ज्यादा नही सिर्फ एक महीना पहले रुस में हमारे प्रधानमंत्री शेर के तरह चिंघार कर आये थे यैसा लग रहा था कि मुम्बई पर पाकिस्तानी के आक्रमण के बाद हिन्दुस्ताने पाकिस्तान को कच्चा खा जायेंगे यैसा लग रहा था कि इस बार तो पाकिस्तान गया काम से मेरे एक मित्र ने कहा पाकिस्तान को इसकी सजा मिलनी चाहिये इस बार हमारी सरकार पाकिस्तान को नही छोडे़गा हो सकता है शायद हिन्दुस्तान इस बार पाकिस्तान पर आक्रमण कर दे और पाकिस्तान का नामोनिशान इस मिटा देगा। मैं मुस्कुराया और कहा "माँ का दुध पीने से अगर ताकत नही मिलता है तो बाप का छाती चाटने से कुछ नही होता है"। और अब मेरा बात सच्च हो गया हम हिन्दुस्तानी को अपने अन्दर तो मर्दानगी नही है किसी और किसी और विधी से अपने नंपूसकता को छिपाते फिरते हैं।
वैसे इसमें हमारे प्रधानमंत्री का कोई कसूर नही है उन्हों ने वही किया जो 62 साल से कांग्रेस सरकार करते आ रहा है हिन्दुस्तान के मुस्लमानों को तुष्ट करने के लिये पाकिस्तान पर किसी भी तरह के कार्यवाही करने से बच रहा है इसके चलते हम हिन्दुस्तानी का कफी नुक्सान कर रहें हैं। मिश्र में प्रधानमंत्री के द्वारा दिये गरे संयुक्त घोषणा पत्र से यह सिद्धा हो गया है कि हमारे देश के नेताओं के पास अपने देश के रक्षा करने का कोई ठोस नीति नही है हिन्दुस्तान का रक्षानीति अमेरिका तैयार करता है और अमेरिका जो कहेगा हमारे देश के शासक वर्ग वही करेंगे।
आखिर 26/11 को हिन्दुस्तान पर पाकिस्तानी हमले में पाकिस्तान के क्या कार्यवाही कि कुछ भी तो नही और पाकिस्तान अपने नागरिकों या सेनानायक के उपर किसी भी तरह का कोई कार्यवाही क्यों करेगा? जब उसका सारा आपरेश्न पाकिस्तान हूक्मराने के कहने पर ही चल रहा था पाकिस्तान आर्मी के आफिसर अभी आतंकवादियों को अपने संरक्षण में ट्रेनिग दे रहा था और पाकिस्तान सरकार इस पुरे आपरेश्न को पैसा मुहय्या करवा रहा था तो आखिर हम इस इन्तजार में क्यों हैं कि पाकिस्तान अपने नागरिकों और आर्मी आफिसर को सजा देगा उलटे पाकिस्तान तो उन सभी को ईनाम देने के फिराक में होगा।
लेकिन हमारे देश के भाग्यविधाता को इस बात का समझ कब आयेगा कि पाकिस्तान हमारा दोस्त कभी नही हो सकता जिसने कसम खा रखा हो हिन्दुस्तान के तबाह और बर्वाद करने का और जिसके सहयोगी हिन्दुस्तान के हर शहर में बैठे हो उस स्थिती में पाकिस्तान के बन्दरघुरकि से हम कैसे डरा कर अपना दोस्त बना सकते हैं। इस बार हमारे देश के सैनिकों तो जीत गये लेकिन मेज पर हम फिर हार गयें और बलुचिस्तान का कंलक अलग से।
2 comments: on "माँ का दुध पीने से अगर ताकत नही मिलता है तो बाप का छाती चाटने से कुछ नही होता है"
किसी भी कंपनी का CEO अपने निर्देशक के निर्देशानुसार ही काम करता है, मनमोहनसिंह सोनिया गांधी एण्ड कंपनी प्राइवेट अनलिमिटेड के CEO हैं, जिनका अपना कोई निर्णय नहीं होता, अपनी नौकरी बचाने की उनको सदा फिक्र रहती होगी, कि कहीं कोई गलती हो गयी तो नौकरी गयी, उनके मन में कभी देश को बचाने का ख्याल आता भी होगा(जिसकी उम्मीद कम ही है) तो बिचारे बिना पूंछे बोल भी नही सकते। जो खुद बिना अधार के खडा हो वो देश को क्या आधार दे सकता है। सोचने की बात है.........
भाई सिर्फ हिन्दुस्तान के मुस्लिमों को खुश करने के लिए ही नहीं बल्कि जेहादी सेकुलरों को भी खुश करने के लिए पाकिस्तान के पाप माफ़ करने की जुगत चल रही है. वरना चुनाव के पहले तक दहाड़ मारने वाला 'सिंह' चुनाव होते ही बकरी की तरह मिमियाने क्यों लगता? अब हम तो चुनाव जीत गए, पाकिस्तानियों और जेहादियों के हाथो हिन्दुस्तान की निर्दोष जनता मरे तो मरने दो. पांच साल बाद फिर देखा जाएगा. अभी तो वोट बैंक को मस्का लगाना है. और उनके पाक वकीलों कुलदीप नैयारो, खुशवंत सिंहों, महेश भट्टों, और एन डी टी वीयों के बताये रस्ते पर चलना है. १०० करोड़ की जनता और बिना रीढ़ का नेता! जे हो!
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