अंतिम अधिवेशन में भाषण
विश्वधर्म महासभा एक मूर्तिमानतथ्य सिद्ध हो गयी हैं और दयामय प्रभु ने उन लोगों की सहायता की हैं, तथा उनके परम निःस्वार्थ श्रम को सफलता से विभूषित किया हैं, जिन्होंने इसका आयोजन किया।
उन महानुभावों को मेरा धन्यवाद हैं, जिनके विशाल हृदय तथा सत्य के प्रति अनुराग ने पहले इस अद्भुत स्वप्न को देखा और फिर उसे कार्यरुप में परिणत किया । उन उदार भावों को मेरा धन्यवाद, जिनसे यह सभामंच आप्लावित होता रहा हैं । इस प्रबुद्ध श्रोतृमण्डली को मेरा धन्यवाद जिसने मुझ पर अविकल कृपा रखी हैं और जिसने मत-मतान्तरों के मनोमालिन्य को हलका करने का प्रयत्न करने वाले हर विचार का सत्कार किया । इस समसुरता में कुछ बेसुरे स्वर भी बीच बीच में सुने गये हैं । उन्हे मेरा विशेष धन्यवाद, क्योंकि उन्होंने अपने स्वरवैचिञ्य से इस समरसता को और भी मधुर बना दिया हैं ।
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