इंडियाटाइम्स
आतंकवाद का काला साया विश्व पर मंडरा रहा है। लेकिन उससे लड़ने के लिए सभी देश एक जुट होने का नाटक कर रहे हैं या उसकी आड़ में विश्व दो खेमों में बंटता जा रहा है। एक ओर अमेरिका का खेमा है, जो आतंकवाद के सफाए के लिए किसी भी देश की सीमाओं का उल्लंघन करने से परहेज नहीं कर रहा है। उसने अफगानिस्तान को तबाह किया, इराक की ऐसी की तैसी की। रूस और चीन के विरोध के बावजूद अमेरिका अपने एजेंडे विश्व समुदाय पर थोपता रहा। लेकिन क्या आगे भी विश्व समुदाय उसकी दादागिरी को मूक बनकर झेलता रहेगा ? लेकिन विश्व के दो खेमों में ध्रुवीकरण की आहट आने लगी है। भारत के सामने भी खाई और कुएं में से एक को चुनने की चुनौती होगी।
1813 से 1907 तक मध्य एशिया में दबदबे के लिए ब्रिटेन और रूस में कूटनीतिक खींचतान चलती रही। रूड्यार्ड किपलिंग ने 1901 में इसे 'द ग्रेट गेम ' का नाम दिया। अब 100 साल बाद फिर एशिया में एक दूसरे ग्रेट गेम की शुरुआत की आहट मिलने लगी है। इस गेम में एक कोर्ट में खड़े दिखाई पड़ रहे हैं रूस और चीन और दूसरे खेमे में हैं अमेरिका और जापान। इस खेल में भारत की भूमिका को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। यदि बंगाल की खाड़ी में चल रहे संयुक्त युद्धाभ्यास जिसे 'मालाबार 07' भी कहा जा रहा है, को संकेत माना जाए तो कह सकते हैं कि भारत चीन की ताकत को रोकने के लिए अमेरिकी खेमें की ओर झुक रहा है। 'मालाबार 07' में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर की नौसेनाएं भारत की नौसेना के साथ युद्धाभ्यास कर रही हैं। इसी कड़ी में अमेरिका - भारत न्यूक्लियर डील को भी माना जा रहा है। इन दो घटनाओं के कारण अनुमान लगाया जा रहा कि ग्रेट गेम में भारत अमेरिकी टीम में शामिल हो रहा है।
4 से 9 सितम्बर तक चलने वाले ' मालाबार 07 ' का उद्देश्य पायरेसी और आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त युद्धाभ्यास करना है। लेकिन जिस तरह से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ पर लगाम लगाने के लिए अमेरिका ने NATO ( नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आरगनाइजेशन) का गठन करके वेस्टर्न यूरोप के देशों को अपने खेमे में कर लिया था, चीन मालाबार 07 को एशियन NATO के रूप में देख रहा है। चीन के अनुसार इसका मकसद चीन की बढ़ती आर्थिक, सैनिक और स्ट्रैटजिक ताकत पर लगाम लगाना है।
ऐसी स्थिति में चीन भला कैसे पीछे रह सकता है। उसने शंघाई कोआपरेशन (SCO) का गठन कर लिया है, जिसमें रूस के साथ ऊर्जा समृद्धि वाले मध्य एशियाई देश कजाकस्तान, उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान जैसे देश शामिल हैं। गत माह इन ताकतों ने चीन के शिंजियांग और रूस के चरबाकुल में सैन्य ताकत का प्रदर्शन किया। इसका भी मकसद आतंकवाद पर लगाम लगाने का ही बताया गया था।
लगता है दुनिया आतंकवाद से लड़ने के नाम पर दो खेमों में बंट रही है। इस खेमेबाजी में भारत को अपने हितों को देखते हुए खेमे का चयन करना होगा। एक ओर अमेरिका है जो भारत के खिलाफ पाकिस्तान की मदद करता रहा है, और 1971 के युद्ध में उसने भारत के खिलाफ 7वां बेड़ा भी भेजा था। दूसरी ओर चीन है जिसके साथ 1962 में भारत दो-दो हाथ कर चुका है, और आज भी सीमा का विवाद चल रहा है , लेकिन उसके साथ है रूस जो भारत का ' ट्रस्टेड ' और ' टेस्टेड ' मित्र रहा है। आज के दौर में गुट निरपेक्षता का मतलब तो रह नहीं गया है, इसलिए भारत को खेमे का चयन करना होगा, या फिर अपना खेमा बनाना होगा, जिससे उसके हितों की अनदेखी न की जा सके। अब तक हुए दोनो ही विश्वयुद्धों में दुनिया दो खेमों में बंट गई थी। कहीं हम तीसरे विश्व युद्ध की तरफ तो नहीं बढ़ रहे है।
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