आतंकवाद और इच्छाशक्ति

आज हिन्दुस्तान में आतंकवादियों की स्थीति काफी मजबूत हो गई है। कट्टरपंथी तबके का यहां बोलबाला हो गया है। यहां सिमी, लश्कर, हिजबुल मुजाहिदीन व हरकत उल जेहादी इस्लामी से जुड़े कई स्थानीय सेल्स हैं जिनका मकसद हर हाल में दहशत फैलाना है। विस्फोटकों और नकली नोटों की बरामदगी से भी साफ है कि आतंकवादी यहां अफरातफरी फैलाना चाहते हैंअब सवाल यह है कि इन्हें चोट पहुंचाने के लिए किया क्या जाए? जाहिर है जिस एक उपाय पर आज लोग सबसे कम ध्यान दे रहे हैं वह है पोटा या टाडा जैसे कानून की जरूरत। ऐसा कानून जो पकड़े गए आतंकवादियों को फांसी या सख्त सजा सुनाए।
लेकिन हकीकत क्या है आतंक का सामना करने की बात जब आती है
तो भारत की तस्वीर एक नपुंसक राष्ट्र के रूप में उभरती है। पुलिस और नेता पुराना राग अलापते हैं लेकिन वास्तव में कोई मौलिक परिवर्तन नहीं होता। कब कहाँ सीरियल बम ब्लास्ट हो जाये किसी को पता नही हम घर से निकलते है घर लैटे या नाही पता नही। आतंकवादी बार-बार मानवाता का चीर-हरण करते रहे हैं। आतंकवादियों के हौसले बुलंद हैं और एक एक करके नए शहर उनके निशाने पर चढ़ते जा रहे हैं और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। स्थितियां भयावह हैं। चिंताजनक बात यह है कि हमारा राजनेता आतंकवादी हमलों को रोकने में तो नाकाम है आतंकवादियों को पकर कर सजा दिलाने में भी उनका आज तक कुछ खास नही कर पायें हैं। 1993 के मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में अभियुक्तों को अंजाम तक पहुंचाने में 14 साल लग गए, संसद भवन के हमलावर अभी तक सरकारी मेहमान बने हैं और सरकार आतकवादियों को बचाने के लिय टालमटोल कर रही है । हमारे तंत्र में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति की कमी सदैव खलती है। और इससे भी खतरनाक है ऐसे तत्वों के बारे में राजनीतिक प्रटेक्शन की मुहैया करतें हैं।
9/11 के बाद आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी कार्रवाई की चौतरफा निंदा भले ही हो रही हो लेकिन दुनिया के सामने आज यह एक सच्चाई है कि 2001 के बाद से अमेरिका की ओर आतंकवादियों ने आंख उठाकर भी नहीं देखा है। कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि आतंकवाद के प्रति अमेरिका के अप्रोच का हम समर्थन कर रहे हैं। लेकिन कब तक हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे और निर्दोष लोगों को आतंकवादियों के हाथों मरते देखते रहेंगे ? अबतो वक्त आ ही गया है कि हम आतंकवाद पर जवाबी हमला बोलें।
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आतंकवादियों को कानूनी मदद चाहिये तैयार है आप

बधाई हो अर्जुन सिंह जी कुछ आतंकवादि और आने बाले हैं जिसका आप कानून के द्वारा बचाव कर सकते हो। दिल्ली में कल सिर्फ एक ही विस्फोट किया गया। और 10-12 आदमी फिर मारे गये। शायद सभी मजदुर थे और सिमी के ब्लाइन्ड सर्पोटर लालू यादव और रामविलास पासवान के गृह राज्य बिहार के रहने वाले थे। मुझे मेरे एक मित्र मुम्बई से फोन करके बताया कि दिल्ली में फिर से विस्फोट हुआ है। जब से मैं सुना टी.वी खोल कर बैठ गया अलग अलग समाचार चैनल पर नजर गडा़ कर देखने लगा कि आज शिवराज पाटिल जी किस तरह का ड्रेस पहन कर आते हैं और देखना चाहता था कि और कितना जगह विस्फोट हुआ है लेकिन भगवान का शुक्र है कि इस बार सिर्फ एक जगह विस्फोट हुआ। धन्यवाद तो सही में सिर्फ भगवान को देना चाहिये जिसके कारण विस्फोट का संख्या कम रहा और आदमी भी कम मरे सरकार तो आतंकवादियों का अभी तक कुछ कर नही सकी । सरकार की तरफ से अभी तक व्यान सुनने को नही मिला। शायद एक धमाका हो इस लिये शिवराज पाटिल जी ने नया कपडा पहन कर कोइ व्यान देना या फिर जरुरी नही समझा होगा क्या एक विस्फोट में व्यान दिया जाय या फिर उनके पास नया कपडा नही होगा जिसको पहन कर मिडीया के सामने आते। वैसे श्री शिवराज पाटिल जी को मिडीया के सामने आने का जरुरत भी नही है क्यों कि उनके द्वरा दिया जाने बाला व्यान लगभग सभी आदमी को याद हो गया होगा। इधर खुश तो श्री अर्जुन सिंह जी भी होगें। पुलिस बाले कुछ आतंकवादियों को जरुर पकरेंगे। और आतंकवादियों को संरक्षण का और कानूनी लडाई लड़ने के जरुरत भी होगा तो आतंकवादियों को कानूनी लडाई लडनें में मानवसंसाधन मंत्रालय किस दिन काम आयेगा आखिर आतंकवादि भी मानव ही होते है और लेकिन मरने बाले क्या होते हैं शायद किसी को पता नही...................................
अब पुलिस बाले क्या करेंगे|पुलिस क्या करेंगे इंस्पेक्टर श्री मोहन चंद्र शर्मा कि तरह अपना जान देकर आतंकवादियों को पकरें या फिर घर में आराम से सोयें। आराम से सोना ज्यादा फायदेंमन्द है। अगर कोई पुलिस आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में मारा गया तो क्या होगा बेचारा गया इस संसार उसका बीबी - बच्चे अनाथ और मुआबजा के लिये सालों सरकारी दफ्तर के चक्कर काटना परेगा वो अलग से। उन्हें ना कोई मुआवजा मिलेगा और ही उनका नाम लेने बाला और तो और पुलिस का कोई मानवाधिकार संघटन भी नही है जो पुलिस बालों के अनाथ भुखे बच्चों को किसी तरह का कोई मदद दिला सकें। अब हमें क्या करना है सोचों।
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काग्रेस आतंकवादियों के नये संरक्षक

काग्रेस गलियारे में एक नया तमाशा देखने को मिल रहा है । बटला हाउस इलाके में 19 सितंबर को आतंकवादियों से मुठभेड़ हुआ था । फैशन मैन श्री शिवराज पाटिल जी ने दुख: से या बेमन में ही सही लेकिनी आतंकवादियोंको सबक सिखाने की बात कह दिये जैसा कि वो करना नही चाहतें है। (कपडा बदलने से फुर्सत मिले तभी तो करेंगे)। लेकिन हमारी तरह मुर्ख जनता को मुह दिखाना है और अभी लगता है एक-दो बार और चुनाव लडना है इस लिये कभी-कभी आतंकवादियों के विरुद्ध बोल देतें है। आतंकवादियों के खिलाफ बोलना या आतकवादिंयो के खिलाफ किसी तरह का कारवाही करना कांग्रेस धर्म के खिलाफ है। इस लिये आतंकवादियों के बचाब में एक मंत्रालय और दो मंत्री बीच में कुद गये। मुस्लिम मानव संसाधन मत्री श्री अर्जुन सिंह जी का मंत्रालय और खुद श्री अर्जुन सिह जी आतंकवादियों के
बचाब में जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के कुलपति मुशीर उल हसन के साथ ताल ठोकते हुये मैदान में कुद गये।


आज हिन्दुस्तान की स्थिती इस कदर खराब हो चुका है कि आतंकवाद से लोहा लेने बाले पुलिस के लिये सरकार के पास पैसा नही और सहानुभूति के दो शब्द नही है और आतंकवाद को सहायता और सर्मथन देने बालों की होड़ लगी हुइ है। जब १९ सितम्बर को दिल्ली के ओखला स्थीत बाटला हाउस में पुलिस तथा राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड आतंकवादियों के छुपने के एक ठिकाने पर छापा मार कर दो आतंकवादियों को मार गिराया और सैफ़ नामक एक आतंकवादी को जीवित गिरफ्तार कर लिया गया जबकि दो आतंकवादी भागने में सफल हो गये थे। शुक्रवार के दिन हई इस मुठभेड़ में स्थानीय मुस्लिम बाहुल्य आबादी में कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस मुठभेड़ को फ़र्जी तथा मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने वाली मुठभेड़ बताने की कोशिशें कर रहे थे जबकि अनेकों मुसलमान व आम दर्शक ऐसे भी थे जिन्होंने इस मुठभेड़ को अपनी आंखों से देखा।
काग्रेस सरकार पहले से आतंकवाद को रोकने का मद्दा दिखाई नही देता था। तर्क वितर्क से द्वारा आतंकवाद निरोधक कानून को हटाया गया और कोई नया कानून नही बनाना आतंकवाद का मौन सर्मथन था। लेकिन काग्रेस सरकार के दो मंत्री अब खुल कर आतंकवाद के सर्मथन में आ गये। और काग्रेस के और किसी नेता और मंत्री द्वारा इस बात का विरोध ना करना भी आतंकवाद का ही सर्मथन माना जायेगा।

अब सरकार को ये बताना होगा कि आतंकवाद के सर्मथन में तो सरकार खडी़ है जो गिरफ्तार किये गये आतंकवादियों का कानूनी सहायता प्रदान करेगी। लेकिन गिरफ्तार किये गये आतंकवादियों के खिलाफ क्या गृहमंत्रालय ईमान्दारी से कानूनी लडा़इ लडे़गा शायद नही। काग्रेस के द्वारा उठाये गये हर एक देश विरोधी गतीविधी आज इस देशा के लिये नासुर बन बैठा है चाहे वो काश्मिर का मामला हो, आतंकवाद तुस्टिकरण, बाग्लादेशी घुसपैठी का मामला। काग्रेस सरकार किसी भी तरह सत्ता में जोंक की तरह चिपकी रहती है और जोंक की ही तरह जिसमें चिपकता है उसी का खुन भी चुसता है काग्रेस का भी यही हाल सत्ता के लिये काग्रेस कीसी भी हद्द तक नीचे गिर सकता है। लेकिन आम जनता चुनाव के वक्त काग्रेस से एक एक बात का हिसाब जानना चाहेगी कि दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा के परिवार को देने के लिये सरकार के पास पैसा नही लेकिन आतंकवादियों को संरक्षण और
बढावा देने के लिये सरकार के पास कहा से इतना पैसा आ जाता है।
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हाय रे ये क्या हो गया नरेन्द्र मोदी बेदाग कैसे बच गया।

गुजरात दंगा में नरेन्द्र मोदी को न्यायमूर्ति जीटी नानावटी और न्यायमूर्ति अक्षय कुमार मेहता जांच आयोग ने क्लीन चिट दे दी है। नानावटी आयोग का कहना है कि 2002 में हुऎ दंगे में नरेन्द्र मोदी का, या उनके किसी मंत्री का, पुलिस का या सरकारी तंत्र का किसी तरह का हाथ नही है साथ में नानावती आयोग का ये भी कहना है कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में जो आग लगी थे वो किसी तरह का कोई दुर्घटना ना हो कर एक सोची समझी साजिश कि तहत मर्द, दुधमुहे बच्चे, औरतों और बुढो़ को जिन्दा आग में जला कर तड़पा - तड़पा कर आग में झोक कर मारा गया। मौलवी उमर और उसके 6 साथी ने इस साजिश को रचा और रजाक कुरकुर और सलीम पानवाला ने 26 फरवरी 2002 को 140 लीटर पेट्रोल खरीदा था और उन्हें कंटेनरों में रखा था। शौकत लालू, इमरान शरी, रफीक, सलीम जर्दा, जबीर और सिराज बाला ट्रेन को जलाने में लिप्त थे।

लेकिन असली बाते तो अब होगी। फिर से कंलक का पिटारा खुलेगा, आतंकवादियों को मारने के एवज में दिया गया नया नाम मौत का सौदागर नरेन्द्र मोदी को फिर नया नाम और इनाम देंगें । काग्रेस, किश्चियन मिडीया और तथाकथित देश के बुद्धिजिवी सेकुलर पंथी जिसने कसम खा रखी है कि इस देश को दुसरा पाकिस्तान बना कर दम लेंगे। उन्हें मुस्लमानों में किसी तरह का कोई गलती दिखता नही है। चाहे वो ट्रेन जलायें या इस देश में बम विस्फोट कर के आम नागरीक का जान लें, आतंकवादियों के सर्मथन में दंगा करें तोड-फोड़ करे सब सही है। वो पाक साफ हैं और सारा गलती हिन्दु करते हैं। गोधरा में ट्रेन में आग लगा कर मासुमों का जान लेने बालों को बचाने के लिये सेकुलर पंथी नें क्या नही किया। अब तर्क, वितर्क और कुतर्क से ये सिद्द करने का कोशीश करेंगे कि ट्रेन में आग अन्दर से लगी ( मतलब एक साथ S-6 और S-7 के आदमी सामूहिक आत्महत्या चलती ट्रेन में कर के विश्व किर्तीमान स्थापित करना चाह रहें होगें)। लेकिन ये बात जमी नही और बुद्दीजिवी वर्ग सेकुलर पंथी को अपने मुह में तमाचा खाने के बाद जब ये न्यायमूर्ति जीटी नानावटी और न्यायमूर्ति अक्षय कुमार मेहता रिपोर्ट के आने के बाद बुद्धिजीवि सेकुलर पंथी ये सिद्ध करने का कोशीश करेगें कि हिन्दुस्तान के न्यायमूर्ति कम अक्ल हैं और उन्हें न्याय देना नही आता है या रिटार्यमेंन्ट के बाद न्यायमूर्तियों को सरकारी पोस्ट चाहिये वैगेरह वैगेरह।

लेकिन जनता मुर्ख नही है हमें सब पता है महीना में
1-2 बम विस्फोट होने के बाद भी आतंकवाद निरोधक कानून नही बना पाये और जो पोटा कानून था उसे हटाने के बाद कहते है पोटा सक्षम कानून नही था। पोटा कानून के बाद भी आतंकवाद की घटना हुई थी। तब तो हिन्दुस्तान हर एक कानून को हटा देना चाहिये क्यों की हत्या, बलात्कार, चोरी, अपहरण का कानून रहते हूऎ भी वौसी घटना हो रही है। तो हटा दो सब कानून । लेकिन इन बुद्धिजीवि सेकुलर पंथी से वहस करने कौन जाये। जब इनके घर में आग लगेगा तभी आग का तपिस मालुम चलेगा।
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चर्च के फादरों के चरित्र

विश्व इतिहास देखें तो मुस्लमान के बाद सबसे ज्यादा धर्म के नाम पर अगर किसी ने खुन बहाया है तो ईसाइयत है इसमें कोई शक नही। ईसाइयत हिन्दुस्तान धर्मातरण के द्वारा राष्ट्रान्तरण करने के लिये सिद्धांत प्रेम, शांति तथा सत्य का छद्म का नकाब पहन रखा हैं किंतु संसार का इतिहास गवाह है ईसाइयत के नाम पर कितनी बार खुन की नदियां बहाई गई। धर्मयुद्ध के नाम पर, उसके पहले और उसके बाद शांति स्थापित करने के लिए ईसा के नाम पर कई घोर नृशंस कार्य किये गए।

हिन्दुस्तान में हिन्दु के मानस को पूरी तरह से बदलने के लिए विदेशी ताकतों से सीधा संरक्षण प्राप्त कर ईसाई मिशनरियां हिंदुओं के राष्ट्रातंरण का कार्य कर रही हैं जिससे भारत की भूमि पर हमेशा के लिए यूनियन जैक फहराया जा सके। मिशनरियों ने अनुभव किया कि हिंदुओं के लिए धर्म पर विश्वास से ज्यादा महत्वपूर्ण जीवित रहना है। उन्होंने हिन्दू समाज को दलित वर्ग और सवर्ण हिन्दू में बाँट कर तथा आर्य बाहर से आए हैं व द्रविड़ यहां के मूल निवासी हैं, ऐसा कह कर हिन्दू समाज को बाँटकर हिन्दुओं को ईसाइयत में राष्ट्रातंरण करने के अपने प्रयासों को जारी रखा। उन्होंने हिन्दुओं के बच्चों को मिथ्या इतिहास से परिचित कराने के उद्देश्य से स्कूलों की स्थापना की किंतु इस सबसे भी उन्हें सफलता नहीं मिली, तब उन्होंने बोर्डिंग स्कूल, अनाथालय स्थापित करने शुरू किये व तथाकथित दलित वर्ग एवं जनजातीय समुदायों के, जिन्हें वे यहां का मूल निवासी बतलाते थे, अनपढ़ व गरीब परिवारों से बच्चों को सीधे उन स्कूलों में भरना शुरू किया। इसके पश्चात् मिशनरी बोडिग स्कूलों में ऐसे ईसाई पादरी तैयार किये जो दलित व पिछड़े वगो के बीच धर्मांतरण का कार्य कर सकें। इन सभी प्रयास के तहत आज मिशनरी हिन्दुस्तान के लगभग सभी हिस्सों में राष्ट्रातंरण करवाने में जुटी हुई है। आज ये इतनें निरकुस हो गये हैं कि इनके रास्ते में आने बालों का हत्या तक करने से नही चुकते।
हिन्दुस्तान में पैसे के बल पर इन्सानीयत का पाठ पढा़ने बाले ईसाई चर्च के फादरों के चरित्र पर अगर ध्यान दें तो उजला कपडा़ के अन्दर का सच्च सामने आ जाता है। चर्च के फादरों के द्वारा नावालिक लड़कियों के यौन शोषण का मामला बार बार उठता रहा है इस मामलें में वेटिकन सिटी सिर्फ के पौप जाँन साल में आठ-दस बार माफी तो जरुर मांग लेता है। अभी कुछ दिन पहले अस्ट्रेलिया के दौरे पर गये पौप जॉंन का वहां के नागरिकों के द्वारा किया गया विरोध सिर्फ इस बात पर था कि चर्च धर्म का काम छोड़ कर हर एक अनैतिक कार्य में संलगन था चाहे वो नन का यौन शोषण हो या नाबालिक या बालिक लड़कियों को बहला फुसला कर किया गया यौन शोषण। इस मामलें में जाँन के द्वारा अस्ट्रेलिया में मांफी मांगने के बाद ही पौप जाँन को अस्ट्रेलिया में घुसने दिया गया। ईसाई मिशनरी को चाहिये कि इन्सानीयत का पाठ पढा़ने से पहले हिन्दुस्तानियों से आदमियता का पढ़ पढ ले नही तो बेचारे को पौप जाँन को गला में माफीनामा गला में लटका कर घुमना होगा।
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ईसाई मिशनरी का नंगा नाच का टिप्‍पणी

कल के लेख ईसाई मिशनरी का नंगा नाच का टिप्‍पणी पढे

अनुनाद सिंह जी के अनुसार
मै आपकी इस बात से सहमत नहीं हूँ कि इसाई मिशनरियाँ केवल प्रलोभन से ही धर्मान्तरण कराती हैं। इसके लिये वे - साम, दान, दण्ड, भेद - सब कुछ अपनाती हैं।

मेरे पड़ोस में एक गणित के प्रवक्ता रहते थे। उनकी पत्नी कैंसर से पीड़ित थीं। यह बात हमारे अस्पताल के 'हेड नर्स' को पता थी। वह केरल की रहने वाली पेन्टाकोस्ट इसाई है। एक दिन वह उनके घर आयी और कमरे में इधर-उधर देखकर बोली - "तुमारे ये बगवान क्या कर रहे हैं? ये हनुमान और दुर्गा से कुछ नहीं होगा। हमारा जेसस तुमको बिल्कुल ठीक कर देगा। ये सब फोटो फ़ेक दो। हम तुमको बड़ौदा में भेज देगा; वहाँ का प्रिष्ट तुमको बिल्कुल ठीक कर देगा।...

आप सोच सकते हैं कि उस नर्स की 'ट्रेनिंग' कितनी अच्छी तरह से हुई होगी।
उसे लोगों को 'रीड' करना कितनी अच्छी तरह पता है? वह अच्छी तरह जानती है कि 'मरता क्या नहीं करता।' 'ट्रबुल्ड वाटर' में मछली पकड़ने में वह पारंगत है।

यह एकमात्र उदाहरण नहीं है। हर धर्मान्तरित होने वाले के पीछे इसी तरह की कथा मिलेगी।

रंजना जी लिखती हैं
एकदम सही कहा आपने.इसाई देशों की यह दूरगामी सोची समझी रणनीति का हिस्सा है.उन्हें मालूम है कि किसी राष्ट्र को समाप्त करना हो तो सबसे पहला वार उस देश की धर्म और संस्कृति पर करना चाहिए.अकूत धन खर्च कर ये चर्च /मिशनरियां ख़ास मिसन के तहत चुपके से धीरे धीरे एक ऐसी कौम तैयार कर रही है जिसे वे समय आने पर धर्म के नाम पर ललकार कर अपने ही देश (हिन्दुस्तान)के ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर सकें.

Umesh ji
माओवादी हो या नकसली, इन्हे चर्च प्रभावित राष्ट्रो से धनराशी मिल रही है। नेपाल मे माओवादीयो को धन और योजना उपल्ब्ध कराने वाला मुख्य संगठन रिम था, जिसका मुख्यालय अमरीका मे है। भारत मे भी वहीं नक्सली/माओवादी सक्रिय हैं जहां धर्मानंतरण हो रहा है।

संगीता पुरी जी
बहुत दुखद है। धर्म की आड़ में ऐसी गतिविधियां। वास्तव में लोग धर्म की परिभाषा भूल गए हैं।

Deepak Bhanre ji
ताली एक हाथ से नही बजती है . क्या करें यह देश का दुर्भाग्य है की वोट बैंक के खातिर हमेशा बहुसंख्यक को ही दोषी बताया जाता है . मीडिया भी इस पक्ष को अनदेखा करता है.
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ईसाई मिशनरी का नंगा नाच

एक स्वयंसेवी संगठन जस्टिस आन ट्रायल ने अपनी जांच के आधार पर आरोप लगाया है कि उड़ीसा के कंधमाल जिले में साम्प्रदायिक हिंसा के लिए ईसाई मिशनरियों की धर्मपरिवर्तन की गतिविधियां दोषी हैं। जस्टिस आन ट्रायल की जांच समिति के अध्यक्ष और राजस्थान के अतिरिक्त महाधिवक्ता सरदार जी एस गिल ने शुक्रवार को यहां एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि उड़ीसा में धर्मपरिवर्तन रोकने के लिए सन् १९६७ में बनाए गए सख्त कानून के बावजूद ईसाई मिशनरी संस्थाएं प्रलोभन से भोले-भाले आदिवासियों का धर्मपरिवर्तन करा रही हैं जिससे समय-समय पर तनाव पैदा होता रहता है। उन्होंने कहा कि उड़ीसा के हिन्दू नेता स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती ने एक साक्षात्कार में स्वयं कहा था कि मिशनरी तत्व उन पर आठ बार हमला कर चुके हैं। नवें हमले में गत महीने उनकी मौत हो गई। जांच समिति ने हिन्दू नेता पर हुए हमले के लिए माओवादियों को जिम्मेदार ठहराए जाने के बारे में कहा कि ऐसा कोई ठोस कारण नहीं है कि माओवादी स्वामी जी की जान लें। जांच समिति ने कहा कि इस बात की छानबीन होनी चाहिए कि क्या हिन्दू विरोधी ताकतों ने माओवादियों के जरिये इस अपराध को अंजाम दिया। जांच समिति में पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक पीसी डोगरा, राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व सदस्य नफीसा हुसैन सामाजिक कार्यकर्ता कैप्टन एमके अंधारे और रामकिशोर पसारी शामिल थे।
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कश्मीर भारत में उठ रहे आज़ादी की मांग,

कश्मीर भारत में उठ रहे आज़ादी की मांग, या पाकिस्तान परस्त रास्त्र्द्रोही इस्लामिक जेहाद ?

कश्मीर जिसे धरती का स्वर्ग और भारत का मुकुट कहा जाता था आज भारत के लिए एक नासूर बन चूका है कारन सिर्फ मुस्लिम जेहाद के तहत कश्मीर को इस्लामिक राज्य बना कर पाकिस्तान के साथ मिलाने की योजना ही है, और आज रस्त्रद्रोही अल्गाव्बदियो ने अपनी आवाज इतनी बुलंद कर ली है की कश्मीर अब भारत के लिए कुछ दिनों का मेहमान ही साबित होने वाला है और यह सब सिर्फ कश्मीर में धारा ३७० लागु कर केंद्र की भूमिका को कमजोर करने और इसके साथ साथ केंद्र सरकार का मुस्लिम प्रेम वोट बैंक की राजनीती और सरकार की नपुंसकता को साबित करने के लिए काफी है यह बात कश्मीर के इतिहास से साबित हो जाता है जब सरदार बल्लव भाई के नेतृतव में भारतीय सेना ने कश्मीर को अपने कब्जे में ले लिया था परन्तु नेहरु ने जनमत संग्रह का फालतू प्रस्ताव लाकर विजयी भारतीय सेना के कदम को रोक दिया जिसका नतीजा पाकिस्तान ने कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया और क़ाफ़ी हिस्सा हथिया लिया । और कश्मीर भारत के लिए एक सदा रहने वाली समस्या बन कर रह गयी और पाकिस्तान कश्मीर को हथियाने के लिए नित्य नयी चालें चलने लगा नतीजा भारत की आज़ादी के समय कश्मीर की वादी में लगभग 15 % हिन्दू थे और बाकी मुसल्मान । आतंकवाद शुरु होने के बाद आज कश्मीर में सिर्फ़ 4 % हिन्दू बाकी रह गये हैं, यानि कि वादी में 96 % मुस्लिम बहुमत है । वादी में कश्मीरी पंडितों की पाकिस्तान समर्थित इन्ही रस्त्रद्रोही अलगाव वादियों द्वारा खुले आम हत्याएं की जा रही थी और सरकार मौन रही थी इन हत्याओं और सरकार की नपुंसकता का एक उदाहरण यहाँ दे रहा हूँ सन् १९८९ से १९९० यानि एक वर्ष में ३१९ कश्मीरी पंडितों की हत्या की गयी और इसके बाद के वर्षो में यह एक सिलसिला ही बन गया था और सरकार का रूप तब स्पष्ट हो जाता है जब जम्मू-कश्मीर के वंधामा में दस साल पहले हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के बारे में गृह मंत्रालय को जानकारी नहीं है। मंत्रालय ने कहा है कि विभाग को ऐसी किसी घटना की जानकारी नहीं है, जिसमें बच्चों समेत 24 कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया गया था। यह घटना जग विदित है मगर सरकार को इसके बारे में मालूम नहीं, सरकार के इसी निक्कम्मा पण के वजह से आज इन रास्त्रद्रोही अलगाववादियों का हिम्मत इतना बढ़ गया है की अब ये कश्मीर को पूर्ण इस्लामिक राज्य मानकर कश्मीर को पाकिस्तान के साथ मिलाने के लिए अब कश्मीर में बहरी राज्यों से आये हिन्दू मजदूरों को बहार निकल रहे हैं स्वतंत्रता दिवस के पवन अवसर पर हिंदुस्तान के रास्त्रघ्व्ज को जलाया गया हिंदुस्तान मुर्दाबाद का नारा लगाया जा रहा है और सरकार मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए चुप बैठी है कश्मीर में आर्मी के कैंप पर हमला करके उनको जलाया जा रहा है फिर हम कैसे कह सकते हैं की कश्मीर हमारे अन्दर में है अगर कश्मीर का मुस्लिम हमारे साथ है तो क्यों वह देशद्रोही अलगाववादियों का साथ दे रही है? अगर केंद्र सरकार कश्मीर समस्या का समाधान चाहती है तो क्यों नहीं वह वहां के अलगाववादी आतंकवादियों को के खिलाफ एक्शन ले रही है ? क्यों नहीं सरकार विस्थापित कश्मीरी पंडितों को फिर से उनके जमीन को वापस दिला रही है क्यों कश्मीरी पंडितो के हक़ का दमन कर रही है ? क्यों नहीं आज तक हुए कश्मीर में कश्मीरी पंडितो के हत्याकांडो की जाँच करवा रही है ? कश्मीरी भाइयो का साथ देने वाले साम्प्रदायिक और अलगाववादी देशद्रोही सरकार के नज़र में क्यों आज़ादी का नेता बना हुआ है ? अगर इस सवाल का जवाब सरकार के पास नहीं है तो सरकार देश की जनता को धोखा देना छोर दे की कश्मीर हमारा है और अगर सरकार सच में कश्मीर समस्या का समाधान चाहती है तो कश्मीरी पंडितो को इंसाफ दिलाये और अलगाववादी आतंकवादियों को सजा देकर कश्मीर को इन देशद्रोहियों से मुक्त कराये, अंत में एक सवाल सरकार और आपलोगों से क्या हिंदुस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने वाले अपने रास्त्रध्व्ज तिरंगे को सीने से लगाये मरने वाले साम्प्रदायिक हैं ?क्या हिंदुस्तान मुर्दाबाद का नारा लगा कर अपने रास्त्र ध्वज तिरंगे को जलाने वाला देशद्रोही नहीं और अगर देश द्रोही है तो इसके खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं ?

इस आंख की अंधी सरकार से इंसाफ की क्या उम्मीद

इसलिए अपने दर्द का मरहम ढूंढने आपके पास आये हैं हम

वन्देमातरम

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भारत तेरी शामत आयी

भारत तेरी शामत आयी, लश्कर लायी, लश्कर लायी
नंगा-भूखा हिन्दुस्तान जान से प्यारा पाकिस्तान
पाकिस्तान से रिश्ता क्या, लालिल्लाह इललिल्लाह
कश्मीर की मंडी, रावलपिंडी, रावलपिंडी
खूनी लकीर तोड़ दो, आर-पार जोड़ दो
ऐ जबरियो, ऐ जुल्मियों, कश्मीर हमारा छोड़ दो

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी सम्प्रभु देश के अंदर न सिर्फ उसके विरोध में नारे लगें बल्कि उसकें दुश्मन देश को सिर-आंखो पर उठाया जाये? कश्मीर में यही हो रहा है। जो लोग कह रहे हैं कि कश्मीर में हालात ९० दशक में पहुंच गए हैं, वो शायद बड़ी नर्मी बरत रहे हैं। क्योंकि हकीकत यह है कि कश्मीर में १९४७ के बाद से अब तक के सबसे खराब हालात हैं। देशद्रोही ,भारत विरोधी, भावनाएं उफान पर हैं। घाटी में चारों तरफ या तो पाकिस्तान या इस्लामी चिन्हों वाले हरे झंडों का बोलबाला है। अचानक हर मुसलमान की जुबान में भारत के लिए गाली और पाकिस्तान के लिए प्यार उमड़ रहा है।
६१ सालों से लगातार कश्मीर को सहलाए जाने का नतीजा है? १९४७ के बाद से अब तक दिल्ली की केन्द्र सरकार कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाए रखने के लिए और भारत विरोधियों की लल्लो-चप्पो करने के लिए कश्मीर को जो मुंह मांगी आथिक मदद देती रही है, वह ८६ खरब रुपये से भी ज्यादा है। अगर इतने पैसे में बिहार या मध्य प्रदेश का विकास किया गया होता तो ये प्रदेश देश के सबसे संपन्न राज्य बन गए होते। लेकिन कश्मीर में एक वर्ग की मानसिकता कभी नहीं बदलती है और जैसे जुल्फीकार अली भुट्टों कहते थे, घास खा लेंगे लेकिन इस्लामी बम बनाऐगें, उसी तरह इनकी भी सोच है कि भले कितनी ही बदहाली और अमानवीय स्थितियों में रहना पड़े मगर पाकिस्तान के साथ इसलिए जाएंगे क्योंकि पाकिस्तान से इनका रिश्ता लालिल्लाह इल्लिलाह का है। भारत के लिए कश्मीर एक स्थायी नासूर इसलिए बन गया है। अरूंधती राय कहती हैं कि कश्मीर को हिन्दुस्तान से आजादी चाहिए। लेकिन शायद वह इस पूरी तस्वीर को एक ही चश्में से देख रही हैं। हकीकत यह है कि भारत कोई कश्मीर से कम परेशान नही है। हकीकत तो यह है कि कश्मीर हमारे लिए एक स्थायी सिरदर्द बन चुका है। देश के लाखों फौजियों के लिए कश्मीर एक मानसिक संताप बन चुका है। जिस भी फौजी का तबादला कश्मीर किया जाता है, वह मानसिक रूप से परेशान हो जाता है। क्योंकि कश्मीर समस्या का वह इलाज ही नहीं है जो इलाज भारत सरकार करना चाहती है। वास्तव में कश्मीर अगर इस कदर साल दर साल भारत के लिए नासूर बनता गया है तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हमारी राजनीति ही है। लाचारी की बात यह है कि दिल्ली से सरकार जो गलतियां १९५० के दशक में कर रही थी, उन्हीं गलतियों को लगातार किए जा रही है। नतीजा यह निकल रहा है कि २ करोड़ की आबादी वाला कश्मीर ११२ करोड़ की आबादी वाले हिन्दुस्तान का सिरदर्द बन गया है। कश्मीर की वजह से हिन्दुस्तान की छवि पूरी दूनिया में धूमिल हो रही है। लेकिन राजनेता हैं कि वह कोई सबक ही नहीं ले रहे। हमारे राजनेता आम हिन्दुस्तानियों में एकता, अखंडता का भाव जगाने या बनाए रखने के संकोच में एक बात हमेशा छिपा जाते हैं कि कश्मीर का भारत में विलय कुछ शतो के साथ हुआ था। कश्मीर हिन्दुस्तान का उसी तरह से प्राकृतिक हिस्सा नहीं है जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार हैं। कश्मीर का भारत में कुछ विशष शतो के साथ विलय हुआ था जिसमें सीमित आजादी की भी शर्त थी। १९४७ के कश्मीर के हिन्दुस्तान में विलय में यह शर्त रखी गई थी कि विदेशी, मुद्रा , रक्षा और कानून की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की होगी। बाकी सभी दायित्व और अधिकार राज्य सरकार के पास होंगे। लेकिन उत्तरोत्तर घटनाक्रमों में भारत सरकार आम देशवासी से इस बारे में लगातार संवादहीनता और गोलमोल की स्थिति बनाए रखी। संविधान की जिस धारा -३७० के तहत कश्मीर को विशेषाधिकार दिए गए थे, लगातार कुछ राष्ट्रवादी पार्टियों के लिए वह कानूनी स्थिति लोगों की भावनाएं भड़काने का बहाना बन गयी। हैरत की बात तो यह है कि लंबे समय तक केन्द्र में शासन करने वाली कांग्रेस ने भी हिम्मत और स्पष्टता के साथ देशवासियों को कभी यह नहीं बताया कि धारा -३७० का विशेष दर्जा कश्मीर को क्यों दिया गया है? वह हमेशा इस मुद्दे को लेकर मामला रफा-दफा करने के फेर में ही रही। नतीजा यह है कि ज्यादातर भारतवासियों को कश्मीर की वस्तुस्थिति का पता ही नहीं है। झारखंड और बिहार में अगर कश्मीर को लेकर राष्ट्रवादी भावनाएं भड़काती हैं तो इसमें सिर्फ लोगों का उन्मादी राष्ट्रप्रेम ही नहीं है बल्कि नेताओं का वह ढुलमुल रवैय्या भी इसके लिए भरपूर रूप से जिम्मेदारी है जिसमें कभी देशवासियों को कश्मीर की राजनैतिक स्थिति को कभी साफ ही नहीं किया।
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