माओवादि हिन्दुस्तान के लिय पहले से खतरा बना था अब नेपाली माओवादि भी हिन्दुस्तानी माओवादियो के साथ मिल कर हिन्दुस्तान की सरकार के लिये नया मुसीबत लेकर आ रहा है। हिन्दुस्तान की सरकार को इस दिशा में सार्थक कदम उठाने कि जरुरत है।
उत्तराखंड और नेपाल सीमा से सटे उत्तराखंड के चंपावत जिले के सीमा में माओवादियों की घुसपैठ और हिन्दुस्तान के खिलाफ नारेबाजी और नेपाल का झण्डा फहराना कर चले गये और सरकार के अधिकारी देखते रह गये। नेपाल के माओवादियों का कहना है कि आधा उत्तराखंड तथा आधा उत्तर प्रदेश को नेपाल का हिस्सा है और हिन्दुस्तान कि सरकार को ये हिस्सा नेपाल को लौटा देना चाहिये। सरकार ने इस ओर ध्यान तो नही दिया लेकिन सामाजिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एवम् हिन्दू जागरण मंच नामक सामाजिक संगठन ने विरोध प्रगट करके माओवादियो को हिन्दुस्तान कि सीमा से बाहर भगाया। नेपाली माओवादि जान बुझ कर इस तरह का उटपटाग मांग हिन्दुस्तान कि सरकार के सामने रख रहा है क्योकि माओवादियों के पास करने को कुछ है रहता है नही हमेसा से भोली भाली जनता को झुठ और फरेव का सपना दिखा कर अपना उल्लु सीधा करते रहता है। सरकार को माओवादियो से कठोरता से निपटने कि जरुरत है लेकिन सरकार अपना राजधर्म को भुल कर कुर्सी के लिये इस ओर ध्यान नही दे रही है और जब माओवादि अपना रौद्र रूप अख्तियार कर लेंगे तब जाकर सरकार का नींद से जगेगी।
सरकार को कुमाऊं क्षेत्र में पहले ही माओवादियों की घुसपैठ के प्रति आगाह किया जाता रहा है। माओवादियों ने न केवल घुसपैठ की अपितु कई क्षेत्रों में अपने ठिकाने भी बना लिये हैं।सरकार को चाहिए कि वह बिना किसी तरह का विलंब किये नेपाल से लगी उत्तरांचल की सीमा पर चौकसी बढ़ा दे। माओवादियों की अवैध घुसपैठ पर कड़ी बंदिश लगाये और अगर जरूरत पड़े तो इसमें केन्द्र सरकार से भी मदद ली जाये। सरकार को यह बात भलीभांति समझ लेनी चाहिए कि इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही बेहद घातक साबित हो सकती है। इसके पहले कि माओवाद उत्तराखंड में गतिविधियों को अंजाम दें, इसके लिए समुचित कदम उठाने जरूरी हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एवम् हिन्दू जागरण मंच नामक सामाजिक संगठन धन्यवाद देना चाहिये जो हिन्दुस्तान कि रक्षा और सम्मान के लिये आगे आये हैं।
2 comments: on "नेपाली माओवादि देश के लिये खतरा"
आपके विचारो से सहमत हूँ यह बड़ा गंभीर मसला है
मैं आपके विचारोंसे सहमत हू. लेकीन अपनी कुर्सीके फिकर में रहनवाली केंद्र सरकार इसकी तरफ कब देखेगी?
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