रामायण जैसे पवित्र ग्रंथ में जब राम ने रावण को परास्त कर दिया था तब राम ने लक्ष्मण को रावण के पास ज्ञान लेने के लिए भेजा था। लक्ष्मण ने रावण से ज्ञान देने के लिए आग्रह तो किया लेकिन मरे मन से। लेकिन फिर भी रावण ने लक्ष्मण को ज्ञान दिया। साथ ही रावण ने एक बात और भी कही कि हे राम! इस धरती पर जब भी कोई तुम्हारा नाम लेगा तो उसका विषय मेरे नाम लिये बिना खत्म नहीं होगा। ऐसा ही होता भी है, कोई भी मनुष्य जब राम का जिक्र करता है तो वह रावण का नाम भी अवश्य ही लेता है। कहने का आशय रावण ने सतयुग के दौर में भले ही अपनी शक्तियों के बल पर तीनों लोकों में हाहाकार क्यों ना मचाया हो लेकिन उसके सरीखा विद्वान ब्राह्मण आज तक मनुष्य जाति में नहीं हुआ। अपने उसी ज्ञान के चलते कई स्थानों में रावण का मंदिर भी स्थापित भी है। लेकिन आज के समाज में कई स्थितियां बदल चुकी हैं, जहां एक ओर सतयुग से कलयुग हो चुका है तो वहीं आज राम का पता ही नहीं है सभी स्थानों पर रावण ही रावण नजर आते हैं। विशेष बात तो यह है कि उनके लिए रावण का नाम इस्तेमाल किया जाता है वह असली रावण भी नहीं है। क्योंकि रावण जो पाप कर रहा था उसके विषय में वह भली भांति जानता भी था। लेकिन जैसे भी हो आज समाज में कई प्रकार के रावण मौजूद हैं। जो समाज को लगातार खोखला कर रहे हैं। लेकिन आज सोचने की बात यह है कि उस दौर में रावण को समाप्त करने के उद्देश्य से उतरे राम कहीं नहीं दिख रहे हैं। ना ही दूर तक किन्हीं मर्यादा पुरुषोत्तम के आने की कोई उम्मीद नहीं है। क्या इस परिप्रेक्ष्य में जिस दशहरे को मनाने की तैयारी हम कर रहे हैं उसे उचित कहा जा सकता है? यह अपने आप में सोचने का प्रश्न है कि हम लगातार रावण पर रावण जला रहे हैं लेकिन ना तो हमने कभी राम के गुणों को अपनाने की कोशिश की और ना ही कभी रावण के अवगुणों को त्यागने की।
लगातार विकास की सीढ़ियां चढ़ता मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के देश में आज दशमुखी नहीं वरन बहुमुखी रावण सामने आ रहे हैं। गौर करें तो तो दस ऐसी समस्यायें हैं जो रावण बने हमारे सामने हैं। जिसमें प्रमुख तौर पर मुस्लीम आतंकवाद, भ्रष्टाचार, साम्राज्यवाद, लालफीताशाही, अपराधीकरण, बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी, मुस्लीम साम्प्रदायिकता, सामाजिक शोषण ( बाल श्रम, महिला, निम्न वर्ग) जैसे दस रावण हमारे सामने हैं, जो हमारे समाज पर अपनी अलग-अलग समस्यायें छोड़ रहे हैं। यदि विस्तृत तौर पर इन समस्याओं का प्रभाव देखें तो वह बड़ा ही व्यापक है।
सर्वप्रथम यदि आतंकवाद की बात करें इस समस्या ने आज समूचे विश्व को अपने पाश में कैद कर लिया है। यूरोप से लेकर एशिया तक आज यह समस्या वृहद आकार ले चुकी है। वर्तमान उदाहरण ले लें तो लुधियाना के श्रृगांर सिनेमा में हुआ धमाका। इस समस्या ने निश्चित ही आज देश में सोचने पर मजबूर कर दिया है।वहीं दूसरे स्थान पर भ्रष्टाचार अपना स्थान रखता है। आज यह हमारी व्यवस्थाओं पर घुन की तरह लग चुका है। सभी इसके दायरे में आ चुकी हैं। नगर पालिकाओं से लेकर संसद तक में ये घुन पहुंच चुके हैं। आम आदमी इससे त्रस्त है। आज की तिथि में कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो बिना इन घुनों को चारा दिये संपन्न हो सके। इस रावण ने भी देश में पाप का साम्राज्य फैलाया हुआ है। इसके बाद आती है साम्राज्यवाद की समस्या। अपनी नीतियों के माध्यम से दूसरे देशों पर राज करने का नाम आज साम्राज्यवाद बन चुका है। कभी किसी दौर में इससे लड़ने वाला अमेरिका आज स्वयं एक साम्राज्यवादी ताकत ब चुका है। उसकी कोशिश यही है कि जो वह कर रहा है बस वही करे और कोई ना। विशेष तौर पर अब वह आथिक नीतियों के रुप में हो या सामरिक नीतियों के रुप में। वाम दलों के अनुसार भारत पर यह समस्या परमाणु करार के उपहार स्वरूप आ रही है। जिसे ना लेना ही बेहतर होगा। उसी पर विवाद चल रहा है।
समाज में जो रावण के चौथे मुख के रूप में मौजूद है वह है लालफीताशाही। हमारे सभी नौकरशाहों पर जिन आकाओं के हाथ के चलते आज वह महज पैसे वालों के होकर रह गये हैं। आम आदमी उनके लिए कुछ मायने नहीं रखता। जो पैसे दिखाता है उसी की फाइल आगे बढ़ती है। राम का देश आज इस समस्या से बूरी तरह से जूझ रहा है। यही नहीं रावण का पांचवा मुंह आज समाज में अपराधिकरण का है। यह वही राम का देश है जहां किसी दौर में घर में ताले नहीं लगते थे लेकिन आज ताले तोड़ना तो दूर घर में घुसकर हत्यायें हो रही हैं। अपराध का स्तर लगातार बढ़ रहा है।रावण का छठा मुंह ताने बेरोजगारी हमारे सामने है। पढ़े लिखे नौजवान आज बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हैं। बेरोजगारी का आलम क्या है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज ग्रामीण भारत का ५० फीसदी से ज्यादा युवा शहरों की ओर पलायन कर चुका है। लेकिन रोजगार रूपी राम अभी भी बहुत दूर लगते हैं।यही नहीं इस देश का सातवां रावण आज गरीबी है। जिसका प्रभाव महानगरों से लेकर ग्रामीण भारत तक स्पष्ट दिखाई देता है। एक अरब की जनसंख्या में यदि आंकड़ों की बात करें तो २६ करोड़ से ज्यादा हिंदुस्तानी आज गरीबी रेखा से नीचे का जीवन व्यापन करने को मजबूर हैं।सातवां मुंह ताने मुस्लीम साम्प्रदायिकता का रावण हमे गाहे-बगाहे परेशान करता ही रहता है। आजादी के मुस्लीम प्रायोजित दगा हो या गोधरा मे जलाये गये राम भक्त सभी में हमें अपने ही भाई-बहनो को खोना पड़ा है। लेकिन ऐसा नहीं है कि इतिहास की इतनी भयावहताओं के बाद भी हम संभल रहे हों। मुस्लीम कठमूल्ले आज भी हमारे समाज में मौजूद हैं। जो समय-समय पर धार्मिक मान्यताओं को भड़का कर तनाव फैलाने की कोशिश करते हैं। सामाजिक शोषण रूपी दशवा रावण जो एक साथ कई समस्यायों को लिए हुए है हमारे बीच में मौजूद है। बाल श्रम, नारी हिंसा, निम्न वर्ग की बदहाल हाालात सभी अपना मुंह ताने खड़ी हैं। संपूर्ण देश की बात को यदि क्षण भर के लिए भूल जाये और देश की राजधानी की बात करें, तो महिला हिंसा का प्रतिशत यहां लगातार बढ़ता ही जा रहा है। दिल्ली में उस तबके को भी देखा जा सकता है जिसे निम्न वर्ग कहा जाता है। उसकी हालत और भी खराब है। कुल मिलाकर इस देश में हम इस वर्ष भी दशहरा मनाने जा रहे हैं। हर बार की तरह इस बार भी तीन पुतले जलेंगें। यदि हम चाहते हैं कि वास्तव में रावण के दुगुणों को हटायें तो उसके लिए जरुरी है कि हम उस जलते हुए रावण के अपने अंदर के रावण को मारे। क्योंकि अगर इस देश में वास्तव में रावण को जलाना है तो इस बार भी वार नाभि में करना होगा।
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