आतंकवाद और इच्छाशक्ति

आज हिन्दुस्तान में आतंकवादियों की स्थीति काफी मजबूत हो गई है। कट्टरपंथी तबके का यहां बोलबाला हो गया है। यहां सिमी, लश्कर, हिजबुल मुजाहिदीन व हरकत उल जेहादी इस्लामी से जुड़े कई स्थानीय सेल्स हैं जिनका मकसद हर हाल में दहशत फैलाना है। विस्फोटकों और नकली नोटों की बरामदगी से भी साफ है कि आतंकवादी यहां अफरातफरी फैलाना चाहते हैंअब सवाल यह है कि इन्हें चोट पहुंचाने के लिए किया क्या जाए? जाहिर है जिस एक उपाय पर आज लोग सबसे कम ध्यान दे रहे हैं वह है पोटा या टाडा जैसे कानून की जरूरत। ऐसा कानून जो पकड़े गए आतंकवादियों को फांसी या सख्त सजा सुनाए।
लेकिन हकीकत क्या है आतंक का सामना करने की बात जब आती है
तो भारत की तस्वीर एक नपुंसक राष्ट्र के रूप में उभरती है। पुलिस और नेता पुराना राग अलापते हैं लेकिन वास्तव में कोई मौलिक परिवर्तन नहीं होता। कब कहाँ सीरियल बम ब्लास्ट हो जाये किसी को पता नही हम घर से निकलते है घर लैटे या नाही पता नही। आतंकवादी बार-बार मानवाता का चीर-हरण करते रहे हैं। आतंकवादियों के हौसले बुलंद हैं और एक एक करके नए शहर उनके निशाने पर चढ़ते जा रहे हैं और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। स्थितियां भयावह हैं। चिंताजनक बात यह है कि हमारा राजनेता आतंकवादी हमलों को रोकने में तो नाकाम है आतंकवादियों को पकर कर सजा दिलाने में भी उनका आज तक कुछ खास नही कर पायें हैं। 1993 के मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में अभियुक्तों को अंजाम तक पहुंचाने में 14 साल लग गए, संसद भवन के हमलावर अभी तक सरकारी मेहमान बने हैं और सरकार आतकवादियों को बचाने के लिय टालमटोल कर रही है । हमारे तंत्र में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति की कमी सदैव खलती है। और इससे भी खतरनाक है ऐसे तत्वों के बारे में राजनीतिक प्रटेक्शन की मुहैया करतें हैं।
9/11 के बाद आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी कार्रवाई की चौतरफा निंदा भले ही हो रही हो लेकिन दुनिया के सामने आज यह एक सच्चाई है कि 2001 के बाद से अमेरिका की ओर आतंकवादियों ने आंख उठाकर भी नहीं देखा है। कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि आतंकवाद के प्रति अमेरिका के अप्रोच का हम समर्थन कर रहे हैं। लेकिन कब तक हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे और निर्दोष लोगों को आतंकवादियों के हाथों मरते देखते रहेंगे ? अबतो वक्त आ ही गया है कि हम आतंकवाद पर जवाबी हमला बोलें।
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