माकपा को करारा जवाब देगा संघ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने केरल में माकपा कार्यकर्ताओं द्वारा संघ और भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं पर किए गए जानलेवा हमले की कड़ी निन्दा करते हुए कहा कि माकपा के अलोकतांत्रिक और फासिस्ट तरीकों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा तथा इसका कड़ा मुकाबला किया जाएगा।
आरएसएस के कार्यकारी मंडल के वरिष्ठ सदस्य राम माधव ने रविवार को कहा कि पिछले सप्ताह केरल में संघ के पाँच कार्यकर्ताओं की नृशंस हत्या कर दी गई तथा 12 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए और 200 से अधिक मकानों में तोड़फोड़ की गई।

उन्होंने कहा कि केरल में संघ तथा कुछ राष्ट्रवादी ताकतों के बढ़ते प्रभाव के कारण माकपा ने राज्य सरकार के परोक्ष समर्थन से संघ कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले किए हैं। माधव ने कहा कि संघ माकपा की अलोकतांत्रिक और फासिस्ट कारवाई का कड़ा जवाब देगी।

माधव ने कहा कि केरल में शांति की बहाली के लिए वहाँ की राज्य सरकार अपनी ओर से कोई प्रयास करेगी तो संघ सहयोग दे सकता है, लेकिन संघ माकपा से कोई बातचीत नहीं करेगा क्योंकि अब तक का संघ का पिछला अनुभव इसके ठीक विपरीत है क्योंकि माकपा शांति प्रयासों में विश्वास ही नहीं करता है। उन्होने कहा कि संघ माकपा के आतंक के सामने कभी झुकनेवाला नहीं है और उसका कड़ा प्रतिरोध करेगा।

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महाराष्ट्र प्रकरण - हमेशा हिंदू ही क्यों?

महाराष्ट्र में इन दिनों उत्तर भारतीयों को महाराष्ट्र से बाहर निकालने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है. शुरूवात की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे जी ने. राज ठाकरे जी को महाराष्ट्र में शिवसेना तथा अन्य पार्टीयों के सामने अपनी नई पार्टी को जनाधार देने के लिए कुछ और मुद्दा नहीं मिला तो उन्होंने उत्तर भारतीयों को ही महाराष्ट्र से बाहर निकालने की मुहिम छेड़ दी. उनके चाचा बाल ठाकरे जी से अपनी पार्टी का वोट बैंक टूटना देखा नहीं गया. उन्होंने तो भी भतीजे से ज्यादा बढ़-चढ़ कर भड़काऊ बयान दे डाले उत्तर भारतीयों के बारे में.
अभी तक जात-पात के कारण बँटे हुए और लड़ते हुए हम हिंदू, हिंदू धर्म के प्रति क्या कुछ कम काम कर रहे थे जो अचानक इन कथित बुद्धिजीवियों ने हमें दिशाओं और क्षेत्रों के हिसाब से भी बांटना शुरू कर दिया?
और हम हिंदू भी सत्ता लोलुप नेताओं द्वारा दिए गए फालतू के क्षेत्रवाद के लिए आपस में लड़ सकते हैं, हिन्दुओं ही को मार सकते हैं लेकिन अपनी मातृभूमि भारत माता, अपने हिंदू धर्म और अपनी सदियों पुरानी दैव संस्कृति की रक्षा के लिए दूसरे धर्म के लोगों से नहीं लड़ सकते.मैं राज ठाकरे जी से कहना चाहूँगा की अगर कोई मुहिम चलानी ही थी तो मुसलमानों को इस देश से बाहर निकालने की मुहिम चलाते! अरे देश से ना सही महाराष्ट्र से ही निकालने की कवायद करते. अपने ही भाई बंधुओ का गला काटने की क्या ज़रूरत थी? मुगलों से प्रेरित हो गए हैं क्या, जो सत्ता के लिए अपने पिता और भाईयों को मार दिया करते थे.
छत्रपति शिवाजी मराठी ही थे लेकिन उन्होंने कभी भी हिन्दुओं को बांटा नहीं. वो हमेशा मुगलों को अपने क्षेत्र से भगाते रहे और उनको नाको चने चबवाते रहे. आज उन्हीं छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र में हिंदू ही हिंदू को मार रहा है.
ऐसी घटनाएं छत्रपति शिवाजी के उसूलों को, मराठीयों के नाम को, महाराष्ट्र के गौरव को, हिन्दुओं के सम्मान को और देश के संविधान को शर्मसार करती हैं.

लेखक
मयंक कुमार
Software Engineer
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पाकिस्तान राष्ट्र नहीं है।

पाकिस्तान राष्ट्र नहीं है। यह कट्टरपंथी जेहादी और विश्व आतंकवाद की प्रापर्टी है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का मालिकाना मसला वसीयत से सुलट गया। 'प्रापर्टी पाकिस्तान' को लेकर मुसलसल जंग है। यहां कोई संप्रभु संवैधानिक सत्ता भी नहीं है। सिर्फ 60 साल की उम्र के इस मुल्क ने 4 संविधान बनाए। 32 साल तक सेना का राज रहा। इसके अलावा भी 10 साल तक सेना ने ही परोक्ष हुकूमत की, सिर्फ 18 साल ही अप्रत्यक्ष लोकतंत्र रहा। अभी भी सेना का ही राज है। बेनजीर भुट्टो की हत्या कोई अस्वाभाविक घटना नहीं है। पांच माह पहले ही लाल मस्जिद में कार्रवाई हुई थी। इसके पहले न्यायपालिका का सरेआम कत्ल हुआ। पाकिस्तान जेहादी आतंकवाद की विश्वविख्यात यूनिवर्सिटी है। {येही है इसलाम और इस्लामी सल्तनत }
रक्त पिपासु जेहादी आतंकियों पर आईएसआई और सेना का कवच है। आईएसआई और जेहादी आतंकियों के साथ कट्टरपंथी मौलानाओं की दुआएं है। भारत सबका दुश्मन नंबर एक है, लेकिन भारतीय हुक्मरान इससे बेखबर है। पाकिस्तान के जन्म का आधार मजहबी अलगाववाद था। राष्ट्र मजहब से नहीं बनते। राष्ट्र निर्माण का आधार संस्कृति होती है। मजहबी अलगाववादियों ने अपनी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को नहीं स्वीकारा। नई संस्कृति का निर्माण वे कर नहीं पाए। उन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास को भी खारिज किया। नया झूठा इतिहास लिखा गया। नई पीढ़ी ने भारत को शत्रु पढ़ा। मदरसे जेहाद सिखाने का केंद्र बने। मदरसा तालीम का विरोध बेनजीर ने किया था। अमेरिकी दबाव में मुशर्रफ ने भी किया था, लेकिन जहर मदरसों के आगे भी था। प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के सलाहकार रहे इतिहासकार केके अजीज ने 'द पाकिस्तानी हिस्टोरियन' नामक शोध में पाकिस्तानी पाठ्य पुस्तकों के जहर की शिनाख्त की है। अजीज की किताब के मुताबिक कक्षा 2 की पाठ्य पुस्तक में उल्लेख है-''पं. नेहरू ने कहा कि आजादी के बाद हिंदुस्तान में हिंदुओं की सरकार होगी। कायदे आजम जिन्ना ने कहा कि यहां मुसलमान भी रहते हैं। मुसलमानों को अलग हुकूमत चाहिए।'' हिंदू विरोध के ही नजरिए से तैयार कक्षा 3 की पाठ्य पुस्तक में लिखा है, ''राजा जयपाल ने महमूद गजनवी के मुल्क में घुसने की कोशिश की। महमूद ने राजा को हरा दिया, लाहौर को हथिया लिया और इस्लामी हुकूमत कायम की।'' सच बात यह है कि पंजाब कभी इस्लाम राज्य नहीं था। महमूद आक्रांता और लुटेरा था। पाकिस्तान की नई पीढ़ी उसे हीरो पढ़ रही है। कक्षा 4 की किताब के अनुसार ''जब अंग्रेज ने इलाके पर हमला किया तो मुसलमानों के खिलाफ गैर मुसलमानों ने उनका साथ दिया। अंग्रेजों ने सारा मुल्क फतेह किया।'' कक्षा 5 की किताब में उल्लेख है-''मुस्लिम और हिंदू सभ्यताओं में विवाद हुआ। आजाद मुल्क (पाकिस्तान) की जरूरत हुई। पाकिस्तान का सिद्धांत आया। भारत (हिंदुओं) की दुष्टता थी। सर सैय्यद अहमद खां ने ऐलान किया कि मुसलमानों को एक अलग राष्ट्र के रूप में संगठित करना चाहिए।'' किताबों में 1965 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान को विजयी बताया गया। जेहाद और इसी किस्म के इतिहास को पढ़कर औसत पाकिस्तानी नौजवान आतंकी बनता है। कट्टरपंथी 'मौत के बाद जन्नत' की गारंटी देते है। कुछ बरस पहले 'जंग' ने लाहौर के करीब स्थित मरकज अलदावत अलअरशद नाम की इस्लामी यूनिवर्सिटी के मुख्य कर्ता-धर्ता और लश्करे तैयबा के प्रमुख प्रो. हाफिज सईद का इंटरव्यू छापा था। उसने भारतीय मुसलमानों से भारत के खिलाफ जेहाद अपील की थी-इसलिए कि हिंदुओं ने मुसलमानों का जीना हराम कर दिया है। 'जंग' ने पूछा कि मुसलमान निकलकर कहां जाएं? क्या पाकिस्तान उन्हे संभाल लेगा? सईद ने जवाब दिया, ''इसका जवाब सरकार दे। 1948, 1965 और 1971 में हमने संधि की, गलती की। यह न करते तो दिल्ली और कलकत्ता पर हमारा कब्जा होता।'' सईद जैसे लोग जो कुछ बोलते है वही वहां के बच्चों को पढ़ाया जाता है। सईद ने 'जंग' से कहा कि हमारे पैगंबर के मुताबिक अधिक बच्चे देने वाली बीबी से निकाह करना चाहिए। बड़ी आबादी वाली कौम ही दूसरों पर छा जाती है। भारत के तमाम हिस्सों में बढ़ी मुस्लिम आबादी से जनसंख्या संतुलन गड़बड़ाया है। तिस पर भी 11वीं योजना के मसौदे में मजहब आधारित 15 सूत्रीय तुष्टीकरण प्रोग्राम नत्थी किया गया। डा.अंबेडकर भारत की हिंदू-मुस्लिम साझा राष्ट्रीयता को असंभव मानते थे। उन्होंने तीखे सवाल उठाए, ''क्या भारत के राजनीतिक विकास के लिए हिंदू, मुस्लिम एकता जरूरी है? यदि तुष्टीकरण से तो कौन सी नई सुविधाएं उन्हें दी जाएं? अगर समझौते से तो शर्तें क्या होंगी?''
सभी पाकिस्तानी हुक्मरान भारत विरोधी थे। भुट्टो भी, बेनजीर भी, नवाज शरीफ भी और परवेज मुशर्रफ भी। पाकिस्तान के पास परमाणु बम है। भारत विरोधी जेहादी जज्बा है। फिलहाल वहां गृहयुद्ध के हाल हैं, लेकिन विरोधी पड़ोसी के घर गृहयुद्ध का भी असर पड़ोस पर पड़ता है। पाकिस्तान का भूगोल भारत-पाक सीमाओं पर जरूर खत्म होता है, लेकिन पाकिस्तान एक विचारधारा भी है। पाकिस्तान जैसा उग्र कट्टरपंथ भारत में भी है। इसीलिए आतंकवादी अपने इसी देश में भी मदद पाते हैं। पाकिस्तान की आग का धुंआ भारत में भी है। राष्ट्र इसी धुंए से बेचैन है। पशु-पक्षी भी पड़ोसी धमक सुनकर चौकन्ने होते हैं। अपने ऊपर आती है तो पलटवार भी करते हैं, लेकिन भारतीय राजनीतिज्ञ सिर्फ सेंसेक्स उछाल देखकर ही उछल रहे हैं।
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काश मैं भारत में न पैदा हुआ होता।

मैं कई दिनों से यह सोच रहा हूं कि काश मैं भारत में न पैदा हुआ होता।
यह विचार मेरे मन में इसलिये आता है क्यों कि हम भारतवासी किस चीज पर गर्व कर सकते हैं। हमको बचपन से यह सिखाया जाता है कि हम लुटे पिटे हुये लोग हैं। पहले हमको तुर्कों ने पीटा फ़िर मुगलों ने और फिर अंग्रेजों ने और आज करोडों भारतीयों पर काले अंग्रेज दिखने में भारतीय पर आत्मा से अंग्रेजी मोह से ग्रस्तहृ राज कर रहे हैं जो कि बाहर से तो देखने में तो भूरे हैं लेकिन अंदर से एकदम अंग्रेज।
कहने को तो हमारे यहां लोकतंत्र है लेकिन न्यायालय का एक निर्णय सुनने के लिये पूरा जीवन भी कम पड ज़ाता है। हमको यह नहीं सिखाया गया कि हमारी सभ्यता 5000 हजार सालों से भी पुरानी है। हमारे यहां वेद उपनिषद पुराण ग़ीता महाभारत जैसे महान ग्रंथों की महानता एवं उनका आध्यात्म नहीं सिखाया जाता । हमारे यहां अपनी भाषा का सम्मान करना नहीं सिखाया जाता है बल्कि हिन्दी या किसी अन्य भारतीय भाषा में पढने वाले को पिछडा हुआ या बैकवर्ड समझा जाता है। हमको यह सिखाया जाता है कि शिवाजी, गुरू तेगबहादुर जी जैसे महावीर लोग लुटेरे थे। हमारा सबकुछ आक्रमणकारियों या हमलावरों की देन है चाहे वो भाषा हो या संस्कृति या और कुछ।

हमारे घरों में अंग्रेजी में पारंगत होने पर बल दिया जाता है क्योंकि संस्कृत या हिन्दी या अन्य भारतीय भाषायें तो पुरातन और पिछडी हुई हैं। लोग अपने बच्चों को अंग्रजी स्कूल में दाखिला दिलाने के लिये हजारों लाखों कुर्बान करने को तैयार हैं। बच्चों को शायद वन्दे मातरम न आता हो लेकिन ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार जरूर आता होगा।

जयशंकर प्रसाद के नाम का तो पता नहीं लेकिन सिडनी शेल्डन का नाम अवश्य पता रहता है। हम जो इतिहास पडते हैं वो अंग्रेजों या अंग्रजी विचारधारा के लोगों द्वारा लिखा गया है ज़ो कि हमारी संस्कृति हमारी सभ्यता हमारे आचार विचार हमारे धर्म को ठीक तरह से जानते तक नहीं हैं। ऐसे में हम कैसे सही बिना किसी द्वेष भावना के लिखा गये एवं सच्चाई से अवगत कराने वाले इतिहास की उम्मीद कर सकते हैं? क्या कारण है कि हम इनके द्वारा लिखे गये इतिहास को सच समझ लें। और यही कारण हो सकता है कि हम अपना इतिहास ठीक से न जानते हैं और न ही समझते हैं।

इतिहास एक ऐसी चीज है जो कि भावी पीढी क़े मन में अपनी संस्कृति का सम्मान उत्पन्न करता है जो कि हमसे छीन लिया गया है। हम हजारों लाखों की तादाद में सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनाते हैं और अपने को गर्व से सूचना क्षेत्र की महाशक्ति कहते हैं परन्तु आजतक हम अपनी भाषाओं में काम करने वाले सॉफ्टवेयर एवं कम्प्यूट्र नहीं बना पाये हैं। हमारा काम लगता है कि हम पैसा खर्च करके इन इंजीनियरों को बनायें और पश्चिमी देशों को उपलब्ध कराना है जिनमे से ज्यादातर भारत नहीं लौटना चाहते हैं।

पहले हमको अंग्रजों ने गुलाम किया अब हम अंग्रेजियत के गुलाम हैं। लगता है कि हमारा कोई अस्तित्व है ही नहीं। क्या हम इसीलिये आजाद हुये थे? पता नहीं हम भारतवासियों की आत्मा कब जागेगी?

बाद में और लिखा गया

कुछ को ये बाते सही नही लग रही है कारण कुछ भी हो लेकिन इतना तो जरुर है कि हमें तलवे चाट ने कि आदत पर चुकी है। हम अभी भी मानसिक रुप से गुलाम हैं और पढें लिखे मुर्ख आदमी इसके लिये जिम्मेंदार है जो अपना जिम्मेदारी सें बचता है और तर्क के द्वारा हर झुठी और गलत बात को सच्च सिद्द करने कि कोशीश करता है
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हिंदुत्व

वीर सावरकर ने हिन्दुत्व और हिन्दूशब्दों की एक परिभाषा दी थी जो हिन्दुत्ववादियों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है उन्होंने कहा कि हिन्दू वो व्यक्ति है जो भारत को अपनी पितृभूमि और अपनी पुण्यभूमि दोनो मानता है । हिन्दुत्व शब्द फ़ारसी शब्द हिन्दू और संस्कृत प्रत्यय -त्व से बना है ।

  • हिन्दुत्ववादी कहते हैं कि हिन्दू शब्द के साथ जितनी भी भावनाएं और पद्धतियाँ, ऐतिहासिक तथ्य, सामाजिक आचार-विचार तथा वैज्ञानिक व आध्यात्मिक अन्वेषण जुड़े हैं, वे सभी हिन्दुत्व में समाहित हैं।हिन्दुत्व शब्द केवल मात्र हिन्दू जाति के कोरे धार्मिक और आध्यात्मिक इतिहास को ही अभिव्यक्त नहीं करता। हिन्दू जाति के लोग विभिन्न मत मतान्तरों का अनुसरण करते हैं। इन मत मतान्तरों व पंथों को सामूहिक रूप से हिन्दूमत अथवा हिन्दूवाद नाम दिया जा सकता है । आज भ्रान्तिवश हिन्दुत्व व हिन्दूवाद को एक दूसरे के पर्यायवाची शब्दों के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। यह चेष्टा हिन्दुत्व शब्द का बहुत ही संकीर्ण प्रयोग है ।
  • हिन्दुत्ववादियों के अनुसार हिन्दुत्व किसी भी धर्म या उपासना पद्धति के ख़िलाफ़ नहीं है ।वो तो भारत में सुदृढ़ राष्ट्रवाद और नवजागरण लाना चाहता है । उसके लिये हिन्दू संस्कृति वापिस लाना ज़रूरी है ।अगर समृद्ध हिन्दू संस्कृति का संरक्षण न किया गया तो विश्व से ये धरोहरें मिट जायेंगी । आज भोगवादी पश्चिमी संस्कृति से हिन्दू संस्कृति को बचाने की ज़रूरत है ।
  • हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म सर्वधर्म समभाव के सिद्धान्त में विश्मास रखता है । (ईसाई और मुसलमान ये नहीं मानते)हिन्दुत्व गाय जैसे मातासमान पशु का संरक्षण करता है ।
  • ईसाई और इस्लाम धर्म हिन्दू धर्म को पाप और शैतानी धर्म मानता है । इस्लाम के अनुसार हिन्दू लोग क़ाफ़िर हैं ।मुसलमान हिन्दू बहुल देशों में रहाना ही नहीं चाहते । वो एक वृहत्-इस्लामी उम्मा में विश्वास रखते हैं और भारत को दारुल-हर्ब (विधर्मियों का राज्य) मानते हैं । वो भारत को इस्लामी राज्य बनाना चाहते हैं ।
  • मुसलमान हिंसा से और ईसाई लालच देकर हिन्दुओं (ख़ास तौर पर अनपढ़ दलितों को) अपने धर्म में धर्मान्तरित करने में लगे रहते हैं ।
  • इतिहास गवाह है कि मुसलमान आक्रान्ताओं ने मध्य-युगों में भारत में भारी मार-काट मचायी थी । उन्होंने हज़ारों मन्दिर तोड़े और लाखों हिन्दुओं का नरसंहार किया था । हमें इतिहास से सीख लेनी चाहिये ।
  • इस्लामी बहुमत पाकिस्तान (अखण्ड भारत का हिस्सा) भारत को कभी चैन से जीने नहीं देगा । आज सारी दुनिया को इस्लामी आतंकवाद से ख़तरा है । अगर आतंकवाद को न रोका गया तो पहले कश्मीर और फिर पूरा भारत पाकिस्तान के पास चला जायेगा ।
  • कम्युनिस्ट इस देश के दुश्मन हैं । वो धर्म को अफ़ीम समझते हैं । उनके हिसाब से तो भारत एक राष्ट्र है ही नहीं, बल्कि कई राष्ट्रों की अजीब मिलावट है । रूस और चीन में सभी धर्मों पर भारी ज़ुल्मो-सितम ढहाने वाले अब भारत में इस्लाम के रक्षक होने का ढोंग करने के लिये प्रकट हुए हैं ।
  • अयोध्या का राम मंदिर हिन्दुओं के लिये वैसा ही महत्त्व रखता है जैसे काबा शरीफ़ मुसलमानों के लिए या रोम और येरुशलम के चर्च ईसाइयों के लिये । फिर क्यों एक ऐसी बाबरी मस्जिद के पीछे मुसलमान पड़े हैं जहाँ नमाज़ तक नहीं पढ़ी जाती, और जो एक हिन्दू मन्दिर को तोड़ कर बनायी गयी है ?
  • भारत में मुसल्मन संगठित हैं--एक समुदाय के रूप में । हिन्दू जात-पात, साम्प्रदाय, भाषा आदि में बँटे हैं । हिन्दुत्व सभी हिन्दुओं को संगठित करता है ।
  • आधुनिक भारत में नकली धर्मनिर्पेक्षता चल रही है । बाकी लोकतान्त्रिक देशों की तरह यहाँ सभी धर्मावलम्बियों के लिये समानाचार संहिता नहीं है । यहाँ मुसलमानों के अपने व्यक्तिगत कानून हैं जिसमें औरत के दोयम दर्ज़े, ज़बानी तलाक़, चार-चार शादियों जैसी घटिया चीज़ों जो कानूनी मान्यता दी गयी है ।
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चर्च का फरेब ! धर्मान्तरण कैसे कैसे !

1. मानविहिर की शातू बेन गुलाब भाई पवार बतातीं है कि असका पति गुलाब भाई बिमार रहता था। दवाई आदि कराई पर कोई लाभ नहीं हुआ। गांव के पास्टर के कहने पर कि ख्रिस्ती बनने पर ठीक हो जायेगा, गुलाब भाई ने अपना धर्म बदल लिया। असके बावजूद भी उसका स्वास्थ ठीक नहीं हुआ तो पास्टर ने कहा कि शीतू बेन अभी भी भूत, बंदरों की पूजा करती है, वह भी ईसाई हो जायेगी तो ठीक हो जाओगे। शीतू बेन और बाद में उसका पूरा परिवार ईसाई हो गया परन्तु गुलाब भाई ठिक होने की बजाए मर गया ।अब शीतू बेन और उसका पूरा परिवार वास्तविकता को समझ गया है और उनई माता के कुंड में स्नान कर पुन: हिन्दू हो गया है ।

2. जामनविहिर की ही अरूणा चंदू पवार आज से दो वर्ष पूर्व जब 7 साल की थी तो आने गांव में बपतिस्मा क्या होता है - यह तमाशा देखने गयी थी । पादरी ने इस नाबालिग लड़की को भी बपतिस्मा का पानी दे दिया । यह ध्यान रहे कि नाबालिग व्यक्ति का धर्म बदलना कानूनन अपराध है ।

3. धांगड़ी फादर पाड़ा के सुरेश ने बताया कि उसके पेट में हर समय दर्द रहता था। चर्च वाले पास्टर ने कहा कि तुन ख्रिस्ती बन जाओगे तो मैं तुम्हारे लिये प्रार्थना करूंगा और उसने धर्म बदल लिया ।

5. दिनांक 3/1/99 को सूरत जिला के तालुका सोनगढ़ के राशमाटी गांव में रमेशभाई माकड़ियाभाई गामित जो कि खेतों में मजदूरी करता है, को लीमजीभाई छीड़ीयाभाई गांमित (पास्टर) रमेशभाई गामित और पांच अन्य लोंगो ने रास्ते चलते मारा पीटा, फिर चर्च में ले जा कर खंभे से बांध दिया और रात भर इसलिये पीटते रहे क्योंकि वह ईसाई बनने को तैयार नहीं हो रहा था ।रड़तियाभाई बुधियाभाई पवार ने उसे अगले दिन खोल कर छोड़ा । मामले की 7 जनवरी को सोनगढ़ थाने में नामजद प्राथमिकी दर्ज कराई गयी ।(दैनिक संदेश सूरत 7/1/99)

6. उधना डिंडोलीरोड़ पर सीतारामनगर सोसायटी सूरत के प्लाट नं. 11 मे मूल उत्तरप्रदेश की रहने वाली उर्मिलाबेन लौजारी विश्वकर्मा नामक एक महिला रहती है, उसकी हिनलबेल नामक बच्ची पोलियो से ग्रस्त है । पहले इस लड़की को ठीक करने के नाम पर चर्च ने इस गरीब परिवार पर डोरा डाला । लड़की न तो ठीक हुई न होनी थी बाद में मजदूरी करके जोड़े गये पैसे से जब उसने अपना छोटा सा मकान बनना शुरू किया तो राजू नामक पास्टर ने उसे धमकाया कि पहले ईसाई बनो फिर मकान बनने दूंगा । लोगों को पता लगने पर इस क्षेत्र में हंगामा हुआ ।(गुजरात समाचार 18-1-99)

7. डांग में इस क्षेत्र के एक पास्टर जल्दूभाई और दूसरे जामनविहिर के पास्टर यशवंत भाई बताते है कि बीमारी और खराब आर्थिक स्थिति के कारण वे चर्च के चंगुल में फँस गये, उनके उपकार से बने होने के कारण वे ईसाई फादर की ईसाई बन जाने की मांग को ठुकरा नहीं सके ।इन दोनो के साक्षात्कार इंडिया टुडे जनवरी 99 में भी छपे है । बाद में ये दोनो और कई अन्य पास्टर अपनी भूल और चर्च की ठगी को समझ कर पुन: अपने मूल धर्म में वापस आ गये ।

8. पीपलवाड़ा तालुका व्यारा जिला सुरत के नानूभाई दिवालूभाई कोंकणी चर्च और उसके ईशारे पर हो रहे अत्याचारों को याद कर आज भी अपनी हँसी भूल जाते हैं । 28 जनवरी 99 को पीपलवाड़ा में उसने बताया कि हम लोग जब पांडर देव की पूजा करते है तो हम पर गुलेलां से हमला और पीटायी होती थी । 17 वर्ष पूर्व शंकर भगवान के मंदिर पर नलिया डाल रहे थे तो ईसाइयों ने हम लोगों की बहुत पिटाई की । तब से मंदिर की मरम्मत करने की भी हम लोग हिम्मत नहीं करते थे । अब दो वर्ष से अम लोग जैसे नरक से मुक्त हुए है, 15 वर्ष बाद इस गांव में गणपति उत्सव मनाया गया है । स्वामी असीमानंदजी के इस क्षेत्र में आने और वनवासी कल्याण परिषद् के कार्यकर्ताओं के कारण ही हिन्दू समाज में फिर से बसंत आया है ।

9.. डांग मे मंदिरो पर हमले और मूर्तियों को खंडित करने का क्रम अब भी जारी है । 19-20 जनवरी 99 की रात को पादलखड़ी के हनुमानजी के मंदिर में आग लगायी गयी । वहां गाय बैल का पूरा अस्थी पंजर डाला गया । मंदिर के प्रांगण में क्रास गाडा गया और मंदिर में लगे देवी देवताओं के फोटो में से 20-25 फाटो जलाये गये । 29-30 जनवरी 99 की रात को धुमकल के मंदिर में स्थापित शिवजी के लिंग को तोड़कर दो टुकड़े कर दिये गये ।दोनों ही घटनाओं की प्राथमिकी दर्ज करने से पुलिस ने पहले तो आना कानी की फिर लोगों के दबाव को दखकर वाद तो दर्ज किया परन्तु नामजद रिपोर्ट होने के बावजूद अभी तक किसी को भी नहीं पकड़ा गया है। अवैध एवं अनैतिक रूप से चारेी छिपे बनाये गये कथिन प्रार्थनाघरों में से कुछ को जलाये जाने की निन्दनीय घटना को पूरी दुनिया में हिन्दू धर्म और देश की बदनामी के लिये प्रचारित किया गया परन्तु मंदिरों पर हुए, हो रहे हमले, मुर्तियों को खंडित करने, मरे हुए गाय बैल की हड्डियां डालकर मंदिरों को अपवित्र करने और संपूर्ण हिन्दू समाज को अपमानित करने की और न तो अंग्रेजी अखबार और न ही वोटों के सौदागर ध्यान दे रहे है ।

10. डांग और उसके आस पास रहते वाला अपना वनवासी समाज चर्च की समाज को तोड़ने वाली और राष्ट्रघाती प्रवृति को समझ चुका है । अज्ञान, लोभ और दबाव में आकर पुर्वजों के हिन्दू धर्म को छोडकर उसने गलती की है, यह महसूस कर अब वह अपने मूल धर्म में वापस आरहा है ताकि घर परिवार, गांव और संपूर्ण समाज में वह शांति से रह सके, अपनी अमूल्ल्य सांस्कृतिक धरोहर को बचा कर रख सके । इसके लिये उनई माता के पुराण प्रसिध्द गर्म पानी के कुंड में डुबकी लगा कर प्रायश्चित करके उनई माता, अंबा माता और भगवान राम के दर्शन करे सैकड़ो लोग प्रतिदिन अपने धर्म में वापस आरहे है ।

ऐसे वापस आरहे बंधुओं पर भी चर्च के ईशारे पर हमले हो रहे हैं । सुडीयाबरडा के लक्ष्मणभाई कनु भाई वाघमारे आयु 35 वर्ष ने 1/1/99 को आहवा पुलिस थाने में मामला दर्ज कराया कि वह और उसका परिवार 5 वर्ष पूर्ण ईसाई हुआ था । 29/12/98 को अपपनी मर्जी से पुन: हिंन्दू बन गया है इसके कारण गांव के सावलू, गुलाब, चारसू बेन, सीताराम वगैरह 12 लोग एक राय होकर उसके घर पर हमला करने आये और मारपीट की ।(गुजरात मित्र, नव गुजरात सूरत दिनांक 2/1/99)
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हिन्दु एक मरता हुआ धर्म

हिंदू धर्म, विश्व का सबसे प्राचीन धर्म, जो कब और कैसे शुरू हुआ किसी को नहीं पता. ये अनादि काल से चला आ रहा है. ये विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जो किसी एक व्यक्ति ने नहीं बनाया. विश्व के सभी धर्मो के बारे में प्रमाण उपलब्ध हैं की किस धर्म को किस व्यक्ति ने बनाया|
हिंदू धर्म के बारे में जो सबसे पुराना प्रमाण उपलब्ध है उसके अनुसार "इन्दुस" नदी (वर्तमान में सिंधु जो की पाकिस्तान में है) की घाटी में रहने वाले लोगों को हिंदू कहा गया। इससे पुराना प्रमाण किसी धर्म के बारे में प्राप्त नहीं हुआ है. ऋग वेद, हिंदू धर्म का सबसे प्राचीन वेद। अगर इसको विश्व की सबसे पुरानी किताब कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.ज्योतिष शास्त्र, आकाश के ग्रहों, नक्षत्रों और तारामंडलों के अध्यन की कला समूचे विश्व को हिंदू धर्म से ही मिली.विक्रमी संवत, दुनिया को दिन, महीने और साल की जानकारी देने वाला पहला पंचांग (calendar) हिन्दुओं ने ही बनाया।
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध हिंदू थे।
जैन धर्म के संस्थापक महावीर जैन भी हिंदू थे।
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव भी हिंदू ही थे।

उपरोक्त तो बस कुछ ही बिन्दु हैं। हिंदू धर्म कितना महान है ये किसी की कल्पना के भी परे है। इतने महान धर्म पर सदियों से प्रहार होते आए हैं इसको नष्ट करने के लिए। मुसलमानों ने सन् 712 में सिंध का छेत्र जीत कर वहाँ अपने इस्लाम धर्म की नींव रखी और सन् 875 तक सिंधु नदी के छेत्र में उन्होंने अपना पूर्ण रूप से अधिकार कर लिया। सन् 1017 में मुहम्मद गजनी ने मथुरा और गोकुल को लूटा और वहाँ एक मस्जिद बनाईं।
सन् 1024 में मुहम्मद गजनी ने सोमनाथ के मन्दिर पर आक्रमण कर मन्दिर को नष्ट करा। वहाँ शिवलिंग को खंडित कर दिया और करीब 50,000 से ज्यादा हिन्दुओ का कत्ल किया। वहाँ भी उसने एक मस्जिद बनाईं। सोमनाथ के मन्दिर पर उसने इस प्रकार से 17 बार आक्रमण करा। सन् 1197 में मुस्लिम इख्तियार उददीन ने नालंदा विश्वविध्यालय (बिहार में) को नष्ट किया जो उस समय का विश्व का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय था। सन् 1528 में बाबर ने अयोध्या का राम मन्दिर तोड़ कर वहाँ बाबरी मस्जिद बनाईं। सन् 1658 में औरंगजेब ने जबरन हिन्दुओं को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर करा। जिन्होंने इस्लाम कबूल नहीं करा उन पर ज़ुल्म किए गए और मार दिया गया। सन् 1688 में औरंगजेब ने मथुरा और आस पास के करीब 1000 मन्दिर तुड़वा दिए। मुगलों के कुल शासनकाल में करीब 60,000 मन्दिर तोडे गए। सन् 1761 में अहमद शाह दुर्रानी ने उत्तर भारत में 2,00,000 हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया।
इसके बाद हिन्दुस्तान पर अंग्रेजो का आधिपत्य हो गया और फिर उन्होंने अपने इसाई धर्म को बढावा दिया। अंग्रेजों के अत्याचार की कहानी तो जलियाँ वाला बाग़ सुनाता है।

इस प्रकार से हमारी हिंदू सभ्यता और संस्कृति को कई बार पैरों तले रौंदा गया। कभी मुसलमानों ने और कभी इसाईओं ने. बहुत सह चुके हम और बहुत सह चुका हिंदू धर्म। अब हम और नहीं सहेंगे।
"त्रेता युग और द्वापर युग की तरह इस युग में भी भगवान धर्म की रक्षा के लिए और अधर्म के विनाश के लिए धरती पर अवतार लेंगे." ऐसा सोच कर हम कब तक भगवान के अवतरण की प्रतीक्षा करेंगे? और वैसे भी कहा गया है की "जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं, भगवान भी उन्हीं की सहायता करते हैं।" इसीलिए भगवान से सहायता लेने के लिए पहले हमें स्वयं ही कदम उठाना होगा, शंखनाद करना होगा दुनिया को बताने के लिए कि हिंदू धर्म में दया और करुणा तभी तक दिखाई जाती है जब तक पापी अपनी सीमा में रहे।
तो आइये, हिंदू धर्म की रक्षा और उत्थान के लिए हम सभी एकजुट होकर आह्वान करते हैं।

मयंक कुमार

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बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रतिस्पर्धी विज्ञापनों का भारतीय और हिंदू संस्कृति पर दुष्प्रभाव:

पिछले कुछ दिनों से टीवी पर एक विदेशी मोबाइल कंपनी का विज्ञापन आ रहा है जिसमे दिखाते हैं की एक बाप अपने बेटे को समान सही से न रखने पर डांट रहा है. बेटा डांट सुन रहा है कि अचानक उसको अपना मोबाइल याद आता है और फिर बेटा अपने मोबाइल का FM radio चालू कर के कान मे earphone घुसा लेता है और बाप की बात पर कोई ध्यान नही देता. इस विज्ञापन मे ये दिखाया है की बाप कुछ भी बोलता रहे तुम बस कान मे earphone लगा कर FM radio सुनो और ऐसा करने के लिए उनकी कंपनी का नया मोबाइल खरीदो.
क्या मोबाइल कम्पनियाँ अपने मोबाइल बेचने की होड़ में यह भूल गयीं हैं की भारतीय संस्कृति में माता-पिता को भगवान के बराबर का दर्जा दिया गया है. हमारे नैतिक मूल्य हमें माता-पिता का अपमान करना नहीं सिखाते. इस प्रकार के विज्ञापनों से वो हमारी संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करके हमें भी पश्चिमी सभ्यता के उस अंधकारमयी पथ पर प्रदर्शित करना चाहते हैं जहाँ बच्चे माता-पिता की इज्ज़त नहीं करते? ऐसे विज्ञापन भारतीय और हिंदू संस्कृति का पतन कर रहे हैं. आज की नन्ही पीढ़ी इन विज्ञापनों से क्या सीख लेगी? आज के युग मे नई पीढ़ी पर सबसे ज्यादा असर टीवी के विज्ञापनों का ही होता है.हमें इसके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए. इस प्रकार के विज्ञापनों पर रोक लगनी चाहिए अन्यथा नई पीढ़ी इन्हीं विज्ञापनों का अनुसरण करना शुरू कर देगी और इसके लिए हम उन्हें दोष नहीं दे सकते, इसके जिम्मेदार हम स्वयं ही होंगे.

लेखक
मयंक कुमार
Software Engineer
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कम्युनिस्टों के ऐतिहासिक अपराध

दुनिया भर के प्रमुख विचारकों ने भारतीय जीवन-दर्शन एवं जीवन-मूल्य, धर्म, साहित्य, संस्कृति एवं आध्यात्मिकता को मनुष्य के उत्कर्ष के लिए सर्वोत्कृष्ट बताया है, लेकिन इसे भारत का दुर्भाग्य कहेंगे कि यहां की माटी पर मुट्ठी भर लोग ऐसे हैं, जो पाश्चात्य विचारधारा का अनुगामी बनते हुए यहां की परंपरा और प्रतीकों का जमकर माखौल उड़ाने में अपने को धन्य समझते है। इस विचारधारा के अनुयायी 'कम्युनिस्ट' कहलाते है। विदेशी चंदे पर पलने वाले और कांग्रेस की जूठन पर अपनी विचारधारा को पोषित करने वाले 'कम्युनिस्टों' की कारस्तानी भारत के लिए चिंता का विषय है। हमारे राष्ट्रीय नायकों ने बहुत पहले कम्युनिस्टों की विचारधारा के प्रति चिंता प्रकट की थी और देशवासियों को सावधान किया था। आज उनकी बात सच साबित होती दिखाई दे रही है। सच में, माक्र्सवाद की सड़ांध से भारत प्रदूषित हो रहा है। आइए, इसे सदा के लिए भारत की माटी में दफन कर दें। कम्युनिस्टों के ऐतिहासिक अपराधों की लम्बी दास्तां है-
• सोवियत संघ और चीन को अपना पितृभूमि और पुण्यभूमि मानने की मानसिकता उन्हें कभी भारत को अपना न बना सकी।
• कम्युनिस्टों ने 1942 के 'भारत-छोड़ो आंदोलन के समय अंग्रेजों का साथ देते हुए देशवासियों के साथ विश्वासघात किया।
• 1962 में चीन के भारत पर आक्रमण के समय चीन की तरफदारी की। वे शीघ्र ही चीनी कम्युनिस्टों के स्वागत के लिए कलकत्ता में लाल सलाम देने को आतुर हो गए। चीन को उन्होंने हमलावर घोषित न किया तथा इसे सीमा विवाद कहकर टालने का प्रयास किया। चीन का चेयरमैन-हमारा चेयरमैन का नारा लगाया।
• इतना ही नहीं, श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने शासन को बनाए रखने के लिए 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी और अपने विरोधियों को कुचलने के पूरे प्रयास किए तथा झूठे आरोप लगातार अनेक राष्ट्रभक्तों को जेल में डाल दिया। उस समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी श्रीमती इंदिरा गांधी की पिछलग्गू बन गई। डांगे ने आपातकाल का समर्थन किया तथा सोवियत संघ ने आपातकाल को 'अवसर तथा समय अनुकूल' बताया।
• भारत के विभाजन के लिए कम्युनिस्टों ने मुस्लिम लीग का समर्थन किया।
• कम्युनिस्टों ने सुभाषचन्द्र बोस को 'तोजो का कुत्ता', जवाहर लाल नेहरू को 'साम्राज्यवाद का दौड़ता कुत्ता' तथा सरदार पटेल को 'फासिस्ट' कहकर गालियां दी।
ये कुछ बानगी भर है। आगे हम और विस्तार से बताएंगे। भारतीय कम्युनिस्ट भारत में वर्ग-संघर्ष पैदा करने में विफल रहे, परंतु उन्होंने गांधीजी को एक वर्ग-विशेष का पक्षधर, अर्थात् पुजीपतियों का समर्थक बताने में एड़ी-चोटी का जोड़ लगा दिया। उन्हें कभी छोटे बुर्जुआ के संकीर्ण विचारोंवाला, धनवान वर्ग के हित का संरक्षण करनेवाला व्यक्ति तथा जमींदार वर्ग का दर्शन देने वाला आदि अनेक गालियां दी। इतना ही नहीं, गांधीजी को 'क्रांति-विरोधी तथा ब्रिटीश उपनिवेशवाद का रक्षक' बतलाया। 1928 से 1956 तक सोवियत इन्साइक्लोपीडिया में उनका चित्र वीभत्स ढंग से रखता रहा। परंतु गांधीजी वर्ग-संषर्ष तथा अलगाव के इन कम्युनिस्ट हथकंडों से दुखी अवश्य हुए। साम्यवाद (Communism) पर महात्मा गांधी के विचार-महात्मा गांधी ने आजादी के पश्चात् अपनी मृत्यु से तीन मास पूर्व (25 अक्टूबर, 1947) को कहा- 'कम्युनिस्ट समझते है कि उनका सबसे बड़ा कत्तव्य, सबसे बड़ी सेवा- मनमुटाव पैदा करना, असंतोष को जन्म देना और हड़ताल कराना है। वे यह नहीं देखते कि यह असंतोष, ये हड़तालें अंत में किसे हानि पहुंचाएगी। अधूरा ज्ञान सबसे बड़ी बुराइयों में से एक है। कुछ ज्ञान और निर्देश रूस से प्राप्त करते है। हमारे कम्युनिस्ट इसी दयनीय हालत में जान पड़ते है। मैं इसे शर्मनाक न कहकर दयनीय कहता हूं, क्योंकि मैं अनुभव करता हूं कि उन्हें दोष देने की बजाय उन पर तरस खाने की आवश्यकता है। ये लोग एकता को खंडित करनेवाली उस आग को हवा दे रहे हैं, जिन्हें अंग्रेज लगा लगा गए थे।'

गोपाल कुमार आजाद
http://yugkipukar.blogspot.com/2008/02/blog-post.html
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Dogs and Indian are Not Allowed

Dogs and Indian are Not Allowed शायद हम हिन्दुस्तानी इस वाक्य को भुल गये या फिर हमारे पुर्वंज हमें बता कर नही गये हिन्दुस्तानी और कुत्ते क्या एक हैं। आज हिन्दुस्तानी फिर से वही जा रहा जहाँ उनहें कुत्ता होने का ऎहसास कराया जाता था। अंग्रेज हमारे देश में व्यापारी बन कर आये थे और हम पर राज करने के साथ हमे हर तरह से नीचा दिखाने का कार्य उन्होने किया। कारण था उनका संस्कार और संस्कृति। पाश्चात्य के देशों में अपने आपको मनुष्य और दुसरे आदमी को बजार माना जाता है और उनका सारा का सारा काम इसी पद्धति पर चलता है। लेकिन हिन्दुस्तान में इससे बिलकुल भिन्न हम सभी को एक इन्सान मानते हैं।
वैलेंटाइन डे भी इसी व्यापार पद्धती के तहत मनाने वाला एक प्रेम पर्व है जिसका हिन्दुस्तान से न कोई लेना देना है और ना ही यहाँ की ये संस्कृती का हिस्सा है। यह तो सिर्फ Dogs and Indian are Not Allowed कहने वालो के द्वारा धोपा गया एक विक्रय कला है जिसके तहत हम हिन्दुस्तानी इस वर्ष 300 हजार करोड़ रुपये विदेश भेज दिया। सोचने का विषय है। प्रेम कोई कथा नहीं कि उसे कथावाचक की जरुरत पड़े। किसी को भाष्य करना पडे़। समझाने की नैबत आए। वह तो स्वत: काव्य है। तरल और सरल । निश्छल, अविरल बिना उलझाव। प्रकृति ने उसे अनगढ़ ही बनाया। प्रेम अनंत है। उसके लिये साल में बस एक दिन। शायद नही प्रेम तो हृदय में उठने बाला तंरग है जो साल के 365 दिन उठता है।लेकिन बाजारु सभ्यता के चलते हमरा इतना पतन हो गया हैं कि हम अपनी सभ्यता को भुल कर इन्सान को एक उपभोग या बजारु चीज समझ लिये हैं। आज एक माल का उपभोग करो अगले साल कोई नया माल का इन्तजाम करो। क्यों कि हम एक इन्सान नही एक बजार समझा जा रहा है और बजार में सब चलता है। माल को खाओ और आगे बढो़।
साल में एक दिन अपने प्यार का प्रर्दशन करो। जैसे साल के किसी एक मौसम में जानवर किया करते हैं। हम इन्सान हैं या जानवर। आज समाज का एक तबका पश्चिमी देशों के द्वारा फैलाये जा रहे व्यापार पद्धति जाल में बुरी तरह फंस गया है उसे न तो अपना संस्कृति को बचाना चाहता है और उसे अपने संस्कृति का ज्ञान है।वही एक तबका वैलेंटाइन डे को गले लगा लिया है और अपने आपको बजार का एक अंग बना लिया है। खुद भी उपभोग कर रहा है और अपना भी उपभोग करवा रहा है। इस समाज के रहनुमा हिन्दुस्तान की महिलायें को सिर्फ एक उपभोग की वस्तु मानता है जैसा कि पश्चिमी देशों में होता है। जहाँ नारी को सिर्फ एक उपभोग की वस्तु माना जाता है। अगर नारी एक उपभोग कि वस्तु है तो शायद ऎसा सोचने वालो के घर में भी कोई न कोई उपभोग की वस्तु होगा ही और उसका भी कोई ना कोई उपभोग कर रहा होगा। क्या हमारे देश में प्रेम को बेचने का जरुरत पर गया है। आज हमें किसी संत वैलेंटाइन की जरुरत नही है हमारी सभ्यता की जड़ इतनी मजबुत है कि संत वैलेंटाइन जैसे कामवसना के पुजारी की जरुरत हमें नही है। हम तो सच्चे प्रेम की पुजा करते हैं। कीसी कामवासना या बजारु सभ्यता के अन्तर्गत साल में एक दिन जानवरो की तरह प्रेम का प्रर्दशन नही किया करते है। यह हिन्दुस्तान है यहाँ 33 करोड़ देवि-देवता का वास होता है किसी कामवासना के द्वारा उन्मत इन्सान को हम पुजना तो दुर देखना भी पसंद नही करते है। यह हिन्दुस्तान है कोई बजार नही। हमे इस बजारु सभ्यता को नकारने की जरुरत है नही तो Dogs and Indian are Not Allowed कहने बालो कही दुबारा अपना साम्राज्य ना फैला ले।

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तसलीमा बनाम मकबूल

'आमी बाड़ी जाबो, आमी बाड़ी जेते चाई,' कोलकाता से वामपंथी सरकार द्वारा निकाल बाहर किए जाने के बाद से ही पश्चिम बंगाल लौटने की लगातार गुहार लगा रहीं बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन इन पंक्तियों के लिखते समय अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान चिकित्सा केंद्र में अपना उपचार करा रही है। मानसिक यंत्रणा से जूझ रही तसलीमा को देश निकाले की धमकी और चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को महिमामंडित करने का क्या अर्थ है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर भारत माता और हिंदू देवी-देवताओं के अपमानजनक चित्र बनाने वाले को 'भारत रत्न' से सम्मानित करने की मांग का क्या औचित्य है? आखिर तसलीमा का अपराध क्या है कि उन्हे जान की सुरक्षा और रहने के ठिकाने की चिंता के साये में जीवन गुजारना पड़ रहा है? हिंदू भावनाओं को आघात पहुंचाने के कारण अदालती कार्रवाइयों से बचने के लिए विदेश में छिपे मकबूल के पक्ष में तो सारे सेकुलरिस्ट खड़े है, किंतु तसलीमा को शरण दिए जाने पर वही खेमा आपे से बाहर क्यों है?
तसलीमा और मकबूल के प्रति जो दोहरा रवैया अपनाया जा रहा है वह वस्तुत: पंथनिरपेक्षता के विकृत पक्ष को ही उजागर करता है। बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदुओं पर वहां के बहुसंख्यक मुसलमानों द्वारा किए गए अत्याचार पर आधारित तसलीमा की पुस्तक 'लज्जा' के प्रकाशन के बाद बांग्लादेश सरकार ने उन्हे देश छोड़ने का फरमान जारी किया। उसके बाद से ही वह निर्वासित जिंदगी गुजार रही है। कुछ समय से तसलीमा ने भारत में शरण ले रखी है। लंबे समय से वह भारत सरकार से भारतीय नागरिकता प्रदान करने की गुहार कर रही है। भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के खंड 6 के अंतर्गत ऐसे व्यक्ति को भारतीय नागरिकता के योग्य बताया गया है, जिसने विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य, विश्व शांति और मानव कल्याण के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान दिया हो। संवैधानिक पंथनिरपेक्षता के संदर्भ में तसलीमा के विचारों को कई पश्चिमी देश सम्मान भाव से देखते है, किंतु 'सेकुलर' भारत उन्हे तिरस्कार का पात्र समझता है। क्यों? तसलीमा नसरीन की पुस्तक 'लज्जा' सेकुलर भारत के लिए सचमुच लज्जा की बात साबित हो रही है। 1993 में लिखी इस पुस्तक ने मानवीय संवेदनाओं को झकझोर दिया था। उन्हे बांग्लादेशी कठमुल्लों के फतवे से जान बचाकर देश छोड़ भागना पड़ा। 1971 में बांग्लादेश को एक 'पंथनिरपेक्ष राष्ट्र' के रूप में मुक्त कराया गया था, किंतु सच यह है कि वह आज इस्लामी जेहादियों का दूसरा सबसे बड़ा गढ़ है। 1988 में उसने पंथनिरपेक्षता को तिलांजलि दे खुद को इस्लामी राष्ट्र घोषित कर लिया।
बांग्लादेश में तसलीमा का दमन आश्चर्य की बात नहीं, किंतु पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक भारत की क्या मजबूरी है? सेकुलरवाद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मकबूल का समर्थन करने वाले सेकुलरिस्ट और कम्युनिस्ट तसलीमा का विरोध क्यों कर रहे है? क्या सेकुलरवाद हिंदू मान्यताओं और प्रतीकों को कलंकित करने का साधन है? क्या ऐसा इसलिए कि हिंदुओं में प्रतिरोध करने की क्षमता कम है या वे आवेश में आकर विवेक का त्याग नहीं करते? पैगंबर साहब का अपमानजनक कार्टून बनाने वाले के खिलाफ सड़क से लेकर संसद तक निंदा करने वाले सेकुलरिस्ट मकबूल के मामले में क्यों मौन रह जाते है? किसी भी मजहब की आस्था पर आघात करना यदि उचित नहीं है तो हिंदुओं की आस्था पर आघात करने वाले कलाकारों-संगठनों को संरक्षण किस तर्क पर दिया जाता है? मकबूल फिदा हुसैन के जीवन को कोई खतरा नहीं है। संपूर्ण सेकुलर सत्ता अधिष्ठान उनके स्वागत में तत्पर है। सेकुलरिस्ट उन्हे 'भारत रत्न' से सम्मानित करने की मांग करते है, जामिया मिलिया विश्वविद्यालय उन्हे पीएचडी की उपाधि से सम्मानित करता है और इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह उपस्थित रहते है।
न्यायपालिका की विश्वसनीयता और प्रामाणिकता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित है। संसद पर हमला करने के आरोप में एहसान गुरु का बरी होना इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। यदि मकबूल को अपने देश की न्यायपालिका पर विश्वास है और अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति को न्यायोचित ठहराने की क्षमता है तो उन्हे भारत आकर अदालत में अपना पक्ष रखना चाहिए। किंतु मदर टेरेसा, मरियम, अपनी मां-बेटी को वस्त्राभूषण के साथ सम्मानजनक ढंग से चित्रित करने और हिंदू देवी-देवताओं को अपमानजनक और नग्न चित्रित करने वाले मकबूल आखिर किस तर्क पर 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' का लाभ उठा पाएंगे?
संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है, किंतु इसमें कुछ निषेध भी है। जनहित में मर्यादा और सदाचरण की रक्षा के लिए सरकार इस पर प्रतिबंध भी लगा सकती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हुए समाज के किसी वर्ग की आस्था, उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने, सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने के आरोप में भारतीय दंड विधान की धारा 153 ए के अंतर्गत सजा का प्रावधान भी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने का जो तर्क तसलीमा पर लागू होता है वह मकबूल पर लागू क्यों नहीं होता? तसलीमा को देश से निकालने पर आमादा सेकुलरिस्ट उसी आरोप में मकबूल को यहां की कानून-व्यवस्था के दायरे में लाने की मांग क्यों नहीं करते? वस्तुत: तसलीमा के भारत में रहने से सेकुलरिस्टों को दो तरह के डर ज्यादा सताते है। एक तो उन्हे यह डर है कि उनका थोक वोट बैंक उनसे बिदक जाएगा और दूसरा, चूंकि मुसलमानों के कट्टरवादी वर्ग में हिंसात्मक प्रतिक्रिया करने की क्षमता ज्यादा है, इसलिए स्वाभाविक रूप से उनकी 'ब्लैकमेलिंग ताकत' भी ज्यादा है। पश्चिम बंगाल में इस वर्ष पंचायत चुनाव होने है। नंदीग्राम हिंसा को लेकर जिस तरह जमायते हिंद के बैनर तले मुसलमानों ने वर्तमान वाममोर्चा सरकार के खिलाफ सड़कों पर उग्र आंदोलन किया उससे माकपाइयों का घबराना स्वाभाविक है। इस आक्रोश को दबाने के लिए ही तसलीमा नसरीन को पश्चिम बंगाल से निकाला गया और अब उन्हे देश छोड़कर जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
भारत ने शरणार्थियों को शरण देने में कभी कंजूसी नहीं की। पारसी आए, हमने गले लगाया। केरल के तट पर व्यापारी रूप में इस्लाम के अनुयायी आए तो हमने उन्हे 'मोपला' (स्थानीय भाषा में दामाद) कहकर सम्मानित किया। हालांकि इसका पारितोषिक हमें 'मोपला दंगों' के रूप में मिला, किंतु हमारे आतिथ्य संस्कार में कमी नहीं आई। यहूदी हमारी बहुलावादी संस्कृति व सर्वधर्मसमभाव के सबसे बड़े साक्षी है। शेष दुनिया में जब उनका उत्पीड़न हो रहा था तब हमने उन्हे शरण दी। दलाई लामा भारत की इस परंपरा को कैसे भूल सकते है? उन्हे शरण देने के कारण जब-तब चीन के साथ हमारे संबंध कटु हो उठते है, किंतु क्या हमने कभी उन्हें निकालने की बात भी सोची? यदि कम्युनिस्टों के दबाव में संप्रग सरकार तसलीमा को देश से निकालती है तो यह न केवल भारतीय परंपराओं के प्रतिकूल होगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय पंथनिरपेक्षता की विकृति को भी रेखांकित करेगा।
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एक और मेहरबानी

भारत की सरकार ने एक और मुस्लीम तुष्टीकरण के लिये एक नया मसौदा तैयार किया है। जिसमें अल्पसंख्यकों को पढा़ई के लिये छात्रवृत्ति मीलेगा। सरकार द्वारा उठाये जा रहे नासमझी भरा कदम इस देश को आज नही तो कल एक और घाव देकर ही दम लेगी। पहले से ही हिन्दुस्तान 64 टुकरा में बिखर चुका है आने बाला समय में जल्द ये 1-2 में और टुकरा में बट जायेगा।
मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने अल्पसंख्यकों के बच्चों के लिए दसवीं तक की पढ़ाई में मदद के लिए बुधवार को एक छात्रवृत्ति योजना को मंजूरी दी।

यह योजना सभी राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों के लिए है और ११वीं पंचवर्षीय योजना में इस पर १८६८ करोड़ ५० लाख रुपये खर्च किये जाएंगे। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय समिति के इस निर्णय की जानकारी देते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने बताया कि योजना में ४६०.१० करोड़ रुपये राज्य सरकारें देंगी। केन्द्र शासित क्षेत्रों के लिए पूरा पैसा केन्द्र सरकार देगी। यह योजना इसी वित्तीय वर्ष में शुरू की जानी है और २००७-१२ के दौरान कुल २५ लाख छात्रवृत्ति देने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें पहले से दसवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं का सरकारी और निजी दोनों प्रकार के स्कूलों के लिए वजीफा दिया जाएगा। ३० प्रतिशत छावृत्ति बालिकाओं के लिए होगी और उनकी संख्या कम होने पर उसका लाभ बालकों को दिया जा सकेगा। इसमें प्रति माह शिक्षण शुल्क पर ३५० रुपये की सीमा होगी। पांचवीं से ऊपर के बच्चों के लिए ६०० रपये माह तक छात्रावास का खर्चा दिया जा सकता है। पहली से पांचवीं तक के बच्चों के लिए १०० रुपये प्रति माह तक की सहायता दी जा सकेगी। पांचवीं से ऊपर की कक्षाओं के लिए ५०० रुपये तक प्रवेश शुल्क की मदद भी दी जाएगी। मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने बांधों को बचाने की योजना ११ वीं पंचवर्षीय योजना में भी जारी रखने और इसके लिए ६०० करोड़ रुपये की राशि आवंटित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी।

क्या हिन्दु में गरीब बच्चे नही हैं जो गरीबी के चलते अपना पढाई छोर चुके हैं या आगे भी अपना शिक्षा जारी रख कर इस देश का नाम रौशन करना चाहते हैं। सरकार पहले से ही अल्पसंख्यकों पर मेहरबान है कभी ये धर्म आधारीत नैकरी देने का पेशकश करता है तो कभी आरक्षण का। इस देश में रहने बाले बहुसंख्यक हिन्दु का क्या कसुर है जो सरकार इनकी ओर ध्यान नही दे रही है। आज भी भारी संख्या में किसान आत्महत्या करने पर मजबुर है लेकिन वे हिन्दु हैं इसके लिये सरकार अभी तक उनकी ओर ध्यान नही दे रहा है लेकिन एक मुस्लमान आंतकवाद के आरोप में पकरा जाता है तो हमारे प्रधानमंत्री जी को रात भर नीन्द नही आती है।

आखीर क्या मिला उन्हें और उनके बच्चों को जो इस देश की आजादी के लिये अपना जान तक गंवा दिये। उनके बारे में सरकार कभी मेहरबान नही होती है। इस देश पर चारो तरफ से हमला हो रहा है चाहे आंतकवादियों के द्वारा हो या नक्सलियों के द्वारा सरकार तो कभी नही सोची की इनके नाक में भी नकेल कसा जाये और तो और सरकार इन्हें सुरक्षा देने के लिये आंतकवाद रोधक कानुन भी हटा लिया जिससे आंतकवाद और अपना पांव पसार सके। जरुरी है हमें इस सरकार को दुबारा इस देश की गद्दी पर कभी भी काबीज ना होने देना चाहिये और ये तुष्टिकरण की नीति जीतना जल्द हो सके बन्द हो जाये।
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भारत का अपमान

ऑस्ट्रेलिया में हरभजन सिंह को लेकर पूरा भारत में तुफान खड़ा हो गया। लगभग सभी जगह से खबर आया की कोई साइमन्डस का पुतला फूका तो कोई आइ.सी.सी. को गाली दे रहे थे क्यो ना हो आखिर सवाल भारत की इज्जत का था। कुछ ने तो कहा भारतीय खिलाडी़ को वापस आ जाना चाहिये। आखिर क्यों ना वापस आ जाये सवाल भारत की संम्प्रभुता था।
लेकिन ठीक उसी समय भारत की धरती पर ही भारत का अपमान हो रहा था। यह अपमान 24 घंटे चलने वाला खबरिया चैनल वालो के द्वारा हो रहा था। लेकिन किसी ने पूतला नही, जलाया कही बन्द नही, किसी के कान पर जू तक नही रेंगा। कुछ हिन्दु युवको को अगर छोड़ दिया जाये तो इस अपमान के लिये किसी ने एक शब्द नही कहा।
जब सारा हिन्दुस्तान की गली गली में घुम-घुम कर भारत रत्न ढुंढ रहा था। उसी समय एक समाचार चैनल वालों ने हिन्दु देवि-देवता और भारत माता की नग्न चित्र बनाने वाले एम.एफ.हुसैन का नाम भारत रत्न के प्रबल दावेदार के रुप में रखा। और तो और हिन्दुओं के गाल में तमाचा मारते हुये भारत में रहने बाले 85% जनसख्या वाले हिन्दु को ही कहा गया एस.एम.एस. के जरिये एम.एफ.हुसैन को भारत रत्न चुने। उस चैनल का कदम उसके लिये काफी भारी पड़ गया जब कुछ हिन्दु अस्तित्व के रक्षक उस चैनल के दफ्तर पर धावा बोल दिया और तोड़-फोड़ की। मगर एक सवाल यहां यह उत्पन्न होता है कि उस चैनल को ऎसा क्या महसूस हुआ कि हूसैन को भारत रत्न मिलना चाहिये। भारत के उत्थान में उसका क्या योगदान है, यह किसी भारतीय से छुपा नही है। हिंन्दुओं के देवी-देवताओं के आपत्तिजनक चित्र बनाकर सस्ती लोकप्रियता बटोरने और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों को खुश करने के अलावा उसने किया ही क्या है। अगर ऎसे ही लोगो को पुरस्कार देना है तो फिर सलमान रूशदी या तस्लिमा नसरीन के नाम भी आने चाहिये थे। इस के अलावा करुणानिधि को भी प्रवल दावेदार के रुप मे पेश किया गया था जो हिन्दुओ अराध्य भगवान श्री राम के अस्तित्व को मानने से ही इनकार कर दिया था। अगर समाचार चैनल को लगता है कि जो हिन्दुओं का अपमान करे या उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करे उसे ही भारत रत्न दिया जाना चाहिये तो समाचार चैनल चलाने वालो की बुद्धि पर तरस आता है।
किसी भी विवादस्पद आदमी का नाम भारत रत्न के लिये सुझाना न केवल भारत रत्न का अपमान है बल्कि यह पूरे देश का अपमान है। सूचना प्रसारण मंत्रालर को चाहिये की घटीया मानसिकता वालो के द्वारा समाचार चैनल को तुरन्त बन्द करे और भारत की जनता से माफी मांगे।
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क्या यही गणतंत्र है?

पहले राजतंत्र था लेकीन अब गणतंत्र है। क्या बदला है सिर्फ राज से गण और कुछ नही आज भी वही समाज और वही तंत्र। आज हम अपना 58 वें गणतंत्र दिवस मना रहे हैं और जिस तरह का गणतंत्र आज है हमारे संविधान रचियता ने भी नही सोचा होगा इस देश का इस देश को खोखला करने बाले तंत्र भी अपना ताकत बढाते जायेगें। आज हिन्दुस्तान कीस रास्ते पर चल रहा है इसका गणतंत्र कीतना मजबुत हो रहा है चिंतन का विषय है।
आज इस देश में नौकरी के लिये योग्ता नही धर्म, जाति और मजहब सर्वोपरी है। कभी-कभी ये योगता भी कम पर जाती है जब हिन्दुस्तान के किसी और कोने के आदमी हिन्दुस्तान के ही जम्मु काश्मीर में नौकरी नहीं कर सकता है। आखीर क्यों हमारे देश के कर्णधार इस विषय में क्या कर रहैं हैं। नारी को इस देश में देवी कहा जाता है लेकिन दहेज के नाम पर नारी की हत्या आम बात है और दहेज के नाम पर ब्लैकमेलिंग भी धरल्ले से हो रहा है सविंधान में इस विषय में क्या लिखा है आम जनता शायद ही जानता हो। सेक्स की पढाई लागु करने पर उतारु गणतंत्र के रक्षक कभी संविधान की पढाई के बारे में सोचे भी नही होगें।
हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा आदमी खेती पर निर्भार है और सबसे ज्यादा आत्महत्या भी किसान ही कर रहें हैं क्या कारण है| कृषि प्रधान इस देश में कृषि की पढाई के लिये संस्था के नाम सिर्फ 26 महविद्यालय है। हिन्दुस्तान 2015 में दुनिया के सबसे ज्यादा दवा उत्पादक राष्ट्र के रुप मे उभर कर सामने आयेगा। अभी भी दवा का उत्पादन हिन्दुस्तान में ज्यादा मात्रा में होता है और उसके समानान्तर नकली दवा का कारोबार करने बाले भी निर्भीक हो कर अपना धंधा कर रहे हैं। फिर भी करोड़ों नवजात शिशु और गर्भवती माताएं कुपोषण की शिकार है। नकली दवा के साथ साथ मानव अंग का भी व्यापार भी हिन्दुस्तान में फल फुल रहा है शायद रोकने बाला कोई नही है यहा।
अपनी जान की बाजी लगा कर देश के दुश्मन से लड़ने वाले फैजी अपना पदक लौटा रहें है कारण एक आंतकवादी को भी हमारे देश के नेता फांसी नही दे पा रहे हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ने का दंभ भरने बाले क्या इस लडाई में इमान्दारी से फौज का साथ दे रहे हैं क्या शायद नेताओ को अपने देश से ज्यादा 4-5 सीट ज्यादा मीलने की उम्मीद में मुस्लीम तुस्टीकरण ज्यादा हितकारी लगता है। पोटा जैसे आतंकवाद निरोधक कानुन हटा कर आतंकवाद का खात्मा का सपना देखने बाले गणतंत्र का रक्षा कैसे करेगें सोचनीय विषाय है।
संविधान के रक्षकों में होड़ लगा है कौन कितना ज्यादा भ्रष्ट हो सकता है। अगर इन सभी का कोई टेलीविजन चैनल रियलटी सो आयोजित करे तो मुकाबला कडा़ होने का संभावना है और टेलीविजन बाले भी एस.एम.एस. से पैसा कमा सकते है वैसे टेलीविजन समाचार भी इस भ्रष्टाचार मुकाबला में मुकाबला कर सकते है क्योकि ये राजनितीक दल के द्वारा चलाये जा रहे मीडिया चैनल समाज का भाला तो कर नही सके हा ये एक कंलक बन कर रह गया है।
आज विश्व का सबसे बडा़ सविधान रख कर न्याय पालिका किसी को सजा नही दे पा रहा है। कानुन तोड़ने बाले अपराध करने से पहले शायद अपने वकील से मील कर कानुन का मजाक कैसे उराया जाये पता कर लेते हैं रात में किसी लड़की का इज्जत पर हाथ डालते हैं और बस एक दिन ही सजा के हकदार होते हैं कानुन और कानुन के रक्षक कुछ बिगार नही पाते हैं। ये तो छोटे अपराधी हैं और इनका अपराध कानुन की नजर में छोटा नही हैं लेकिन बडे़ अपराधी का सपना भी बडा़ ही रहता है 30-40 अपराध करने के बाद ये खुद गणतंत्र के रक्षक बन जाते हैं और यहा का गण जात-पात धर्म के नाम पर अपराधी नेता को गणतंत्र की रक्षा करने के लिये भेज देता है और इनका तो जैसे लौटरी ही निकल जाता है इनके दोने हाथ में लड्डु आ जाता है।
क्या हम और हमारे ये गणतंत्र के रक्षक इस देश का भला कर रहें हैं। गणतंत्र दिवस को हमारे घर के बच्चे देशभक्ती गीत जब गाते है उस समय भी हमारे दिमाग में जरा सा भी ये विचार नही आता है कि किस परीस्थीती मे इस देश के आजादी मीली थी और कितनों ने अपना घर, परिवार, समाज को त्याग कर एक ही सपना देखा "सरफरोसी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं।" समस्या विशाल है और समाधान के नाम पर सिर्फ तुष्टीकरण।
क्या हम इस गणतंत्र के लायक हैं शायद नही।
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आतंकवाद समस्या समाधान क्या है?

आज हमारा देश आतंकवाद की समस्या से जुझ रहा है और सरकार इस और ध्यान देना नही चाहती है कारण वोट बैंक की राजनीति आंतकवाद निरोधक कानुन को काग्रेस सरकार ने हटा दिया कारण था मुसलिम तुस्टीकरण। आतंकवाद काश्मीर के साथ साथ सारे हिन्दुस्तान को निशाना बना रहा है सरकार अभी तक जगी नही है। हमारे राजनेता को समझना होगा कि आज भारत एक गम्भीर युद्ध के दौर से गुजर रहा है। आंतकवाद भी एक पूर्ण युद्ध है। सिर्फ फर्क यह है कि इसमें दुश्मन की कोई पहचान नही होती एवं उसकी सेनाएँ चिन्हित नही होती है। वह जनता में ही घुला-मिला रहता है, एकाएक प्रकट होता है; आतंकी हमला करता है और जनता में लुप्त हो जाता है। इससे लड़ना आम युद्ध से भी मुश्किल होता है; क्योंकि इस युद्ध का कोई क्षेत्र या जमीन नही होता है।
हम इस युद्ध मे तभी सफल हो पायेंगे, जब हम देशहित को वोट बैंक की राजनीति से उपर रखेंगे। हिन्दुस्तान में अब जरुरी को गया है कि संविधान में संसोधन हो और कानून एवं व्यवस्था का मुद्दा केन्द्र एवं राज्य दोनों की बराबर सहभागिता में रखा जाय। दोनों इसके लिये जिम्मेदार हों। हिन्दुस्तान में अमेरिका की "फेडरल ब्यूरो आँफ इनवेस्टीगेशन" की तर्ज पर केन्द्रीय बल गठित हो, जिसका केन्द्र बिन्दु सिर्फ आतंकवाद हो। हिन्दुस्तान की सुरक्षा के लिये गृहमन्त्रालय से अलग एक 'आन्तरिक सुरक्षा का मन्त्रालय' बनाया जाये जो सीर्फ आतंकवाद पर ही नजर रखें। केन्द्रीय अर्द्धसैनिक बल भी दो धडों में विभाजित किये जायें। एक वह जो सीमा सुरक्षा की देखभाल करे और दूसरा वह, जो आतंकवाद की लडा़ई लड़े। इन दोनों धडो़ के हथियार और प्रशिक्षण भी अलग-अलग हों।
आतंकवाद को सिर्फ कानून और व्यव्स्था की समस्या के रुप में न देखा जाय; वरन एक पूर्ण नागरिक समस्या के रुप में देखा जाय। आतंकवाद के खिलाफ हिन्दुस्तान की सेना को समयब्द्ध तरीके से इस्तेमाल किया जाय। जब हिन्दुस्तानी सेना बुलानी पडे़, तब मानव अधिकारों के उल्लंघन का राग न अलापा जाय; क्योंकि अगर सेना भी असफल हो गयी तो देश चला जायेगा।
विश्व की दूसरी सबसे बड़ी थल सेना रखकर कर हम आतंकवाद की लडा़ई में नंपुसक बनकर नही रह सकते। जो भी हमारे परोसी देश इन आतंकवादियों की मदद कर रहे हैं, उन्हें हमें सख्ती से निपटना होगा कि हम चुप नहीं बैठेंगे, फिर परिणाम चाहे जो भी हो। हमें भी अपनी गुप्तचर संस्थाओं को पाकिस्तान की 'आई.एस.आई.' अमेरिका की 'सी.आई.ए.' और इसरायल की 'मोसाद' की तर्ज पर ढालना होगा। जब हम अपने देश के लिये मरने, मारने और कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जायेंगे, तभी हम आतंकवाद की लडा़ई जीत पायेंगे।
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देश कहा जा रहा है!

देश में भले ही विस्फोट हो जायें या हत्याएँ, हमारे गृहमन्त्री की ओर से कोई बयान नहीं आता। ज्यादा ही जानें जाती हैं, तो कह देते हैं 'पैनिक' होने की जरुरत नहीं। और इस देश की जनता 'पैनिक' होने का अर्थ समझती ही नहीं है।
वैसे भी जाने क्यों जनता ने सदियों से अपनी सुरक्षा पर कभी ध्यान दिया ही नहीं। इतने बडे़ देश को मात्र शादी-ब्याह और पर्व त्योहार का शौक है। सुरक्षा की ओर से जनमानस विमुख रहा है| जब पृथ्वीराज के पूर्व या पश्चात भी बाहरी आक्रमणकर्त्ता आते थे, लोग लूट जाते थे। जैसे वे लुटने की नियति मान बैठे हों, इतनी निष्क्रियता सोच सच से मुँह मोड़ने की प्रथा इसी देश में है।
वैसे भी भारत अग्रेजो को द्वारा 'उपमहाद्वीप' नाम दिया गया है। इसके देश की मान्यता यही है कि यह कई देशों का समूह है; जबकि भारत एक राष्ट्र है। उस पर हमारे कर्त्ताधर्त्ताओं को एक चुनाव के बाद अगले चुनाव की चिन्ता रहती है और वे राष्ट्रा का उच्चारण नहीं करते।
देश का मीडिया अक्सर ही फिल्मी सितारों के शादी-ब्याह, पर्टी व जेल जाने पर ज्यादा ध्यान देता है। मीडियावालों को भी देश की सुरक्षा नहीं दिखती।
जम्मू में तो खूख्वार आतंकवादी जरा-सी बात पर हड़ताल कर देते हैं। सैनिको पर हमला करके उनका जान तक ले लेते हैं यहाँ आतंकवादियों को विशेष सुविधा सरकार देती है देश की सुरक्षा में सेंध लगानेवालों को कोई पुरस्कार देने की सोच रही है, तभी तो कासकर, हसीना पारकर और अफजल जैसे हमलावरों को विशेष दर्जा प्राप्त है।
हमारे सरकार की सक्रियता का इसी उदाहरण से पता चलता है कि मुम्बई लोकल व मालेगाँव इत्यादी विस्फोट के हफ्तों बीत जाने पर एस.टी.एफ. प्रमुख की बडी़ महान खोज का पता चला कि विस्फोट में आर.डी.एक्स. का उपयोग किया गया था। फिर जाँच किधर गयी, पता ही नहीं चलता। गृहमन्त्रालय की सुस्ती कभी नहीं टूटती। हफ्तों गुजर जाते हैं कुत्ते ही सुँघाते रहते हैं और तब तक दुसरा विस्फोट हो जाता है।
कम से कम अमेरिका, जर्मनी, रुस, ब्रिटेन जैसे पश्चिम राष्ट्रो से सीखना चाहिये कि वहाँ कितनी तेजी से आतंकी को दबोचा जाता है। हमारे यहाँ तो इस कदर आँखों मे धूल झोंकी जा रही है कि कब कैसे आतंकी को छोड़ते हैं, पता ही नही चलता। आतंकवाद से झुलस रहे इतने बडे़ राष्ट्र को न आतंक की परवाह है और न असम में हो रही हत्याओं की, न ही नक्सली हत्याओं की। दाउद के गुर्गे मुम्बई में वसूली करें। जमीन खरीदें। अबु सलेम अपनी राजनीतिक पार्टी बना कर हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री बनने का सपना देखे। चीन अपनी सड़कें-बाँध बनाये। नेपाल हमारी जमीन दबा ले। बांग्लादेशी घुसपैठीये मुम्बई तक घुस आयें इनके हिन्दुस्तानी आका वोटीग कार्ड और राशन कार्ड बनाकर दे और हमारी सरकार आतंकी की माफी देने में चिन्तामग्न रहे। सरकार आतंक निरोधी कानून का विरोध करे। उन कानून को हटा दे। ऎसा तो इसी देश में हो सकता है। नेताओ के गलतियाँ से जनता को कोई लेना देना नही है वह तो अपनी मस्ती में मस्त है। सरकार तो क्या बुद्धिजीवी भी अपने इनामों से खुश हैं। इस देश में भी कोई 'कोंडिलिजा राईज' होनी चाहिए । आई.एस.आई. सिर्फ नकली नोट द्वारा ही नहीं, आग की जलती तीली से भी सब कुछ खाक किये जा रहा है और जो इस ओर अबाज उढाता है उसे साम्प्रदायिक काहा जाता है। सोचो ये देश कहा जा रहा है।
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बांग्लादेशी घुसपैठ : देशद्रोहि नेता हैं गुनाहगार

धर्म और राजनीति इस्लाम रुपी सिक्के के दो पहलू हैं। यह कथन आज भी उतना ही सही है जितना पहले था। अत: यदि बांग्लादेशी मुसलमान अपने धर्मप्रेरित राजनैतिक उद्देश्यों के लिये भारत में घुसपैठ करते हैं, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है; क्योंकि इस्लाम वस्तुत: प्रारम्भ से ही एक राजनैतिक आन्दोलन रहा है।
हिन्दुस्तान में बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ कोई नयी बात नही है। यह एक दुरगामी राजनैतिक षड्य्न्त्र का अंग है, जिसका लम्बा इतिहास है। हिन्दुस्तान में बांग्लादेशी मुसलमानों का आसानी से लगातार घुसपैठ होते रहने का मुख्य कारण हिन्दुस्तान-बाग्लादेश की 4096 की.मी. लम्बी साझी सीमा है, जिसमें से 2217 कि.मी. पश्चिम बंगाल के दस जिलों को, 262 कि.मी. असम के 3 जिलों, 443, कि.मी. मेघालय के 5 जिलों, 858 कि.मी. त्रिपुरा और 318 कि.मी. मिजोरम के 3-3 जिलों को प्रभावित करती है।
हिन्दुस्तान सरकार के बोर्डर मैनेजमेण्ट टास्क फोर्स की वर्ष कि 2000 रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार हिन्दुस्तान में बांग्लादेशी मुसलमानों घुसपैठीयों की संख्या इस प्रकार है : पश्चिम बंगाल 54 लाख, असम 40 लाख, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि में 5-5 लाख से ज्यादा दिल्ली में 3 लाख हैं; मगर वर्त्तमान आकलनों के अनुसार हिन्दुस्तान में करीब 3 करोड़ बांग्लादेशी मुसलमानों घुसपैठिए हैं।
इस घुसपैठ मे हिन्दुस्तान के देशद्रोहियों का पूरा सहयोग एवं खुला समर्थन प्राप्त है। काग्रेस ने प्रारम्भ से ही नहीं की, उसे खुला बढावा दिया। सबसे पहले 1950 में नेहरु-लियाकत अली पैक्ट के अन्तर्गत 31.12-1950 तक हिन्दुस्तान में बसे बांग्लादेशी मुस्लमानों को यहाँ का नागरिक मान लिया। इसी प्रकार 1972 में इन्दिरा-मुजीब पैक्ट के अन्तर्गत जो भी बांग्लादेशी मुस्लमान 25 मार्च, 1971 तक हिन्दुस्तान में आया उसे विधिवत बसने दिया गया। हालाँकि आज सुप्रीम कोर्ट ने घुसपैठ रोकने एवं गैर कानूनी घुसपैठयों को निकालने के आदेश दिये हैं; मगर काग्रेस, सी.पी.एम. और इनके पीछल्लग्गु राजनैतिक दल किसी न किसी प्रकार इन आदेशों की उपेक्षा कर रहा हैं, इन घुसपैठयों को हिन्दुस्तान में रहने का जरुरी इन्तजाम, राशन कार्ड, वोटीग कार्ड भी बनवा कर दे रहा है। जिसके फलस्वरुप बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठीया इन्हें अपना वोट देकर चुनाव में इनके प्रत्यासी को जिताते भी हैं।
बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठीया इस्लाम के सच्चे सिपाही हैं। वे शेष हिन्दुस्तान को मुस्लीम बहुल कर इसे इस्लामी राज्य बनाना चाहते हैं, ताकि यहाँ के हिन्दु धर्म को समाप्त किया जा सके; क्योकि इस्लाम विश्व भर अन्य धर्म के समाप्त कर केवल इस्लाम को हि देखना चाहता है। हिन्दुस्तान के सरकार ने भी माना है कि "हिन्दुस्तान में बांग्लादेशी घुसपैठ के लिये धार्मीक और आर्थिक कारणों सहित अनेक कारण हैं"।

जहाँगीर खाँ के मुगलस्तान रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बांग्लादेश ने एक नक्शा प्रकाशित किया है, जिसके अनुसार पूर्वि और
पश्चिमी पाकिस्तान के बीच हिन्दुस्तान क्षेत्र में घुसपैठ आदि के द्वारा एवं मुस्लीम जन्संख्या बढाकर इसे एक नया इस्लामी राज्य बना देना है। इसमें पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, कश्मीर, उत्तराखण्ड, दिल्ली, हरियाणा और मध्य प्रदेश के क्षेत्र को सम्मिलित करने कि योजना है। इसलिये इन उपर्युक्त क्षेत्रो में बांग्लादेशी मुसलमानों का घुसपैठ प्रमुखता से है।
बंगाल के गवर्नर टी.वी. राजेश्वर (18.3.96) एवं असम के गवर्नर एस. के. सिन्हा (1998) और अजय सिंह (15.5.2005) अपनी रिपोर्टं में घुसपैठ से उत्पन्न राजनैतिक समस्याओं एवं हिन्दुस्तान की सुरक्षा की ओर ध्यान आकर्षित किया था; मगर मुस्लिम वोट बैंक ने इन देशद्रोही गतिविधियों को भी उपेक्षित कर दिया। जबकि वास्तव में बांग्लादेशी घुसपैठ को, पार्टी हित से उपर उठकर, राष्ट्र की सुरक्षा एवं अखण्डता की् दृष्टि से सोचना और इस देशद्रोही गतिविधियों को समाप्त करने में हि हिन्दुस्तान का हित है।
पाकिस्तान में विदेशियों को घुसपैठ की 2 से 10 साल की सजा है। सऊदी अरेबिया ने 1994-1995 में एक लाख घुसपैठियों को निकाला जिसमें 27588 बांग्लादेशी मुस्लमान थे स्वयं बांग्लादेश ने 1,92,274 रोहिंगा वर्मी को अपने देश से निकाल बाहर किया फिर हिन्दुस्तान में रह रहे बांग्लादेशी को क्यों नही निकाला जा सकता। क्या मुस्लीम वोट बैंक राष्ट्रीय सुरक्षा से भी अधिक आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है? यदि हाँ ! तो ऎसे देशद्रोहियों का वर्चस्व एवं राजनैतिक अस्तित्व मिटाना ही देश हित में होगा। इसमे लिये हमें एक जुटता दिखानी होगी और आपस की वैर भावना को छोर कर देश हित में काम करना होगा।
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नेपाली माओवादि देश के लिये खतरा

माओवादि हिन्दुस्तान के लिय पहले से खतरा बना था अब नेपाली माओवादि भी हिन्दुस्तानी माओवादियो के साथ मिल कर हिन्दुस्तान की सरकार के लिये नया मुसीबत लेकर आ रहा है। हिन्दुस्तान की सरकार को इस दिशा में सार्थक कदम उठाने कि जरुरत है।
उत्तराखंड और नेपाल सीमा से सटे उत्तराखंड के चंपावत जिले के सीमा में माओवादियों की घुसपैठ और हिन्दुस्तान के खिलाफ नारेबाजी और नेपाल का झण्डा फहराना कर चले गये और सरकार के अधिकारी देखते रह गये। नेपाल के माओवादियों का कहना है कि आधा उत्तराखंड तथा आधा उत्तर प्रदेश को नेपाल का हिस्सा है और हिन्दुस्तान कि सरकार को ये हिस्सा नेपाल को लौटा देना चाहिये। सरकार ने इस ओर ध्यान तो नही दिया लेकिन सामाजिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एवम् हिन्दू जागरण मंच नामक सामाजिक संगठन ने विरोध प्रगट करके माओवादियो को हिन्दुस्तान कि सीमा से बाहर भगाया। नेपाली माओवादि जान बुझ कर इस तरह का उटपटाग मांग हिन्दुस्तान कि सरकार के सामने रख रहा है क्योकि माओवादियों के पास करने को कुछ है रहता है नही हमेसा से भोली भाली जनता को झुठ और फरेव का सपना दिखा कर अपना उल्लु सीधा करते रहता है। सरकार को माओवादियो से कठोरता से निपटने कि जरुरत है लेकिन सरकार अपना राजधर्म को भुल कर कुर्सी के लिये इस ओर ध्यान नही दे रही है और जब माओवादि अपना रौद्र रूप अख्तियार कर लेंगे तब जाकर सरकार का नींद से जगेगी।
सरकार को कुमाऊं क्षेत्र में पहले ही माओवादियों की घुसपैठ के प्रति आगाह किया जाता रहा है। माओवादियों ने न केवल घुसपैठ की अपितु कई क्षेत्रों में अपने ठिकाने भी बना लिये हैं।सरकार को चाहिए कि वह बिना किसी तरह का विलंब किये नेपाल से लगी उत्तरांचल की सीमा पर चौकसी बढ़ा दे। माओवादियों की अवैध घुसपैठ पर कड़ी बंदिश लगाये और अगर जरूरत पड़े तो इसमें केन्द्र सरकार से भी मदद ली जाये। सरकार को यह बात भलीभांति समझ लेनी चाहिए कि इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही बेहद घातक साबित हो सकती है। इसके पहले कि माओवाद उत्तराखंड में गतिविधियों को अंजाम दें, इसके लिए समुचित कदम उठाने जरूरी हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एवम् हिन्दू जागरण मंच नामक सामाजिक संगठन धन्यवाद देना चाहिये जो हिन्दुस्तान कि रक्षा और सम्मान के लिये आगे आये हैं।
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बेनजीर भारत-पाक संबंध कब सुधारना चाहती थी

अंतिम समय में भी भारत को सबक सिखाने की चाहत रखने बाली बेनजीर भुट्टो को मार डाला गया। सभी ने इस कार्य की भर्तसना की लेकीन हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जैसा बयान दिया उसे हास्यपद कहना चाहीये या हिन्दुस्तान में रह रहे मुस्लमान की चाटुकारीता। हास्यपद तो नही कहा जा सकता है क्योकि श्री मनमोहन सिंह जी विद्वान और समझदार व्यक्ति हैं इसमें कोई शक नही। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अनुसार वह हमारे उपमहाद्वीप की प्रमुख नेता थीं, जिन्होंने भारत-पाक संबंधों को सुधारने का प्रयास किया।
क्या कोई बता सकता है कि बेनजीर भुट्टो हिन्दुस्तान के साथ संबंध कब सुधारना चाहा। क्या ये सच्च नही है कि कश्मीर में आंतकवाद को सबसे ज्याद संरक्षण दिया वो बेनजीर भुट्टो ही थी। काश्मीरी पंडीतों को काश्मीर से भागाने में सबसे ज्यादा हाथ हिन्दुस्तान के शासको के बाद बेनजीर भुट्टो का है शायद हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री भुल गये। बेनजीर भुट्टो अपने शासन काल आतंकियों को काश्मीर में आंतक फैलाने के लिये खुली छुट दे रखी थी। बेनजीर भुट्टो आंतक फैलाने के साथ साथ काश्मीर में रह रहे जनता को भी बरगलाती रहती थी और भारतीय प्रशासनीक अधीकारी के बारे मे अनरगल बयान बाजी करके अधीकारीयों की जान की दुश्मन बनी हुई थी।
बेनजीर भुट्टो आणविक युद्ध की बात करके अपने पिता जुल्फिकार भुट्टो की एक हजार वर्ष लंबी लड़ाई को लड़ाती रही। और झुठ का सहारा लेकर विश्व समुदाय को धोखा में रखा बेनजीर भुट्टो के अनुसार कश्मीर घाटी का जो मुसलिम बाहुल्य क्षेत्र है वहां हिंदू पंडितों ने मुसलमानों का शोषण किया। उन्हे डराया,धमकाया और आज उन्हे हम उनका हक दिला रहे है। इस तरह कश्मीर पाकिस्तान के साथ होना चाहिए। आज उन्हे हम उनका हक दिला रहे है। इस तरह कश्मीर पाकिस्तान के साथ होना चाहिए। अगर काश्मीर पंडित मुसलमानो का शोषण किया होता तो मुसलमानो को काश्मीर से भागना चाहिये था ना कि काश्मीरी पंडित को बेनजीर भुट्टो का झुठ इसी बात से पता चलता है।
आज बेनजीर भुट्टो इस दुनीया मे नही रही लेकीन उनके द्वारा दिया गया घाव अब हिन्दुस्तान के लिये नासुर बन गया है और हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री का बयान हिन्दुस्तान के देशभक्त के गले से नीचे नही उतर पा रहा है। हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री को बेनजीर भुट्टो का किया गया काम इतना पंसन्द है तो हिन्दुस्तान में एक सप्ताह का रष्ट्रीय शोक का एलान करके हिन्दुस्तानी झंडा को छुका देना चाहिये।
कही हिदुस्तान के प्रधानमंत्री बेनजीर के बहाने हिन्दुस्तान मे रह रहे मुस्लमान की चाटुकारीता तो नही कर रहे हैं जैसा कि हिन्दुस्तानी नेता अपने देश कि सम्प्रभुता को ताक पर रख कर हमेसा से करते आये हैं प्रधानमंत्री को बयान देने से पहले सोच लेना चाहिये कि उनकी कोई बात हिन्दुस्तान के बहुसख्यक को चोट ना पहुचाये। यही मुस्लीम तुष्टीकरण काग्रेस का कही हार का कारण ना बन जाये।
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हत्यारे को सुरक्षा

क्रिसमस डे के दिन जब सारा विश्व इसकी खुशियों में डूबा था उस उड़ीसा में चर्च सर्मथक हिन्दुओ के धार्मीक गुरु श्री लक्ष्मणानंद सरस्वती को जान से मारने की कोशीश कर रहा था। इस आक्रमण में स्वयं सन्त लक्ष्मणानन्द सरस्वती और उनका वाहन चालक घायल हो गया जिन्हें कटक के अस्पताल में भर्ती कराया गया। श्री लक्ष्मणानंद सरस्वती वह व्यक्ति हैं जो उड़ीसा में चल रहे धर्मान्तरण का विरोध कई वर्षो से आवज उठाते आ रहे हैं। उनपर हमले का साफ मतलब हो सकता है इस पूरे मामले में चर्च और इससे जुड़े लोग उनके अभियान से खफा हैं और उनके मकसद में कहीं न कहीं बाधा पहुंच रही थी। बहरहाल, जो भी हो लेकिन उड़ीसा से अक्सर चर्चों द्वारा धर्मान्तरण कराने का मसला आता रहता है। अब चर्च का इतना हिम्मत बढ गया है कि खुले आम वो किसी भी धर्मगुरु को बीच रास्ते पर जानलेवा हमला कर सकते हैं तो यो आम आदमी का ये क्या हाल कर सकते हैं। इसका कारण सोनिया गाँधी का ईसाइ मूल का होना और धर्मान्तरण करने वाले और चर्च को आरोपियों को खुला राजनीतिक प्रश्रय का दिया जाना है। ईसाइयों के द्वारा कानून का खुलकर माखौल उडाया जाता है। प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं लेकिन चर्चों से गुप्त रूप से किसी भी खास पार्टी के लिए एकतरह से फतवा जारी होता है। ज्यादातर फायदा कांग्रेस के मोर्चे यूडीएफ यानी संयुक्त जनतांत्रिक मोर्चा को मिलता आया है। लेकिन अब इस दौर में वाम मोर्चा भी अब पीछे नहीं रही और इस समुदाय को अपना वोट बैंक बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। चर्च और इससे जुड़े लोग ऐसे ताकतवर के रूप में उभरे हैं कि वहां की राजनीतिक और सामाजिक जीवन में व्यापक बदलाव देखा जा सकता है। भारत में चल चर्च और मिशनरी लाख अपनी सफाई में यह कहते रहे कि वे यहां सिर्फ मानव सेवा के लिए हैं, लेकिन समय-समय पर इनके ऊपर उठती अंगुली से यह बात तो साफ है कि कहीं न कहीं कुछ रहस्य जरूर था जो अब तक पर्दे के अंदर से चल रहा था। लेकीन अब ये खुल कर धर्मान्तरण का खेल खेलते हैं और इनके रास्ते में आने बाले का जान लेने से भी नही चुकते है। हिन्दुस्तान की सरकार कभी कभी नीदं से जागती है और कानून बनाने कि बात करती है लेकिन ये कानून शायद आज तक नही बना और तथाकथीत हिन्दुओ कि पार्टी कहे जाने बाली भारतीय जनता पार्टी के शासन बाले राज्य में अगर कोई नया कानून बनता है तो अल्पशख्यक मानवाधीकार के नाम हाय तौबा मचाने लगते है (इन्हें काश्मीर में अल्पशख्यक हिन्दुओ कि हालत नही दिखता है) और उस कानुन का हाल सोनिया सरकार टाडा और पोटा जैसा बना देती है और भारत के प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह यहा तक कहते है कि ईसाइयों को सुरक्षा मिलनी चहीये। यह हिन्दुस्तान हि है जहा हमलावर को सुरक्षा मिलता है।
ऐसा तो नहीं कि ये मिशनरी भारत में मानव सेवा की आड़ में अपना कोई निजी एजेंडा चला रहे हों। उड़ीसा से ही नहीं बल्कि झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से भी आदिवासी बहुल इलाकों से बराबर यह खबर मिलती रही है कि वहां ये मिशनरी धमातरण जैसे मिशन पर काम कर रहे हैं। ये झुठ फरेव के द्वारा मिशनरी का प्रचार करते है। दिल्ली के आर्कविशप करम मसीही ने 5 जनवरी 99 को दिल्ली में संवादताता सम्मेलन में यह दावा किया था कि भारत में काई विदेशी मिशनरीज कार्यरत नहीं है, भारत सरकार किसी विदेशी को मिशनरी कार्य के लिए वीजा नही देती । उनके दावों की पोल कुछ ही दिनों में उड़ीसा में आस्ट्रेलियाई मिशनरी स्टेन्स और उसके दो पुत्रों की हत्या ने खोल दी कि भारत में विदेशी मिशनी हैं या नहीं । आज भी हजारों की संख्या में विदेशी मिशनी इस देश में कार्यरत है । सचमुच देश के सामने एक शोचनीय प्रश्न है कि धर्मान्तरण के कारण समाज का वातावरण विषैला होता जा रहा है। सरकार को चाहिए इन इलाको में चल रहे इन मिशनरियों के क्रियाकलाप पर नजर रखें और एक विस्तृत रिपोर्ट आम लोगों के समक्ष पेश करें। अगर कहीं ऐसा है तो जल्द से जल्द इन मिशनरियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। धर्मान्तरण पर विराम नहीं लगने से हिन्दुओं के अल्पमत में आने का खतरा बढ गया है।
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