है। सबसे पहले साध्वि प्रज्ञा सिंह का सबन्ध विश्व हिन्दु परिषद से बताया गया लेकिन विश्व हिन्दु परिषद में महिला को सदस्य नही बनाया जाता है । बाद में एटीएस और काग्रेस सरकार ने अपना सुर बदला और बजरंग दल और हिन्दु जागरण मंच का कार्यकर्ता बताया गया लेकिन इन दोनो सगठन में महिला को सदस्य नही बनाया जाता है। इस मामले में कांग्रेस एटीएस को जब हताशा हाथ लगा तो नित्य नये संगठन का नाम साध्वि प्रज्ञा सिंह के नाम के साथ जोड़ दिया गया। दुसरी ओर साध्वि प्रज्ञा सिंह का हिन्दु संगठन से वास्ता श्री राम आन्दोलन से हो गया था और वह बचपन से राम मंदिर का प्रचार करना सुरु कर दिया था। कुछ और भी बातें जो कि मिडीया द्वारा कुप्रचार किया जा रहा है उसके बारे में भी हमें जानना चाहिये। साध्वि प्रज्ञा सिंह का विश्वविद्यालय छात्र संघ का पदाधिकारी लेकिन साध्वि प्रज्ञा सिंह कभी भी आज तक चुनाव लडी़ नही हैं तो वे कैसे बन गई किसी छात्र संघ कि पदाधिकारी इस मामलें भी एटीएस और मिडीया का दुष्प्रचार नजर आ रहा है।

इस मामले मे अब साध्वि प्रज्ञा सिंह कटघरे में खरी नही दिख रही हैं कटघरे में कांग्रेस मिडीया और एटीएस है। कांग्रेस एटीएस को इस मामलें में इस्तेमाल कर रही है। कांग्रेस सीबीआई की स्पेशल टास्क फोर्स का अपने राजनितीक हित को साधने में इस्तेमाल कर रही है। जो कि देश और समाज के लिये खतरनाक है। एटीएस अभी तक झुठ का पुलिन्दा लिये खडा है। नार्को टेस्ट, ब्रेन मैपिग इत्यादी टेस्ट का नतिजा जब कुछ नही निकला तो साध्वि प्रज्ञा सिंह के साधना का हवाला दिया जाने लगा कि साधना के बल पर साध्वि अपने मन को अपने बस में कर लेती है लेकिन क्या एटीएस और कांग्रेस सरकार बतायेगा साध्वि के और जो भी साथी पकडा़ये हैं क्या उनके मन को भी साध्वि प्रज्ञा सिंह अपने साधना के द्वारा काबु में कर लेती है जिसके कारण नार्को टेस्ट का नतिजा शुन्य निकल कर आ रहा है। क्या जबाब है कांग्रेस के पास। कुछ अहम सवाल दिमाग में कौधता है जैसे साध्वि का टेस्ट मुंबई की ही फॉरेंसिक लेबोरेटरी में क्यों बार बार करवाया जा रहा है जबकि बैगलोर का फॉरेंसिक लेबोरेटरी को सबसे अच्छा लेबोरेटरी का दर्जा प्राप्त है। साध्वि प्रज्ञा सिंह को स्पेशल पुलिस सिर्फ इस लिये पकडा़ कि मालेगांव में विस्फोट बाले जगह पर एक मोटर बाईक मिला जो 4 साल पहले साध्वि का था जो किसी आदमी को बेच दिया गया क्या स्पेशल टास्क फोर्स मोटर बाइक के मालिक को खोजने का कोशीश किया।

पुरे मामले को देखे तो अब कांग्रेस खुद अपने बनाये जाल में फंस चुकी है साध्वि प्रज्ञा सिंह को बिना किसी सबूत के अपने राजनितीक फायदे के लिये गिरफ्तार कर तो लिया गया लेकिन सबुत के नाम पर हाथ में कुछ है नही और स्पेशल टास्क फोर्स के काम के उपर भी सवालिया निशान लगवा दिया है। विदेशी पैसा, राजनितीक पार्टीयों के द्वारा और चर्च के आदमीयों के द्वारा चलाया जा रहा कुछ मिडीया तो पहले से भडोसे लायक नही है|
read more...

देश की दशा और दिशा के जिम्मेदार कौन

आज देश में दहशत का माहौल बनाया जा रहा है, कहीं आंतकवाद के नाम पर तो कहीं महाराष्ट्रवाद के नाम पर। आखिर देश की नब्ज़ को हो क्या गया है। एक तरफ अफजल गुरू के फांसी के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार ने मुँह में लेई भर रखा है तो वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र की ज्वलंत राजनीति से वहॉं की प्रदेश सरकार देश का ध्यान हटाने के लिये लगातार साध्वी प्रज्ञा सिंह पर हमले तेज किये जा रही है और इसे हिन्दू आंतकवाद के नाम पर पोषित किया जा रहा है। य‍ह सिर्फ इस लिये किया जा रहा है कि उत्तर भार‍तीयों पर हो रहे हमलो से बड़ी एक न्यूज तैयार हो जो मीडिया के पटल पर लगातार बनी रहे।

आज भारत ही नही सम्पूर्ण विश्व इस्लामिक आंतकवाद से जूझ रहा है, विश्व की पॉंचो महाशक्तियॉं भी आज इस्लामिक आंतकवाद से अछूती नही रह गई है। आज रूस तथा चीन के कई प्रांत आज इस्लामिक आलगाववादी आंतकवाद ये जूझ रहे है। इन देशों में आज आंतकवाद इसलिये सिर नही उठा पा रहे है क्‍योकि इन देशों में भारत की तरह सत्तासीन आंतकवादियों के रहनुमा राज नही कर रहे है।

भारत में आज दोहरी नीतियों के हिसाब से काम हो रहा है, मुस्लिमों की बात करना आज इस देश में धर्मर्निपेक्षता है और हिन्दुत्व की बात करना इस देश में सम्प्रादयिकता की श्रेणी में गिना जाता है। आज हिन्दुओं को इस देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया है। इस कारण है कि मुस्लिम वोट मुस्लिम वोट के नाम से जाने जाते है जबकि हिन्दुओं के वोट को ब्राह्मण, ठाकुर, यादव, लाला और एसटी-एससी के नाम से जाने जाते है। जिन ये वोट हिन्‍दू मतदाओं के नाम पर निकलेगा उस दिन हिन्दुत्व और हिन्दू की बात करना सम्प्रादायिकता श्रेणी से हट कर धर्मनिर्पेक्षता की श्रेणी में आ जायेगा, और इसे लाने वाली भी यही सेक्यूलर पार्टियॉं ही होगी।
read more...

नीम का पत्ता कड़वा है, राज ठाकरे भड़वा है

नीम का पत्ता कड़वा है, राज ठाकरे भड़वा है कुछ इस तरह का नारा लगाया जा रहा था समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी के एक सभा में खुले आम बाला साहव ठाकरे और राज ठाकरे को गाली दिया जा रहा था। अबू आजमी जैसे संदिग्ध चरित्र वाले व्यक्ति द्वारा "मराठी लोगों के खिलाफ़ जेहाद छेड़ा जायेगा, जरूरत पड़ी तो मुजफ़्फ़रपुर से बीस हजार लठैत लाकर रातोंरात मराठी और यह समस्या खत्म कर दूँगा" जैसी भरकाउ बाते कहा जा रहा था जिसे मिडीया बालेने आज तक नही दिखाये। जो कि सरासर गलत था। और यह भी गलत है कि निर्दोश धर्मपाल यादव को पीट-पीट कर मार दिया गया राहुल राज की तरह धर्मपाल यादव ने तो हाथ में बन्दुक नही उठाया था और ना किसी बस को हाइजैक किया था फिर क्यों मार दिया गया क्या महाराष्ट्र के गृ्हमंत्री के पास जवाब है।

सभी को लगता है यह लडा़ई राजनीतिक है या फिर दो राज्यों के बीच लडा़ जा रहा है। नही यह किसी तरह का राजनीतिक लडाई नही है यह तो लोकसभा का चुनावी जंग है। इस बात को हमें समझना होगा। हिन्दुस्तान का यह बदकिस्मती है कि यहा चुनाव जात-पात, अगडा और पिछडा़, क्षेत्रियता, आरक्षण, मुफ्त में समान या चुनाव में पैसा बाटने बालों के नाम पर लडा़ जाता है हिन्दुस्तान में आज तक कभी भी आतंकवाद, महगाई, विकास, गुण्डागर्दी, देशद्रोहीपना, अमेरिकापरस्ती, चीन चम्चागीरी के नाम पर नही लडा़ गया। अगर हम हिन्दुस्तान का जनता इतना जागरुक और समझदारी रहता तो आज राहुल राज महाराष्ट्रा में कही नौकरी कर रहा होता और धर्मपाल यादव अपने 14 महीने के बेटी के साथ मुम्बई से खरीदा खिलैना के साथ खेल रहा होता दोने आज मरते नही। हमें अपने मानसिकता को बदलना होगा। आज हिन्दुस्तान का हाल कितना खराब है हमें खुद सोचना होगा। हिन्दुस्तान के एक मंत्री को अपने देश से ज्यादा श्री लंका में रह रहे तमिल का चिन्ता सता रहा है कि बन्दुकधारी तमिल को श्री लंकाई सेना मारे नही। हिन्दुस्तान के नेता इस चिन्ता में दुबला हो रहा है कि अमेरिका चीन को हिन्दुस्तान के मदद से घेर रहा है। हाय रे हिन्दुस्तान का दुर्भाग्य आज तक किसी तमिल नेता ने संसद भवन में बिहारवासीयों को असाम में बाग्लादेश के घुसपैठियों के द्वारा हत्या पर चिन्ता नही जताया होगा नही किसी कम्यूनिस्ट ने चीन का चिन्ता छोड़ कभी काश्मिर का चिन्ता किया होगा। अगर बिहार वाले मर रहें हैं तो बिहार के नेता ही उसके लिये अवाज उठायेगें लेकिन नेता पहले पुरी तरह आस्वस्त हो लेगें कि मुद्दा उठाने से चुनाव में फायदा हो रहा है या नही, हमारे देश के प्रधानमंत्री को सिर्फ इस लिये निन्द नही आता है कि एक हिन्दुस्तानी मुस्लिम आतंकवादी को किसी दुसरे देश के पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है लेकिन हिन्दुस्तान में एक महिला साध्वि को बिना किसी सबुत के गिरफ्तार किया जाता है तो उन्हें सकून का नीन्द आता है क्यों साध्वि को पकड़ ने से उन्हे चुनाव में फायदा होगा। इस तरह के विकृत मानसिकता वाले नेता इस देश को चला रहें हैं। आज हिन्दुस्तान में सिर्फ महाराष्ट्रा में राज ठाकरे और अबु आजमी के द्वारा क्षेत्रियता के द्वारा नफरत नही फैला रहा है। हिन्दुस्तान का हर एक नेता इसी ताक में बैठा है कि किससे किसको लड़वा कर फायदा उठाया जाये। हमें इस बात को समझना होगा कि हमें आपस में लडवानें के हर मुहल्ले में एक यैसा नेता बैठा है जो हमारे वोट और वोट के लिये हमारे खुन का प्यासा है। हमें सर्तक रहना होगा।

बिहारवासीयों आज सबसे ज्यादा मेहनती होने के बावजुद सब जगह से तिरस्कार ही मिल रहा है। आज बिहार और उत्तर प्रदेश का अशिक्षा, रोजगार उद्योग की कमी और बढ़ता अपराध मुख्य समस्या है। जिसके कारण आम सीधा-सादा बिहारी यहाँ से पलायन करता है और दूसरे राज्यों में पनाह लेता है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि उत्तरप्रदेश और बिहार से आये हुए लोग बेहद मेहनती, कर्मठ और इमान्दार होते हैं। ये लोग कम से कम संसाधनों और अभावों में भी मुम्बई में जीवन-यापन करते हैं, लेकिन वे इस बात को जानते हैं कि यदि वे वापस बिहार चले गये तो जो दो रोटी यहाँ मुम्बई में मिल रही है, वहाँ वह भी नहीं मिलेगी। इस सब में दोष किसका है? जाहिर है गत बीस वर्षों में जिन्होंने इस देश और इन दोनो प्रदेशों पर राज्य किया? सवाल उठता है कि मुलायम, लालू, अमर सिंह, रामविलास पासवान जैसे संकीर्ण सोच वाले नेताओं को उप्र-बिहार के लोगों ने जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया? क्यों नहीं इन लोगों से जवाब-तलब हुए कि तुम्हारी घटिया नीतियों और लचर प्रशासन की वजह से हमें मुंबई क्यों पलायन करना पड़ता है? क्यों नहीं इन नेताओं का विकल्प तलाशा गया? क्या इसके लिये राज ठाकरे जिम्मेदार हैं? आज उत्तरप्रदेश और बिहार पिछड़े हैं, गरीब हैं, वहाँ विकास नहीं हो रहा तो इसमें किसकी गलती है? क्या कभी यह सोचने की और जिम्मेदारी तय करने की बात की गई? उत्तरप्रदेश का स्थापना दिवस मुम्बई में मनाने का तो कोई औचित्य ही समझ में नहीं आता? उत्तरप्रदेश का स्थापना दिवस सिर्फ मुम्बई में क्यों मनाया गया। कोलकत्ता, चेन्नई बैगलोर या अहमदाबाद में क्यों नही मनाया गया क्या कोलकत्ता, चेन्नई बैगलोर या अहमदाबाद में उत्तर प्रदेश के निवासी नही रहतें है। और क्या महाराष्ट्र का स्थापना दिवस लालू, रामविलास पासवान, मुलायम सिंह ने लखनऊ या पटना में कभी मनाया है? लगे हाथ में मिडीया बालों के उपर भी कुछ काहना चाहता हू जब मिडीया बाले राज ठाकरे के द्वारा दिया गया भाषण दिन भर अपने चैनल पर दिखाया तो उसने अबू आजमी का आग उगलने बाला भाषण क्यों नही दिखाया गया। बिहारीयों को महाराष्ट्रा में पिटा गया तो दिन भर ब्रेकिग न्यूज बना कर हेडलाइन्स के रुप में दिखाया गया लेकिन बिहार, झारखण्ड में जब मराठियों को पिटा गया तो क्यों नही दिखाया गया। मिडीया बाले बार बार यह क्यों दिखा रहें है कि बिहार में हमेशा से क्रान्ति का अगुआ रहा है बी.एन. कालेज पटना से विद्यार्थियों का अन्दोलन हुआ था। आखिर क्यों विद्यार्थियों को आन्दोलन के लिये उकसाया जा रहा है। आखिर कारण क्या है कौन है जो हमें आपस में लडवा रहा है आखिर किसे फायदा होगा हमारे आपस में लड़ने का। अंग्रेजो की नीति आजादी के बाद भी क्यों हम पर चलाया जा रहा है।

आज हिन्दुस्तान अपने आप को भुल गया है हम भुल गये हैं कि हिन्दुस्तान हमारा देश है आज हम अपने गली मुहल्ले, कस्बा, अपना शहर और अपना राज्य को अपना देश मान रहें हैं। आन्दोलन होना चाहिये बी.एन. कालेज पटना से अन्दोलन का सुरुआत होना चाहिये लेकिन किसी राज ठाकरे के लिये नही वैसे देशद्रोहियों के लिये जो हमें तोड़ना चाहते हैं वैसे नेताओं के लिये जो हमें इन्सान नही सिर्फ एक वोट मानते हैं। बी.एन. कालेज पटना से अन्दोलन सुरु हो और महाराष्ट्र के मुम्बई में जाकर इस आन्दोलन को सफलता मिले। हमें आपस की लडाइ को भुल कर हिन्दुस्तान के बारे में सोचना चाहिये।
read more...

हिन्दु आतंकवादी चुनाव जीतने का फार्मुला

14 नवम्बर 2004 दिपावली के ठीक पहले शकराचार्य स्वामी जयेन्द्र स्वामी को ठीक पुजा करते समय गिरफ्तार किया गया सेकुलर के द्वारा यह किसी विश्व विजय से कम नही था जम कर खुशीयाँ मनायी गया। इस खुशी के माहौल को दुगना करने में मिडीया का भरपुर सहयोग मिला मिडीया पुलिस और खूफिया ऎजेन्सी से ज्यादा तेज निकला और डेली एक नया सबूत लाकर टी.वी समाचार के माध्यम से दिखाया जाने लगा हिन्दु साधु-संत को जम कर गालिया दिया जाने लगा सभी को हत्यारा कहा जाने लगा। लेकिन सेकुलर और मिडीया का झुठ ज्यादा दिन तक नही टिका और शकराचार्य स्वामी जयेन्द्र स्वामी के खिलाफ सेकुलर और मिडीया कुछ भी नहीं साबित कर रहा था, सभी आरोप को बकवास करार दिया गया, उच्चतम न्यायालय का फैसला शकराचार्य स्वामी जयेन्द्र स्वामी के पक्ष में आया उन्हे हत्या के आरोप से जमानत के द्वारा रिहा कर दिया गया।

इस दीवाली हिन्दुओ के उपर एक और कंलक लगाने का कोशिश किया जा रहा हिन्दु आतंकवादी का बैगर किसी सबूत के एक हिंदू साध्वी को मालेगांव विस्फोटों में उसकी कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। पुलिस के पास सबूत नही है। जिस मोटर बाइक का उपयोग विस्फोट में करने के बारे में बताया जा रहा है उस बाइक को कुछ साल पहले बेच दिया गया था। स्पेशल पुलिस रविवार को साध्वी प्रज्ञा सिंह के किराए के मकान पर छापा मारा, लेकिन वहाँ से कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला। मुंबई एटीएस प्रदेश में साध्वी प्रज्ञा से जुड़े लोगों की गतिविधियों की जानकारी एकत्रित कर रही है। लेकिन अभी तक पुलिस को कोई खास सफलता मिला लगता नही है। लेकिन इस मुद्दे पर काग्रेसी और उसके सहयोगी के द्वारा झुठा प्रचार सुरु कर दिया गया है । चुनाव से पहले खुफिया ऎजेन्सी और पुलिस को अपने चुनाव ऎजेन्ट के रुप में काम करवाया जा करवा दिया है। काग्रेस के नेता और उनके सहयोगी दल इसी कोशीश में लगे हैं कि किस हिन्दु संघठन को चुनाव तक हिन्दु आतंकवादी का तगमा लगा कर रखा जाये जिससे चुनाव में फायदा उठाया जा सके।

कांग्रेस सरकार इस पांच साल में इस देश को क्या दिया है। इस सरकार के दौरान सबसे ज्यादा मुस्लिम आतंकी का भयावह चेहरा हिन्दुस्तान देखा है। आंतकी को सरक्षण देने के लिये पोटा हटा दिया गया। परमाणु करार के द्वारा सरकार अपना परमाणु और रक्षा निती अमेरिका के हाथ में गिरवी रख दिया है। आखिर कौन सा चेहरा मुंह कांग्रेस उन किसानो के पास वोट मागने जायेगा जिसके परिजन आत्महत्या कर चुके हैं। हिन्दुस्तान का अर्थव्यवस्था आज जिस गति से निचे गिर रहा है उतना तेजी से शायद सचिन और धोनी ने रन भी नही बनाता है। हमारे अमेरिकन स्कालर प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी वित्त मंत्री के द्वारा लाख भरोसा और आश्वासन के बाबजुद भी अर्थव्यवस्था का गिरना बन्द नही हो रहा है अगर हालत यही रहा तो 1-2 महीना के अन्दर हिन्दुस्तान में भुखमरी सुरु हो जायेगा।

सोचने योग्य बाते हैं आखिर हिन्दु अपने देश हिन्दुस्तान में क्यों बम विस्फोट करेंगे। उन्हें ना तो किसी देवता के द्वारा जिहाद करने को कहा गया है। नही हिन्दु इस देश को दारुल हिन्दुस्तान बनाना चाहता है। हिन्दु के किसी धर्म ग्रन्थ में कही भी यैसा भी नही लिखा है कि दुसरे धर्म वालो को तलवार से सर कलम कर दो। उसके बच्चों को उसी के सामने पटक कर मार दो उसकी बहन और बेटी का बलात्कार करो। किसी हिन्दु धर्मगुरु ने मंदिर के उपर चढकर अपने भक्तों को कभी नही कहा होगा की तुम्हे अपने घर में हथियार रखना जरुरी है और हिन्दु जिहाद के नाम पर चन्दाँ इकट्ठा कर के आतंकवादीयों को सुरक्षा मुहैया करना है आतंकवादीयों को अपने घर में पनाह देना है। और उसे न तो किसी आतंकवादी देश के द्वारा छ्दम युद्ध लड़ने के लिये पैसा मिलता है। आखिर क्या कारण है कि हिन्दु अपने घर को तवाह करना चाहते हैं। कोई कारण समझ में नही आता है सिर्फ इतना ही समझ में आरहा है कि हिन्दु आतंकवाद का डर दिखा कर कुछ मुस्लिम तुस्टिकरण में लिप्त, आतंकवादियों के सहयोगी राजनिती पार्टी को चुनाव में फायदा होगा। और कोई कारण नही है इस हिन्दु आतंकवादी का।

सत्यमेव जयते के सिद्धान्त का पालन करते हुये हिन्दु इसी आशा में बैढे हैं कि जिस तरह से शकराचार्य स्वामी जयेन्द्र स्वामी को न्यायालय के द्वारा बाइज्जत बरी किया गया उसी तरह इस साध्वी प्रज्ञा सिंह भी एक दिन इज्जत के साथ जेल से रिहा होगी और तथाकथित सेकुलरिज्म का नकाव पहने, समाचार के नाम पर दलाली करने बाले मिडीया के गाल में तमाचा मारते हुये। फिर से इस देश में अपने ओजस्वी भाषण, देशभक्ती कार्य के द्वारा इस देश को परम वैभव में पहुचाने के कार्य में लग जायेगी।
read more...

कांग्रेस को भारी पड सकती है हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा

यह कोई संयोग है या फिर सोचा समझा प्रयास कि जिस दिन सेंसेक्स इतना नीचे चला गया कि शेयर बाजार में छोटा निवेश करने वालों की दीपावाली अभिशप्त हो गयी और प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, आर.बी.आई के गवर्नर के तमाम आश्वासनों के बाद भी शेयर बाजार के गिराव थमा नहीं और सर्वत्र हाहाकार मच रहा था कि अचानक महाराष्ट्र के एण्टी टेररिस्ट स्क्वेड ने 29 सितम्बर को मालेग़ाँव में हुए बम विस्फोट की गुत्थी सुलझा लेने का दावा करते हुए इस मामले में पहली बार किसी हिन्दू को गिरफ्तार किया। आतंकवादी घटना में हिन्दू की गिरफ्तारी उतनी चौंकाने वाले नहीं है जितनी उसकी टाइमिंग। अभी कुछ दिन पहले ही केन्द्रीय कैबिनेट की एक विशेष बैठक आयोजित कर बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगाने की चर्चा की गयी और पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में सरकार के अनेक घटक दलों की जबर्दस्त माँग के बाद भी सरकार ऐसा नहीं कर पायी। इसके बाद राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक बुलायी गयी और उस बैठक में साम्प्रदायिकता को विशेष मुद्दा बनाया गया और बैठक में कुछ सदस्यों ने बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग दुहरायी। राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक से पूर्व लेखक ने बैठक के पीछे छुपी मंशा पर सवाल उठाये थे।

वास्तव में देश में बढ रहे इस्लामी आतंकवाद को लेकर जिस प्रकार एक ऐसा माहौल बन रहा है कि उसमें घटनायें करने वाले मुस्लिम ही हैं तो ऐसे में सेकुलरिज्म का दम्भ भरने वाले राजनीतिक दलों के सामने यह गम्भीर प्रश्न खडा हो गया है कि वह इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध इस लडाई को सेकुलर सिद्दांतों के दायरे में रह कर कैसे लडें? दूसरा धर्मसंकट इन दलों के समक्ष मुस्लिम वोटबैंक है। 2006 में जब मुम्बई में लोकल रेल व्यवस्था को निशाना बनाया गया था और बडी संख्या में मुम्बई की मुस्लिम बस्तियों और मुस्लिम उलेमाओं को पुलिस ने निशाने पर लिया था और पूछताछ की थी तो मुस्लिम नेताओं, बुद्धिजीवियों और धर्मगुरुओं ने मिलकर संसद भवन में एनेक्सी में आतंकवाद विरोधी सम्मेलन का आयोजन किया और केन्द्र सरकार के प्रतिनिधियों के बीच आतंकवाद के नाम पर इस्लाम को बदनाम करने और निर्दोष मुसलमानों को फँसाने की प्रवृत्ति की आलोचना की और सरकार से आश्वासन लिया कि सरकार आतंकवाद के मुद्दे पर मुस्लिम भावनाओं का आदर करेगी। यह पहला अवसर था जब भारत के स्थानीय मुस्लिम समाज की भूमिका आतंकवादी घटनाओं में सामने आयी थी। इसके बाद से आतंकवाद को लेकर सेकुलरिज्म के सिद्धांतों के अनुपालन और संतुलन साधने के प्रयासों के तहत हिन्दू आतंकवाद का आभास सृजित कर एक नयी अवधारणा स्थापित करने का प्रयास आरम्भ हो गया। यदि 2006 के बाद हुई आतंकवादी घटनाओं के पश्चात सेकुलरपंथी राजनेताओं और राजनीतिक दलों के बयानों पर दृष्टि डाली जाये तो स्पष्ट होता है कि अनेक बार आतंकवादी घटनाओं की निष्पक्ष जाँच और हिन्दू संगठनों के षडयंत्र का कोण भी इनके बयानों में आने लगा। इसी के साथ अनेक मुस्लिम संगठन तो खुलकर कहने लगे कि ऐसे आतंकवादी आक्रमण हिन्दू संगठनों द्वारा इस्लाम को बदनाम करने के लिये प्रायोजित किये जा रहे हैं।

जैसे-जैसे देश में आतंकवादी आक्रमण बढते रहे आतंकवाद के विरुद्द कार्रवाई में सेकुलरिज्म के सिद्धांत का पालन करने के लिये और संतुलन साधने के लिये हिन्दू आतंकवाद का आभास सृजित किया जाने लगा। यही नहीं तो इस्लामी आतंकवाद के समानान्तर एक हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा को पुष्ट करने के लिये हिन्दूवादी संगठनों के एक व्यापक नेटवर्क की बात की जाने लगी जो सुनियोजित ढंग से आतंकवाद फैलाने के लिये उसी प्रकार कार्य कर रहे हैं जैसे सिमी या अन्य इस्लामी आतंकवादी संगठन। इसके लिये देश के कुछ जाने माने टीवी चैनलों ने तो प्रचार का एक अभियान चलाया है और अपनी झूठी और खोखली दलीलों के द्वारा सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं कि हिन्दूवादी संगठनों के प्रयासों से देश में आतंकवाद का एक नेटवर्क चल रहा है जिसमें महाराष्ट्र का एक सैन्य स्कूल बम बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है। सीएनएन- आईबीएन ने कुछ दिनों पहले इसे खोजी पत्रकारिता का नाम देकर कुछ वर्षों पूर्व नान्देड में हुए बम विस्फोट से लेकर पिछले माह कानपुर में हुए बम विस्फोट तक पूरे घटनाक्रम को एक सुनियोजित नेटवर्क का हिस्सा बताकर हिन्दू आतंकवाद को मालेगाँव से पहले ही पुष्ट कर दिया था।

मालेग़ाँव के मामले में एक साध्वी सहित कुछ लोगों की गिरफ्तारी के मामले पर भी कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के समाचार चैनल पर जिस तरह समाचार से अधिक कांग्रेस का एजेण्डा चलाया जा रहा है उससे स्पष्ट है कि यह पूरा मामला केवल जाँच एजेंसियों तक सीमित नहीं है और इसे लेकर एक प्रकार का प्रचार युद्ध चलाया जा रहा है। जिस प्रकार न्यूज 24 ने साध्वी की गिरफ्तारी के साथ ही चैनल पर हिन्दू आतंकवाद बनाम इस्लामी आतंकवाद की बहस चलायी और सभी समाचार चैनलों मे अग्रणी भूमिका निभाकर स्वयं ही न्यायाधीश बन कर फैसला सुना दिया उससे स्पष्ट है कि यह पूरा खेल कांग्रेस के इशारे पर हो रहा है।

एंटी टेररिस्ट स्कवेड अभी तक जिन तथ्यों के साथ सामने आया है उस पर कुछ प्रश्न खडे होते हैं। आखिर अभी तक साध्वी और उनके साथ गिरफ्तार लोगों के ऊपर मकोका के तहत मामला क्यों दर्ज नहीं किया गया है और यह मामला भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत ही क्यों बनाया गया है जबकि आतंकवादियों के विरुद्ध मकोका के अंतर्गत मामला बनता है। इससे स्पष्ट है कि संगठित अपराध की श्रेणी में यह मामला नहीं आता। आज एक और तथ्य सामने आया है जो प्रमाणित करता है कि मालेगाँव विस्फोट में आरडीएक्स के प्रयोग को लेकर महाराष्ट्र पुलिस और केन्द्रीय एजेंसियों के बयान विरोधाभासी हैं। महाराष्ट्र पुलिस का दावा है कि वह घटनास्थल पर पहले पहुँची इस कारण उसने जो नमूने एकत्र किये उसमें आरडीएक्स था तो वहीं महाराष्ट्र पुलिस यह भी कहती है कि विस्फोट के बाद नमूनों के साथ छेड्छाड हुई तो वहीं केन्द्रीय एजेंसियाँ यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि इस विस्फोट में आरडीएक्स का प्रयोग हुआ उनके अनुसार इसमें उच्चस्तर का विस्फोटक प्रयोग हुआ था न कि आरडीएक्स। इसी के साथ केन्द्रीय एजेंसियों ने स्पष्ट कर दिया है कि मालेग़ाँव और नान्देड तथा कानपुर में हुए विस्फोटों में कोई समानता नहीं है। अर्थात केन्द्रीय एजेंसियाँ इस बात की जाँच करने के बाद कि देश में हिन्दू आतंकवाद का नेटवर्क है इस सम्बन्ध में कोई प्रमाण नहीं जुटा सकी हैं। अब क्या सीएनएन-आईबीएन अपने दुष्प्रचार के लिये क्षमा याचना करेगा?

साध्वी के मामले में एटीएस के अनेक दावे कमजोर ही हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि महाराष्ट्र सरकार और केंन्द्र सरकार की रुचि इस विषय़ में अधिक थी कि मालेगाँव विस्फोट के तार किसी न किसी प्रकार हिन्दूवादी संगठनों से जुडें और यह सिद्ध किया जा सके कि ये संगठन आतंकवाद का एक नेटवर्क चला रहे हैं और इसी आधार पर इन संगठनों को प्रतिबन्धित कर मुस्लिम समाज को यह सन्देश दिया जा सके कि हमें आपकी चिंता है और हम आतंकवाद को लेकर संतुलन की राजनीति करते हुए सेकुलरिज्म के सिद्धांत का पालन कर रहे हैं। यह अत्यंत हास्यास्पद स्थिति सरकार और जाँच एजेंसियों के लिये है कि वे अब तक साध्वी और उनके साथियों को लेकर आधे दर्जन से अधिक संगठनों के नाम गिना चुके हैं परंतु अभी तक एक भी ऐसा ठोस प्रमाण सामने नहीं ला सके हैं कि इन संगठनों का आतंकवादी गतिविधियों में कोई हाथ है। पहले हिन्दू जागरण मंच का सदस्य बताया गया, फिर दुर्गा वाहिनी, फिर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद , फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाने वाला बताया गया अब पुलिस कह रही है कि इन्होंने अलग संगठन बनाया था। एटीएस ने भोपाल और ग्वालियर में सभी सम्बन्धित संगठनों के लोगों से पूछताछ की जो साध्वी के निकट थे परंतु अभी तक पुलिस को ऐसा कोई साक्ष्य हाथ नहीं लगा है जो यह सिद्ध कर सके कि हिन्दूवादी संगठन आतंकवाद का प्रशिक्षण देते हैं या फिर आतंकवादी नेटवर्क चला रहे हैं।
एटीएस ने साध्वी और उनकी तीन साथियों को इस आधार पर गिरफ्तार किया है कि विस्फोट में प्रयुक्त हुई मोटरसाइकिल साध्वी के नाम थी और साध्वी ने विस्फोट से पूर्व साथी आरोपियों के साथ करीब सात घण्टे मोबाइल पर बात की थी जो कि प्रमाण है। अब ये प्रमाण कितने ठोस हैं इसका पता तो न्यायालय में चार्जशीट दाखिल होने पर लग जायेगा। लेकिन इस पूरे अभियान से एक बात निश्चित है कि हिन्दू आतंकवाद का आभास सृजित करने का प्रयास कांग्रेस उसके सहयोगी दल और उसके सहयोगी टीवी चैनल ने किया है और इस प्रचार युद्ध में अपनी पीठ भले ही ठोंक लें परंतु जिस प्रकार आतंकवाद की लडाई को कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने भोथरा करने का प्रयास किया है वह अक्षम्य अपराध है।

कांग्रेस के लिये मीडिया प्रबन्धन करने वालों के लिये यह एक बुरी खबर है कि ब्लाग पर या विभिन्न समाचार पत्रों में इस घटना पर टिप्पणी करने वालों का तेवर यह बताता है कि इस विषय पर युवा और बुद्धिजीवी समाज जिस प्रकार ध्रुवीक्रत है वैसा पहले कभी नहीं था। कांग्रेस शायद अब भी एक विशेष मानसिकता में जी रही है जहाँ उसे लगता है कि देश उसके बपौती है और देशवासियों के विचारों पर भी उसका नियंत्रण है। इसी भावना के बशीभूत होकर कांग्रेस के एक बडे नेता के न्यूज चैनल न्यूज 24 पर आतंकवाद पर बहस के दौरान कांग्रेसी नेता राशिद अल्वी बार बार बासी तर्क दे रहे थे कि स्वाधीनता संग्राम में कांग्रेस का योगदान रहा है और कुछ दल विशेष अंग्रेजों का साथ दे रहे थे। यह तर्क सुनकर हँसी ही आ सकती है कि एक ओर तो कांग्रेस के राजकुमार तकनीक और युवा भारत की बात करते हैं तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के नेता अब भी स्वाधीनता पूर्व मानसिकता में जी रहे हैं। आज सूचना क्रांति के बाद लोगों को यह अकल आ गयी है कि वे वास्तविकता और प्रोपेगेण्डा में विभेद कर सकें। 11 सितम्बर 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की गिरती इमारतों के बाद समस्त विश्व में इस्लामी आतंकवाद को लेकर जो बहस चली है उसके बाद किसी भी युवक को यह बताने की आवश्यकता नहीं है को आतंकवाद का धर्म, स्वरूप और उसकी आकाँक्षायें क्या है? आज शायद कांग्रेस और उसके सहयोगी भूल गये हैं कि देश की 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 30 या उससे नीचे आयु की है और उसने 1990 के दशक के परिवर्तनों के मध्य अपनी को जवान किया है। उसने आर्थिक उदारीकरण देखा है, सूचना क्रांति के बाद विश्व तक अपनी पहुँच देखी है, उसने कश्मीर से जेहाद के नाम पर भगाये गये हिन्दुओं की त्रासदी देखी है और देखा है राम जन्मभूमि आन्दोलन जिसने भारत की राजनीति की दिशा बदल दी।

आज वही पीढी निर्णायक स्थिति में है जिसके विचार अपने से पहली की पीढी के बन्धक नहीं है। इस पीढी ने अपनी पिछली पीढी के विपरीत सब कुछ अपने परिश्रम से खडा किया है और इसलिये उसे स्वयं पर भरोसा है और वह व्यक्ति के विचारों के आधार पर उसका आकलन करती है न कि किसी खानदान का वारिस होने के आधार पर।

समाज में जो मूलभूत परिवर्तन हुआ है उसके प्रति पूरी तरह लापरवाह कांग्रेस और उसके सेक्यूलर सहयोगी हिन्दू आतंकवाद का आभास सृजित कर इसका आरोप हिन्दू संगठनों पर मढना चाहते हैं परंतु शायद वे लोग भूल जाते हैं कि हिन्दुत्व का विचार केवल किसी संगठन तक सीमित नहीं है। इसका सीधा सम्बन्ध युवा भारत के सपने से है। आज देश विदेश में ऐसे लोगों की संख्या अत्यंत नगण्य है जो इस्लामी आतंकवाद को संतुलित करने के लिये हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा का समर्थन करेंगे। इसका उदाहरण हमें पिछले गुजरात विधानसभा में मिल चुका है जब कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी द्वारा गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर कहने और कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा हिन्दू आतंकवाद की बात करने के कारण इस पार्टी को मुँह की खानी पडी। एक बार फिर चुनावों से पहले कांग्रेस हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा को सृजित कर रही है। क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि देश में हिन्दुओं का एक बडा वर्ग है जो उसकी सेक्युलरिज्म की परिभाषा से सहमत है। कांग्रेस ऐसे हिन्दुओं और मुसलमानों को साधने के प्रयास में एक खतरनाक खेल खेल रही है जिसका परिणाम देश में साम्प्रदायिक विभाजन के रूप में सामने आयेगा।

मालेगाँव विस्फोट को लेकर जाँच एजेंसियाँ तो अपना कार्य कर रही हैं और शीघ्र ही सत्य सामने आ जायेगा परंतु जिस प्रकार कांग्रेस इस्लामी लाबी के दबाव में आकर कार्य कर रही है वह देश के भविष्य़ के लिये शुभ संकेत नहीं है। क्योंकि हिन्दू आतंकवाद की बात करके कांग्रेस और उसके सहयोगी दल भले ही अस्थाई तौर पर प्रसन्न हो लें परंतु अभी बहस में अनेक प्रश्न उठेंगे और सेक्युलरिज्म का एकांगी स्वरूप, मानवाधिकार संगठनों का अल्पसंख्यक परस्त चेहरा भी बह्स का अंग बनेंगे।
read more...

हिन्दु आतंकवादि हमें मुर्ख समझा है क्या

मालेगांव में हुये विस्फोट के मामले में पुलिस के द्वारा हिन्दु संगठन पर लगाये गये आरोप में कितनी सच्चाई है यह तो समय आने पर मालूम होगा लेकिन कुछ प्रशन है जो दिमाग में चुभ रहा है - जामिया नगर इनकाउंटर में कथित सेक्युलर लोग पुलिस के सबूतों को मानने से इनकार कर रहे है जहाँ कई राउन्ड गोली चला खतरनाक हथियार मिला लेकिन मालेगांव में पुलिस के सूत्रों के हवाले से मिली खबर पर हो-हल्ला क्यों क्या हिन्दु संघटन के पकरे गये कार्यकर्ता के साथ किसी तरह का मुठभेड़ हुआ था क्या किसी तरह का खतरनाक हथियार मिला था नही सिर्फ पुलिस के द्वारा आरोप लगायें गयें है। यह अभी तक सिद्ध नही है कि बम धमाकों में इन्ही लोगों का हाथ है। अगर ये विस्फोट करते तो क्या इतने नासमझ हैं ये कि अपना मोटर बाइक का इस्तेमाल करते। 2000 का कही से साइकल भी तो खरीद सकते थे या फिर यैसा भी नही है कि मोटर पर विस्फोट करने से असर कुछ ज्यादा होता है। कुछ दिन पहले तक मालेगाव विस्फोट का सक सिमी पर था एकाएक चुनाव नजदिक आते ही हिन्दुओं के संस्था का नाम कैसे जुड गया यह बात कुछ हजम नही हो रहा है। पुलिस इस विस्फोट में R.D.X का प्रयोग का बात कह रही थी लेकिन अभी तक किसी पुलिस बाले ने बताया नही कि इनके पास R.D.X आया कहा से किसने बेचा कहा से लाया इन्होंने। मालेगांव के अगर छोड दे तो सैकडों आतंकी बम विस्फोट हुये जिसका स्पेशल पुलिस पता नही लगा पाया लेकिन चुनाव के ठिक पहले पुलिस के ये कैसे पता चल गया कि मालेगांव में विस्फोट एक महिला साध्वि का हाथ है। सरकार जिस तरह से कुछ दिन पहले से बजरंग दल, विश्व हिन्दु परिषद पर बैन लगाना चाहता था लेकिन किसी तरह के सबूत ना मिलने पर इन संस्थाओ को काग्रेस सरकार बैन नही लगा पाया कही ये निराशा में उठाया गया यह कदम तो नही है।
अगर देखा जाये तो चुनाव में उतरने के लिये सरकार में बैठे राजनितीक दल के पास जनता के सामने मुह दिखाने लायक कुछ भी नही है। महगाई आसमान कब का छु चुका है वित्त मंत्री के बार - बार आश्वासन के बावजुद महगाई उतरने का नाम नही ले रहा है। किसानों को उपजे फसल का दाम मिल नही रहा है किसान कर्ज में दबे जा रहे हैं जिसके फलस्वरुप किसान अत्महत्या कर रहें हैं। आतंकवाद के समर्थन में सत्ताधारी नेताओं के उतरने से इन दलों पर से आम जनता का भरोसा पहले डिग चुका है। एक अदना सा आतंकवादि को फांसी तक ये सरकार नही दे पाया। पोटा जैसा कानून जो आतंक का कमर लगभग हिन्दुस्तान में तोड दिया था उस पोटा को हटा कर सरकार ने इस देश में आतंकवाद को दुबारा से फलने फुलने का मैका दिया । इस देश में अवैध रुप से रहे 5 करोड से ज्यादा बाग्लादेश जो कि आतंकवाद, चोरी, अपहरण, पाकेटमारी, डकैती जैसी घटना में संलिप्तता पाया गया है वैसे अपराधी तत्व को सिर्फ वोट राजनीति के कारण इस देश में बिठा कर रखा गया है और इनका राशन कार्ड, वोटिग कार्ड बना कर सरकार अघोषित रुप से इन्हें नागरिकता प्रदान कर रही है।
आज हिन्दुस्तान का हर एक कोना जल रहा है काग्रेस प्रायोजित उत्तर भारतीयों का पिटाई जिसमें अभी तक कितनों का जान जा चुका है और सरकार ताली बजा कर मजा ले रहा है। नार्थ इस्ट में बिहार के मजदुरों का हत्या। अमरनाथ जमीन विबाद में सरकार का चेहरा बेनकाब हो गया। राम सेतु जिस से देश को एक पैसे भी फायदा नही होने बाला है उस राम सेतु को तोड़ने के लिये सरकार जिस तरह से ललायित दिख रही है उस से पता चलता है दाल में जरुर कुछ काला है। राम का अस्तित्व नही है राम मनगंठत है लेकिन मुस्लामानों को हज के लिये हजार तरह का सुविधा और सव्सिडी दे कर काग्रेस पहले से ही हिन्दु के वोट से हाथ धो चुका है।
अब क्या करें चुनाव में जाना है और जनता को मुह भी दिखाना है दोबारा सत्ता में आने का सपना भी देखना है। अब बस एक तरीका है हिन्दु आतंकवादि । हिन्दुओ को निचा दिखा कर जनता को भ्रम में डालकर हिन्दू विरोधी माहौल तैयार करके मुस्लमानों को भय दिखा कर मुस्लिम तुष्टिकरण के द्वारा समाज को अगरे और पिछडे़ में बाँट कर दोबारा सत्ता मिल सकता है।
read more...

सपा और राज का चक्रव्‍यूह

आज देश किस मोड़ पर जा रहा है, आज के नेतागण देश और धर्म को चूस रहे है। महाराष्ट्र में राज ठाकरे देश को तो समाजवादी पार्टी के कुछ नेता देश और धर्म को बॉंट रहे है। आज इन नेताओं की मानसिकता बन गई है कि बन गई है कि इस देश में उसी का राज है। आज इन अर्धमियों के आगे अपना देश और सविंधान नतमस्तक  हो गया है। आखिर ये देश और देश की राजनीति को किस दिशा में ले जाना चाहते है ? 

आज जिस प्रकार महाराष्ट्र में राज ठाकरे द्वारा कुराज किया जा रहा है, वह देश बॉंटने वाला है। आज ये क्षेत्रवाद के नाम पर देश को बॉट रहे है। वह देश की संस्‍कृतिक विरासत के लिये खतरा है। अगर इसी प्रकार क्षेत्रवाद के नाम पर राष्‍ट्र को बॉंटा जायेगा तो देश का बंटाधार तो तय है। भारत को उसकी विविधा के कारण जाना जाता है। पर इस विवि‍धा वाले देश को मराठा और तमिल के नाम पर कुछ क्षेत्रिय नेता आपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे है। ये नेता क्यो भूल जाते है कि जो क्षेत्रवाद की राजनीति करते है। वे भूल जाते है कि वे जिस मराठा मनुष की बात करते है वही के मराठा मानुष भारत के अन्य राज्यों में भी रहते है। अगर उनके हितो को नुकसान पहुँचाया जायेगा तो कैसा लगेगा ? 

आज कल सपा नेताओं को भी चुनाव आते ही मुस्लित हितो का तेजी से ध्‍यान आने लगा है। जिनते आंतकवादी मिल रहे है सपा उन्हे अपना घरजमाई और दमाद बना ले रही है। अमर सिंह की तो हर आंतकवादी से रिस्‍ते दारी निकल रही है। तभी देश की रक्षा करते हुये शहीदो से ज्‍यादा सपा और उसके नेताओं को अपने घर जामईयों की ज्‍यादा याद आ रही है।

यह देश आज आत्‍मघातियों से जूझ रहा है, जो क्षण क्षण देश को तोड़ रहे है। भगवान राजठाकरे को, और अल्लाह मियॉं अमर सिंह को सद्बुद्धि दे की ये देश के बारे कुछ अच्छा सोचे और देश के विकास में सहयोग करें। इसी में सबका भला है। 
read more...

कांग्रेस सरकार का नाटक

कांग्रेस सरकार राष्ट्रीय एकता परिषद के मंच का राजनीतिक दुरुपयोग कर रहा है। यह राष्ट्रीय एकता का ढकोसला है। विगत सप्ताह एकता परिषद की दिल्ली में हुई बैठक के एजेंडे से ही यह झलक मिल रही थी कि यह बैठक बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद को घरने के दुराग्रह के साथ आयोजित की जा रही थी क्योंकि आज देश के सामने जो सबसे गंभीर संकट है अर्थात आतंकवाद, वह इस बैठक के एजेंडे में ही नहीं था। बल्कि उड़ीसा और कर्नाटक की हिंसक घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में साम्प्रदायिकता को बैठक का केन्द्रीय विषय बनाया गया। यह स्पष्ट है कि परिषद की यह बैठक आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर साम्प्रदायिकता के नाम पर हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों और भाजपा को आरोपित कर छद्म सेकुलर जमात अल्पसंख्यक समुदायों को यह संदेश देना चाहती थी कि वही उनकी हिमायती है। बजरंग दल के खिलाफ स्वर को मुखर करने के लिए समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह को परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया जबकि अमर सिंह ने आतंकवादियों के खिलाफ पुलिस मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिस अधिकारी शहादत पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया था। अमर सिंह जैसे लोगों को परिषद में शामिल कर सरकार क्या संदेश देना चाहती है। इस बैठक की गंभीरता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि बैठक में विशष आमंत्रित के रूप में बुलाए गए कामरेड ज्योति बसु ने स्वयं उपस्थित न होकर अपना जो संदेश भेजा वह परिषद की कार्यशैली व भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। भाजपा द्वारा आतंकवाद जैसे गंभीर विषय को बैठक के एजेंडे में शामिल करने के लिए जोर देने पर सरकार ने चरम पंथ को एजेंडे में शामिल किया क्यों कि संप्रग सरकार व उसके छद्म धर्मनिरपेक्ष घटक दल जानते हैं कि आतंकवाद पर व्यापक बहस हुई तो उन सबकी पोल खुलेगी और फिर देश की जनता जानेगी कि सोनिया पार्टी की सरकार और लालू,पासवान व मुलायम सिंह जैसे उसके सहयोगी किस तरह मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए न केवल आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाने से कतरा रहे हैं बल्कि आतंकवादी समूहों के पैरोकारी कर रहे हैं।
read more...

आतंकवादियों को मारो मत भारतरत्न का अर्वाड दो

आज हिन्दुस्तान में सत्ताधारी नेता बाटला हाउस में मारे गये आतंकवादियों के पझ में खडे़ हैं और जिस तरह से ब्यानबाजी कर रहें है लगता है पुलिस ने आतंकवादियों को मार कर कोई गुनाह किया हो। आमिताभ बच्चन के पिछलग्गु नेता अमर सिंह इस मामले में पुलिस बालों पर पहले अगुली उठा चुके हैं और उनका केस भी लड़ने को तौयार हैं आज सत्ता पक्ष के नेता इस होड़ में उलझें हैं कि कौन कितना ज्यादा आतंकवादियों का हिमायती है। काग्रेंस कुछ के नेता प्रधानमंत्री से मिल कर बाटला हाउस में मारे गये आतंकवादियों के मारे जाने पर पुलिस के कार्यवाही पर प्रश्नचिन्ह लगाने गये थे। वैसे पुलिस को क्लिनचीट सुरक्षा सलाहकार नारायणन दे चुके हैं। वैसे आजकल आतंकवादियों के सर्मथक नेताओ का लिस्ट कुछ ज्यादा बडा़ होता जा रहा है सबसे पहले बाटला हाउस मामलें मे अर्जुन सिंह ने आतंकियों के केस लड़ने का मनसा जाहिर किया था। तो रामविलास पासवान जो हमेशा से ओसामा बिन लादेन के हमसक्ल को साथ में लेकर चलते हैं क्यों पीछे रहते लगे हाथ उसने भी ब्यान जारी करके आतंकियों के साथ गलवहिया डालना सुरु किया फिर क्या था लालु प्रसाद कहा पीछे रहने बाले थे लगे हाथ उन्होंने भी अपनी देशभक्ति का पिटारा खोल कर रख दिया।
आखीर कब तक मुस्लिम तुस्टीकरण का खेल इस देश में चलता रहेंगा। आखिर कब तक इस देश में अल्पसंख्यक असुरक्षा के नाम पर दबाब डाल कर अपना उल्लु साधते रहेगा। हिन्दुस्तान ऎसा देश है जहा के अल्पसंख्यक सबसे ज्यादा सुरक्षीत है। पुरे विश्व में 57 मुस्लिम देश है जो किसी तरह का हज में सब्सिडी नही देता है लेकिन हिन्दुस्तान में मुस्लमानों को सब्सिडी दिया जाता है मुस्लमानों सभी हवाई अड्डा पर सिर्फ साल में कुछ दिन खुलने बाला पाँच सितारा हज हाउस बनाकर दिया गया। आतंकवाद का नर्सरी को सरकार के द्वारा पैसा मुहया किया जाता है मस्जिदों के मरम्मत के नाम पर करोडों खर्च करती है सरकार क्या ये सब सुविधा हिन्दुओ को मिलता है आज हिन्दुस्तान में हिन्दुओ के मुकाबले ज्यादा सुविधा दी जा रही है मुस्लिमानों को। हिन्दुस्तान के मुस्लिम बहुल राज्य में हिन्दु मुख्यमंत्री नही बन सकता है मुस्लिम उत्पात मचा कर रख देंगे। जैसा कि अफजल को फांसी के मामले में उन्होंने पहले सभी को चेता दिया है अगर अफजल को फांसी दिया गया तो देश में दंगा भरक जायेगा। लेकिन हिन्दु बहुल राज्य में मुस्लिम मुख्यमंत्री बने है और आगे भी बनते रहेंगे। हिन्दुस्तान के कुछ नेता के नासमझी के कारण हिन्दुस्तान अपना 30% जमीन का टुकरा अल्पसंख्यक को अलग देश के लिये दे दिया लेकिन हिन्दु अयोध्या में एक मन्दिर बनाने के लिया अल्पसंख्यक के आगे निहोरा कर कर रहा है। गोधरा में मारे गये हिन्दु के बाद भडके दंगा का नासुर आज भी सभी को जला रहा है सेकुलर इसे हिन्दु के लिये सबसे बडा़ कलंक बना दिया हो लेकिन मोपला, कलकत्ता, भागलपुर जैसे हजारों दंगा हुआ जिसमें मारे गये हिन्दुओं पर आज कोई आँसु बहाने बाला नही है। जम्मु काश्मिर से 4 लाख से ज्यादा हिन्दुओं को लात मार कर निकाल बाहर कर दिया गया किसी के आँख में आसु नही आया कोई नेता, सेकुलर एक शब्द इस मामले में नही बोला। आज पाकिस्तान और बाग्लादेश में हिन्दुओ की हालत जानवरों से भी बत्तर है उन्के 12 साल की लडकियों को घर से उठा कर बालात्कार किया जा रहा है जबरदस्ती शादी किया जा रहा है किसी ने नही बोला लेकिन दो आतंकवादियों के मरने पर इतना हायतैबा मचा रखे है जैसे इनका अपना सगा बाला मारा गया हो। मुलायम सिंह यादव और आमिताभ बच्चन के पिछल्लगु अमर सिंह अगर चिल्लम पो मचाते हैं तो समझ में आता है क्यों कि एक आतंकवादि तो उन्ही के पार्टी के जिला अध्यक्ष का बेटा था।
अब समय आ गया है यैसे नेताओ से पुछने का कब तक ये अल्पसंख्यक असुरक्षा के नाम पर ब्लैकमेलिग का खेल खेला जायेगा और देश को गर्त में ढकेलने का काम ये नेता करते रहेंगे। हिन्दुस्तान के अल्पसंख्यक से ज्यादा किसी और देश का अल्पसंख्यक सुरक्षीत नही है उन्हें जितना सहुलियत हिन्दुस्तान में मिलता है उतना और किसी देश में नही मिलता है लेकिन फिर ये क्यों दिखाने का कोशीश किया जाता है कि हिन्दुस्तान में अल्पसंख्यक असुरक्षा है। उन्हें किसी भी तरहा का सुविधा यहा नही मिल रहा है। अल्पसंख्यक को अगर ऎसा लगता है तो उन्हें किसी ने रोका नही है अपना रास्ता नापे और कही जाकर सुरक्षीत ठीकाना का खोज लें और हमें शान्ती से रहने दें।
read more...

देश हित्त के लिय अब जग जाओ

आज सेकुलर नेता गला फाड़ कर चिल्लये जा रहें हैं बजरंग दल और विश्व हिन्दु परिषद पर पाबन्दी लगे। कारण सिर्फ और सिर्फ एक है मुस्लिम तुष्टीकरण और कोई कारण नही है। सिमी के उपर बैन लगा है। आतंकवादि संस्था इन्डियन मुजाहिदीन को बैन किया गया है। बस अब चुनाव आ गया है अब जयचन्दी नेता को अपने भाई बन्धु के सामने मुहँ दिखाना है बेचारे जयचन्दी नेता क्या मुहँ लेकर जामा मस्जिद से फतवा जारी करवायेगे, हिन्दुस्तान के मस्जिद आजादी के पहले से देशविरोधी गतिवीधी में लगा है और आज भी है। जामा मस्जिद के मैलाना समय समय पर यह ऎहसास दिलवा देता है यह कह कर हम आईएसआई के ऎजेन्ट है। किसी पकरे गये आतंकवादि के घर पर जाकर हिन्दुस्तान के पुलिस और आतंक के सर्मथन में भाषण देकर आता है। और उपर के कहता है किसी में हिम्मत है तो पकर के दिखाये। लेकिन जयचन्दी नेता को अगर चिन्ता है तो सिर्फ वोट का। देश जाये भाड़ में जयचन्दी नेता वोट लिये जितना निचे गिर सकते है गिर जायेगा अपना फेका थुक तक चाटने को तैयार रहता है।

84 साल के हिन्दु साधु लक्ष्मणा नन्द सरस्वति को बेरहमी से मार डाला गया इसमें कोई सक नही की इसमें चर्च का हाथ है। चर्च के पादरी इस बात को मानते है लेकिन जयचन्दी नेता इस बात को मानने को तैयार नही है कि लक्ष्मणा नन्द को पादरीयों ने मरवाया है। लेकिन किसी जयचन्दी नेता में इतना हिम्मत नही था कि खुल कर कह सके कि बुढे़ धर्म गुरु को मारना अपराध है।

लक्ष्मणा नन्द सरस्वति को मरने कि खुशी में चर्च ने विजय उत्सव मनाया जगह जगह हवा में गोली चला कर खुशी मनाया गया। मिशनरी के 2500 स्कूल इस खुशी में सामिल हो गये और 1 दिन के लिये स्कूल बन्द रखा। स्कूल में पढ़ने बाले लाखो हिन्दु छात्र को भी इस खुशी में सामिल किया गया। किसी हिन्दु के द्वारा इसका विरोध किया गया। जब सिर्फ कंधमाल के हिन्दु द्वारा स्वामी जी के हत्या का विरोध किया गया तो इटली, फ्रास, अमेरिका तक को फटने लगा हिन्दुस्तान में रह रहे अपने ऎजेन्टों के द्वारा चिल्लम पो मचाना सुरु किया लेकिन स्वामी लक्ष्मणा नन्द सरस्वति के हत्या के विरोध में कितना स्कूल बन्द किया गया। कितने ऎसे नेता हैं जो विरोध किये। आखिर कारण क्या है। हम संगठित नही है हम में एकता नही है जिसके कारण जाने अनजाने में जयचन्दीयों का हम मदद कर रहें है। देश हित्त के लिय अब जग जाओ
* जयचन्द - पृ्थ्विराज चैहान का भाई जिसके दगाबाजी कारण पृथ्विराज चैहान लडा़ई में हारा और कैद में रह कर अपना जान दिया
read more...

अमर सिंह राजनीति का वेश्याकरण बन्द होना चाहिये।

अभी कुछ दिन पहले अमर सिंह ने मोहन चंद शर्मा के शहादत पर सवालिया निशान लगाकर आतंकियों का मदद करने का भरपुर कोशीश कर रहें हैं। अमर सिंह ने आतंकियों के सर्मथन में अर्जुन सिंह के सुर में जामिया के तथाकथित आतंककारी छात्रों का पक्ष लेते हुए कहा कि यदि ये छात्र निर्दोष साबित होते हैं तो सपा केन्द्र सरकार से समर्थन वापस लेने पर विचार कर सकती है। इस से पहले इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की शहादत पर सपा के महासचिव अमर सिंह ने बाटला हाउस एनकाउंटर सवाल खड़े किए थे।

अमर सिंह ने जामिया नगर इलाके में पकड़े गए तथाकथित आतंकवादियों को कानूनी मदद देने की पेशकश की है। उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस ने पिछले दिनों जामिया नगर इलाके के एल-१८ बिल्डिंग से जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के जिन छात्रों को गिरफ्तार किया है, वो आतंकी नहीं जान पड़ते हैं। शायद अमर सिंह ज्योतिष भी सिख रखें हैं जो चेहरा देख कर बता सकतें है कि कौन आतंकि है और कौन नही है। या फिर उन मारे गये आतंकियो से अमर सिंह का कोई पुराना रिश्ता रहा होगा जिस से अमर सिंह को उन्के आतंकि नही होना का इतना विश्वास से कह रहें हैं। अमर सिंह ने कहा कि –जामिया के छात्र भी अभी तक आतंकवादी सिद्ध नहीं हुए हैं इसलिए मैं उन्हें कानूनी मदद देना चाहता हूं।

राजनीति के वेश्याकरण इस देश को कहा ले जा रहा है? शायद हिन्दुस्तान ही मात्र एक ऎसा देश होगा जहा देशभक्तों को गाली और आतंकियवादियों को दमाद बनाने कि परम्परा है।
read more...

कंधमाल की सच्चाई ईसाई मिशनरियों का आतंक

उडी़सा में जन्माष्टमी से ठीक पहले स्वामी श्री लक्ष्मणान्द सरस्वती को ईसाई मिशनरियों के सर्मथकों ने मौत के घाट दिया मसीही धर्मावलम्बी आजादी के पहले गरीब हिन्दुओं का धर्मान्तरण कर रही है। कुछ दिन पहले तक ईसाई मिशनरि का कहना था कि वो धर्मान्तरण नही करते हैं । लेकिन पर्दे के पिछे धर्मान्तरण का गंदा खेल चलता रहता था लेकिन अब हालात खुछ बदल गयें है देश के दलालों का साथ मिलने से अब ईसाई मिशनरियों अब खुल कर कहती है कि हिन्दु का धर्मान्तरण ईसाई मिशनरि करती है और तर्क के अनुसार इसे धर्मान्तरण नही हिन्दुओं का ह्रदय परिवर्तन कहती है। हृदय-परिवर्तन कर रहे हैं,उन्हें बेहतर इन्सान बना रहे हैं। लेकिन क्या ईसाई धर्म ग्रहण कर लेने के बाद क्या कोई आदमी इन्सान बन सकता है क्या बाइबिल में इन्सान बनाने बाले श्लोक हैं जो वेद में है|

बाइबिल यूहन्ना 6:53 में लिखा है

यीशू ने उनसे कहा:
मैं तुमसे सच सच कहता हूं जब तक तुम मनुष्य मे पुत्र का मांस न खाओ,
और उसका लहू न पीओ, तुममें जीवन ही नही है।

Then Jesus said unto them, Verily, verily, 
I say unto you, Except ye eat the flesh of 
the Son of man, and drink his blood, 
ye have no life in you.

इन्सान को मार कर उसको खाना लहू पीना ये ईसाई धर्म है|

यशायाह 13:15/16
जो यहोबा को न माने) वह तलवार से मार डाला जाएगा। 
उनके बाल बच्चे उनके सामने पटक दिये जाएंगे और
घर लूटे जाएंगे उनकी स्त्रियों से बलात्कार किया जाएगा।
किसी का घर लुटना स्त्रियों से बलात्कार करने को धर्म कहते हैं।

मत्ती 10 :34 से 38 तक में लिखा है।
 मैं धरती पर एक आग भड़काने आया हूँ। मेरी कितनी इच्छा है कि वह कदाचित् अभी तक भड़क उठती। मेरे पास एक बपतिस्मा है जो मुझे लेना है जब तक यह पूरा नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ।  तुम क्या सोचते हो मैं इस धरती पर शान्ति स्थापित करने के लिये आया हूँ? नहीं, मैं तुम्हें बताता हूँ, मैं तो विभाजन करने आया हूँ। 
क्योंकि अब से आगे एक घर के पाँच आदसी एक दूसरे के विरुद्ध बट जायेंगे। तीन दो के विरोध में और दो तीन के विरोध में हो जायेंगे। 53 पिता पुत्र के विरोध में, और पुत्र पिता के विरोध में, माँ बेटी के विरोध में, और बेटी माँ के विरोध में, सास, बहू के विरोध में और बहू सास के विरोध में हो जायेंगी।"

क्या ये धर्म है और इसे पालन कर क्या मनुष्य इंसान बन सकता है शायद कभी नही ठीक इसके विपरीत हिन्दु धर्म सर्वे भवन्तु सुखिन्: । वसु धैवकुटुम्बकम पराई स्त्री को माता, बहन, बेटी समझना। आज इन्सानियत कही बचा है तो सिर्फ हिन्दु धर्म में जो ना तो जिहाद का बात करता है और धर्मान्तरण का| आखिर कन्धमाल की वस्तुस्थिती के बारे में हमें जानना चाहिये। कंधमाल जिला में ज्यादा जनसंख्या कंध जनजाति और दलित जाति के लोग रहते हैं। ईसाई मिशनरियों का नजर इन पर 1827 में परा और ईसाई मिशनरियों सबसे पहले कंधमाल क घुमसर में डेरा डाला। धीरे - धीरे ईसाई मिशनरियों समाजिक सुधार कार्य के आड़ में दलित जाति के गरीबों का धर्मान्तरण किया। 2001 के जनगणना के अनुसार कंधमाल जिले के कुल आबादी 6,47,000 है जिसमें से 1,20,2000 से ज्यादा धर्मांतरित ईसाई हैं। 1894 में दिगी में सबसे पहला चर्च बना और आज 1014 से ज्यादा चर्च हैं जो धर्मांन्तरण के कार्य में लगे हैं।
                                                                              सरकार को चाहिये वोट नीति को छोड देश हित में ईसाई मिशनरियों के अनैतिक कार्य को जल्दी से जल्दी बन्द कराये। स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती के हत्यारों को सजा दिलवाये। और ईसाई मिशनरियों के अनैतिक गतीविधीयों पर लगाम लगा कर देशहित में कुछ काम करे।
read more...

ईसाइ मिशनरी का नया धंधा सेवा के नाम पर ठगी

ईसाइ मिशनरी इस देश में सेवा के नाम पर ईसाइय द्वारा यहा के भोले-भाले जनता का देशान्तरण कर रही है
इस कार्य में तथा कथित बुद्धीजिवी वर्ग का खुला सर्मथन प्राप्त है। बुद्धीजिवी वर्ग इस ओर से आख बन्द किये हुये हैं
या बुद्धीजिवी वर्ग को पता नही है कि चर्च के नाम पर इस देश में तरह- तरह के धंधे भी चल रहे हैं। चर्च धर्मान्तरण करने के लिये किसी भी हद तक जा सकता है। चर्च के पादरी अब अपने नाम के पीछे स्वामी शब्द का प्रयोग करते हैं जिससे भोले जनता उन्हें भी किसी हिन्दु साधु या धर्म गुरु समझे और वैसे जनता को आसानी से देशान्तरण के खेल में शामिल किया जा सकता है। झारखण्ड के देवघर में एक चर्च है बाहरी आवरण से किसी भी तरह से चर्च नजर नही आता है और नाम भी शिव जी के नाम पर आश्रम का नाम रखा है लेकिन अगर शिव जी के नाम से अगर कोइ अन्दर चला जाये
तो अन्दर घात लगा कर बैढें चर्च के पादरी यैसा झप्पट्टा मारेंगे कि कुछ दिन बाद आप शिव जी को भुल कर कुछ दिन
में शिव जी को गाली देना शुरु कर देता है यैसे आश्रम कि सख्या इस देश में कम नही है। वैसे ये सिर्फ आश्रम का नाम ही नही बदलतें है। ये अपना उजला चोला उतार कर गेरुआ वस्त्र और तुलसी माला और रुद्राक्ष भी धारण कर के अपने आपको हिन्दु धर्मगुरु दिखाने का कोशीश करते है। प्रयागराज इलाहाबाद में यैसा एक चर्च है और उसका पादरी जो गेरुआ चोला और रुद्राक्ष पहन कर नंगा नाच करता है आप कभी भी जा कर इस बहुरुपिये से मिल सकतें है जो हिन्दु धर्म का सहारा ले कर हिन्दुस्थान को कमजोर करने में जुटा है।
मिशनरी के पादरी सिर्फ कपडा़ बदल कर ही धंधा नही करता है ये दिल्ली जैसे माहानगर में सुन्दर और सेक्सी लड़किया भी मैदान में उतार रखा है जो काँलेज के और जवान लड़को को अपने मोहपास में फँसाती है और अपने रुप सैन्दर्य या फिर जरुरी परा तो सेक्स के द्वारा भी ये आपको फसाँने का कोशीश करेंती हैं। यैसी लडंकिया आपको बस, मेट्रो या किसी भी पब्लिक बाले जगह में अपने ग्राहक तालास करती दिख जाती है जो लड़कों को समय आ फिर किसी कालेज का पता पुछने के बाद ये इतनी ज्यादा घुल मिल जाती हैं कि ये 1-2 दिन के अन्दर सिनेमा हाल, माल या पार्क में डेटिग के रुप में मिलतें है ये डेटिग को ये कामोतेजक बनाती है जिससे की नैजवान लड़का कही भी चलने को तैयार हो जाये। फिर 1 सप्ताह उस लड़के सामने धर्म बदलने का प्रस्ताव रख कर फिर ये किसी नये को खोजने के लिये निकल पडती है।
मिशनरी के द्वारा धर्मान्तरण इस देश पर कितना भारी पर रहा है हमें अब अपने आखों से देख लेना चाहिये। नागालैण्ड में मिशनरी ने जब वहा कि जनता का अच्छी तरह धर्मान्तरण कर दिया तो ग्रेटर नागालैण्ड नामक अलग देश का मांग किया जा रहा है और इसके लिये चर्च ने हथियार के साथ तैयारी कर रखी है।
चर्च के पादरी चर्च के परदे के पिछे क्या क्या गुल खिलाते है हम सभी को पता है जैसे नावालिक लडकियों का यौन शोषण, पादरी चर्च में आने बाली लडकियों के साथ अवैध यौन सबन्ध बनाते रहतें है ये बात हम सभी को पता है। लेकिन सेवा के नाम पर चर्च भेले भाले गरीब जो अपने परिवार के रोटी के लिये जी तोड़ मेहनत करके अपने परिवार और बच्चो का पेट पालतें है और उसी पैसा में से कुछ पैसा बचा कर अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिये बचाता है जिस से अपने बच्चों को पढा़ लिखा करे अच्छा इन्सान बना सके यैसे गरीब आदिवासियों के पैसे पर भी इन मिशनरी का नजर पर गया है अभी कुछ दिन पहले रांची के पास दुमका का घटना है गुड सेफर्ड नामक मिशनरी जो आदिवासियों के बीच में नि:शुल्क शिक्षा, रहने के लिये आवास, मुफ्त पुस्तक और भोजन के नाम पर आदिवासी का पंजीयन कराने के नाम पंजीयन शुल्क 1750 रुपये आदिवासियों से लिया गया और जब पंजीयन के द्वारा जब अच्छा खासा पैसा इक्कठा हो गया तो मौका देख कर गुड सेफर्ड मिशनरी आदिवासियों का पैसा ले कर रफुचक्कर हो गया। जब यहा के गरीब परिवार के द्वरा मिशनरी का खोज खबर लिया गया तो पता चला कि उस क्षेत्र के हजारों आदमी का पैसा ले कर गुड सेफर्ड मिशनरी भाग गया। पुलिस ने मिशनरी के पादरी जोसेफ बोदरा के खिलाफ प्राथमिकता दर्ज कर लिया है।
read more...