एक और मेहरबानी

भारत की सरकार ने एक और मुस्लीम तुष्टीकरण के लिये एक नया मसौदा तैयार किया है। जिसमें अल्पसंख्यकों को पढा़ई के लिये छात्रवृत्ति मीलेगा। सरकार द्वारा उठाये जा रहे नासमझी भरा कदम इस देश को आज नही तो कल एक और घाव देकर ही दम लेगी। पहले से ही हिन्दुस्तान 64 टुकरा में बिखर चुका है आने बाला समय में जल्द ये 1-2 में और टुकरा में बट जायेगा।
मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने अल्पसंख्यकों के बच्चों के लिए दसवीं तक की पढ़ाई में मदद के लिए बुधवार को एक छात्रवृत्ति योजना को मंजूरी दी।

यह योजना सभी राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों के लिए है और ११वीं पंचवर्षीय योजना में इस पर १८६८ करोड़ ५० लाख रुपये खर्च किये जाएंगे। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय समिति के इस निर्णय की जानकारी देते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने बताया कि योजना में ४६०.१० करोड़ रुपये राज्य सरकारें देंगी। केन्द्र शासित क्षेत्रों के लिए पूरा पैसा केन्द्र सरकार देगी। यह योजना इसी वित्तीय वर्ष में शुरू की जानी है और २००७-१२ के दौरान कुल २५ लाख छात्रवृत्ति देने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें पहले से दसवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं का सरकारी और निजी दोनों प्रकार के स्कूलों के लिए वजीफा दिया जाएगा। ३० प्रतिशत छावृत्ति बालिकाओं के लिए होगी और उनकी संख्या कम होने पर उसका लाभ बालकों को दिया जा सकेगा। इसमें प्रति माह शिक्षण शुल्क पर ३५० रुपये की सीमा होगी। पांचवीं से ऊपर के बच्चों के लिए ६०० रपये माह तक छात्रावास का खर्चा दिया जा सकता है। पहली से पांचवीं तक के बच्चों के लिए १०० रुपये प्रति माह तक की सहायता दी जा सकेगी। पांचवीं से ऊपर की कक्षाओं के लिए ५०० रुपये तक प्रवेश शुल्क की मदद भी दी जाएगी। मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने बांधों को बचाने की योजना ११ वीं पंचवर्षीय योजना में भी जारी रखने और इसके लिए ६०० करोड़ रुपये की राशि आवंटित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी।

क्या हिन्दु में गरीब बच्चे नही हैं जो गरीबी के चलते अपना पढाई छोर चुके हैं या आगे भी अपना शिक्षा जारी रख कर इस देश का नाम रौशन करना चाहते हैं। सरकार पहले से ही अल्पसंख्यकों पर मेहरबान है कभी ये धर्म आधारीत नैकरी देने का पेशकश करता है तो कभी आरक्षण का। इस देश में रहने बाले बहुसंख्यक हिन्दु का क्या कसुर है जो सरकार इनकी ओर ध्यान नही दे रही है। आज भी भारी संख्या में किसान आत्महत्या करने पर मजबुर है लेकिन वे हिन्दु हैं इसके लिये सरकार अभी तक उनकी ओर ध्यान नही दे रहा है लेकिन एक मुस्लमान आंतकवाद के आरोप में पकरा जाता है तो हमारे प्रधानमंत्री जी को रात भर नीन्द नही आती है।

आखीर क्या मिला उन्हें और उनके बच्चों को जो इस देश की आजादी के लिये अपना जान तक गंवा दिये। उनके बारे में सरकार कभी मेहरबान नही होती है। इस देश पर चारो तरफ से हमला हो रहा है चाहे आंतकवादियों के द्वारा हो या नक्सलियों के द्वारा सरकार तो कभी नही सोची की इनके नाक में भी नकेल कसा जाये और तो और सरकार इन्हें सुरक्षा देने के लिये आंतकवाद रोधक कानुन भी हटा लिया जिससे आंतकवाद और अपना पांव पसार सके। जरुरी है हमें इस सरकार को दुबारा इस देश की गद्दी पर कभी भी काबीज ना होने देना चाहिये और ये तुष्टिकरण की नीति जीतना जल्द हो सके बन्द हो जाये।
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भारत का अपमान

ऑस्ट्रेलिया में हरभजन सिंह को लेकर पूरा भारत में तुफान खड़ा हो गया। लगभग सभी जगह से खबर आया की कोई साइमन्डस का पुतला फूका तो कोई आइ.सी.सी. को गाली दे रहे थे क्यो ना हो आखिर सवाल भारत की इज्जत का था। कुछ ने तो कहा भारतीय खिलाडी़ को वापस आ जाना चाहिये। आखिर क्यों ना वापस आ जाये सवाल भारत की संम्प्रभुता था।
लेकिन ठीक उसी समय भारत की धरती पर ही भारत का अपमान हो रहा था। यह अपमान 24 घंटे चलने वाला खबरिया चैनल वालो के द्वारा हो रहा था। लेकिन किसी ने पूतला नही, जलाया कही बन्द नही, किसी के कान पर जू तक नही रेंगा। कुछ हिन्दु युवको को अगर छोड़ दिया जाये तो इस अपमान के लिये किसी ने एक शब्द नही कहा।
जब सारा हिन्दुस्तान की गली गली में घुम-घुम कर भारत रत्न ढुंढ रहा था। उसी समय एक समाचार चैनल वालों ने हिन्दु देवि-देवता और भारत माता की नग्न चित्र बनाने वाले एम.एफ.हुसैन का नाम भारत रत्न के प्रबल दावेदार के रुप में रखा। और तो और हिन्दुओं के गाल में तमाचा मारते हुये भारत में रहने बाले 85% जनसख्या वाले हिन्दु को ही कहा गया एस.एम.एस. के जरिये एम.एफ.हुसैन को भारत रत्न चुने। उस चैनल का कदम उसके लिये काफी भारी पड़ गया जब कुछ हिन्दु अस्तित्व के रक्षक उस चैनल के दफ्तर पर धावा बोल दिया और तोड़-फोड़ की। मगर एक सवाल यहां यह उत्पन्न होता है कि उस चैनल को ऎसा क्या महसूस हुआ कि हूसैन को भारत रत्न मिलना चाहिये। भारत के उत्थान में उसका क्या योगदान है, यह किसी भारतीय से छुपा नही है। हिंन्दुओं के देवी-देवताओं के आपत्तिजनक चित्र बनाकर सस्ती लोकप्रियता बटोरने और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों को खुश करने के अलावा उसने किया ही क्या है। अगर ऎसे ही लोगो को पुरस्कार देना है तो फिर सलमान रूशदी या तस्लिमा नसरीन के नाम भी आने चाहिये थे। इस के अलावा करुणानिधि को भी प्रवल दावेदार के रुप मे पेश किया गया था जो हिन्दुओ अराध्य भगवान श्री राम के अस्तित्व को मानने से ही इनकार कर दिया था। अगर समाचार चैनल को लगता है कि जो हिन्दुओं का अपमान करे या उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करे उसे ही भारत रत्न दिया जाना चाहिये तो समाचार चैनल चलाने वालो की बुद्धि पर तरस आता है।
किसी भी विवादस्पद आदमी का नाम भारत रत्न के लिये सुझाना न केवल भारत रत्न का अपमान है बल्कि यह पूरे देश का अपमान है। सूचना प्रसारण मंत्रालर को चाहिये की घटीया मानसिकता वालो के द्वारा समाचार चैनल को तुरन्त बन्द करे और भारत की जनता से माफी मांगे।
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क्या यही गणतंत्र है?

पहले राजतंत्र था लेकीन अब गणतंत्र है। क्या बदला है सिर्फ राज से गण और कुछ नही आज भी वही समाज और वही तंत्र। आज हम अपना 58 वें गणतंत्र दिवस मना रहे हैं और जिस तरह का गणतंत्र आज है हमारे संविधान रचियता ने भी नही सोचा होगा इस देश का इस देश को खोखला करने बाले तंत्र भी अपना ताकत बढाते जायेगें। आज हिन्दुस्तान कीस रास्ते पर चल रहा है इसका गणतंत्र कीतना मजबुत हो रहा है चिंतन का विषय है।
आज इस देश में नौकरी के लिये योग्ता नही धर्म, जाति और मजहब सर्वोपरी है। कभी-कभी ये योगता भी कम पर जाती है जब हिन्दुस्तान के किसी और कोने के आदमी हिन्दुस्तान के ही जम्मु काश्मीर में नौकरी नहीं कर सकता है। आखीर क्यों हमारे देश के कर्णधार इस विषय में क्या कर रहैं हैं। नारी को इस देश में देवी कहा जाता है लेकिन दहेज के नाम पर नारी की हत्या आम बात है और दहेज के नाम पर ब्लैकमेलिंग भी धरल्ले से हो रहा है सविंधान में इस विषय में क्या लिखा है आम जनता शायद ही जानता हो। सेक्स की पढाई लागु करने पर उतारु गणतंत्र के रक्षक कभी संविधान की पढाई के बारे में सोचे भी नही होगें।
हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा आदमी खेती पर निर्भार है और सबसे ज्यादा आत्महत्या भी किसान ही कर रहें हैं क्या कारण है| कृषि प्रधान इस देश में कृषि की पढाई के लिये संस्था के नाम सिर्फ 26 महविद्यालय है। हिन्दुस्तान 2015 में दुनिया के सबसे ज्यादा दवा उत्पादक राष्ट्र के रुप मे उभर कर सामने आयेगा। अभी भी दवा का उत्पादन हिन्दुस्तान में ज्यादा मात्रा में होता है और उसके समानान्तर नकली दवा का कारोबार करने बाले भी निर्भीक हो कर अपना धंधा कर रहे हैं। फिर भी करोड़ों नवजात शिशु और गर्भवती माताएं कुपोषण की शिकार है। नकली दवा के साथ साथ मानव अंग का भी व्यापार भी हिन्दुस्तान में फल फुल रहा है शायद रोकने बाला कोई नही है यहा।
अपनी जान की बाजी लगा कर देश के दुश्मन से लड़ने वाले फैजी अपना पदक लौटा रहें है कारण एक आंतकवादी को भी हमारे देश के नेता फांसी नही दे पा रहे हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ने का दंभ भरने बाले क्या इस लडाई में इमान्दारी से फौज का साथ दे रहे हैं क्या शायद नेताओ को अपने देश से ज्यादा 4-5 सीट ज्यादा मीलने की उम्मीद में मुस्लीम तुस्टीकरण ज्यादा हितकारी लगता है। पोटा जैसे आतंकवाद निरोधक कानुन हटा कर आतंकवाद का खात्मा का सपना देखने बाले गणतंत्र का रक्षा कैसे करेगें सोचनीय विषाय है।
संविधान के रक्षकों में होड़ लगा है कौन कितना ज्यादा भ्रष्ट हो सकता है। अगर इन सभी का कोई टेलीविजन चैनल रियलटी सो आयोजित करे तो मुकाबला कडा़ होने का संभावना है और टेलीविजन बाले भी एस.एम.एस. से पैसा कमा सकते है वैसे टेलीविजन समाचार भी इस भ्रष्टाचार मुकाबला में मुकाबला कर सकते है क्योकि ये राजनितीक दल के द्वारा चलाये जा रहे मीडिया चैनल समाज का भाला तो कर नही सके हा ये एक कंलक बन कर रह गया है।
आज विश्व का सबसे बडा़ सविधान रख कर न्याय पालिका किसी को सजा नही दे पा रहा है। कानुन तोड़ने बाले अपराध करने से पहले शायद अपने वकील से मील कर कानुन का मजाक कैसे उराया जाये पता कर लेते हैं रात में किसी लड़की का इज्जत पर हाथ डालते हैं और बस एक दिन ही सजा के हकदार होते हैं कानुन और कानुन के रक्षक कुछ बिगार नही पाते हैं। ये तो छोटे अपराधी हैं और इनका अपराध कानुन की नजर में छोटा नही हैं लेकिन बडे़ अपराधी का सपना भी बडा़ ही रहता है 30-40 अपराध करने के बाद ये खुद गणतंत्र के रक्षक बन जाते हैं और यहा का गण जात-पात धर्म के नाम पर अपराधी नेता को गणतंत्र की रक्षा करने के लिये भेज देता है और इनका तो जैसे लौटरी ही निकल जाता है इनके दोने हाथ में लड्डु आ जाता है।
क्या हम और हमारे ये गणतंत्र के रक्षक इस देश का भला कर रहें हैं। गणतंत्र दिवस को हमारे घर के बच्चे देशभक्ती गीत जब गाते है उस समय भी हमारे दिमाग में जरा सा भी ये विचार नही आता है कि किस परीस्थीती मे इस देश के आजादी मीली थी और कितनों ने अपना घर, परिवार, समाज को त्याग कर एक ही सपना देखा "सरफरोसी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं।" समस्या विशाल है और समाधान के नाम पर सिर्फ तुष्टीकरण।
क्या हम इस गणतंत्र के लायक हैं शायद नही।
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आतंकवाद समस्या समाधान क्या है?

आज हमारा देश आतंकवाद की समस्या से जुझ रहा है और सरकार इस और ध्यान देना नही चाहती है कारण वोट बैंक की राजनीति आंतकवाद निरोधक कानुन को काग्रेस सरकार ने हटा दिया कारण था मुसलिम तुस्टीकरण। आतंकवाद काश्मीर के साथ साथ सारे हिन्दुस्तान को निशाना बना रहा है सरकार अभी तक जगी नही है। हमारे राजनेता को समझना होगा कि आज भारत एक गम्भीर युद्ध के दौर से गुजर रहा है। आंतकवाद भी एक पूर्ण युद्ध है। सिर्फ फर्क यह है कि इसमें दुश्मन की कोई पहचान नही होती एवं उसकी सेनाएँ चिन्हित नही होती है। वह जनता में ही घुला-मिला रहता है, एकाएक प्रकट होता है; आतंकी हमला करता है और जनता में लुप्त हो जाता है। इससे लड़ना आम युद्ध से भी मुश्किल होता है; क्योंकि इस युद्ध का कोई क्षेत्र या जमीन नही होता है।
हम इस युद्ध मे तभी सफल हो पायेंगे, जब हम देशहित को वोट बैंक की राजनीति से उपर रखेंगे। हिन्दुस्तान में अब जरुरी को गया है कि संविधान में संसोधन हो और कानून एवं व्यवस्था का मुद्दा केन्द्र एवं राज्य दोनों की बराबर सहभागिता में रखा जाय। दोनों इसके लिये जिम्मेदार हों। हिन्दुस्तान में अमेरिका की "फेडरल ब्यूरो आँफ इनवेस्टीगेशन" की तर्ज पर केन्द्रीय बल गठित हो, जिसका केन्द्र बिन्दु सिर्फ आतंकवाद हो। हिन्दुस्तान की सुरक्षा के लिये गृहमन्त्रालय से अलग एक 'आन्तरिक सुरक्षा का मन्त्रालय' बनाया जाये जो सीर्फ आतंकवाद पर ही नजर रखें। केन्द्रीय अर्द्धसैनिक बल भी दो धडों में विभाजित किये जायें। एक वह जो सीमा सुरक्षा की देखभाल करे और दूसरा वह, जो आतंकवाद की लडा़ई लड़े। इन दोनों धडो़ के हथियार और प्रशिक्षण भी अलग-अलग हों।
आतंकवाद को सिर्फ कानून और व्यव्स्था की समस्या के रुप में न देखा जाय; वरन एक पूर्ण नागरिक समस्या के रुप में देखा जाय। आतंकवाद के खिलाफ हिन्दुस्तान की सेना को समयब्द्ध तरीके से इस्तेमाल किया जाय। जब हिन्दुस्तानी सेना बुलानी पडे़, तब मानव अधिकारों के उल्लंघन का राग न अलापा जाय; क्योंकि अगर सेना भी असफल हो गयी तो देश चला जायेगा।
विश्व की दूसरी सबसे बड़ी थल सेना रखकर कर हम आतंकवाद की लडा़ई में नंपुसक बनकर नही रह सकते। जो भी हमारे परोसी देश इन आतंकवादियों की मदद कर रहे हैं, उन्हें हमें सख्ती से निपटना होगा कि हम चुप नहीं बैठेंगे, फिर परिणाम चाहे जो भी हो। हमें भी अपनी गुप्तचर संस्थाओं को पाकिस्तान की 'आई.एस.आई.' अमेरिका की 'सी.आई.ए.' और इसरायल की 'मोसाद' की तर्ज पर ढालना होगा। जब हम अपने देश के लिये मरने, मारने और कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जायेंगे, तभी हम आतंकवाद की लडा़ई जीत पायेंगे।
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देश कहा जा रहा है!

देश में भले ही विस्फोट हो जायें या हत्याएँ, हमारे गृहमन्त्री की ओर से कोई बयान नहीं आता। ज्यादा ही जानें जाती हैं, तो कह देते हैं 'पैनिक' होने की जरुरत नहीं। और इस देश की जनता 'पैनिक' होने का अर्थ समझती ही नहीं है।
वैसे भी जाने क्यों जनता ने सदियों से अपनी सुरक्षा पर कभी ध्यान दिया ही नहीं। इतने बडे़ देश को मात्र शादी-ब्याह और पर्व त्योहार का शौक है। सुरक्षा की ओर से जनमानस विमुख रहा है| जब पृथ्वीराज के पूर्व या पश्चात भी बाहरी आक्रमणकर्त्ता आते थे, लोग लूट जाते थे। जैसे वे लुटने की नियति मान बैठे हों, इतनी निष्क्रियता सोच सच से मुँह मोड़ने की प्रथा इसी देश में है।
वैसे भी भारत अग्रेजो को द्वारा 'उपमहाद्वीप' नाम दिया गया है। इसके देश की मान्यता यही है कि यह कई देशों का समूह है; जबकि भारत एक राष्ट्र है। उस पर हमारे कर्त्ताधर्त्ताओं को एक चुनाव के बाद अगले चुनाव की चिन्ता रहती है और वे राष्ट्रा का उच्चारण नहीं करते।
देश का मीडिया अक्सर ही फिल्मी सितारों के शादी-ब्याह, पर्टी व जेल जाने पर ज्यादा ध्यान देता है। मीडियावालों को भी देश की सुरक्षा नहीं दिखती।
जम्मू में तो खूख्वार आतंकवादी जरा-सी बात पर हड़ताल कर देते हैं। सैनिको पर हमला करके उनका जान तक ले लेते हैं यहाँ आतंकवादियों को विशेष सुविधा सरकार देती है देश की सुरक्षा में सेंध लगानेवालों को कोई पुरस्कार देने की सोच रही है, तभी तो कासकर, हसीना पारकर और अफजल जैसे हमलावरों को विशेष दर्जा प्राप्त है।
हमारे सरकार की सक्रियता का इसी उदाहरण से पता चलता है कि मुम्बई लोकल व मालेगाँव इत्यादी विस्फोट के हफ्तों बीत जाने पर एस.टी.एफ. प्रमुख की बडी़ महान खोज का पता चला कि विस्फोट में आर.डी.एक्स. का उपयोग किया गया था। फिर जाँच किधर गयी, पता ही नहीं चलता। गृहमन्त्रालय की सुस्ती कभी नहीं टूटती। हफ्तों गुजर जाते हैं कुत्ते ही सुँघाते रहते हैं और तब तक दुसरा विस्फोट हो जाता है।
कम से कम अमेरिका, जर्मनी, रुस, ब्रिटेन जैसे पश्चिम राष्ट्रो से सीखना चाहिये कि वहाँ कितनी तेजी से आतंकी को दबोचा जाता है। हमारे यहाँ तो इस कदर आँखों मे धूल झोंकी जा रही है कि कब कैसे आतंकी को छोड़ते हैं, पता ही नही चलता। आतंकवाद से झुलस रहे इतने बडे़ राष्ट्र को न आतंक की परवाह है और न असम में हो रही हत्याओं की, न ही नक्सली हत्याओं की। दाउद के गुर्गे मुम्बई में वसूली करें। जमीन खरीदें। अबु सलेम अपनी राजनीतिक पार्टी बना कर हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री बनने का सपना देखे। चीन अपनी सड़कें-बाँध बनाये। नेपाल हमारी जमीन दबा ले। बांग्लादेशी घुसपैठीये मुम्बई तक घुस आयें इनके हिन्दुस्तानी आका वोटीग कार्ड और राशन कार्ड बनाकर दे और हमारी सरकार आतंकी की माफी देने में चिन्तामग्न रहे। सरकार आतंक निरोधी कानून का विरोध करे। उन कानून को हटा दे। ऎसा तो इसी देश में हो सकता है। नेताओ के गलतियाँ से जनता को कोई लेना देना नही है वह तो अपनी मस्ती में मस्त है। सरकार तो क्या बुद्धिजीवी भी अपने इनामों से खुश हैं। इस देश में भी कोई 'कोंडिलिजा राईज' होनी चाहिए । आई.एस.आई. सिर्फ नकली नोट द्वारा ही नहीं, आग की जलती तीली से भी सब कुछ खाक किये जा रहा है और जो इस ओर अबाज उढाता है उसे साम्प्रदायिक काहा जाता है। सोचो ये देश कहा जा रहा है।
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बांग्लादेशी घुसपैठ : देशद्रोहि नेता हैं गुनाहगार

धर्म और राजनीति इस्लाम रुपी सिक्के के दो पहलू हैं। यह कथन आज भी उतना ही सही है जितना पहले था। अत: यदि बांग्लादेशी मुसलमान अपने धर्मप्रेरित राजनैतिक उद्देश्यों के लिये भारत में घुसपैठ करते हैं, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है; क्योंकि इस्लाम वस्तुत: प्रारम्भ से ही एक राजनैतिक आन्दोलन रहा है।
हिन्दुस्तान में बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ कोई नयी बात नही है। यह एक दुरगामी राजनैतिक षड्य्न्त्र का अंग है, जिसका लम्बा इतिहास है। हिन्दुस्तान में बांग्लादेशी मुसलमानों का आसानी से लगातार घुसपैठ होते रहने का मुख्य कारण हिन्दुस्तान-बाग्लादेश की 4096 की.मी. लम्बी साझी सीमा है, जिसमें से 2217 कि.मी. पश्चिम बंगाल के दस जिलों को, 262 कि.मी. असम के 3 जिलों, 443, कि.मी. मेघालय के 5 जिलों, 858 कि.मी. त्रिपुरा और 318 कि.मी. मिजोरम के 3-3 जिलों को प्रभावित करती है।
हिन्दुस्तान सरकार के बोर्डर मैनेजमेण्ट टास्क फोर्स की वर्ष कि 2000 रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार हिन्दुस्तान में बांग्लादेशी मुसलमानों घुसपैठीयों की संख्या इस प्रकार है : पश्चिम बंगाल 54 लाख, असम 40 लाख, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि में 5-5 लाख से ज्यादा दिल्ली में 3 लाख हैं; मगर वर्त्तमान आकलनों के अनुसार हिन्दुस्तान में करीब 3 करोड़ बांग्लादेशी मुसलमानों घुसपैठिए हैं।
इस घुसपैठ मे हिन्दुस्तान के देशद्रोहियों का पूरा सहयोग एवं खुला समर्थन प्राप्त है। काग्रेस ने प्रारम्भ से ही नहीं की, उसे खुला बढावा दिया। सबसे पहले 1950 में नेहरु-लियाकत अली पैक्ट के अन्तर्गत 31.12-1950 तक हिन्दुस्तान में बसे बांग्लादेशी मुस्लमानों को यहाँ का नागरिक मान लिया। इसी प्रकार 1972 में इन्दिरा-मुजीब पैक्ट के अन्तर्गत जो भी बांग्लादेशी मुस्लमान 25 मार्च, 1971 तक हिन्दुस्तान में आया उसे विधिवत बसने दिया गया। हालाँकि आज सुप्रीम कोर्ट ने घुसपैठ रोकने एवं गैर कानूनी घुसपैठयों को निकालने के आदेश दिये हैं; मगर काग्रेस, सी.पी.एम. और इनके पीछल्लग्गु राजनैतिक दल किसी न किसी प्रकार इन आदेशों की उपेक्षा कर रहा हैं, इन घुसपैठयों को हिन्दुस्तान में रहने का जरुरी इन्तजाम, राशन कार्ड, वोटीग कार्ड भी बनवा कर दे रहा है। जिसके फलस्वरुप बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठीया इन्हें अपना वोट देकर चुनाव में इनके प्रत्यासी को जिताते भी हैं।
बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठीया इस्लाम के सच्चे सिपाही हैं। वे शेष हिन्दुस्तान को मुस्लीम बहुल कर इसे इस्लामी राज्य बनाना चाहते हैं, ताकि यहाँ के हिन्दु धर्म को समाप्त किया जा सके; क्योकि इस्लाम विश्व भर अन्य धर्म के समाप्त कर केवल इस्लाम को हि देखना चाहता है। हिन्दुस्तान के सरकार ने भी माना है कि "हिन्दुस्तान में बांग्लादेशी घुसपैठ के लिये धार्मीक और आर्थिक कारणों सहित अनेक कारण हैं"।

जहाँगीर खाँ के मुगलस्तान रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बांग्लादेश ने एक नक्शा प्रकाशित किया है, जिसके अनुसार पूर्वि और
पश्चिमी पाकिस्तान के बीच हिन्दुस्तान क्षेत्र में घुसपैठ आदि के द्वारा एवं मुस्लीम जन्संख्या बढाकर इसे एक नया इस्लामी राज्य बना देना है। इसमें पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, कश्मीर, उत्तराखण्ड, दिल्ली, हरियाणा और मध्य प्रदेश के क्षेत्र को सम्मिलित करने कि योजना है। इसलिये इन उपर्युक्त क्षेत्रो में बांग्लादेशी मुसलमानों का घुसपैठ प्रमुखता से है।
बंगाल के गवर्नर टी.वी. राजेश्वर (18.3.96) एवं असम के गवर्नर एस. के. सिन्हा (1998) और अजय सिंह (15.5.2005) अपनी रिपोर्टं में घुसपैठ से उत्पन्न राजनैतिक समस्याओं एवं हिन्दुस्तान की सुरक्षा की ओर ध्यान आकर्षित किया था; मगर मुस्लिम वोट बैंक ने इन देशद्रोही गतिविधियों को भी उपेक्षित कर दिया। जबकि वास्तव में बांग्लादेशी घुसपैठ को, पार्टी हित से उपर उठकर, राष्ट्र की सुरक्षा एवं अखण्डता की् दृष्टि से सोचना और इस देशद्रोही गतिविधियों को समाप्त करने में हि हिन्दुस्तान का हित है।
पाकिस्तान में विदेशियों को घुसपैठ की 2 से 10 साल की सजा है। सऊदी अरेबिया ने 1994-1995 में एक लाख घुसपैठियों को निकाला जिसमें 27588 बांग्लादेशी मुस्लमान थे स्वयं बांग्लादेश ने 1,92,274 रोहिंगा वर्मी को अपने देश से निकाल बाहर किया फिर हिन्दुस्तान में रह रहे बांग्लादेशी को क्यों नही निकाला जा सकता। क्या मुस्लीम वोट बैंक राष्ट्रीय सुरक्षा से भी अधिक आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है? यदि हाँ ! तो ऎसे देशद्रोहियों का वर्चस्व एवं राजनैतिक अस्तित्व मिटाना ही देश हित में होगा। इसमे लिये हमें एक जुटता दिखानी होगी और आपस की वैर भावना को छोर कर देश हित में काम करना होगा।
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नेपाली माओवादि देश के लिये खतरा

माओवादि हिन्दुस्तान के लिय पहले से खतरा बना था अब नेपाली माओवादि भी हिन्दुस्तानी माओवादियो के साथ मिल कर हिन्दुस्तान की सरकार के लिये नया मुसीबत लेकर आ रहा है। हिन्दुस्तान की सरकार को इस दिशा में सार्थक कदम उठाने कि जरुरत है।
उत्तराखंड और नेपाल सीमा से सटे उत्तराखंड के चंपावत जिले के सीमा में माओवादियों की घुसपैठ और हिन्दुस्तान के खिलाफ नारेबाजी और नेपाल का झण्डा फहराना कर चले गये और सरकार के अधिकारी देखते रह गये। नेपाल के माओवादियों का कहना है कि आधा उत्तराखंड तथा आधा उत्तर प्रदेश को नेपाल का हिस्सा है और हिन्दुस्तान कि सरकार को ये हिस्सा नेपाल को लौटा देना चाहिये। सरकार ने इस ओर ध्यान तो नही दिया लेकिन सामाजिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एवम् हिन्दू जागरण मंच नामक सामाजिक संगठन ने विरोध प्रगट करके माओवादियो को हिन्दुस्तान कि सीमा से बाहर भगाया। नेपाली माओवादि जान बुझ कर इस तरह का उटपटाग मांग हिन्दुस्तान कि सरकार के सामने रख रहा है क्योकि माओवादियों के पास करने को कुछ है रहता है नही हमेसा से भोली भाली जनता को झुठ और फरेव का सपना दिखा कर अपना उल्लु सीधा करते रहता है। सरकार को माओवादियो से कठोरता से निपटने कि जरुरत है लेकिन सरकार अपना राजधर्म को भुल कर कुर्सी के लिये इस ओर ध्यान नही दे रही है और जब माओवादि अपना रौद्र रूप अख्तियार कर लेंगे तब जाकर सरकार का नींद से जगेगी।
सरकार को कुमाऊं क्षेत्र में पहले ही माओवादियों की घुसपैठ के प्रति आगाह किया जाता रहा है। माओवादियों ने न केवल घुसपैठ की अपितु कई क्षेत्रों में अपने ठिकाने भी बना लिये हैं।सरकार को चाहिए कि वह बिना किसी तरह का विलंब किये नेपाल से लगी उत्तरांचल की सीमा पर चौकसी बढ़ा दे। माओवादियों की अवैध घुसपैठ पर कड़ी बंदिश लगाये और अगर जरूरत पड़े तो इसमें केन्द्र सरकार से भी मदद ली जाये। सरकार को यह बात भलीभांति समझ लेनी चाहिए कि इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही बेहद घातक साबित हो सकती है। इसके पहले कि माओवाद उत्तराखंड में गतिविधियों को अंजाम दें, इसके लिए समुचित कदम उठाने जरूरी हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एवम् हिन्दू जागरण मंच नामक सामाजिक संगठन धन्यवाद देना चाहिये जो हिन्दुस्तान कि रक्षा और सम्मान के लिये आगे आये हैं।
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बेनजीर भारत-पाक संबंध कब सुधारना चाहती थी

अंतिम समय में भी भारत को सबक सिखाने की चाहत रखने बाली बेनजीर भुट्टो को मार डाला गया। सभी ने इस कार्य की भर्तसना की लेकीन हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जैसा बयान दिया उसे हास्यपद कहना चाहीये या हिन्दुस्तान में रह रहे मुस्लमान की चाटुकारीता। हास्यपद तो नही कहा जा सकता है क्योकि श्री मनमोहन सिंह जी विद्वान और समझदार व्यक्ति हैं इसमें कोई शक नही। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अनुसार वह हमारे उपमहाद्वीप की प्रमुख नेता थीं, जिन्होंने भारत-पाक संबंधों को सुधारने का प्रयास किया।
क्या कोई बता सकता है कि बेनजीर भुट्टो हिन्दुस्तान के साथ संबंध कब सुधारना चाहा। क्या ये सच्च नही है कि कश्मीर में आंतकवाद को सबसे ज्याद संरक्षण दिया वो बेनजीर भुट्टो ही थी। काश्मीरी पंडीतों को काश्मीर से भागाने में सबसे ज्यादा हाथ हिन्दुस्तान के शासको के बाद बेनजीर भुट्टो का है शायद हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री भुल गये। बेनजीर भुट्टो अपने शासन काल आतंकियों को काश्मीर में आंतक फैलाने के लिये खुली छुट दे रखी थी। बेनजीर भुट्टो आंतक फैलाने के साथ साथ काश्मीर में रह रहे जनता को भी बरगलाती रहती थी और भारतीय प्रशासनीक अधीकारी के बारे मे अनरगल बयान बाजी करके अधीकारीयों की जान की दुश्मन बनी हुई थी।
बेनजीर भुट्टो आणविक युद्ध की बात करके अपने पिता जुल्फिकार भुट्टो की एक हजार वर्ष लंबी लड़ाई को लड़ाती रही। और झुठ का सहारा लेकर विश्व समुदाय को धोखा में रखा बेनजीर भुट्टो के अनुसार कश्मीर घाटी का जो मुसलिम बाहुल्य क्षेत्र है वहां हिंदू पंडितों ने मुसलमानों का शोषण किया। उन्हे डराया,धमकाया और आज उन्हे हम उनका हक दिला रहे है। इस तरह कश्मीर पाकिस्तान के साथ होना चाहिए। आज उन्हे हम उनका हक दिला रहे है। इस तरह कश्मीर पाकिस्तान के साथ होना चाहिए। अगर काश्मीर पंडित मुसलमानो का शोषण किया होता तो मुसलमानो को काश्मीर से भागना चाहिये था ना कि काश्मीरी पंडित को बेनजीर भुट्टो का झुठ इसी बात से पता चलता है।
आज बेनजीर भुट्टो इस दुनीया मे नही रही लेकीन उनके द्वारा दिया गया घाव अब हिन्दुस्तान के लिये नासुर बन गया है और हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री का बयान हिन्दुस्तान के देशभक्त के गले से नीचे नही उतर पा रहा है। हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री को बेनजीर भुट्टो का किया गया काम इतना पंसन्द है तो हिन्दुस्तान में एक सप्ताह का रष्ट्रीय शोक का एलान करके हिन्दुस्तानी झंडा को छुका देना चाहिये।
कही हिदुस्तान के प्रधानमंत्री बेनजीर के बहाने हिन्दुस्तान मे रह रहे मुस्लमान की चाटुकारीता तो नही कर रहे हैं जैसा कि हिन्दुस्तानी नेता अपने देश कि सम्प्रभुता को ताक पर रख कर हमेसा से करते आये हैं प्रधानमंत्री को बयान देने से पहले सोच लेना चाहिये कि उनकी कोई बात हिन्दुस्तान के बहुसख्यक को चोट ना पहुचाये। यही मुस्लीम तुष्टीकरण काग्रेस का कही हार का कारण ना बन जाये।
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हत्यारे को सुरक्षा

क्रिसमस डे के दिन जब सारा विश्व इसकी खुशियों में डूबा था उस उड़ीसा में चर्च सर्मथक हिन्दुओ के धार्मीक गुरु श्री लक्ष्मणानंद सरस्वती को जान से मारने की कोशीश कर रहा था। इस आक्रमण में स्वयं सन्त लक्ष्मणानन्द सरस्वती और उनका वाहन चालक घायल हो गया जिन्हें कटक के अस्पताल में भर्ती कराया गया। श्री लक्ष्मणानंद सरस्वती वह व्यक्ति हैं जो उड़ीसा में चल रहे धर्मान्तरण का विरोध कई वर्षो से आवज उठाते आ रहे हैं। उनपर हमले का साफ मतलब हो सकता है इस पूरे मामले में चर्च और इससे जुड़े लोग उनके अभियान से खफा हैं और उनके मकसद में कहीं न कहीं बाधा पहुंच रही थी। बहरहाल, जो भी हो लेकिन उड़ीसा से अक्सर चर्चों द्वारा धर्मान्तरण कराने का मसला आता रहता है। अब चर्च का इतना हिम्मत बढ गया है कि खुले आम वो किसी भी धर्मगुरु को बीच रास्ते पर जानलेवा हमला कर सकते हैं तो यो आम आदमी का ये क्या हाल कर सकते हैं। इसका कारण सोनिया गाँधी का ईसाइ मूल का होना और धर्मान्तरण करने वाले और चर्च को आरोपियों को खुला राजनीतिक प्रश्रय का दिया जाना है। ईसाइयों के द्वारा कानून का खुलकर माखौल उडाया जाता है। प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं लेकिन चर्चों से गुप्त रूप से किसी भी खास पार्टी के लिए एकतरह से फतवा जारी होता है। ज्यादातर फायदा कांग्रेस के मोर्चे यूडीएफ यानी संयुक्त जनतांत्रिक मोर्चा को मिलता आया है। लेकिन अब इस दौर में वाम मोर्चा भी अब पीछे नहीं रही और इस समुदाय को अपना वोट बैंक बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। चर्च और इससे जुड़े लोग ऐसे ताकतवर के रूप में उभरे हैं कि वहां की राजनीतिक और सामाजिक जीवन में व्यापक बदलाव देखा जा सकता है। भारत में चल चर्च और मिशनरी लाख अपनी सफाई में यह कहते रहे कि वे यहां सिर्फ मानव सेवा के लिए हैं, लेकिन समय-समय पर इनके ऊपर उठती अंगुली से यह बात तो साफ है कि कहीं न कहीं कुछ रहस्य जरूर था जो अब तक पर्दे के अंदर से चल रहा था। लेकीन अब ये खुल कर धर्मान्तरण का खेल खेलते हैं और इनके रास्ते में आने बाले का जान लेने से भी नही चुकते है। हिन्दुस्तान की सरकार कभी कभी नीदं से जागती है और कानून बनाने कि बात करती है लेकिन ये कानून शायद आज तक नही बना और तथाकथीत हिन्दुओ कि पार्टी कहे जाने बाली भारतीय जनता पार्टी के शासन बाले राज्य में अगर कोई नया कानून बनता है तो अल्पशख्यक मानवाधीकार के नाम हाय तौबा मचाने लगते है (इन्हें काश्मीर में अल्पशख्यक हिन्दुओ कि हालत नही दिखता है) और उस कानुन का हाल सोनिया सरकार टाडा और पोटा जैसा बना देती है और भारत के प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह यहा तक कहते है कि ईसाइयों को सुरक्षा मिलनी चहीये। यह हिन्दुस्तान हि है जहा हमलावर को सुरक्षा मिलता है।
ऐसा तो नहीं कि ये मिशनरी भारत में मानव सेवा की आड़ में अपना कोई निजी एजेंडा चला रहे हों। उड़ीसा से ही नहीं बल्कि झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से भी आदिवासी बहुल इलाकों से बराबर यह खबर मिलती रही है कि वहां ये मिशनरी धमातरण जैसे मिशन पर काम कर रहे हैं। ये झुठ फरेव के द्वारा मिशनरी का प्रचार करते है। दिल्ली के आर्कविशप करम मसीही ने 5 जनवरी 99 को दिल्ली में संवादताता सम्मेलन में यह दावा किया था कि भारत में काई विदेशी मिशनरीज कार्यरत नहीं है, भारत सरकार किसी विदेशी को मिशनरी कार्य के लिए वीजा नही देती । उनके दावों की पोल कुछ ही दिनों में उड़ीसा में आस्ट्रेलियाई मिशनरी स्टेन्स और उसके दो पुत्रों की हत्या ने खोल दी कि भारत में विदेशी मिशनी हैं या नहीं । आज भी हजारों की संख्या में विदेशी मिशनी इस देश में कार्यरत है । सचमुच देश के सामने एक शोचनीय प्रश्न है कि धर्मान्तरण के कारण समाज का वातावरण विषैला होता जा रहा है। सरकार को चाहिए इन इलाको में चल रहे इन मिशनरियों के क्रियाकलाप पर नजर रखें और एक विस्तृत रिपोर्ट आम लोगों के समक्ष पेश करें। अगर कहीं ऐसा है तो जल्द से जल्द इन मिशनरियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। धर्मान्तरण पर विराम नहीं लगने से हिन्दुओं के अल्पमत में आने का खतरा बढ गया है।
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