यह लडा़ई नही देशभक्ती है।

अखनूर सेक्टर के जोरियान में पुलिस फायरिंग में कम से कम १० लोग घायल हो गये जिनमें एक की हालत गंभीर है। अभी कुछ दिन पहले 35 वर्षीय कुलदीप कुमार डोगरा नामक एक युवक ने देश के लिय जान दिया। जम्मू में अब हालात विस्फोटक हो चुके है। प्रदर्शनकारी श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि लौटाने की मांग कर रहे हैं। कल जिले में प्रदर्शन के दौरान पुलिस फायरिंग में दो युवकों की मौत हो गयी थी। यह आंदोलन आम आदमियों के नेतृत्व में केन्द्र की संप्रग सरकार और राज्य सरकार द्वारा किये गये कायरतापूर्ण और औचित्यहीन समर्पण के विरूद्ध चलाया जा रहा एक राष्ट्रीय आंदोलन है। यह आंदोलन पूरी तरह अलगाववादी शक्तियों द्वारा उठायी गयी दासतापरक मांगों के विरूद्ध है और उन अलगाववादियों के विरूद्ध है जिन्होंने सदैव ही जम्मु-कश्मीर के भारत का अभिन्न अंग होने पर प्रश्न चिन्ह लगाये हैं।

यह लडाई सिर्फ श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड से जुडे़ हुये भूमी का नही है इसके पीछे अलगावदियों की मनसा कश्मीर से हिंदुओं को मार भगाना चाहते हैं कश्मीरी पंडीत कश्मीर को पहले ही निकाल बाहर किया गया है अब बचे हैं जम्मु के हिन्दु उन्हें भी किसी तरह मार भगाया जाय। लेकिन बार बार धोखा खाकर भी हिंदू वर्ग कुछ नहीं समझता। हिन्दुस्तान का हिंदू कश्मीरी मुसलमानों से यह पूछने की ताब नहीं रखता कि जब देश भर में मुस्लिमों के लिए बड़े-बड़े और पक्के हज हाउस बनते रहे है, यहां तक कि हवाई अड्डों पर हज यात्रियों की सुविधा के लिए ‘हज टर्मिनल’ बन रहे है और सालाना सैकड़ों करोड़ रुपये की हज सब्सिडी दी जा रही है तब अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले हिंदुओं के लिए अपने ही देश में अस्थाई विश्राम-स्थल भी न बनने देना क्या इस्लामी अहंकार, जबर्दस्ती और अलगाववाद का प्रमाण नहीं है?

चूंकि कांग्रेस और बुद्धिजीवी वर्ग के हिंदू यह प्रश्न नहीं पूछते इसलिए कश्मीरी मुसलमान शेष भारत पर धौंस जमाना अपना अधिकार मानते है। वस्तुत: इसमें इस्लामी अहंकारियों से अधिक घातक भूमिका सेकुलर-वामपंथी हिंदुओं की है। कई समाचार चैनलों ने अमरनाथ यात्रियों के विरुद्ध कश्मीरी मुसलमानों द्वारा की गई हिंसा पर सहानुभूतिपूर्वक दिखाया कि ‘कश्मीर जल रहा है’। मानों मुसलमानों का रोष स्वाभाविक है, जबकि यात्री पड़ाव के लिए दी गई भूमि वापस ले लेने के बाद जम्मू में हुए आंदोलन पर एक चैनल ने कहा कि यह बीजेपी की गुंडागर्दी है। भारत के ऐसे पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और नेताओं ने ही अलगावपरस्त और विशेषाधिकार की चाह रखने वाले मुस्लिम नेताओं की भूख बढ़ाई है। इसीलिए कश्मीरी मुसलमानों ने भारत के ऊपर धीरे-धीरे एक औपनिवेशिक धौंस कायम कर ली है। वे उदार हिंदू समाज का शुक्रगुजार होने के बजाय उसी पर अहसान जताने की भंगिमा दिखाते है। पीडीपी ने कांग्रेस के प्रति ठीक यही किया है। इस अहंकारी भंगिमा और विशेषाधिकारी मानसिकता को समझना चाहिए। यही कश्मीरी मुसलमानों की ‘कश्मीरियत’ है। यह मानसिकता शेष भारत अर्थात हिंदुओं का मनमाना शोषण करते हुए भी उल्टे सदैव शिकायती अंदाज रखती है।

सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते चुप्पी साधे हुये है और आम जनता का खून रहा है। लेकिन ध्यान देने वाली बात तो कुछ और ही है जम्मू का इलाका हिन्दु बहुल है और ये बात कश्मीरी मुसलमानों और अलगाववादी को आख की कीड़कीडी बना हुआ है जम्मु में रह रहे हिन्दु की अवाज को उनके हित को मुस्लिम तुष्टिकरण बाले तथाकथीत धर्मनिरपेक्ष दल कब से जम्मु में रह रहे हिन्दुओं की भावना को दबायें रखा है। जम्मु क्षेत्र कश्मीर से ज्यादा बडा़ होने के वाबजुद सिर्फ दो लोकसभा की और विधानसभा की 36 सीटे मिली हैं जबकी कश्मीर को 3 लोकसभा की और 46 विधानसभा की क्षेत्र है। अब समय आ गया है हिन्दुस्तान के हिन्दु या राष्ट्रभक्त धारा 370 हटाने की मांग करना चाहिये।
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अभी और को मारना बाकी है क्या!

अखनूर सेक्टर के जोरियान में पुलिस फायरिंग में कम से कम १० लोग घायल हो गये जिनमें एक की हालत गंभीर है। प्रदर्शनकारी श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि लौटाने की मांग कर रहे हैं। कल जिले में प्रदर्शन के दौरान पुलिस फायरिंग में दो युवकों की मौत हो गयी थी। यह आंदोलन आम आदमियों के नेतृत्व में केन्द्र की संप्रग सरकार और राज्य सरकार द्वारा किये गये कायरतापूर्ण और औचित्यहीन समर्पण के विरूद्ध चलाया जा रहा एक राष्ट्रीय आंदोलन है। यह आंदोलन पूरी तरह अलगाववादी शक्तियों द्वारा उठायी गयी दासतापरक मांगों के विरूद्ध है और उन अलगाववादियों के विरूद्ध है जिन्होंने सदैव ही जम्म-कश्मीर के भारत का अभिन्न अंग होने पर प्रश्न चिन्ह लगाये हैं।

Chakka Jam on 13th August for Kashmiri Hindus : An appeal

Dear Brothers,
As you all know that Jammu Kashmir State Government has withdrawn the land allocated to Shri Amarnath Shrine Board for temporary construction. This withdrawal is result of usual pressurisation of fundamentalist Muslims of valley, who wants to make ‘Dar Ul Mustafa’. Fundamentalist Muslim leaders of valley have always been biased with Hindu majority areas. Central government is not only soft with separatists but also boosting their morals anyhow.
Muslim Mafia-Police have peed on the dead body of Kuldeep whom they killed in Jammu! That’s the way they abuse every Hindu they kill everyday. They disconnected the electricity of Hindu areas. Hindu kids are starving for milk and food. No food, No Medicines, No electricity, No civic facilities. Today, Jammu Hindus are already on streets, shading their blood. Rest of Hindus are supposed to be Mute? If No, then support Nationwide ‘chakka jam’ movement called by Vishwa Hindu Parishad on 13th August, and make it huge success. Support not only the Hindus of Jammu but also Nationalism.

http://in.youtube.com/watch?v=TfN-rUlM8U8
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सामाजिक सरोकार से युक्त संत अवधेशानन्द गिरि

भारत एक धर्मप्राण देश है और इस देश में सर्वाधिक मान्यता संत परम्परा की है। देश की सनातन कालीन परम्परा में जब भी समाज को किसी भी दिशा में मार्गदर्शन की आवश्यकता हुई है तो उसने संत परम्परा की ओर देखा है और समाज को भी कभी निराश नहीं होना पडा। यूँ तो भारत में संतों के मार्गदर्शन की सम्पन्न परम्परा रही है परंतु आधुनिक समय में यदि किसी संत ने भारत के जनमानस और लोगों की अतीन्द्रियों को गहराई से प्रभावित किया है तो वह रहे हैं स्वामी रामक़ृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द। एक ओर रामकृष्ण परमहंस ने दिग्भ्रमित हो रही और अपनी संस्कृति के प्रति हीनभावना के भाव से व्याप्त होकर ईसाइयत की ओर समाधान देख रही बंगाल की नयी पीढी को अपनी साधना और अनुभूति के बल पर हिन्दू धर्म के साथ बाँध कर रखा और फिर उनकी प्रेरणा से नरेन्द्र का स्वामी विवेकानन्द के रूप में अभ्युदय हुआ जिसने पश्चिम की धरती से वेदांत का उद्घोष किया और सदियों से अपनी संस्कृति के प्रति हीनभावना संजोये भारतवासियों को एक सिंह का शौर्य दिया जिसने भारत के स्वाधीनता आन्दोलन और पुनर्जागरण की नींव रखी। स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से पूरा भारत तेजस्वी, विचारवान और ऊर्जावान नवयुवकों की उर्वरा भूमि बन गया और इस परम्परा ने भारत को ऐसे निष्ठावान और वीर पुरुष दिये जिन्होंने न केवल भारत को वरन समस्त विश्व को नयी राह दिखाई।

आज भारत पुनर्जागरण की उस परम्परा से विमुख हो गया है और सर्वत्र निराशा का वातावरण सा छाता जा रहा है। जहाँ भी देखो निराशा, टूटन और अविश्वास है ऐसे में अवतारवादी मान्यता का यह देश एक बार फिर ईश्वर के अवतरण की प्रतीक्षा कर रहा है लेकिन क्या स्वामी विवेकानन्द ने यही पराक्रम और पुरुषार्थ बताया था। निश्चित रूप से नहीं उन्होंने हिन्दू धर्म की उस विलक्षण और उदात्त परम्परा का बोध कराया था जो नर के नारायण बनने की प्रक्रिया में विश्वास करती है। जो कहती है कि इस शरीर में वही परमात्मा वास करता है जो सृष्टि का संचालक भी है। आज इसी उदात्त परम्परा का ध्यान रखते हुए हमें अपने बीच में ही उन प्रेरणा पुरुषों को ढूँढना होगा जो देश के इस निराशा, व्याकुलता और पराजित की सी मानसिकता के धुन्ध को छाँट कर समाज को नयी दिशा दे सकें। क्या देश में संतों की इस विशाल परम्परा में ऐसा कोई संत नहीं दिखता जो सामाजिक सरोकार से जुडा हो, जिसकी दृष्टि इतनी व्यापक हो कि हिन्दू धर्म को वैश्विक परिदृश्य में देख सके और भारत ही नहीं वरन समस्त विश्व की समस्या का समाधान सुझा सके। इस लेखक ने अपनी अल्पबुद्धि के आधार पर ऐसे संत को ढूँढ निकाला है।
अभी पिछ्ले दिनों गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हरिद्वार में जूना अखाडा के आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। यह मुलाकात कुछ संयोग पर आधारित थी और उस दिन के बाद अनेक अवसरों पर काफी लम्बे अंतराल बिताने का अवसर उनके साथ प्राप्त हुआ। हरिद्वार में अपने आश्रम में उन्होंने गुरू पूर्णिमा के इस अवसर पर इजरायल के भारत के उप राजदूत और नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री कृष्ण प्रसाद भट्टराई को भी आमंत्रित किया था। यह पहला उदाहरण है जो उनकी व्यापक दृष्टि की ओर संकेत करता है। इजरायल के उच्चायुक्त को बुलाने के पीछे उनका उद्देश्य उस संकल्प को आगे बढाना था जो उन्होंने इस वर्ष के आरम्भ में इजरायल की यात्रा में प्रथम हिन्दू-यहूदी सम्मिलन के अवसर पर लिया था। इजरायल की निर्मिति के साठ वर्षों के उपलक्ष्य में इस देश ने एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया था और उस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व स्वामी जी ने किया था। इस सम्मेलन में भाग लेने के बाद स्वामी जी को इजरायल के प्रति लगाव उत्पन्न हुआ है और इसी का परिणाम है कि वे अनेक ऐतिहासिक समानताओं की पृष्ठभूमि में भारत और इजरायल की रणनीतिक और सांस्क़ृतिक मित्रता के लिये सामाजिक स्तर पर दोनों देशों में व्यापक समझ विकसित करना चाहते हैं। इसी पहल के पहले चरण के रूप में उन्होंने अपने श्रृद्धालुओं के मध्य इजरायल के उच्चायुक्त को बोलने का अवसर दिया और ऐसा पहला अवसर था जब सामान्य भारतवासियों के मध्य इजरायल के किसी प्रतिनिधि ने अपने देश की भावनायें प्रकट की। देखने में या सुनने में यह सामान्य घटना भले ही लगे परंतु इस विचार के पीछे के विचार को समझने की आवश्यकता है।

स्वामी अवधेशानन्द गिरि में अनेक सम्भावनायें दिखती हैं और ऐसी सम्भावनाओं के पीछे कुछ ठोस कारण भी हैं। पिछले कुछ दिनों में स्वामी जी को काफी निकट से देखने का और उन्हें परखने का अवसर भी मिला। देश के एक प्रसिद्ध अखाडे के प्रमुख होते हुए भी उनकी सोच सामान्य कर्मकाण्ड, पीठ को बढाने या फिर शिष्य़ परम्परा के विकसित होने में ही सारी ऊर्जा लगा देने के बजाय उनका ध्यान समाज, राष्ट्र और मानवता के कल्य़ाण के लिये ही अधिक रहता है। अनेक अवसरों पर उनसे बात करने और कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर उनसे चर्चा का अवसर मिला और इस अवसर में अनेक ऐसी बातें पता लगीं जो संत के एक सामाजिक सरोकार के पक्ष को प्रस्तुत करती है।

स्वामी अवधेशानन्द गिरि का जो सर्वाधिक योगदान समाज को है उसकी कथा झाबुआ से आरम्भ होती है। मध्य प्रदेश का एक अत्यंत पिछडा क्षेत्र जिसमें पानी का इतना अभाव है कि लोग छ्ह महीनों के लिये यह क्षेत्र छोडकर चले जाते है और अपने पीछे अपने मवेशियों को निस्सहाय छोड जाते हैं। स्वामी जी को इस क्षेत्र की इस समस्या के बारे में पाँच वर्ष पहले पता चला और उसी समय उन्होंने यहाँ एक प्रकल्प आरम्भ किया कि किस प्रकार यहाँ जलाभाव की स्थिति से निबटा जाये और इसके लिये बडे पैमाने पर शोध और अनुसन्धान हुए और पिछले पांच वर्षों में इस क्षेत्र की काया बदल गयी और अब यह क्षेत्र सोच भी नहीं सकता कि कभी यहाँ जल का अभाव था। लेकिन स्वामी जी का संकल्प इससे भी आगे है। इस क्षेत्र में शिक्षा और स्वालम्बन के प्रयास भी हो रहे हैं। अब इस संकल्प की चरम परिणति यह है कि इस क्षेत्र के लोग आदर्श व्यक्ति बन सकें और प्रत्येक दृष्टि से आत्मनिर्भर हों। इस क्षेत्र में किये गये प्रयासों का परिणाम है कि अब इस क्षेत्र में आक्रामक गति से हो रहा धर्मांतरण भी रुक गया है क्योंकि इस क्षेत्र में आस्था और श्रृद्धा जगाने के लिये लोगों के घरों में शिवलिंग की स्थापना की गयी और अनेक अद्भुत यज्ञ कराये गये।

स्वामी अवधेशानन्द गिरि में अधिक सम्भावनायें इस कारण दिखती हैं कि उन्होंने विश्व के समक्ष और भारत के समक्ष प्रस्तुत चुनौतियों को सही सन्दर्भ में लिया है। उनकी दृष्टि में विश्व में एक प्रवृत्ति तेजी से बढ रही है और वह है भण्डारण की प्रवृत्ति या अधिक से अधिक अपने अधिकार में वस्तुओं को ले लेने की प्रवृत्ति। लेकिन इसके लिये कुछ महाशक्तियों को दोष देने या प्रवचन तक सीमित रहने के स्थान पर उन्होंने इसका एक समाधान भी खोजा है। यह समाधान उनके स्वप्निल प्रकल्प अवधेशानन्द फाउण्डॆशन में है। कुल 130 एकड की परिधि का प्रस्तावित यह प्रकल्प वास्तव में अपने सांस्कृतिक बीजों के संरक्षण का महासंकल्प है। इस फाउण्डॆशन के द्वारा भारत की बहुआयामी संस्कृति का वास्तविक दर्शन हो सकेगा। विशुद्ध सांस्क़ृतिक परिवेश में, प्रकृति की छाँव में पर्यावरण के प्रदूषण से रहित विचार, अन्न और संस्कार प्राप्त शिशु जब युवक युवती बन कर यहाँ से निकलेंगे तो वे भारत की संस्कृति के ऐसे प्रचारक होंगे जो अपने-अपने क्षेत्रों में एक बहुमूल्य रत्न होंगे। यह फाउण्डेशन यहाँ निर्मित होने वाले बच्चों को इस बात के लिये प्रेरित करेगा कि वे अपनी संस्कृति के मूल्यों, भाषा, भूषा, भोजन के संरक्षण के साथ ही विश्व की परिस्थितियों, भाषा और संस्कृतियों से भी पूरी तरह भिज्ञ हों। निश्चय ही यह संकल्प हमें स्वामी विवेकानन्द के संकल्प की याद दिलाता है जिन्होंने निष्ठावान, चरित्रवान और संस्कृतिनिष्ठ युवकों के निर्माण को सभी समस्याओं का समाधान बताया था।

यहाँ तक कि जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार ने भी देश की समस्याओं की ओर देखा तो उन्हें चरित्र निर्माण में ही राष्ट्र निर्माण का समाधान दिखा। स्वामी अवधेशानन्द गिरि का यह संकल्प और यह प्रयास उन्हें सामान्य प्रवचन या समस्त बुराइयों के लिये पश्चिम की संस्कृति को दोष देते रहने के दायरे से बाहर लाकर व्यापक दायरे में लाता है जहाँ से वे राष्ट्र के भविष्य़ को भी सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे है। स्वामी अवधेशानन्द गिरि के इस विशाल संकल्प की तुलना वर्तमान समय में किसी संकल्प से की जा सकती है तो वह स्वामी रामदेव के पतंजलि योगपीठ है। जिस प्रकार स्वामी रामदेव ने महर्षि पतंजलि की परम्परा को आगे बढाकर भारत की लुप्तप्राय हो रही चिकित्सा पद्धति और योग परम्परा को नवजीवन प्रदान कर भारत की प्राचीन संस्कृति का सातत्य प्रवाहमान किया ठीक उसी प्रकार स्वामी अवधेशानन्द गिरि भारत के संस्कारों और मूल्यों का बीज सुरक्षित रखने का गुरुतर कार्य करने जा रहे हैं। संकल्पों की इस समानता के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना अतिशियोक्ति नहीं होगी कि शायद यही महापुरुष सामाजिक सरोकार से जुडे वे संत हैं जो न केवल भारत वरन समस्त विश्व को नयी दिशा देने जा रहे हैं।

स्वामी अवधेशानन्द गिरि एक व्यावहारिक संत हैं जो परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालना जानते हैं और जटिल कर्मकाण्डों और आनुष्ठानिक संत होने के बाद भी विदेशों में अपनी लोकप्रियता अपनी गरिमा के साथ बनाये रख सके हैं। विदेश के अनेक देशों का दौरा वे इस विचार के साथ कर रहे हैं कि विदेश में बसे हिन्दुओं को सन्देश दे सकें कि उन्हें भारत को पितृऋण भी चुकाना है केवल डालर का निवेश करने से अपनी मातृभूमि के प्रति उनका कर्तव्य समाप्त नहीं हो जाता उन्हें इससे भी अधिक कुछ करने की आवश्यकता है। यह भी एक दैवीय योग है कि जब स्वामी विवेकानन्द ने पश्चिम की धरती से वेदांत का उद्घोष किया था तो उस समय भी भारत घोर निराशा के वातावरण में था और विश्व संकीर्ण साम्प्रदायिक तनाव की दहलीज पर था और आज भी देश और विश्व में कमोवेश वही स्थिति है। धर्म के नाम पर खून की नदियाँ बह रही हैं और क्रूरता, बर्बरता तथा पाशविकता को धर्म का दायित्व बताया जा रहा है। ऐसी स्थिति में विश्व को आध्यात्म रूपी ताजा हवा का झोंका चाहिये।


स्वामी अवधेशानन्द गिरि अपने संकल्पों , विचारों और प्रयासों से एक सुखद भविष्य का दर्शन कराते हुए दिखते हैं साथ ही उनकी ऊर्जा और सामाजिक सरोकार के प्रति उनकी उद्विग्नता उन्हें अनेक समस्याओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत करती है।
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