काश मैं भारत में न पैदा हुआ होता।

मैं कई दिनों से यह सोच रहा हूं कि काश मैं भारत में न पैदा हुआ होता।
यह विचार मेरे मन में इसलिये आता है क्यों कि हम भारतवासी किस चीज पर गर्व कर सकते हैं। हमको बचपन से यह सिखाया जाता है कि हम लुटे पिटे हुये लोग हैं। पहले हमको तुर्कों ने पीटा फ़िर मुगलों ने और फिर अंग्रेजों ने और आज करोडों भारतीयों पर काले अंग्रेज दिखने में भारतीय पर आत्मा से अंग्रेजी मोह से ग्रस्तहृ राज कर रहे हैं जो कि बाहर से तो देखने में तो भूरे हैं लेकिन अंदर से एकदम अंग्रेज।
कहने को तो हमारे यहां लोकतंत्र है लेकिन न्यायालय का एक निर्णय सुनने के लिये पूरा जीवन भी कम पड ज़ाता है। हमको यह नहीं सिखाया गया कि हमारी सभ्यता 5000 हजार सालों से भी पुरानी है। हमारे यहां वेद उपनिषद पुराण ग़ीता महाभारत जैसे महान ग्रंथों की महानता एवं उनका आध्यात्म नहीं सिखाया जाता । हमारे यहां अपनी भाषा का सम्मान करना नहीं सिखाया जाता है बल्कि हिन्दी या किसी अन्य भारतीय भाषा में पढने वाले को पिछडा हुआ या बैकवर्ड समझा जाता है। हमको यह सिखाया जाता है कि शिवाजी, गुरू तेगबहादुर जी जैसे महावीर लोग लुटेरे थे। हमारा सबकुछ आक्रमणकारियों या हमलावरों की देन है चाहे वो भाषा हो या संस्कृति या और कुछ।

हमारे घरों में अंग्रेजी में पारंगत होने पर बल दिया जाता है क्योंकि संस्कृत या हिन्दी या अन्य भारतीय भाषायें तो पुरातन और पिछडी हुई हैं। लोग अपने बच्चों को अंग्रजी स्कूल में दाखिला दिलाने के लिये हजारों लाखों कुर्बान करने को तैयार हैं। बच्चों को शायद वन्दे मातरम न आता हो लेकिन ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार जरूर आता होगा।

जयशंकर प्रसाद के नाम का तो पता नहीं लेकिन सिडनी शेल्डन का नाम अवश्य पता रहता है। हम जो इतिहास पडते हैं वो अंग्रेजों या अंग्रजी विचारधारा के लोगों द्वारा लिखा गया है ज़ो कि हमारी संस्कृति हमारी सभ्यता हमारे आचार विचार हमारे धर्म को ठीक तरह से जानते तक नहीं हैं। ऐसे में हम कैसे सही बिना किसी द्वेष भावना के लिखा गये एवं सच्चाई से अवगत कराने वाले इतिहास की उम्मीद कर सकते हैं? क्या कारण है कि हम इनके द्वारा लिखे गये इतिहास को सच समझ लें। और यही कारण हो सकता है कि हम अपना इतिहास ठीक से न जानते हैं और न ही समझते हैं।

इतिहास एक ऐसी चीज है जो कि भावी पीढी क़े मन में अपनी संस्कृति का सम्मान उत्पन्न करता है जो कि हमसे छीन लिया गया है। हम हजारों लाखों की तादाद में सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनाते हैं और अपने को गर्व से सूचना क्षेत्र की महाशक्ति कहते हैं परन्तु आजतक हम अपनी भाषाओं में काम करने वाले सॉफ्टवेयर एवं कम्प्यूट्र नहीं बना पाये हैं। हमारा काम लगता है कि हम पैसा खर्च करके इन इंजीनियरों को बनायें और पश्चिमी देशों को उपलब्ध कराना है जिनमे से ज्यादातर भारत नहीं लौटना चाहते हैं।

पहले हमको अंग्रजों ने गुलाम किया अब हम अंग्रेजियत के गुलाम हैं। लगता है कि हमारा कोई अस्तित्व है ही नहीं। क्या हम इसीलिये आजाद हुये थे? पता नहीं हम भारतवासियों की आत्मा कब जागेगी?

बाद में और लिखा गया

कुछ को ये बाते सही नही लग रही है कारण कुछ भी हो लेकिन इतना तो जरुर है कि हमें तलवे चाट ने कि आदत पर चुकी है। हम अभी भी मानसिक रुप से गुलाम हैं और पढें लिखे मुर्ख आदमी इसके लिये जिम्मेंदार है जो अपना जिम्मेदारी सें बचता है और तर्क के द्वारा हर झुठी और गलत बात को सच्च सिद्द करने कि कोशीश करता है
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5 comments: on "काश मैं भारत में न पैदा हुआ होता।"

अजय कुमार झा said...

bus dekhne kaa nazariya hai huzoor, waise ab kya kiya jaa saktaa hai ab to aap paidaa ho gaye.

admin said...

भाई, ये बस हमारे देखने का नजरिया है। यह हमपर ही निर्भर है कि हम आधे भरे गिलास को आधा खाली कहें या आधा भरा। वैसे गर्व करने के लिए आजका समाचार पत्र ही देख लें, मेरी समझ से यह खुशी भी कम नहीं है अपने आपको भारतीय कह कर गर्वानुभूमि करने के लिए।
एक विनम्र निवेदन में कमेंट बॉक्स में वर्ड वेरीफिकेशन न रखें, इससे कमेंट करने वाले को इरीटेशन होती है।

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छा लिखा अपने लेख,मे तो यही कहुगां (हम सभी नही लेकिन ८०% भारतिया )हम वो धोबी के गधे हे जो ना घर के, न घाट के.

आनंद said...

क्‍या आप अमेरिका, इंग्‍लैंड या चीन में पैदा हुए होते तो गर्व होता? दोगलापन पूरी दुनिया में है, बच कर कहाँ जाएंगे? मेरे विचार से आपके लिए अब एक ही रास्‍ता बचा है कि अच्‍छे कर्म करें और मोक्ष प्राप्‍त करें। जन्‍म मरण से जब छुटकारा मिलेगा तभी बात बनेगी। - आनंद

Udan Tashtari said...

लिखा तो बहुत अच्छा है..मगर भारत छोड़ कहाँ एडजस्ट हो पाते, जरा नाम तो बताना?? :) haa haa...मजाक कर रहा हूँ.