नंदीग्राम के हिटलर

आज नंदीग्राम में सत्तारूढ़ माकपा कार्यकर्ता के द्वारा जो कुछ हो रहा है 23 साल पूर्व कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रायोजित देशव्यापी सिख नरसंहार जिसमे में तीन हजार से अधिक सिख मारे गए थे घटना कि याद तजा हो गई।
पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने सत्तारूढ़ सीपीएम के नंदीग्राम पर हमले को सही ठहराया है। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ माकपा पर नंदीग्राम में अपनी नीतियों के जरिये भारतीय राज्य पर युद्ध छेड़ने का आरोप लगाया। मनमोहन-सोनिया पर इस मामले में 'धृतराष्ट्र' की तरह आंखें बंद करने का आरोप लगाया। माकपा ने इलाके को प्रवेश निषेध क्षेत्र बना रखा है और 'रेड रिपब्लिक' की स्थापना कर दी है जो किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। माकपा नंदीग्राम में निजी सेना की मदद ले रही है जिसमें कुख्यात बदमाश शामिल हैं। अमानुल्ला (पत्रकार) ने कहा, "बुद्धदेब भट्टाचार्य मुख्यमंत्री की तरह नहीं बोल रहे थे उनके भीतर सियासी अहम पैदा हो गया है और उनकी भाषा इसी को दर्शाती है इसमें तानाशाही की भी झलक मिलती है पुलिस बाले भी सीपीएम में शामिल हो गए हैं और सत्ता एवम माकपा कार्यकर्ता से साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं
नंदीग्राम के किसानों के लिए ये अस्तित्व कि लड़ाई है। उसके लिए पिछले कुछ महीनों में उन्होने न जाने कितनी जाने गवाईं हैं। जाने अब भी जा रही है। कोर्ट तक को कहना पड़ा कि पानी सर के ऊपर जा रहा है। बंगाल में उन्ही वामदलों कि सरकार है, जिन्होनें गुजरात दंगों के खिलाफ जमकर बवाल काटा था। मोदी को हिटलर और ना जाने क्या-क्या कहा था। आज वामपंथी धरे के वो सारे बुध्धि भी चुप हैं जो गुजरात दंगों पर खुद आगे आकार बवाल कट रहे थे। कोर्ट और ना जाने कहाँ-कहाँ तक गए थे। आज उनको कोई मौत विचलित नहीं करती। क्युकी नंदीग्राम में बह रहे खून से उनकी राजनीति नहीं चमकती। यहाँ लड़ाई का न तो कोई जातिया आधार है, और ना ही सांप्रदायिक। यहाँ कि लड़ाई किसानों कि है। जो अपने अस्तित्व कि लडाई लड़ रहे हैं।'जैसा किया वैसा ही पाया' नंदीग्राम में हो रही हिंसा पर पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेब साहब का यही ताजा बयान है। याद करिये गुजरात दंगे का वक्त जब मोदी ने यही कहा था, सारे देश के तथाकथित विद्वानों ने मोदी को हिटलर कहा । कहाँ है आज वो सारे दिग्गज, आज बुद्धदेब को हिटलर के खिताब से क्यों नहीं नवाजते।नंदीग्राम में सरकार की प्रायोजित हिंसा और बंद के बाद पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार की जो छवि दुनिया के सामने आई है उसने पूरे कम्युनिस्ट सिध्दांतों को सत्तालोलुपता के हाथों गिरवी रख दिया है। गरीबों, मजदूरों और किसानों के हक के लिए सत्ता को दरकिनार करके न्याय की लड़ाई लड़ने की छवि वाले क्या यही कम्युनिस्ट हैं?
आज समूचा देश नंदीग्राम की घटना से चिंतित है। पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में हालात दिनोंदिन और बिगड़ते जा रहे हैं। सोमवार को माकपा समर्थकों द्वारा गोलाबारी और आगजनी की घटना के बाद इलाके में तनाव फैल गया है। माकपा समर्थकों द्वारा फायरिंग और घरों को आग लगाने का आरोप लगाया है। इलाके से करीब 200 लोग गायब हैं, जिनका बीती रात से कुछ पता नहीं चल सका है। मामले की गंभीरता को देखते हुए यहां सीआरपीएफ की पांच कंपनियां तैनात की गई हैं।गर्चाक्रोबेरिया, सोनाचुरा और गोकुलनगर आदि इलाकों को कब्‍जे में लेकर माकपा समर्थकों ने गोलीबारी की। उन्होंने घरों को आग लगा दी। नंदीग्राम और आसपास से मिल रही जानकारी के मुताबिक सशस्त्र मार्क्सवादी समर्थकों ने नंदीग्राम की ओर जाने वाले लगभग सभी रास्तों पर नाकेबंदी कर रखी है. यहाँ तक कि मीडियाकर्मियों को भी वहाँ नहीं जाने दिया जा रहा है
इस बीच, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मुद्दे पर पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी कर वहां जांच टीम भेजने के लिए कहा है। यहां प्रश्न यह उठना काफी लाजमी लगता है कि क्या इसतरह के वामपंथ पार्टी वाली सरकार की जरूरत आज है या नहीं। ये वामपंथ सत्ता लेने के समय आमजन के हितों व जानमाल की रक्षा की बात तो करती है, मगर सरकार में रहकर वह पूंजीपतियों के हित के लिए आम जन पर प्रहार कर रही है और जब राज्यपाल इस पर चिंता व्यक्त करते है तो वामपंथियों को यह बात खटकने लगती है।
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