ईसाइ मिशनरी का नया धंधा सेवा के नाम पर ठगी

ईसाइ मिशनरी इस देश में सेवा के नाम पर ईसाइय द्वारा यहा के भोले-भाले जनता का देशान्तरण कर रही है
इस कार्य में तथा कथित बुद्धीजिवी वर्ग का खुला सर्मथन प्राप्त है। बुद्धीजिवी वर्ग इस ओर से आख बन्द किये हुये हैं
या बुद्धीजिवी वर्ग को पता नही है कि चर्च के नाम पर इस देश में तरह- तरह के धंधे भी चल रहे हैं। चर्च धर्मान्तरण करने के लिये किसी भी हद तक जा सकता है। चर्च के पादरी अब अपने नाम के पीछे स्वामी शब्द का प्रयोग करते हैं जिससे भोले जनता उन्हें भी किसी हिन्दु साधु या धर्म गुरु समझे और वैसे जनता को आसानी से देशान्तरण के खेल में शामिल किया जा सकता है। झारखण्ड के देवघर में एक चर्च है बाहरी आवरण से किसी भी तरह से चर्च नजर नही आता है और नाम भी शिव जी के नाम पर आश्रम का नाम रखा है लेकिन अगर शिव जी के नाम से अगर कोइ अन्दर चला जाये
तो अन्दर घात लगा कर बैढें चर्च के पादरी यैसा झप्पट्टा मारेंगे कि कुछ दिन बाद आप शिव जी को भुल कर कुछ दिन
में शिव जी को गाली देना शुरु कर देता है यैसे आश्रम कि सख्या इस देश में कम नही है। वैसे ये सिर्फ आश्रम का नाम ही नही बदलतें है। ये अपना उजला चोला उतार कर गेरुआ वस्त्र और तुलसी माला और रुद्राक्ष भी धारण कर के अपने आपको हिन्दु धर्मगुरु दिखाने का कोशीश करते है। प्रयागराज इलाहाबाद में यैसा एक चर्च है और उसका पादरी जो गेरुआ चोला और रुद्राक्ष पहन कर नंगा नाच करता है आप कभी भी जा कर इस बहुरुपिये से मिल सकतें है जो हिन्दु धर्म का सहारा ले कर हिन्दुस्थान को कमजोर करने में जुटा है।
मिशनरी के पादरी सिर्फ कपडा़ बदल कर ही धंधा नही करता है ये दिल्ली जैसे माहानगर में सुन्दर और सेक्सी लड़किया भी मैदान में उतार रखा है जो काँलेज के और जवान लड़को को अपने मोहपास में फँसाती है और अपने रुप सैन्दर्य या फिर जरुरी परा तो सेक्स के द्वारा भी ये आपको फसाँने का कोशीश करेंती हैं। यैसी लडंकिया आपको बस, मेट्रो या किसी भी पब्लिक बाले जगह में अपने ग्राहक तालास करती दिख जाती है जो लड़कों को समय आ फिर किसी कालेज का पता पुछने के बाद ये इतनी ज्यादा घुल मिल जाती हैं कि ये 1-2 दिन के अन्दर सिनेमा हाल, माल या पार्क में डेटिग के रुप में मिलतें है ये डेटिग को ये कामोतेजक बनाती है जिससे की नैजवान लड़का कही भी चलने को तैयार हो जाये। फिर 1 सप्ताह उस लड़के सामने धर्म बदलने का प्रस्ताव रख कर फिर ये किसी नये को खोजने के लिये निकल पडती है।
मिशनरी के द्वारा धर्मान्तरण इस देश पर कितना भारी पर रहा है हमें अब अपने आखों से देख लेना चाहिये। नागालैण्ड में मिशनरी ने जब वहा कि जनता का अच्छी तरह धर्मान्तरण कर दिया तो ग्रेटर नागालैण्ड नामक अलग देश का मांग किया जा रहा है और इसके लिये चर्च ने हथियार के साथ तैयारी कर रखी है।
चर्च के पादरी चर्च के परदे के पिछे क्या क्या गुल खिलाते है हम सभी को पता है जैसे नावालिक लडकियों का यौन शोषण, पादरी चर्च में आने बाली लडकियों के साथ अवैध यौन सबन्ध बनाते रहतें है ये बात हम सभी को पता है। लेकिन सेवा के नाम पर चर्च भेले भाले गरीब जो अपने परिवार के रोटी के लिये जी तोड़ मेहनत करके अपने परिवार और बच्चो का पेट पालतें है और उसी पैसा में से कुछ पैसा बचा कर अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिये बचाता है जिस से अपने बच्चों को पढा़ लिखा करे अच्छा इन्सान बना सके यैसे गरीब आदिवासियों के पैसे पर भी इन मिशनरी का नजर पर गया है अभी कुछ दिन पहले रांची के पास दुमका का घटना है गुड सेफर्ड नामक मिशनरी जो आदिवासियों के बीच में नि:शुल्क शिक्षा, रहने के लिये आवास, मुफ्त पुस्तक और भोजन के नाम पर आदिवासी का पंजीयन कराने के नाम पंजीयन शुल्क 1750 रुपये आदिवासियों से लिया गया और जब पंजीयन के द्वारा जब अच्छा खासा पैसा इक्कठा हो गया तो मौका देख कर गुड सेफर्ड मिशनरी आदिवासियों का पैसा ले कर रफुचक्कर हो गया। जब यहा के गरीब परिवार के द्वरा मिशनरी का खोज खबर लिया गया तो पता चला कि उस क्षेत्र के हजारों आदमी का पैसा ले कर गुड सेफर्ड मिशनरी भाग गया। पुलिस ने मिशनरी के पादरी जोसेफ बोदरा के खिलाफ प्राथमिकता दर्ज कर लिया है।
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आतंकवाद और इच्छाशक्ति

आज हिन्दुस्तान में आतंकवादियों की स्थीति काफी मजबूत हो गई है। कट्टरपंथी तबके का यहां बोलबाला हो गया है। यहां सिमी, लश्कर, हिजबुल मुजाहिदीन व हरकत उल जेहादी इस्लामी से जुड़े कई स्थानीय सेल्स हैं जिनका मकसद हर हाल में दहशत फैलाना है। विस्फोटकों और नकली नोटों की बरामदगी से भी साफ है कि आतंकवादी यहां अफरातफरी फैलाना चाहते हैंअब सवाल यह है कि इन्हें चोट पहुंचाने के लिए किया क्या जाए? जाहिर है जिस एक उपाय पर आज लोग सबसे कम ध्यान दे रहे हैं वह है पोटा या टाडा जैसे कानून की जरूरत। ऐसा कानून जो पकड़े गए आतंकवादियों को फांसी या सख्त सजा सुनाए।
लेकिन हकीकत क्या है आतंक का सामना करने की बात जब आती है
तो भारत की तस्वीर एक नपुंसक राष्ट्र के रूप में उभरती है। पुलिस और नेता पुराना राग अलापते हैं लेकिन वास्तव में कोई मौलिक परिवर्तन नहीं होता। कब कहाँ सीरियल बम ब्लास्ट हो जाये किसी को पता नही हम घर से निकलते है घर लैटे या नाही पता नही। आतंकवादी बार-बार मानवाता का चीर-हरण करते रहे हैं। आतंकवादियों के हौसले बुलंद हैं और एक एक करके नए शहर उनके निशाने पर चढ़ते जा रहे हैं और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। स्थितियां भयावह हैं। चिंताजनक बात यह है कि हमारा राजनेता आतंकवादी हमलों को रोकने में तो नाकाम है आतंकवादियों को पकर कर सजा दिलाने में भी उनका आज तक कुछ खास नही कर पायें हैं। 1993 के मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में अभियुक्तों को अंजाम तक पहुंचाने में 14 साल लग गए, संसद भवन के हमलावर अभी तक सरकारी मेहमान बने हैं और सरकार आतकवादियों को बचाने के लिय टालमटोल कर रही है । हमारे तंत्र में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति की कमी सदैव खलती है। और इससे भी खतरनाक है ऐसे तत्वों के बारे में राजनीतिक प्रटेक्शन की मुहैया करतें हैं।
9/11 के बाद आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी कार्रवाई की चौतरफा निंदा भले ही हो रही हो लेकिन दुनिया के सामने आज यह एक सच्चाई है कि 2001 के बाद से अमेरिका की ओर आतंकवादियों ने आंख उठाकर भी नहीं देखा है। कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि आतंकवाद के प्रति अमेरिका के अप्रोच का हम समर्थन कर रहे हैं। लेकिन कब तक हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे और निर्दोष लोगों को आतंकवादियों के हाथों मरते देखते रहेंगे ? अबतो वक्त आ ही गया है कि हम आतंकवाद पर जवाबी हमला बोलें।
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आतंकवादियों को कानूनी मदद चाहिये तैयार है आप

बधाई हो अर्जुन सिंह जी कुछ आतंकवादि और आने बाले हैं जिसका आप कानून के द्वारा बचाव कर सकते हो। दिल्ली में कल सिर्फ एक ही विस्फोट किया गया। और 10-12 आदमी फिर मारे गये। शायद सभी मजदुर थे और सिमी के ब्लाइन्ड सर्पोटर लालू यादव और रामविलास पासवान के गृह राज्य बिहार के रहने वाले थे। मुझे मेरे एक मित्र मुम्बई से फोन करके बताया कि दिल्ली में फिर से विस्फोट हुआ है। जब से मैं सुना टी.वी खोल कर बैठ गया अलग अलग समाचार चैनल पर नजर गडा़ कर देखने लगा कि आज शिवराज पाटिल जी किस तरह का ड्रेस पहन कर आते हैं और देखना चाहता था कि और कितना जगह विस्फोट हुआ है लेकिन भगवान का शुक्र है कि इस बार सिर्फ एक जगह विस्फोट हुआ। धन्यवाद तो सही में सिर्फ भगवान को देना चाहिये जिसके कारण विस्फोट का संख्या कम रहा और आदमी भी कम मरे सरकार तो आतंकवादियों का अभी तक कुछ कर नही सकी । सरकार की तरफ से अभी तक व्यान सुनने को नही मिला। शायद एक धमाका हो इस लिये शिवराज पाटिल जी ने नया कपडा पहन कर कोइ व्यान देना या फिर जरुरी नही समझा होगा क्या एक विस्फोट में व्यान दिया जाय या फिर उनके पास नया कपडा नही होगा जिसको पहन कर मिडीया के सामने आते। वैसे श्री शिवराज पाटिल जी को मिडीया के सामने आने का जरुरत भी नही है क्यों कि उनके द्वरा दिया जाने बाला व्यान लगभग सभी आदमी को याद हो गया होगा। इधर खुश तो श्री अर्जुन सिंह जी भी होगें। पुलिस बाले कुछ आतंकवादियों को जरुर पकरेंगे। और आतंकवादियों को संरक्षण का और कानूनी लडाई लड़ने के जरुरत भी होगा तो आतंकवादियों को कानूनी लडाई लडनें में मानवसंसाधन मंत्रालय किस दिन काम आयेगा आखिर आतंकवादि भी मानव ही होते है और लेकिन मरने बाले क्या होते हैं शायद किसी को पता नही...................................
अब पुलिस बाले क्या करेंगे|पुलिस क्या करेंगे इंस्पेक्टर श्री मोहन चंद्र शर्मा कि तरह अपना जान देकर आतंकवादियों को पकरें या फिर घर में आराम से सोयें। आराम से सोना ज्यादा फायदेंमन्द है। अगर कोई पुलिस आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में मारा गया तो क्या होगा बेचारा गया इस संसार उसका बीबी - बच्चे अनाथ और मुआबजा के लिये सालों सरकारी दफ्तर के चक्कर काटना परेगा वो अलग से। उन्हें ना कोई मुआवजा मिलेगा और ही उनका नाम लेने बाला और तो और पुलिस का कोई मानवाधिकार संघटन भी नही है जो पुलिस बालों के अनाथ भुखे बच्चों को किसी तरह का कोई मदद दिला सकें। अब हमें क्या करना है सोचों।
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काग्रेस आतंकवादियों के नये संरक्षक

काग्रेस गलियारे में एक नया तमाशा देखने को मिल रहा है । बटला हाउस इलाके में 19 सितंबर को आतंकवादियों से मुठभेड़ हुआ था । फैशन मैन श्री शिवराज पाटिल जी ने दुख: से या बेमन में ही सही लेकिनी आतंकवादियोंको सबक सिखाने की बात कह दिये जैसा कि वो करना नही चाहतें है। (कपडा बदलने से फुर्सत मिले तभी तो करेंगे)। लेकिन हमारी तरह मुर्ख जनता को मुह दिखाना है और अभी लगता है एक-दो बार और चुनाव लडना है इस लिये कभी-कभी आतंकवादियों के विरुद्ध बोल देतें है। आतंकवादियों के खिलाफ बोलना या आतकवादिंयो के खिलाफ किसी तरह का कारवाही करना कांग्रेस धर्म के खिलाफ है। इस लिये आतंकवादियों के बचाब में एक मंत्रालय और दो मंत्री बीच में कुद गये। मुस्लिम मानव संसाधन मत्री श्री अर्जुन सिंह जी का मंत्रालय और खुद श्री अर्जुन सिह जी आतंकवादियों के
बचाब में जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के कुलपति मुशीर उल हसन के साथ ताल ठोकते हुये मैदान में कुद गये।


आज हिन्दुस्तान की स्थिती इस कदर खराब हो चुका है कि आतंकवाद से लोहा लेने बाले पुलिस के लिये सरकार के पास पैसा नही और सहानुभूति के दो शब्द नही है और आतंकवाद को सहायता और सर्मथन देने बालों की होड़ लगी हुइ है। जब १९ सितम्बर को दिल्ली के ओखला स्थीत बाटला हाउस में पुलिस तथा राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड आतंकवादियों के छुपने के एक ठिकाने पर छापा मार कर दो आतंकवादियों को मार गिराया और सैफ़ नामक एक आतंकवादी को जीवित गिरफ्तार कर लिया गया जबकि दो आतंकवादी भागने में सफल हो गये थे। शुक्रवार के दिन हई इस मुठभेड़ में स्थानीय मुस्लिम बाहुल्य आबादी में कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस मुठभेड़ को फ़र्जी तथा मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने वाली मुठभेड़ बताने की कोशिशें कर रहे थे जबकि अनेकों मुसलमान व आम दर्शक ऐसे भी थे जिन्होंने इस मुठभेड़ को अपनी आंखों से देखा।
काग्रेस सरकार पहले से आतंकवाद को रोकने का मद्दा दिखाई नही देता था। तर्क वितर्क से द्वारा आतंकवाद निरोधक कानून को हटाया गया और कोई नया कानून नही बनाना आतंकवाद का मौन सर्मथन था। लेकिन काग्रेस सरकार के दो मंत्री अब खुल कर आतंकवाद के सर्मथन में आ गये। और काग्रेस के और किसी नेता और मंत्री द्वारा इस बात का विरोध ना करना भी आतंकवाद का ही सर्मथन माना जायेगा।

अब सरकार को ये बताना होगा कि आतंकवाद के सर्मथन में तो सरकार खडी़ है जो गिरफ्तार किये गये आतंकवादियों का कानूनी सहायता प्रदान करेगी। लेकिन गिरफ्तार किये गये आतंकवादियों के खिलाफ क्या गृहमंत्रालय ईमान्दारी से कानूनी लडा़इ लडे़गा शायद नही। काग्रेस के द्वारा उठाये गये हर एक देश विरोधी गतीविधी आज इस देशा के लिये नासुर बन बैठा है चाहे वो काश्मिर का मामला हो, आतंकवाद तुस्टिकरण, बाग्लादेशी घुसपैठी का मामला। काग्रेस सरकार किसी भी तरह सत्ता में जोंक की तरह चिपकी रहती है और जोंक की ही तरह जिसमें चिपकता है उसी का खुन भी चुसता है काग्रेस का भी यही हाल सत्ता के लिये काग्रेस कीसी भी हद्द तक नीचे गिर सकता है। लेकिन आम जनता चुनाव के वक्त काग्रेस से एक एक बात का हिसाब जानना चाहेगी कि दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा के परिवार को देने के लिये सरकार के पास पैसा नही लेकिन आतंकवादियों को संरक्षण और
बढावा देने के लिये सरकार के पास कहा से इतना पैसा आ जाता है।
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हाय रे ये क्या हो गया नरेन्द्र मोदी बेदाग कैसे बच गया।

गुजरात दंगा में नरेन्द्र मोदी को न्यायमूर्ति जीटी नानावटी और न्यायमूर्ति अक्षय कुमार मेहता जांच आयोग ने क्लीन चिट दे दी है। नानावटी आयोग का कहना है कि 2002 में हुऎ दंगे में नरेन्द्र मोदी का, या उनके किसी मंत्री का, पुलिस का या सरकारी तंत्र का किसी तरह का हाथ नही है साथ में नानावती आयोग का ये भी कहना है कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में जो आग लगी थे वो किसी तरह का कोई दुर्घटना ना हो कर एक सोची समझी साजिश कि तहत मर्द, दुधमुहे बच्चे, औरतों और बुढो़ को जिन्दा आग में जला कर तड़पा - तड़पा कर आग में झोक कर मारा गया। मौलवी उमर और उसके 6 साथी ने इस साजिश को रचा और रजाक कुरकुर और सलीम पानवाला ने 26 फरवरी 2002 को 140 लीटर पेट्रोल खरीदा था और उन्हें कंटेनरों में रखा था। शौकत लालू, इमरान शरी, रफीक, सलीम जर्दा, जबीर और सिराज बाला ट्रेन को जलाने में लिप्त थे।

लेकिन असली बाते तो अब होगी। फिर से कंलक का पिटारा खुलेगा, आतंकवादियों को मारने के एवज में दिया गया नया नाम मौत का सौदागर नरेन्द्र मोदी को फिर नया नाम और इनाम देंगें । काग्रेस, किश्चियन मिडीया और तथाकथित देश के बुद्धिजिवी सेकुलर पंथी जिसने कसम खा रखी है कि इस देश को दुसरा पाकिस्तान बना कर दम लेंगे। उन्हें मुस्लमानों में किसी तरह का कोई गलती दिखता नही है। चाहे वो ट्रेन जलायें या इस देश में बम विस्फोट कर के आम नागरीक का जान लें, आतंकवादियों के सर्मथन में दंगा करें तोड-फोड़ करे सब सही है। वो पाक साफ हैं और सारा गलती हिन्दु करते हैं। गोधरा में ट्रेन में आग लगा कर मासुमों का जान लेने बालों को बचाने के लिये सेकुलर पंथी नें क्या नही किया। अब तर्क, वितर्क और कुतर्क से ये सिद्द करने का कोशीश करेंगे कि ट्रेन में आग अन्दर से लगी ( मतलब एक साथ S-6 और S-7 के आदमी सामूहिक आत्महत्या चलती ट्रेन में कर के विश्व किर्तीमान स्थापित करना चाह रहें होगें)। लेकिन ये बात जमी नही और बुद्दीजिवी वर्ग सेकुलर पंथी को अपने मुह में तमाचा खाने के बाद जब ये न्यायमूर्ति जीटी नानावटी और न्यायमूर्ति अक्षय कुमार मेहता रिपोर्ट के आने के बाद बुद्धिजीवि सेकुलर पंथी ये सिद्ध करने का कोशीश करेगें कि हिन्दुस्तान के न्यायमूर्ति कम अक्ल हैं और उन्हें न्याय देना नही आता है या रिटार्यमेंन्ट के बाद न्यायमूर्तियों को सरकारी पोस्ट चाहिये वैगेरह वैगेरह।

लेकिन जनता मुर्ख नही है हमें सब पता है महीना में
1-2 बम विस्फोट होने के बाद भी आतंकवाद निरोधक कानून नही बना पाये और जो पोटा कानून था उसे हटाने के बाद कहते है पोटा सक्षम कानून नही था। पोटा कानून के बाद भी आतंकवाद की घटना हुई थी। तब तो हिन्दुस्तान हर एक कानून को हटा देना चाहिये क्यों की हत्या, बलात्कार, चोरी, अपहरण का कानून रहते हूऎ भी वौसी घटना हो रही है। तो हटा दो सब कानून । लेकिन इन बुद्धिजीवि सेकुलर पंथी से वहस करने कौन जाये। जब इनके घर में आग लगेगा तभी आग का तपिस मालुम चलेगा।
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चर्च के फादरों के चरित्र

विश्व इतिहास देखें तो मुस्लमान के बाद सबसे ज्यादा धर्म के नाम पर अगर किसी ने खुन बहाया है तो ईसाइयत है इसमें कोई शक नही। ईसाइयत हिन्दुस्तान धर्मातरण के द्वारा राष्ट्रान्तरण करने के लिये सिद्धांत प्रेम, शांति तथा सत्य का छद्म का नकाब पहन रखा हैं किंतु संसार का इतिहास गवाह है ईसाइयत के नाम पर कितनी बार खुन की नदियां बहाई गई। धर्मयुद्ध के नाम पर, उसके पहले और उसके बाद शांति स्थापित करने के लिए ईसा के नाम पर कई घोर नृशंस कार्य किये गए।

हिन्दुस्तान में हिन्दु के मानस को पूरी तरह से बदलने के लिए विदेशी ताकतों से सीधा संरक्षण प्राप्त कर ईसाई मिशनरियां हिंदुओं के राष्ट्रातंरण का कार्य कर रही हैं जिससे भारत की भूमि पर हमेशा के लिए यूनियन जैक फहराया जा सके। मिशनरियों ने अनुभव किया कि हिंदुओं के लिए धर्म पर विश्वास से ज्यादा महत्वपूर्ण जीवित रहना है। उन्होंने हिन्दू समाज को दलित वर्ग और सवर्ण हिन्दू में बाँट कर तथा आर्य बाहर से आए हैं व द्रविड़ यहां के मूल निवासी हैं, ऐसा कह कर हिन्दू समाज को बाँटकर हिन्दुओं को ईसाइयत में राष्ट्रातंरण करने के अपने प्रयासों को जारी रखा। उन्होंने हिन्दुओं के बच्चों को मिथ्या इतिहास से परिचित कराने के उद्देश्य से स्कूलों की स्थापना की किंतु इस सबसे भी उन्हें सफलता नहीं मिली, तब उन्होंने बोर्डिंग स्कूल, अनाथालय स्थापित करने शुरू किये व तथाकथित दलित वर्ग एवं जनजातीय समुदायों के, जिन्हें वे यहां का मूल निवासी बतलाते थे, अनपढ़ व गरीब परिवारों से बच्चों को सीधे उन स्कूलों में भरना शुरू किया। इसके पश्चात् मिशनरी बोडिग स्कूलों में ऐसे ईसाई पादरी तैयार किये जो दलित व पिछड़े वगो के बीच धर्मांतरण का कार्य कर सकें। इन सभी प्रयास के तहत आज मिशनरी हिन्दुस्तान के लगभग सभी हिस्सों में राष्ट्रातंरण करवाने में जुटी हुई है। आज ये इतनें निरकुस हो गये हैं कि इनके रास्ते में आने बालों का हत्या तक करने से नही चुकते।
हिन्दुस्तान में पैसे के बल पर इन्सानीयत का पाठ पढा़ने बाले ईसाई चर्च के फादरों के चरित्र पर अगर ध्यान दें तो उजला कपडा़ के अन्दर का सच्च सामने आ जाता है। चर्च के फादरों के द्वारा नावालिक लड़कियों के यौन शोषण का मामला बार बार उठता रहा है इस मामलें में वेटिकन सिटी सिर्फ के पौप जाँन साल में आठ-दस बार माफी तो जरुर मांग लेता है। अभी कुछ दिन पहले अस्ट्रेलिया के दौरे पर गये पौप जॉंन का वहां के नागरिकों के द्वारा किया गया विरोध सिर्फ इस बात पर था कि चर्च धर्म का काम छोड़ कर हर एक अनैतिक कार्य में संलगन था चाहे वो नन का यौन शोषण हो या नाबालिक या बालिक लड़कियों को बहला फुसला कर किया गया यौन शोषण। इस मामलें में जाँन के द्वारा अस्ट्रेलिया में मांफी मांगने के बाद ही पौप जाँन को अस्ट्रेलिया में घुसने दिया गया। ईसाई मिशनरी को चाहिये कि इन्सानीयत का पाठ पढा़ने से पहले हिन्दुस्तानियों से आदमियता का पढ़ पढ ले नही तो बेचारे को पौप जाँन को गला में माफीनामा गला में लटका कर घुमना होगा।
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ईसाई मिशनरी का नंगा नाच का टिप्‍पणी

कल के लेख ईसाई मिशनरी का नंगा नाच का टिप्‍पणी पढे

अनुनाद सिंह जी के अनुसार
मै आपकी इस बात से सहमत नहीं हूँ कि इसाई मिशनरियाँ केवल प्रलोभन से ही धर्मान्तरण कराती हैं। इसके लिये वे - साम, दान, दण्ड, भेद - सब कुछ अपनाती हैं।

मेरे पड़ोस में एक गणित के प्रवक्ता रहते थे। उनकी पत्नी कैंसर से पीड़ित थीं। यह बात हमारे अस्पताल के 'हेड नर्स' को पता थी। वह केरल की रहने वाली पेन्टाकोस्ट इसाई है। एक दिन वह उनके घर आयी और कमरे में इधर-उधर देखकर बोली - "तुमारे ये बगवान क्या कर रहे हैं? ये हनुमान और दुर्गा से कुछ नहीं होगा। हमारा जेसस तुमको बिल्कुल ठीक कर देगा। ये सब फोटो फ़ेक दो। हम तुमको बड़ौदा में भेज देगा; वहाँ का प्रिष्ट तुमको बिल्कुल ठीक कर देगा।...

आप सोच सकते हैं कि उस नर्स की 'ट्रेनिंग' कितनी अच्छी तरह से हुई होगी।
उसे लोगों को 'रीड' करना कितनी अच्छी तरह पता है? वह अच्छी तरह जानती है कि 'मरता क्या नहीं करता।' 'ट्रबुल्ड वाटर' में मछली पकड़ने में वह पारंगत है।

यह एकमात्र उदाहरण नहीं है। हर धर्मान्तरित होने वाले के पीछे इसी तरह की कथा मिलेगी।

रंजना जी लिखती हैं
एकदम सही कहा आपने.इसाई देशों की यह दूरगामी सोची समझी रणनीति का हिस्सा है.उन्हें मालूम है कि किसी राष्ट्र को समाप्त करना हो तो सबसे पहला वार उस देश की धर्म और संस्कृति पर करना चाहिए.अकूत धन खर्च कर ये चर्च /मिशनरियां ख़ास मिसन के तहत चुपके से धीरे धीरे एक ऐसी कौम तैयार कर रही है जिसे वे समय आने पर धर्म के नाम पर ललकार कर अपने ही देश (हिन्दुस्तान)के ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर सकें.

Umesh ji
माओवादी हो या नकसली, इन्हे चर्च प्रभावित राष्ट्रो से धनराशी मिल रही है। नेपाल मे माओवादीयो को धन और योजना उपल्ब्ध कराने वाला मुख्य संगठन रिम था, जिसका मुख्यालय अमरीका मे है। भारत मे भी वहीं नक्सली/माओवादी सक्रिय हैं जहां धर्मानंतरण हो रहा है।

संगीता पुरी जी
बहुत दुखद है। धर्म की आड़ में ऐसी गतिविधियां। वास्तव में लोग धर्म की परिभाषा भूल गए हैं।

Deepak Bhanre ji
ताली एक हाथ से नही बजती है . क्या करें यह देश का दुर्भाग्य है की वोट बैंक के खातिर हमेशा बहुसंख्यक को ही दोषी बताया जाता है . मीडिया भी इस पक्ष को अनदेखा करता है.
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ईसाई मिशनरी का नंगा नाच

एक स्वयंसेवी संगठन जस्टिस आन ट्रायल ने अपनी जांच के आधार पर आरोप लगाया है कि उड़ीसा के कंधमाल जिले में साम्प्रदायिक हिंसा के लिए ईसाई मिशनरियों की धर्मपरिवर्तन की गतिविधियां दोषी हैं। जस्टिस आन ट्रायल की जांच समिति के अध्यक्ष और राजस्थान के अतिरिक्त महाधिवक्ता सरदार जी एस गिल ने शुक्रवार को यहां एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि उड़ीसा में धर्मपरिवर्तन रोकने के लिए सन् १९६७ में बनाए गए सख्त कानून के बावजूद ईसाई मिशनरी संस्थाएं प्रलोभन से भोले-भाले आदिवासियों का धर्मपरिवर्तन करा रही हैं जिससे समय-समय पर तनाव पैदा होता रहता है। उन्होंने कहा कि उड़ीसा के हिन्दू नेता स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती ने एक साक्षात्कार में स्वयं कहा था कि मिशनरी तत्व उन पर आठ बार हमला कर चुके हैं। नवें हमले में गत महीने उनकी मौत हो गई। जांच समिति ने हिन्दू नेता पर हुए हमले के लिए माओवादियों को जिम्मेदार ठहराए जाने के बारे में कहा कि ऐसा कोई ठोस कारण नहीं है कि माओवादी स्वामी जी की जान लें। जांच समिति ने कहा कि इस बात की छानबीन होनी चाहिए कि क्या हिन्दू विरोधी ताकतों ने माओवादियों के जरिये इस अपराध को अंजाम दिया। जांच समिति में पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक पीसी डोगरा, राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व सदस्य नफीसा हुसैन सामाजिक कार्यकर्ता कैप्टन एमके अंधारे और रामकिशोर पसारी शामिल थे।
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कश्मीर भारत में उठ रहे आज़ादी की मांग,

कश्मीर भारत में उठ रहे आज़ादी की मांग, या पाकिस्तान परस्त रास्त्र्द्रोही इस्लामिक जेहाद ?

कश्मीर जिसे धरती का स्वर्ग और भारत का मुकुट कहा जाता था आज भारत के लिए एक नासूर बन चूका है कारन सिर्फ मुस्लिम जेहाद के तहत कश्मीर को इस्लामिक राज्य बना कर पाकिस्तान के साथ मिलाने की योजना ही है, और आज रस्त्रद्रोही अल्गाव्बदियो ने अपनी आवाज इतनी बुलंद कर ली है की कश्मीर अब भारत के लिए कुछ दिनों का मेहमान ही साबित होने वाला है और यह सब सिर्फ कश्मीर में धारा ३७० लागु कर केंद्र की भूमिका को कमजोर करने और इसके साथ साथ केंद्र सरकार का मुस्लिम प्रेम वोट बैंक की राजनीती और सरकार की नपुंसकता को साबित करने के लिए काफी है यह बात कश्मीर के इतिहास से साबित हो जाता है जब सरदार बल्लव भाई के नेतृतव में भारतीय सेना ने कश्मीर को अपने कब्जे में ले लिया था परन्तु नेहरु ने जनमत संग्रह का फालतू प्रस्ताव लाकर विजयी भारतीय सेना के कदम को रोक दिया जिसका नतीजा पाकिस्तान ने कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया और क़ाफ़ी हिस्सा हथिया लिया । और कश्मीर भारत के लिए एक सदा रहने वाली समस्या बन कर रह गयी और पाकिस्तान कश्मीर को हथियाने के लिए नित्य नयी चालें चलने लगा नतीजा भारत की आज़ादी के समय कश्मीर की वादी में लगभग 15 % हिन्दू थे और बाकी मुसल्मान । आतंकवाद शुरु होने के बाद आज कश्मीर में सिर्फ़ 4 % हिन्दू बाकी रह गये हैं, यानि कि वादी में 96 % मुस्लिम बहुमत है । वादी में कश्मीरी पंडितों की पाकिस्तान समर्थित इन्ही रस्त्रद्रोही अलगाव वादियों द्वारा खुले आम हत्याएं की जा रही थी और सरकार मौन रही थी इन हत्याओं और सरकार की नपुंसकता का एक उदाहरण यहाँ दे रहा हूँ सन् १९८९ से १९९० यानि एक वर्ष में ३१९ कश्मीरी पंडितों की हत्या की गयी और इसके बाद के वर्षो में यह एक सिलसिला ही बन गया था और सरकार का रूप तब स्पष्ट हो जाता है जब जम्मू-कश्मीर के वंधामा में दस साल पहले हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के बारे में गृह मंत्रालय को जानकारी नहीं है। मंत्रालय ने कहा है कि विभाग को ऐसी किसी घटना की जानकारी नहीं है, जिसमें बच्चों समेत 24 कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया गया था। यह घटना जग विदित है मगर सरकार को इसके बारे में मालूम नहीं, सरकार के इसी निक्कम्मा पण के वजह से आज इन रास्त्रद्रोही अलगाववादियों का हिम्मत इतना बढ़ गया है की अब ये कश्मीर को पूर्ण इस्लामिक राज्य मानकर कश्मीर को पाकिस्तान के साथ मिलाने के लिए अब कश्मीर में बहरी राज्यों से आये हिन्दू मजदूरों को बहार निकल रहे हैं स्वतंत्रता दिवस के पवन अवसर पर हिंदुस्तान के रास्त्रघ्व्ज को जलाया गया हिंदुस्तान मुर्दाबाद का नारा लगाया जा रहा है और सरकार मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए चुप बैठी है कश्मीर में आर्मी के कैंप पर हमला करके उनको जलाया जा रहा है फिर हम कैसे कह सकते हैं की कश्मीर हमारे अन्दर में है अगर कश्मीर का मुस्लिम हमारे साथ है तो क्यों वह देशद्रोही अलगाववादियों का साथ दे रही है? अगर केंद्र सरकार कश्मीर समस्या का समाधान चाहती है तो क्यों नहीं वह वहां के अलगाववादी आतंकवादियों को के खिलाफ एक्शन ले रही है ? क्यों नहीं सरकार विस्थापित कश्मीरी पंडितों को फिर से उनके जमीन को वापस दिला रही है क्यों कश्मीरी पंडितो के हक़ का दमन कर रही है ? क्यों नहीं आज तक हुए कश्मीर में कश्मीरी पंडितो के हत्याकांडो की जाँच करवा रही है ? कश्मीरी भाइयो का साथ देने वाले साम्प्रदायिक और अलगाववादी देशद्रोही सरकार के नज़र में क्यों आज़ादी का नेता बना हुआ है ? अगर इस सवाल का जवाब सरकार के पास नहीं है तो सरकार देश की जनता को धोखा देना छोर दे की कश्मीर हमारा है और अगर सरकार सच में कश्मीर समस्या का समाधान चाहती है तो कश्मीरी पंडितो को इंसाफ दिलाये और अलगाववादी आतंकवादियों को सजा देकर कश्मीर को इन देशद्रोहियों से मुक्त कराये, अंत में एक सवाल सरकार और आपलोगों से क्या हिंदुस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने वाले अपने रास्त्रध्व्ज तिरंगे को सीने से लगाये मरने वाले साम्प्रदायिक हैं ?क्या हिंदुस्तान मुर्दाबाद का नारा लगा कर अपने रास्त्र ध्वज तिरंगे को जलाने वाला देशद्रोही नहीं और अगर देश द्रोही है तो इसके खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं ?

इस आंख की अंधी सरकार से इंसाफ की क्या उम्मीद

इसलिए अपने दर्द का मरहम ढूंढने आपके पास आये हैं हम

वन्देमातरम

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भारत तेरी शामत आयी

भारत तेरी शामत आयी, लश्कर लायी, लश्कर लायी
नंगा-भूखा हिन्दुस्तान जान से प्यारा पाकिस्तान
पाकिस्तान से रिश्ता क्या, लालिल्लाह इललिल्लाह
कश्मीर की मंडी, रावलपिंडी, रावलपिंडी
खूनी लकीर तोड़ दो, आर-पार जोड़ दो
ऐ जबरियो, ऐ जुल्मियों, कश्मीर हमारा छोड़ दो

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी सम्प्रभु देश के अंदर न सिर्फ उसके विरोध में नारे लगें बल्कि उसकें दुश्मन देश को सिर-आंखो पर उठाया जाये? कश्मीर में यही हो रहा है। जो लोग कह रहे हैं कि कश्मीर में हालात ९० दशक में पहुंच गए हैं, वो शायद बड़ी नर्मी बरत रहे हैं। क्योंकि हकीकत यह है कि कश्मीर में १९४७ के बाद से अब तक के सबसे खराब हालात हैं। देशद्रोही ,भारत विरोधी, भावनाएं उफान पर हैं। घाटी में चारों तरफ या तो पाकिस्तान या इस्लामी चिन्हों वाले हरे झंडों का बोलबाला है। अचानक हर मुसलमान की जुबान में भारत के लिए गाली और पाकिस्तान के लिए प्यार उमड़ रहा है।
६१ सालों से लगातार कश्मीर को सहलाए जाने का नतीजा है? १९४७ के बाद से अब तक दिल्ली की केन्द्र सरकार कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाए रखने के लिए और भारत विरोधियों की लल्लो-चप्पो करने के लिए कश्मीर को जो मुंह मांगी आथिक मदद देती रही है, वह ८६ खरब रुपये से भी ज्यादा है। अगर इतने पैसे में बिहार या मध्य प्रदेश का विकास किया गया होता तो ये प्रदेश देश के सबसे संपन्न राज्य बन गए होते। लेकिन कश्मीर में एक वर्ग की मानसिकता कभी नहीं बदलती है और जैसे जुल्फीकार अली भुट्टों कहते थे, घास खा लेंगे लेकिन इस्लामी बम बनाऐगें, उसी तरह इनकी भी सोच है कि भले कितनी ही बदहाली और अमानवीय स्थितियों में रहना पड़े मगर पाकिस्तान के साथ इसलिए जाएंगे क्योंकि पाकिस्तान से इनका रिश्ता लालिल्लाह इल्लिलाह का है। भारत के लिए कश्मीर एक स्थायी नासूर इसलिए बन गया है। अरूंधती राय कहती हैं कि कश्मीर को हिन्दुस्तान से आजादी चाहिए। लेकिन शायद वह इस पूरी तस्वीर को एक ही चश्में से देख रही हैं। हकीकत यह है कि भारत कोई कश्मीर से कम परेशान नही है। हकीकत तो यह है कि कश्मीर हमारे लिए एक स्थायी सिरदर्द बन चुका है। देश के लाखों फौजियों के लिए कश्मीर एक मानसिक संताप बन चुका है। जिस भी फौजी का तबादला कश्मीर किया जाता है, वह मानसिक रूप से परेशान हो जाता है। क्योंकि कश्मीर समस्या का वह इलाज ही नहीं है जो इलाज भारत सरकार करना चाहती है। वास्तव में कश्मीर अगर इस कदर साल दर साल भारत के लिए नासूर बनता गया है तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हमारी राजनीति ही है। लाचारी की बात यह है कि दिल्ली से सरकार जो गलतियां १९५० के दशक में कर रही थी, उन्हीं गलतियों को लगातार किए जा रही है। नतीजा यह निकल रहा है कि २ करोड़ की आबादी वाला कश्मीर ११२ करोड़ की आबादी वाले हिन्दुस्तान का सिरदर्द बन गया है। कश्मीर की वजह से हिन्दुस्तान की छवि पूरी दूनिया में धूमिल हो रही है। लेकिन राजनेता हैं कि वह कोई सबक ही नहीं ले रहे। हमारे राजनेता आम हिन्दुस्तानियों में एकता, अखंडता का भाव जगाने या बनाए रखने के संकोच में एक बात हमेशा छिपा जाते हैं कि कश्मीर का भारत में विलय कुछ शतो के साथ हुआ था। कश्मीर हिन्दुस्तान का उसी तरह से प्राकृतिक हिस्सा नहीं है जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार हैं। कश्मीर का भारत में कुछ विशष शतो के साथ विलय हुआ था जिसमें सीमित आजादी की भी शर्त थी। १९४७ के कश्मीर के हिन्दुस्तान में विलय में यह शर्त रखी गई थी कि विदेशी, मुद्रा , रक्षा और कानून की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की होगी। बाकी सभी दायित्व और अधिकार राज्य सरकार के पास होंगे। लेकिन उत्तरोत्तर घटनाक्रमों में भारत सरकार आम देशवासी से इस बारे में लगातार संवादहीनता और गोलमोल की स्थिति बनाए रखी। संविधान की जिस धारा -३७० के तहत कश्मीर को विशेषाधिकार दिए गए थे, लगातार कुछ राष्ट्रवादी पार्टियों के लिए वह कानूनी स्थिति लोगों की भावनाएं भड़काने का बहाना बन गयी। हैरत की बात तो यह है कि लंबे समय तक केन्द्र में शासन करने वाली कांग्रेस ने भी हिम्मत और स्पष्टता के साथ देशवासियों को कभी यह नहीं बताया कि धारा -३७० का विशेष दर्जा कश्मीर को क्यों दिया गया है? वह हमेशा इस मुद्दे को लेकर मामला रफा-दफा करने के फेर में ही रही। नतीजा यह है कि ज्यादातर भारतवासियों को कश्मीर की वस्तुस्थिति का पता ही नहीं है। झारखंड और बिहार में अगर कश्मीर को लेकर राष्ट्रवादी भावनाएं भड़काती हैं तो इसमें सिर्फ लोगों का उन्मादी राष्ट्रप्रेम ही नहीं है बल्कि नेताओं का वह ढुलमुल रवैय्या भी इसके लिए भरपूर रूप से जिम्मेदारी है जिसमें कभी देशवासियों को कश्मीर की राजनैतिक स्थिति को कभी साफ ही नहीं किया।
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यह लडा़ई नही देशभक्ती है।

अखनूर सेक्टर के जोरियान में पुलिस फायरिंग में कम से कम १० लोग घायल हो गये जिनमें एक की हालत गंभीर है। अभी कुछ दिन पहले 35 वर्षीय कुलदीप कुमार डोगरा नामक एक युवक ने देश के लिय जान दिया। जम्मू में अब हालात विस्फोटक हो चुके है। प्रदर्शनकारी श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि लौटाने की मांग कर रहे हैं। कल जिले में प्रदर्शन के दौरान पुलिस फायरिंग में दो युवकों की मौत हो गयी थी। यह आंदोलन आम आदमियों के नेतृत्व में केन्द्र की संप्रग सरकार और राज्य सरकार द्वारा किये गये कायरतापूर्ण और औचित्यहीन समर्पण के विरूद्ध चलाया जा रहा एक राष्ट्रीय आंदोलन है। यह आंदोलन पूरी तरह अलगाववादी शक्तियों द्वारा उठायी गयी दासतापरक मांगों के विरूद्ध है और उन अलगाववादियों के विरूद्ध है जिन्होंने सदैव ही जम्मु-कश्मीर के भारत का अभिन्न अंग होने पर प्रश्न चिन्ह लगाये हैं।

यह लडाई सिर्फ श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड से जुडे़ हुये भूमी का नही है इसके पीछे अलगावदियों की मनसा कश्मीर से हिंदुओं को मार भगाना चाहते हैं कश्मीरी पंडीत कश्मीर को पहले ही निकाल बाहर किया गया है अब बचे हैं जम्मु के हिन्दु उन्हें भी किसी तरह मार भगाया जाय। लेकिन बार बार धोखा खाकर भी हिंदू वर्ग कुछ नहीं समझता। हिन्दुस्तान का हिंदू कश्मीरी मुसलमानों से यह पूछने की ताब नहीं रखता कि जब देश भर में मुस्लिमों के लिए बड़े-बड़े और पक्के हज हाउस बनते रहे है, यहां तक कि हवाई अड्डों पर हज यात्रियों की सुविधा के लिए ‘हज टर्मिनल’ बन रहे है और सालाना सैकड़ों करोड़ रुपये की हज सब्सिडी दी जा रही है तब अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले हिंदुओं के लिए अपने ही देश में अस्थाई विश्राम-स्थल भी न बनने देना क्या इस्लामी अहंकार, जबर्दस्ती और अलगाववाद का प्रमाण नहीं है?

चूंकि कांग्रेस और बुद्धिजीवी वर्ग के हिंदू यह प्रश्न नहीं पूछते इसलिए कश्मीरी मुसलमान शेष भारत पर धौंस जमाना अपना अधिकार मानते है। वस्तुत: इसमें इस्लामी अहंकारियों से अधिक घातक भूमिका सेकुलर-वामपंथी हिंदुओं की है। कई समाचार चैनलों ने अमरनाथ यात्रियों के विरुद्ध कश्मीरी मुसलमानों द्वारा की गई हिंसा पर सहानुभूतिपूर्वक दिखाया कि ‘कश्मीर जल रहा है’। मानों मुसलमानों का रोष स्वाभाविक है, जबकि यात्री पड़ाव के लिए दी गई भूमि वापस ले लेने के बाद जम्मू में हुए आंदोलन पर एक चैनल ने कहा कि यह बीजेपी की गुंडागर्दी है। भारत के ऐसे पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और नेताओं ने ही अलगावपरस्त और विशेषाधिकार की चाह रखने वाले मुस्लिम नेताओं की भूख बढ़ाई है। इसीलिए कश्मीरी मुसलमानों ने भारत के ऊपर धीरे-धीरे एक औपनिवेशिक धौंस कायम कर ली है। वे उदार हिंदू समाज का शुक्रगुजार होने के बजाय उसी पर अहसान जताने की भंगिमा दिखाते है। पीडीपी ने कांग्रेस के प्रति ठीक यही किया है। इस अहंकारी भंगिमा और विशेषाधिकारी मानसिकता को समझना चाहिए। यही कश्मीरी मुसलमानों की ‘कश्मीरियत’ है। यह मानसिकता शेष भारत अर्थात हिंदुओं का मनमाना शोषण करते हुए भी उल्टे सदैव शिकायती अंदाज रखती है।

सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते चुप्पी साधे हुये है और आम जनता का खून रहा है। लेकिन ध्यान देने वाली बात तो कुछ और ही है जम्मू का इलाका हिन्दु बहुल है और ये बात कश्मीरी मुसलमानों और अलगाववादी को आख की कीड़कीडी बना हुआ है जम्मु में रह रहे हिन्दु की अवाज को उनके हित को मुस्लिम तुष्टिकरण बाले तथाकथीत धर्मनिरपेक्ष दल कब से जम्मु में रह रहे हिन्दुओं की भावना को दबायें रखा है। जम्मु क्षेत्र कश्मीर से ज्यादा बडा़ होने के वाबजुद सिर्फ दो लोकसभा की और विधानसभा की 36 सीटे मिली हैं जबकी कश्मीर को 3 लोकसभा की और 46 विधानसभा की क्षेत्र है। अब समय आ गया है हिन्दुस्तान के हिन्दु या राष्ट्रभक्त धारा 370 हटाने की मांग करना चाहिये।
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अभी और को मारना बाकी है क्या!

अखनूर सेक्टर के जोरियान में पुलिस फायरिंग में कम से कम १० लोग घायल हो गये जिनमें एक की हालत गंभीर है। प्रदर्शनकारी श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि लौटाने की मांग कर रहे हैं। कल जिले में प्रदर्शन के दौरान पुलिस फायरिंग में दो युवकों की मौत हो गयी थी। यह आंदोलन आम आदमियों के नेतृत्व में केन्द्र की संप्रग सरकार और राज्य सरकार द्वारा किये गये कायरतापूर्ण और औचित्यहीन समर्पण के विरूद्ध चलाया जा रहा एक राष्ट्रीय आंदोलन है। यह आंदोलन पूरी तरह अलगाववादी शक्तियों द्वारा उठायी गयी दासतापरक मांगों के विरूद्ध है और उन अलगाववादियों के विरूद्ध है जिन्होंने सदैव ही जम्म-कश्मीर के भारत का अभिन्न अंग होने पर प्रश्न चिन्ह लगाये हैं।

Chakka Jam on 13th August for Kashmiri Hindus : An appeal

Dear Brothers,
As you all know that Jammu Kashmir State Government has withdrawn the land allocated to Shri Amarnath Shrine Board for temporary construction. This withdrawal is result of usual pressurisation of fundamentalist Muslims of valley, who wants to make ‘Dar Ul Mustafa’. Fundamentalist Muslim leaders of valley have always been biased with Hindu majority areas. Central government is not only soft with separatists but also boosting their morals anyhow.
Muslim Mafia-Police have peed on the dead body of Kuldeep whom they killed in Jammu! That’s the way they abuse every Hindu they kill everyday. They disconnected the electricity of Hindu areas. Hindu kids are starving for milk and food. No food, No Medicines, No electricity, No civic facilities. Today, Jammu Hindus are already on streets, shading their blood. Rest of Hindus are supposed to be Mute? If No, then support Nationwide ‘chakka jam’ movement called by Vishwa Hindu Parishad on 13th August, and make it huge success. Support not only the Hindus of Jammu but also Nationalism.

http://in.youtube.com/watch?v=TfN-rUlM8U8
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सामाजिक सरोकार से युक्त संत अवधेशानन्द गिरि

भारत एक धर्मप्राण देश है और इस देश में सर्वाधिक मान्यता संत परम्परा की है। देश की सनातन कालीन परम्परा में जब भी समाज को किसी भी दिशा में मार्गदर्शन की आवश्यकता हुई है तो उसने संत परम्परा की ओर देखा है और समाज को भी कभी निराश नहीं होना पडा। यूँ तो भारत में संतों के मार्गदर्शन की सम्पन्न परम्परा रही है परंतु आधुनिक समय में यदि किसी संत ने भारत के जनमानस और लोगों की अतीन्द्रियों को गहराई से प्रभावित किया है तो वह रहे हैं स्वामी रामक़ृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द। एक ओर रामकृष्ण परमहंस ने दिग्भ्रमित हो रही और अपनी संस्कृति के प्रति हीनभावना के भाव से व्याप्त होकर ईसाइयत की ओर समाधान देख रही बंगाल की नयी पीढी को अपनी साधना और अनुभूति के बल पर हिन्दू धर्म के साथ बाँध कर रखा और फिर उनकी प्रेरणा से नरेन्द्र का स्वामी विवेकानन्द के रूप में अभ्युदय हुआ जिसने पश्चिम की धरती से वेदांत का उद्घोष किया और सदियों से अपनी संस्कृति के प्रति हीनभावना संजोये भारतवासियों को एक सिंह का शौर्य दिया जिसने भारत के स्वाधीनता आन्दोलन और पुनर्जागरण की नींव रखी। स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से पूरा भारत तेजस्वी, विचारवान और ऊर्जावान नवयुवकों की उर्वरा भूमि बन गया और इस परम्परा ने भारत को ऐसे निष्ठावान और वीर पुरुष दिये जिन्होंने न केवल भारत को वरन समस्त विश्व को नयी राह दिखाई।

आज भारत पुनर्जागरण की उस परम्परा से विमुख हो गया है और सर्वत्र निराशा का वातावरण सा छाता जा रहा है। जहाँ भी देखो निराशा, टूटन और अविश्वास है ऐसे में अवतारवादी मान्यता का यह देश एक बार फिर ईश्वर के अवतरण की प्रतीक्षा कर रहा है लेकिन क्या स्वामी विवेकानन्द ने यही पराक्रम और पुरुषार्थ बताया था। निश्चित रूप से नहीं उन्होंने हिन्दू धर्म की उस विलक्षण और उदात्त परम्परा का बोध कराया था जो नर के नारायण बनने की प्रक्रिया में विश्वास करती है। जो कहती है कि इस शरीर में वही परमात्मा वास करता है जो सृष्टि का संचालक भी है। आज इसी उदात्त परम्परा का ध्यान रखते हुए हमें अपने बीच में ही उन प्रेरणा पुरुषों को ढूँढना होगा जो देश के इस निराशा, व्याकुलता और पराजित की सी मानसिकता के धुन्ध को छाँट कर समाज को नयी दिशा दे सकें। क्या देश में संतों की इस विशाल परम्परा में ऐसा कोई संत नहीं दिखता जो सामाजिक सरोकार से जुडा हो, जिसकी दृष्टि इतनी व्यापक हो कि हिन्दू धर्म को वैश्विक परिदृश्य में देख सके और भारत ही नहीं वरन समस्त विश्व की समस्या का समाधान सुझा सके। इस लेखक ने अपनी अल्पबुद्धि के आधार पर ऐसे संत को ढूँढ निकाला है।
अभी पिछ्ले दिनों गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हरिद्वार में जूना अखाडा के आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। यह मुलाकात कुछ संयोग पर आधारित थी और उस दिन के बाद अनेक अवसरों पर काफी लम्बे अंतराल बिताने का अवसर उनके साथ प्राप्त हुआ। हरिद्वार में अपने आश्रम में उन्होंने गुरू पूर्णिमा के इस अवसर पर इजरायल के भारत के उप राजदूत और नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री कृष्ण प्रसाद भट्टराई को भी आमंत्रित किया था। यह पहला उदाहरण है जो उनकी व्यापक दृष्टि की ओर संकेत करता है। इजरायल के उच्चायुक्त को बुलाने के पीछे उनका उद्देश्य उस संकल्प को आगे बढाना था जो उन्होंने इस वर्ष के आरम्भ में इजरायल की यात्रा में प्रथम हिन्दू-यहूदी सम्मिलन के अवसर पर लिया था। इजरायल की निर्मिति के साठ वर्षों के उपलक्ष्य में इस देश ने एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया था और उस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व स्वामी जी ने किया था। इस सम्मेलन में भाग लेने के बाद स्वामी जी को इजरायल के प्रति लगाव उत्पन्न हुआ है और इसी का परिणाम है कि वे अनेक ऐतिहासिक समानताओं की पृष्ठभूमि में भारत और इजरायल की रणनीतिक और सांस्क़ृतिक मित्रता के लिये सामाजिक स्तर पर दोनों देशों में व्यापक समझ विकसित करना चाहते हैं। इसी पहल के पहले चरण के रूप में उन्होंने अपने श्रृद्धालुओं के मध्य इजरायल के उच्चायुक्त को बोलने का अवसर दिया और ऐसा पहला अवसर था जब सामान्य भारतवासियों के मध्य इजरायल के किसी प्रतिनिधि ने अपने देश की भावनायें प्रकट की। देखने में या सुनने में यह सामान्य घटना भले ही लगे परंतु इस विचार के पीछे के विचार को समझने की आवश्यकता है।

स्वामी अवधेशानन्द गिरि में अनेक सम्भावनायें दिखती हैं और ऐसी सम्भावनाओं के पीछे कुछ ठोस कारण भी हैं। पिछले कुछ दिनों में स्वामी जी को काफी निकट से देखने का और उन्हें परखने का अवसर भी मिला। देश के एक प्रसिद्ध अखाडे के प्रमुख होते हुए भी उनकी सोच सामान्य कर्मकाण्ड, पीठ को बढाने या फिर शिष्य़ परम्परा के विकसित होने में ही सारी ऊर्जा लगा देने के बजाय उनका ध्यान समाज, राष्ट्र और मानवता के कल्य़ाण के लिये ही अधिक रहता है। अनेक अवसरों पर उनसे बात करने और कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर उनसे चर्चा का अवसर मिला और इस अवसर में अनेक ऐसी बातें पता लगीं जो संत के एक सामाजिक सरोकार के पक्ष को प्रस्तुत करती है।

स्वामी अवधेशानन्द गिरि का जो सर्वाधिक योगदान समाज को है उसकी कथा झाबुआ से आरम्भ होती है। मध्य प्रदेश का एक अत्यंत पिछडा क्षेत्र जिसमें पानी का इतना अभाव है कि लोग छ्ह महीनों के लिये यह क्षेत्र छोडकर चले जाते है और अपने पीछे अपने मवेशियों को निस्सहाय छोड जाते हैं। स्वामी जी को इस क्षेत्र की इस समस्या के बारे में पाँच वर्ष पहले पता चला और उसी समय उन्होंने यहाँ एक प्रकल्प आरम्भ किया कि किस प्रकार यहाँ जलाभाव की स्थिति से निबटा जाये और इसके लिये बडे पैमाने पर शोध और अनुसन्धान हुए और पिछले पांच वर्षों में इस क्षेत्र की काया बदल गयी और अब यह क्षेत्र सोच भी नहीं सकता कि कभी यहाँ जल का अभाव था। लेकिन स्वामी जी का संकल्प इससे भी आगे है। इस क्षेत्र में शिक्षा और स्वालम्बन के प्रयास भी हो रहे हैं। अब इस संकल्प की चरम परिणति यह है कि इस क्षेत्र के लोग आदर्श व्यक्ति बन सकें और प्रत्येक दृष्टि से आत्मनिर्भर हों। इस क्षेत्र में किये गये प्रयासों का परिणाम है कि अब इस क्षेत्र में आक्रामक गति से हो रहा धर्मांतरण भी रुक गया है क्योंकि इस क्षेत्र में आस्था और श्रृद्धा जगाने के लिये लोगों के घरों में शिवलिंग की स्थापना की गयी और अनेक अद्भुत यज्ञ कराये गये।

स्वामी अवधेशानन्द गिरि में अधिक सम्भावनायें इस कारण दिखती हैं कि उन्होंने विश्व के समक्ष और भारत के समक्ष प्रस्तुत चुनौतियों को सही सन्दर्भ में लिया है। उनकी दृष्टि में विश्व में एक प्रवृत्ति तेजी से बढ रही है और वह है भण्डारण की प्रवृत्ति या अधिक से अधिक अपने अधिकार में वस्तुओं को ले लेने की प्रवृत्ति। लेकिन इसके लिये कुछ महाशक्तियों को दोष देने या प्रवचन तक सीमित रहने के स्थान पर उन्होंने इसका एक समाधान भी खोजा है। यह समाधान उनके स्वप्निल प्रकल्प अवधेशानन्द फाउण्डॆशन में है। कुल 130 एकड की परिधि का प्रस्तावित यह प्रकल्प वास्तव में अपने सांस्कृतिक बीजों के संरक्षण का महासंकल्प है। इस फाउण्डॆशन के द्वारा भारत की बहुआयामी संस्कृति का वास्तविक दर्शन हो सकेगा। विशुद्ध सांस्क़ृतिक परिवेश में, प्रकृति की छाँव में पर्यावरण के प्रदूषण से रहित विचार, अन्न और संस्कार प्राप्त शिशु जब युवक युवती बन कर यहाँ से निकलेंगे तो वे भारत की संस्कृति के ऐसे प्रचारक होंगे जो अपने-अपने क्षेत्रों में एक बहुमूल्य रत्न होंगे। यह फाउण्डेशन यहाँ निर्मित होने वाले बच्चों को इस बात के लिये प्रेरित करेगा कि वे अपनी संस्कृति के मूल्यों, भाषा, भूषा, भोजन के संरक्षण के साथ ही विश्व की परिस्थितियों, भाषा और संस्कृतियों से भी पूरी तरह भिज्ञ हों। निश्चय ही यह संकल्प हमें स्वामी विवेकानन्द के संकल्प की याद दिलाता है जिन्होंने निष्ठावान, चरित्रवान और संस्कृतिनिष्ठ युवकों के निर्माण को सभी समस्याओं का समाधान बताया था।

यहाँ तक कि जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार ने भी देश की समस्याओं की ओर देखा तो उन्हें चरित्र निर्माण में ही राष्ट्र निर्माण का समाधान दिखा। स्वामी अवधेशानन्द गिरि का यह संकल्प और यह प्रयास उन्हें सामान्य प्रवचन या समस्त बुराइयों के लिये पश्चिम की संस्कृति को दोष देते रहने के दायरे से बाहर लाकर व्यापक दायरे में लाता है जहाँ से वे राष्ट्र के भविष्य़ को भी सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे है। स्वामी अवधेशानन्द गिरि के इस विशाल संकल्प की तुलना वर्तमान समय में किसी संकल्प से की जा सकती है तो वह स्वामी रामदेव के पतंजलि योगपीठ है। जिस प्रकार स्वामी रामदेव ने महर्षि पतंजलि की परम्परा को आगे बढाकर भारत की लुप्तप्राय हो रही चिकित्सा पद्धति और योग परम्परा को नवजीवन प्रदान कर भारत की प्राचीन संस्कृति का सातत्य प्रवाहमान किया ठीक उसी प्रकार स्वामी अवधेशानन्द गिरि भारत के संस्कारों और मूल्यों का बीज सुरक्षित रखने का गुरुतर कार्य करने जा रहे हैं। संकल्पों की इस समानता के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना अतिशियोक्ति नहीं होगी कि शायद यही महापुरुष सामाजिक सरोकार से जुडे वे संत हैं जो न केवल भारत वरन समस्त विश्व को नयी दिशा देने जा रहे हैं।

स्वामी अवधेशानन्द गिरि एक व्यावहारिक संत हैं जो परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालना जानते हैं और जटिल कर्मकाण्डों और आनुष्ठानिक संत होने के बाद भी विदेशों में अपनी लोकप्रियता अपनी गरिमा के साथ बनाये रख सके हैं। विदेश के अनेक देशों का दौरा वे इस विचार के साथ कर रहे हैं कि विदेश में बसे हिन्दुओं को सन्देश दे सकें कि उन्हें भारत को पितृऋण भी चुकाना है केवल डालर का निवेश करने से अपनी मातृभूमि के प्रति उनका कर्तव्य समाप्त नहीं हो जाता उन्हें इससे भी अधिक कुछ करने की आवश्यकता है। यह भी एक दैवीय योग है कि जब स्वामी विवेकानन्द ने पश्चिम की धरती से वेदांत का उद्घोष किया था तो उस समय भी भारत घोर निराशा के वातावरण में था और विश्व संकीर्ण साम्प्रदायिक तनाव की दहलीज पर था और आज भी देश और विश्व में कमोवेश वही स्थिति है। धर्म के नाम पर खून की नदियाँ बह रही हैं और क्रूरता, बर्बरता तथा पाशविकता को धर्म का दायित्व बताया जा रहा है। ऐसी स्थिति में विश्व को आध्यात्म रूपी ताजा हवा का झोंका चाहिये।


स्वामी अवधेशानन्द गिरि अपने संकल्पों , विचारों और प्रयासों से एक सुखद भविष्य का दर्शन कराते हुए दिखते हैं साथ ही उनकी ऊर्जा और सामाजिक सरोकार के प्रति उनकी उद्विग्नता उन्हें अनेक समस्याओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत करती है।
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कोई इन्हें बचाओ

हिन्दुस्तान में मुस्लमानों को हर तरह कि सुख सुविधा सरकार के द्वारा दिया जा रहा है यहा तक कि मुस्लिम आतकवादियों भी सरकार फाँसी पर लटकाने से गुरेज कर रही है। आतंकवाद कि पाढ़शाला मदरसा को दिल खोल कर सरकारी सुविधा मील रहा है जिसका नतीजा है कि हिन्दुस्तान में आये दिन कही न कही बम विस्फोट या फिर दंगा फसाद होते रहता है लेकिन इसके ठीक उलट पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं की हालत चिंता का विषय है और सरकार इस ओर से आँख बन्द कर रखा है।

पाकिस्तान के हिंदुऒं ने अपने समुदाय के खिलाफ जानमाल को लक्ष्य बनाकर हो रही घटनाऒं के प्रति चिंता जताई है। गौरतलब है कि देश में हिंदुऒं के धार्मिक स्थलों को भी निशाना बनाया जा रहा है।

अल्पसंख्यक हिंदु समुदाय की पाकिस्तान हिंदू परिषद् (पीएचसी) के प्रतिनिधिमंडल ने चिंता जताई है कि सिंध प्रांत में हिंदुऒं को लगातार लूट और डकैती का निशाना बनाया जा रहा है। उनके खिलाफ इस तरह की घटनाऒं में वृद्धि हो रही है। परिषद ने मांग की है कि इस्लामाबाद की संघीय सरकार इन घटनाऒं को रोकने के तुरंत कोई कदम उठाए और देश में अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करे।

जाकोकाबाद में हाल ही में हुई लूट की घटना के विरोध प्रदर्शन में कराची में बड़ी संख्या में हिंदुऒं ने भाग लिया। जाकोकाबाद में कुछ हथियारबंद लोगों ने मंदिर में घुस कर करीब ३५० हिंदू महिलाऒं से लाखों रूपये की नगदी तथा जेवरात लूट लिए थे। सिंघ के पूर्व सांसद डा. रमेश लाल ने पुलिस और अन्य कानूनी एजेंसियों पर आरोप लगाया है कि वह नागरिकों खासतौर पर अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में नाकाम रही हैं।

पीएचसी के सचिव हरी मोटवानी ने डेली टाइम्स अखबार को बताया कि डाकुऒं ने करीब सात करोड़ की लूट की है और जाकोकाबाद की हाल ही की घटना के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के लोग खासतौर पर महिलाएं धार्मिक स्थानों पर जाने में डरने लगे हैं। मोटवानी ने कहा कि इसलिए हम मांग करते हैं कि सरकार डकैतों को तुरंत गिरफ्तार करे और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्र्चित करे। उन्होंने कहा कि यह घटना दिन के समय हुई है बावजूद इसके पुलिस इसे रोक नहीं पाई।

पीएचसी के अध्यक्ष राजा असेरमल मांगलानी ने कहा कि सिंध के उत्तरी जिलों में हिंदुऒं के साथ लूट और अपहरण की घटनाएं हो रही हैं। इससे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में डर और असुरक्षा की भावना घर कर गई है। सरकार को चाहिए कि वह लोगों में व्याप्त इस इस डर की भावना को दूर करे।
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आतंकवादीयों को दमाद क्यों नही बना लेते

बेंगलूर के बाद अहमदाबाद भी सीरियल बम धमाकों से दहल उठा हिन्दुस्तान। 24 घंटे में दुसरा हमला । देश में जब कभी कोई आतंकवादी हमला होता है, तो हमले के लिए जिम्मेदार लोगों या उनके संगठनों अथवा हमलावरों को पनाह देने वाले मुल्क या मुल्कों के नाम रेडिमेड तरीके से सामने आ जाते हैं। आतंकवादियों को कायर, पीठ में छुरा घोंपने वाले या बेगुनाहों का हत्यारा कहकर केंद्र और राज्य सरकारें तयशुदा प्रतिक्रिया व्यक्त कर देती हैं। हमारे नेता भी ऊंची आवाज में चीखकर कहते हैं कि आतंकवाद के साथ सख्ती से निपटा जाएगा। कुत्ता को घुमाने और ई-मेल कहा से आया बस यही तक खबर आती है। फिर मुआवजा देने का दौर चलता है अगर हिन्दु मरा है तो 1 लाख और मुस्लमान मरा है तो 5 से 10 लाख तक का मुआवजा मिलता है। सरकार के किसी मंत्री घटनास्थल के दौरे के साथ ही सभी बड़ी-बड़ी बातें खत्म हो जाया करती हैं और यह श्रंखला आतंकवादियों की अगली करतूत होने पर फिर शुरू हो जाती है, यही सिलसिला चलता रहता है। लोगों ने अब यह भी कहना शुरू कर दिया है कि बढ़-चढ़कर किए गए ऐसे दावों में कोई दम नहीं होता। कुछ लोगों ने मुझसे यहां तक कहा कि अखबारों में छपे ऐसे सियासी बयानों को हम पढ़ते तक नहीं।

आखीर कब रुकेगा आतंकवादियों का हमला। हिन्दुस्तान में आतंकवाद को सदैव वोट बैंक और मुस्लिम तुस्टीकरण की राजनीति से जोड्कर देखा जाता है और इसी का परिणाम है कि पहले 1991 में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी की सरकार के मुसलमानों के दबाव में आकर टाडा कानून वापस ले लिया और उसके बाद 2004 में सरकार में आते ही एक बार फिर कांग्रेस ने पोटा कानून वापस ले लिया। उच्चतम न्यायालय ने जब संसद पर हमले के मुख्य आरोपी अफजल गुरू को फांसी दिए जाने का आदेश दिया था तो तमाम 'सेकुलरवादी दलों' का राष्ट्रविरोधी चेहरा भी सामने आ गया था। जम्मू-कश्मीर के कांग्रेसी मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद सहित पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती उसके बचाव में आ खड़ी हुई थीं। यहा तक कह दिया कि अफजल को फांसी देने पर इस देश में दंगा भरक सकता है कांग्रेसी आजाद ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर फांसी की सजा नहीं दिए जाने की अपील की थी। अलगाववादी संगठनों के नेतृत्व में घाटी में व्यापक विरोध प्रदर्शन किया गया। इन सबका ही परिणाम है कि आज भी अफजल सरकारी दमाद बना हुआ है और सेकुलर संप्रग सरकार फांसी की सजा माफ करने की जुगत में लगी है। क्या एक आतंकवादी को फांसी देने से दंगा भरक सकता है तो इसमें हमे कहने से कोई गुरेज नही है कि दंगाई का राष्टृभक्ति कभी भी हिन्दुस्तान के साथ नही है और इसमें भी कांग्रेसी ही दोषी है जब देश आजाद हूआ था तभी कांग्रेसी जन यैसे देशद्रेही को गले लगा-लगा कर इस देश में रहने के लिये रोक रहे थे जो आज हमारे लिये नासूर बन गये हैं।
हिन्दुस्तान यैसा देश है जहा आतंकवादि सरकारी नैकरी करते हैं सरकार उन्हें पैसा भी देती है और आतंकवाद फैलाने के सहायता। "भारत बहुत बुरा देश है और हम भारत से घृणा करते है। हम भारत को नष्ट करना चाहते है और अल्लाह के फजल से हम ऐसा करेगे। अल्लाह हमारे साथ है और हम अपनी ओर से पूरी कोशिश करेगे।" गिलानी के ताजा बयान के बाद भी यदि सेकुलर खेमा गिलानी और अफजल जैसे देशद्रोहियों की वकालत करता है तो उनकी राष्ट्र निष्ठा पर संदेह स्वाभाविक है। गिलानी दिल्ली विश्वविद्यालय में अरबी और फारसी पढ़ाता है। उसके नियुक्ति पत्रों की जांच होनी चाहिए और यदि उसने अपनी नागरिकता भारतीय बताई है तो उसे अविलंब बर्खास्त कर देना चाहिए। क्या यही है आतंकवादियों से लड़ने क माद्दा, शायद नही।

आज भारत में एक भी ऐसा कानून नहीं है जो आतंकवाद की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए और आतंकवादियों के विशेष चरित्र को देखते हुए उन्हें तत्काल और प्रभावी प्रकार से दण्डित करने के लिये प्रयोग में आ सके। आज सभी राजनीतिक दलों के नेता केवल भाजपा को छोड्कर इस बात पर सहमत दिखते हैं कि सामान्य आपराधिक कानूनों के सहारे आतंकवाद से निपटा जा सकता है। हमारे सामने एक नवीनतम उदाहरण है कि किस प्रकार टाडा के विशेष न्यायालय में मुकदमा होते हुए भी मुम्बई बम काण्ड के अपराधियों को सजा मिलने में कुल 15 वर्ष लग गये और सजा मिलने के बाद भी एक के बाद एक आतंकवादियों जमानत पर छूटते जा रहे हैं। आखिर जब हमारी न्याय व्यवस्था जटिल तकनीकी खामियों का शिकार हो गयी है जो आतंकवादियों को बच निकलने का रास्ता देती है तो फिर कडे और ऐसे कानूनों के आवश्यकता और भी तीव्र हो जाती है जो तत्काल जमानत या फिर आतंकवाद के मामले में जमानत के व्यवस्था को ही समाप्त कर दे। यह कोई नयी बात नहीं है। पश्चिम के अनेक देशों ने ऐसे कठोर कानून बना रखे हैं और इसके परिणामस्वरूप वे अपने यहाँ आतंकवादी घटनायें रोकने में सफल भी रहे हैं। परंतु भारत के सम्बन्ध में हम ऐसी अपेक्षा नहीं कर सकते। अगर हिन्दुस्तान की सरकार आतंकवादियों से लड़ नही सकती है तो उसे अपना दमाद बना ले लफडा खत्म हो जायेगा। हम मुर्ख जनता जात-पात उँच-नीच के नाम पर दुबारा नपुसंको के हाथ में इस देश की बागडोर दे देंगे।
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सरकार का एक और झुठ

रामसेतु मसला एक बार फिर केंद्र मे आ गया है। केंद्र सरकार पहले राम और उसके अस्तित्व को नकारते-नकारते आखिरकार यह स्वीकार करने लगी है कि राम पौराणिक काल में थे। कंब रामायण का सहारा लेकर सरकार यह बताने में लगी थी कि भगवान राम स्वयं इस पुल को तोड़ दिया था, केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, ' रामसेतु के अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं है। भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद रामसेतु को ध्वस्त कर दिया था।' जो कि सरकार द्वारा झूठ प्रचारित कर रही है कि राम ने लौटते हुए सेतु को तोड़ दिया था। रामायण के मुताबिक राम लंका से वायुमार्ग से लौटे थे, यह बात हिन्दुस्तान का बच्चा बच्चा जानता है सो वह पुल कैसे तुड़वा सकते थे। वाल्मीकि रामायण के अलावा कालिदास ने 'रघुवंश' के तेरहवें सर्ग में राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है। इस सर्ग में राम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है। इसलिए यह कहना गलत है कि राम ने लंका से लौटते हुए सेतु तोड़ दिया था। कालिदास सरीखे कवि को गलत मानकर कम्ब रामायण जैसे अविश्वसनीय स्त्रोत पर कैसे विश्वास कर किया जा सकता है? यह सर्वविदित है कि वाल्मिकी रामायण तक में इस तरह के प्रमाण नहीं दिए गए हैं। इसका मतलब साफ है कि सरकार इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए हर वह कदम उठाना चाहती है, जिससे इस विवादास्पद मुद्दे पर कहीं से कोई शोर नहीं सुनाए पड़े। सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट पर बनी १९ सदस्यीय समिति में से १८ ने इस प्रोजेक्ट के लिए दूसरे मार्ग अपनाने की सलाह दी थी। केवल एक ने यह सुझाव दिया है कि मार्ग छह का इस्तेमाल किया जाए। मार्ग छह के अपनाने से सेतु का तोड़ा जाना जरूरी हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को यह सलाह दी है कि वह मार्ग चार को अपनाए, जिससे यह पौराणिक तथ्य और विरासत को बचाया जा सके और करोड़ों लोगों के धार्मिक आस्था की रक्षा की जा सके।
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भारत की संसद भ्रष्ट नेता का अड्डा

न्यूक्लीयर डील पर विश्वास मत हासिल करने की कवायद और उस पर हुए ड्रॉमे ने देश को काफी कुछ बता दिया है। संसद में सरकार ने विश्वास मत तो हासिल कर लिया, लेकिन इस हासिल में बहुतों ने बहुत कुछ खोया है। भारतीय संसद जिस तरह से शर्मसार हुई, उसका उल्लेख बार-बार होगा। जब भी संसद की चर्चा होगी इस बात का उदाहरण दिया जाएगा कि संसद की गरिमा को कैसे धूमिल किया गया। यह उन नेताओं द्वारा किया जिसकी जमीर में हया का वास नहीं है। जिसने भारतीय राजनीति और लोकतंत्र का बाजार में बदल दिया है। सरे आम जहां खरीद-फरोख्त की जा रही है। उन लाखों-करोड़ों जनता जिसने उन नेताओं को चुनकर अपने प्रतिनिधित्व के रूप में संसद की नुमाइंदगी करने के लिए भेजा आज वह बेचे और खरीदे जा रहे हैं। यह भारत के संसदीय इतिहास में सचमुच एक इतिहास बना गया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भले ही संख्या बल पर विश्वास मत हासिल कर लिया, लेकिन नैतिकता के चश्मे से देखे तो यह उनके लिए दागदार वाला दिन रहा। मनमोहन सिंह की अपनी छवि भले ही एक साफ सुथरे नेता की रही हो, लेकिन अपने को संसद में जीता देखने के लिए जिस नेता का दामन पकड़े हुए थे वो दागदार हैं। इससे पहले १९९३ में नरसिंहा राव की सरकार ने अपनी सरकार बचाने के लिए उसी शिबू सोरेने का सहारा लिया था, जिसके लिए मनमोहन सिंह भी बेकरार दिखें। आखिर परमाणु डील इतना महत्वपूर्ण हो गया कि उन्होंने भारतीय संसद की गरिमा, भारतीय राजनीति और लोकतंत्र का ताक पर रखकर ऐसे समझौते किए जो उनके लिए तो नहीं, लेकिन देश में टीस पैदा करेंगे। आज भारतीय राजनीति अपने सफर में सबसे नीचे वाले पायदान पर खड़ी नजर आ रही है। अब तक जो ढंके छुपे होता आ रहा था, वह अब बिल्कुल खुला हुआ हमारे समक्ष है। जनता ये जानती थी कि नेता भ्रष्ट होते हैं, लेकिन वे यह भी कहेंगे कि नेता बिकाऊ होते हैं। और इस बात का सारा दारोमदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जाता है। उन्होंने भारतीय राजनीति में यह बात साफ तौर पर जाहिर कर दी कि संख्या बल का जुटाना हो तो जोड़-तोड़ की राजनीति के साथ करोड़ों की डील भी करनी पड़ती है। एक स्वच्छ नेता जिस पर यह जिम्मेदारी बनती है कि वह राजनीति से गंदगी को साफ कर राजनीति को आम आदमी के बीच पॉपुलर बनाए बजाय उसके उन्होंने इसकी गरिमा को मटियामेट कर दिया। सरकार भले ही अपना पीठ थपथपा रही हो, लेकिन अंदर से उसे भी पता है कि इस संख्या बल जुटाने के लिए उसे कितने रहस्यों पर पर्दा डालना पड़ा है। इस जीत को यूपीए चुनाव में भुनाने की कोशिश करेगी, लेकिन वह जनता को इस बात का जवाब कैसे देगी कि संख्या बल उन्होंने कैसे और किस तरह से जुटाए। देश की जनता ने संसद का पूरा हाल अपनी आंखों से देखा है और वह इतनी आसानी से भूलने वाली नहीं। अगर जनता भूलती है तो यह संसद के अंदर जो कुछ भी हुआ उससे बढ़कर शर्मनाक होगा। लोकसभा में मंगलवार को सांसद राहुल गांधी के भाषण में निरन्तर व्यवधान पर अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि भारत की संसद अपने –अधोबिंदु— पर पहुंच गई है। इसके बावजूद विश्वासमत प्रस्ताव के पक्ष- विपक्ष में दबाव और प्रलोभनों के आरोपों के बाद जिस तरह सदन में नोटों की गड्डियों का प्रदर्शन हुआ, उसे तो –पतन की पराकाष्ठा— ही कहा जाएगा। दरअसल सरकार का बनना और गिरना यदि जनादेश, नीतियों और कार्यक्रमों पर आधारित विशुद्ध लोकतांत्रिक प्रक्रिया हो, तो ऐसी नौबत ही नहीं आए। इसके विपरीत आज तो निजी स्वार्थों, आपसी सौदेबाजी और विचारधारा के विरुद्ध भी गठबंधन हो रहे हैं। ऐसी हालत में ये गठजोड़ कब टूट जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता। यही चार साल पुरानी मनमोहन सरकार के साथ हुआ और वामपंथी दल उसे मझधार में डुबोने के लिए अपने धुर विरोधियों भाजपा और उसके सहयोगी दलों से जा मिले। आश्चर्य की बात यह है कि वामपंथी दलों ने तो गत ८ जुलाई को समर्थन- वापसी की घोषणा कर दी थी, फिर सांसदों को घूस देने का –भंडाफोड़— विश्वास मत प्रस्ताव पर मतदान के ही दिन क्यों हुआ?
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सरकार को हलाल नहीं होने देगा ये दलाल

परमाणु करार पर देश में घमासान मचा हुआ है। देश में जो वातावरण तैयार हो रहा है वो साठ साला लोकतंत्र के मुंह पर कालिख पोतने का प्रयास मात्र है। पहली बार ऐसा हो रहा है कि देश को गिरवी रखने की एक डील पर डील हो रही है। अभी तक बडे पूंजीपति पर्दे के पीछे से सरकार से सम्फ किया करते थे और लाभ कमाते थे। लेकिन अब खुल्लमखुल्ला ये धनपशु न केवल अपने व्यावसायिक हित साध रहे हैं बल्कि देश की राजनीति की दिशा और दशा भी तय कर रहे हैं। तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया भी इन व्यावसायिक घरानों और सरकार के प्रवक्ता की भूमिका अदा कर रहा है। सरकार रहे या जाये लेकिन इस बहाने देश के राजनीति के चरित्र पर बहस करने का एक अवसर देश की जनता को नसीब हुआ है ।
एक समाचार पत्र की सुर्खी थी कि ‘सरकार को हलाल नहीं होने देगा ये दलाल’। बहुत तथ्यपरक और विचारणीय सुर्खी थी यह। इसे सिर्फ एक सुर्खी मात्र कहकर खारिज नहीं किया जा सकता बल्कि यह एक चिन्तन का अवसर है कि देश की राजनीति किधर जा रही है। क्या इसका जवाब यह है कि-’’यह दलाल सरकार को हराम कर देगा?‘‘
बार-बार बहस की जा रही है कि डील देशहित में है। सरकार और सपा का दावा सही माना जा सकता है। लेकिन सपा से एक प्रश्न तो पूछा जा सकता है कि अगर यह डील इतनी ही देशभक्तिपूर्ण थी तो उस समय जब जॉर्ज बुश भारत आये थे तब विरोध प्रदर्शन में सपा क्यों शरीक हुई?
सरकार से भी तो प्रश्न पूछा जा सकता है कि जब वामपंथी दलों ने सेफगार्ड और १२३ करार का मसौदा मॉगा तो सरकार ने कहा था कि यह गोपनीय दस्तावेज हैं और तीसरे पक्ष को नहीं बताये जा सकते हैं। सरकार अगर सच बोल रही थी तो महत्वपूर्ण सवाल है कि अमर सिंह और मुलायम सिंह ने बयान दिया कि उन्हें पूर्व राष्ट्रपति ए०पी०जे० अब्दुल कलाम और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम० के० नारयणन ने डील का मसौदा बताया और आश्वस्त किया कि डील देशहित में हैं। यक्ष प्रश्न यह है कि जो दस्तावेज सरकार को समर्थन दे रहे दलों को गोपनीय बताकर नहीं बताये गये वो बाहरी व्यक्ति अमर सिंह और मुलायम सिंह को क्यों दिखा दिये गये?
क्या कलाम और नारायणन को यह दस्तावेज इसलिये मालूम थे कि वो राष्ट्रपति रह चुके थे और राष्टीय सुरक्षा सलाहकार हैं? तब तो यह देश की सुरक्षा के लिये गम्भीर खतरा है, चकि कलाम कों तो देश के पूर्व राष्ट्रपति होने के नाते और नारायनन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होने के नाते बहुत से गम्भीर राज मालूम होंगे और क्या यह दोनों किसी सरकार को बचाने के लिये किसी को देश के राज बता देंगे?
सरकार से यह भी पूछा जा सकता है कि जब बुश ४ नवम्बर को रिटायर हो रहे हैं और व्हाइट हाउस स्पष्ट कह चुका है कि डील को अमरीकी संसद से मंजूरी मिलने की कोई गारन्टी नहीं है। तथा आई ए ई ए के प्रवक्ता ने स्पष्ट कहा है कि उनकी तरफ से ऐसी कोई बाध्यता नहीं थी कि डील का खुलासा नहीं किया जाये तब वो कौन सा कारण था कि डील देश से छुपाई गई? मनमोहन सरकार को बुश से किया वायदा याद है लेकिन देश की जनता से किया एक भी वायदा याद नहीं हैं।
सरकार ने डील पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिये एक विज्ञापन जारी किया जिसमें वैज्ञानिक अनिल काकेादकर केबयान को दोहराया गया है कि देश की ऊर्जा जरुरतों के साथ अगर समझौता किया गया तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा। बेहतर होता काकोदकर इतिहास पढाने से बचकर विज्ञान में कोई नया आविष्कार करते।
अब मुलायम सिंह और अमर सिंह कह रहे हैं कि अगर डील न हुई तो भाजपा आ जायेगी। यह गजब का तर्क है। यही समाजवादी नेता पहले कह रहे थे कि सोनिया आ गईं तो देश को विदेशी हाथों बेच देंगी। अब समझ में नहीं आता है कि इनका कौन सा बयान सही है? अमर सिंह जी कह रहे हैं कि मायावती उनके सॉसदों को धन देकर तोड रही हैं। गजब मायावती ने अमर सिंह का हुनर सीख लिया? लोगों को आश्चर्य है कि सपा ने यू टर्न ले लिया है। लेकिन यह झूठा सच है। मुलायम सिंह तो नरसिंहाराव की सरकार भी बचा चुके हैं। फिर यू टर्न कैसा ?करार हो या ना हो, सरकार रहे या जाये लेकिन एक नई बात हो रही है, अब भारतीयता का पाठ सोनिया पढायेंगी, देशभक्ति का पाठ मनमोहन सिंह पढायेंगे, इतिहास अनिल काकोदकर पढायेंगे, धर्मनिरपेक्षता का पाठ अमर सिंह पढायेंगे, मुलायम सिंह राजनीतिक सदाचार पढायेंगे और वेश्याऍ सतीत्व का पाठ पढायेंगी ? क्या देश की राजनीति इसी मुहान पर आ पहॅची है ?
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राजनैतिक दलों का सच हुआ उजागर

रामसेतु का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है जहां कांग्रेसी के पुरातत्वविदों ने भगवान राम के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाकर हिन्दू भावनाओं को चोट पहुंचाई है। अभी इस प्रकरण पर अंतिम सुनवाई होनी बाकी ही थी कि एक बार फिर अमरनाथ यात्रा से जुड़े प्रसंग न केवल हिन्दू भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं वरन् वर्तमान सत्ताधीश अलगाववादियों के समक्ष आत्मसमर्पण को भी उजागर कर रहे हैं। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा ४९.८८ एकड़ की जमीन आवंटित करने के निर्णय पर जम्मू कश्मीर के मुस्लिम नेताओं ने जिस तरह की अलगाववादी स्थितियां बनायी और जहर भरे वक्तव्य दिये उससे उनकी असलियत पूरे राष्ट्र के समक्ष आ गयी, जम्मू कश्मीर में सत्ता सुख भोग रही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का छद्म पंथनिरपेक्षता का मुखौटा भी उतर गया है। इस्लाम की दुहाई देने वाली आल इंडिया हुर्रियत कांफे्रस व उसके सहयोगी दलों ने जिस प्रकार पूरी श्रीनगर घाटी व जम्मू में अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड को भूमि आवंटन के विरोध में जोरदार हिंसक प्रदर्शन किया उसमें पाकिस्तान समर्थक नारे लगवाए, पाकिस्तान झण्डे फहराए, सी.आर.पी.एफ. वे सेना के जवानों पर हमले किए उससे यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि ये सभी राष्ट्रविरोधी आतंकवाद समर्थक हैं। आश्चर्य है कि कांग्रेस ने इनके समक्ष आत्मसमर्ण किया हुआ है।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में भारत सरकार जहां अल्पसंख्यकों के विकास व उनकी धार्मिक सुरक्षा के नाम पर उनके धामिक क्रिया-कलापों को पूर्ण कराने के लिए बिजली, पानी, सड़क, आवास, खाने-पीने, चिकित्सा जैसी सुविधाओं की पूर्ति करवाने के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं व हज यात्रा पर जाने वाले हजियों के साथ अपने दो-दो मंत्रियो तक को उनके साथ भेजती है। इतनी सारी सुविधाओं व सब्सिडी का असीम सुख भोगने के बाद भी इन कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों ने पाकिस्तानी आतंकियों का साथ लेकर अमरनाथ यात्रियों पर हमले करके अपनी गहरी बेशर्मी का प्रदर्शन किया है । इसे अच्छा ही कहेंगे कि मुस्लिमों और उसके तुष्टिकारकों दोनों का बदनुमा चेहरा एक साथ देश के सामने उजागर हो गया। जम्मू कश्मीर के मुख्य मंत्री गुलाम नवी आजाद ने पी.डी.पी. द्वारा समर्थन वापस लेने की घोषणा के बाद जहां राज्य की विस्फोटक होती स्थिति को सुधारने की दृष्टि से अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा व सुविधा का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया वहीं अमरनाथ श्राइन बोर्ड के अधिकार केवल पूजा तक ही सीमित कर दिया।
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कश्मीर में हिंदू विरोधी मानसिकता

कश्मीरी मुस्लिम नेता कश्मीरी हिंदुओं को मार भगाने संबंधी अपना पाप छिपाने तथा शेष भारत के हिंदुओं को बरगलाने के लिए कश्मीरियत का हवाला देते है, लेकिन असंख्य बार धोखा खाकर भी हिंदू वर्ग कुछ नहीं समझता। अभी-अभी मुफ्ती मुहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती ने जिस तरह जम्मू-कश्मीर सरकार को गिराया वह कश्मीरियत की असलियत का नवीनतम उदाहरण है। प्रांत में तीसरे-चौथे स्थान की हस्ती होकर भी मुफ्ती और उनकी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने तीन वर्ष तक मुख्यमंत्री पद रखा। विधानसभा चुनाव में पीडीपी को 13 सीटे और तीसरा स्थान मिला था, जबकि पहले स्थान पर रही कांग्रेस को 20 सीटे मिली थीं, फिर भी कांग्रेस ने पीडीपी को पहला अवसर दे दिया। कांग्रेस ने आधी-आधी अवधि के लिए दोनों पार्टियों का मुख्यमंत्री बनाने का फार्मूला माना था। जब आधी अवधि पूरी हुई तब पहले तो मुफ्ती ने समझौते का पालन करने के बजाय मुख्यमंत्री बने रहने के लिए तरह-तरह की तिकड़में कीं। अंतत: जब कांग्रेस ने अपनी बारी में अपना मुख्यमंत्री बनाना तय किया तो मुफ्ती ने 'नाराज न होने' का बयान दिया। तभी से वह किसी न किसी बहाने सरकार से हटने या उसे गिराने का मौका ढूंढ रहे थे। अमरनाथ यात्रा के यात्रियों के लिए विश्राम-स्थल बनाने के लिए भूमि देने से उन्हें बहाना मिल गया। इसीलिए उस निर्णय को वापस ले लेने के बाद भी मुफ्ती और उनकी बेटी ने सरकार गिरा दी। भारत का हिंदू कश्मीरी मुसलमानों से यह पूछने की ताब नहीं रखता कि जब देश भर में मुस्लिमों के लिए बड़े-बड़े और पक्के हज हाउस बनते रहे है, यहां तक कि हवाई अड्डों पर हज यात्रियों की सुविधा के लिए 'हज टर्मिनल' बन रहे है और सालाना सैकड़ों करोड़ रुपये की हज सब्सिडी दी जा रही है तब अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले हिंदुओं के लिए अपने ही देश में अस्थाई विश्राम-स्थल भी न बनने देना क्या इस्लामी अहंकार, जबर्दस्ती और अलगाववाद का प्रमाण नहीं है?

चूंकि कांग्रेस और बुद्धिजीवी वर्ग के हिंदू यह प्रश्न नहीं पूछते इसलिए कश्मीरी मुसलमान शेष भारत पर धौंस जमाना अपना अधिकार मानते है। वस्तुत: इसमें इस्लामी अहंकारियों से अधिक घातक भूमिका सेकुलर-वामपंथी हिंदुओं की है। कई समाचार चैनलों ने अमरनाथ यात्रियों के विरुद्ध कश्मीरी मुसलमानों द्वारा की गई हिंसा पर सहानुभूतिपूर्वक दिखाया कि 'कश्मीर जल रहा है'। मानों मुसलमानों का रोष स्वाभाविक है, जबकि यात्री पड़ाव के लिए दी गई भूमि वापस ले लेने के बाद जम्मू में हुए आंदोलन पर एक चैनल ने कहा कि यह बीजेपी की गुंडागर्दी है। भारत के ऐसे पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और नेताओं ने ही अलगावपरस्त और विशेषाधिकार की चाह रखने वाले मुस्लिम नेताओं की भूख बढ़ाई है। इसीलिए कश्मीरी मुसलमानों ने भारत के ऊपर धीरे-धीरे एक औपनिवेशिक धौंस कायम कर ली है। वे उदार हिंदू समाज का शुक्रगुजार होने के बजाय उसी पर अहसान जताने की भंगिमा दिखाते है। पीडीपी ने कांग्रेस के प्रति ठीक यही किया है। इस अहंकारी भंगिमा और विशेषाधिकारी मानसिकता को समझना चाहिए। यही कश्मीरी मुसलमानों की 'कश्मीरियत' है। यह मानसिकता शेष भारत अर्थात हिंदुओं का मनमाना शोषण करते हुए भी उल्टे सदैव शिकायती अंदाज रखती है। जो अंदाज छह वर्षो से मुफ्ती और महबूबा ने दिखाया वही फारुख अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर का भी था। वाजपेयी सरकार में मंत्री रहते हुए भी उनकी पार्टी ने लोकसभा में वाजपेयी सरकार के विश्वास मत के पक्ष में वोट नहीं दिया था। वह मंत्री पद का सुख भी ले रहे थे और उस पद को देने वाले के विरोध का अंदाज भी रखते थे। जैसे अभी मुफ्ती ने कांग्रेस का दोहन किया उसी तरह जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में फारुक अब्दुल्ला ने भाजपा का दोहन किया। पूरे पांच वर्ष वह प्रधानमंत्री वाजपेयी से मनमानी इच्छाएं पूरी कराते रहे। जम्मू और लद्दाख क्षेत्र कश्मीरी मुसलमानों की अहमन्यता और शोषण का शिकार रहा है।

जम्मू और लद्दाख भारत का पूर्ण अंग बनकर रहना चाहते है। इन क्षेत्रों को स्वायत्त क्षेत्र या केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग लंबे समय से स्वयं भाजपा करती रही। फिर भी केंद्र में छह साल शासन में रहकर भी उसने फारुक अब्दुल्ला को खुश रखने के लिए जम्मू और लद्दाख की पूरी उपेक्षा कर दी। यहां तक कि पिछले विधानसभा चुनाव में फारुक अब्दुल्ला को जिताने की खातिर भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में गंभीरता से चुनाव ही नहीं लड़ा। बावजूद इसके जैसे ही लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन पराजित हुआ, फारुख ने उससे तुरंत पल्ला झाड़ लिया। इस मानसिकता को समझे बिना कश्मीरी मुसलमानों को समझना असंभव है। वाजपेयी सरकार के दौरान एक तरफ फारुख अब्दुल्ला ने तरह-तरह की योजनाओं के लिए केंद्र से भरपूर सहायता ली, जबकि उसी बीच जम्मू-कश्मीर विधानसभा में राज्य की 'और अधिक स्वायत्तता' के लिए प्रस्ताव पारित कराया। एक तरह से यह वाजपेयी के साथ विश्वासघात जैसा ही था। यदि वह प्रस्ताव लागू हो तो जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री होगा। साथ ही वे तमाम चीजें होंगी जो उसे लगभग एक स्वतंत्र देश बना देंगी,मगर उसके सारे तामझाम, ठाट-बाट, सुरक्षा से लेकर विकास तक का पूरा खर्चा शेष भारत को उठाते रहना होगा। इस तरह कश्मीरी मुसलमान एक ओर भारत से अलग भी रहना चाहते है और दूसरी तरफ इसी भारत के गृहमंत्री, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति और मौका मिले तो प्रधानमंत्री भी होना चाहते है। मुफ्ती मुहम्मद सईद, फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला तथा अन्य कश्मीरी मुस्लिम नेताओं के तमाम राजनीतिक लटके-झटके केवल एक भाव दर्शाते है कि वे भारत से खुश नहीं है। यही कश्मीरियत की असलियत है। कश्मीरी मुस्लिम नेतै, चाहे वे किसी भी राजनीतिक धारा के हों, शेष भारतवासियों को बिना कुछ दिए उनसे सिर्फ लेते रहना चाहते है। इस मनोविज्ञान को समझना और इसका इलाज करना बहुत जरूरी है, अन्यथा विस्थापित कश्मीरी हिंदू लेखिका क्षमा कौल के अनुसार पूरे भारत का हश्र कश्मीर जैसा हो जाएगा।
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