सिमी का फैलता जाल

सिमी का फैलता जाल

प्रतिबन्धित इस्लामी संगठन स्टूडेंटस इस्लामिक मूवमेंट आफ इण्डिया या संक्षिप्त रूप में जिसे सिमी के नाम से जाना जाता है अब खुफिया एजेंसियों के लिये काफी बडा सिरदर्द बनता जा रहा है। खुफिया एजेंसियों के अनुसार सिमी ऐसा पहला आतंकवादी संगठन है जिसने देश के अन्दर बडे पैमाने पर देशी आतंकवादियों का नेटवर्क खडा कर लिया है और इन खुफिया एजेंसियों का यह भी मानना है कि यह देश में कार्यरत अनेक मुस्लिम चरमपंथी संगठनों के साथ मिलकर काम ही नहीं कर रहा है वरन उनके साथ मिलकर नेटवर्क को और अधिक व्यापक बना रहा है। यह खुलासा मार्च के महीने में इन्दौर से पकडे गये सिमी के 13 सदस्यों में से एक अमील परवेज के साथ पुलिस की पूछताछ के दौरान हुआ। परवेज ने बताया कि सिमी हैदराबाद स्थित चरमपंथी इस्लामी संगठन दर्सगाह जिहादो शहादत के साथ के साथ काफी निकट से सम्बद्ध है और इसके साथ मिलकर काम कर रहा है।पूछ्ताछ के दौरान इस रहस्योद्घाटन से स्पष्ट हो गया है कि इस्लामी संगठन मिलकर काम कर रहे हैं और इनका विशेषकर सिमी का व्यापक नेटवर्क देश भर में स्थापित हो चुका है। पुलिस से पूछ्ताछ के दौरान अमील परवेज ने बताया कि दर्सगाह के अध्यक्ष शेख महबूब अली ने उसे मार्शल आर्ट की शिक्षा देने के लिये बुलाया था। इसके बाद पुलिस इस कोण पर भी जाँच कर रही है कि सिमी के देश भर में ऐसे कितने इस्लामी संगठनों के साथ सम्बन्ध हैं। पुलिस की इस बात को स्वीकार कर रही है कि यह तो एक शुरूआत भर है और ऐसे कितने ही रहस्य अभी आगे खुलने शेष हैं।
इससे पूर्व भी हैदराबाद में दर्सगाह की गतिविधियों के बारे में और इसके उग्र स्वरूप के बारे में पहली बार तब पता चला था जब गुजरात के पूर्व मंत्री हरेन पाण्ड्या की हत्या के आरोपी मौलाना नसीरुद्दीन को पुलिस ने पकडा तो दर्सगाह के सदस्यों ने पुलिस पर पथराव कर उसे पुलिस की पकड से छुडाने का प्रयास किया और जबरन पुलिस की गाडी से उसे ले जाने का प्रयास करने लगे। इस घटना के उपरांत पुलिस ने जब भीड को तितर बितर करने के लिये गोली चलाई तो दर्सगाह का कार्यकर्ता मुजाहिद सलीम इस्लाही गोलीबारी में मारा गया।.

हैदराबाद के पुलिस आयुक्त ने भी स्वीकार किया कि वे इस संगठन के बारे में जानते हैं और सम्भव है कि सिमी के कुछ पूर्व सदस्य इस संगठन से सम्बद्ध हों। दर्सगाह के सम्बन्ध में उसकी वेबसाइट www.djsindia.org से जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसकी वेबसाइट के अनुसार इस संगठन का उद्देश्य मुस्लिम युवकों को शारीरिक और मानसिक रूप से सशक्त बनाना और इस हेतु उन्हें प्रशिक्षण देना जो कि सशस्त्र भी हो सकता है। इस संगठन के अनुसार उसका प्रमुख उद्देश्य हिजाब के सिद्धांत को सख्ती से लागू कराना, शरियत, मस्जिद और कुरान की पवित्रता और सुरक्षा सुनिश्चित करना, स्त्रियों की पवित्रता की रक्षा करना, इस्लामी सुधार के लिये मार्ग प्रशस्त करना और अंत में इसके उद्देश्य में कहा गया है कि अल्लाह और इस्लाम की सर्वोच्चता स्थापित करना। लेकिन जिस बात ने खुफिया एजेंसियों को इस संगठन के सम्बन्ध में सर्वाधिक सतर्क किया है वह है इसके प्रशिक्षण की एक व्यवस्था जिसके अंतर्गत हैदराबाद के बाहरी क्षेत्रों में कुछ विशिष्ट लोगों को छांटकर प्रशिक्षण दिया जाता है। परवेज ने पुलिस को बताया कि उसने 2007 में दो प्रशिक्षण शिविरों में भाग लिया था और इन शिविरों में अनेक कठिन प्रशिक्षण दिये गये जिनमें चाकू छूरी चलाने से लेकर पेट्रोल बम बनाने तक का प्रशिक्षण था। इस वेबसाइट ने एक किशोर का चित्र भी लगा रखा था जिसके हाथ में एक पट्टिका थी जिस पर लिखा था “ कुरान हमारा संविधान है और मैं उसका सिपाही” परंतु कुछ समाचार पत्रों में इसके बारे में समाचार प्रकाशित होने के बाद फिलहाल इस चित्र को वहाँ से हटा दिया गया है।

पुलिस से पूछ्ताछ में जब सिमी और दर्सगाह के परस्पर सम्बन्धों की बात निकली तो दर्सगाह के अध्यक्ष शेख महबूब अली ने सिमी के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्धों से तो इंकार किया और कहा कि उनके संगठन के अन्य किसी संगठन से सम्बन्ध नहीं है परंतु यह माना कि देश भर में उनके 10-12 केन्द्र हैं और कौन कहाँ प्रशिक्षण प्राप्त करता है इसका रिकार्ड रखना सम्भव नहीं है। परवेज ने पूछ्ताछ में बताया कि प्रशिक्षण के दौरान शिविर के प्रभारी सफदर और कमरुद्दीन ने उसे बताया था कि यह आरम्भिक प्रशिक्षण है और इसके बाद जो लोग छांटे जायेंगे उन्हें पुनः प्रशिक्षित किया जायेगा। .
परवेज की पूछ्ताछ में सिमी के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस्लामी संगठनों से सम्पर्क की बात सामने आयी है 1997 में अलीगढ में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसकी अध्यक्षता सिमी के तत्कालीन अध्यक्ष शाहिद बद्र फलाही ने की थी और उस सम्मेलन में परवेज के साथ 20 वर्षीय फिलीस्तीनी मूल के हमास नामक फिलीस्तीनी आतंकवादी संगठन के सदस्य शेख सियाम ने भी भाग लिया था। परवेज ने पूछ्ताछ के दौरान यह भी स्पष्ट किया है कि 2001 में इस संगठन पर प्रतिबन्ध लग जाने के बाद भी किस प्रकार यह सक्रिय रहा और अपनी गतिविधियाँ चलाता रहा। परवेज के अनुसार काफी सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद सफदर नागौरी और नोमन बद्र ने इस संगठन को नये सिरे से खडा किया। परवेज के अनुसार नगौरी ने उससे कहा कि वह प्रतिबन्ध हटवाने का पूरा प्रयत्न करेगा और इस आन्दोलन को समाप्त नहीं होने देगा।

पिछ्ले महीने मध्य प्रदेश में इन्दौर में पकडे गये सिमी के सदस्यों ने देश के समक्ष अनेक प्रश्न खडे कर दिये हैं। 2001 में प्रतिबन्ध लगने के बाद भी यह संगठन कभी निष्क्रिय नहीं हुआ और पिछ्ले दो तीन वर्षों में देश में हुई बडी आतंकवादी घटनाओं में इसका हाथ रहा है या इसी संगठन ने उन्हें अंजाम दिया है। इस संगठन की सक्रियता के मूल कारण पर जब हम विचार करते हैं तो हमें कुछ तथ्य स्पष्ट रूप से दिखायी पडते हैं एक तो हमारे राजनीतिक दलों द्वारा इस्लामी आतंकवाद के मुद्दे को वोट बैंक की राजनीति से जोड्कर देखना और दूसरा इस्लामी धार्मिक नेतृत्व या बुध्दिजीवियों द्वारा आतंकवाद को हतोत्साहित करने के स्थान पर मुस्लिम उत्पीडन की अवधारणा को प्रोत्साहित कर सरकार, राज्य, प्रशासन, सुरक्षा एजेंसियों और खुफिया एजेंसियों को कटघरे में खडा कर इस्लामी प्रतिरोध की शक्तियों को कुण्ठित करना।

2001 में जब तत्कालीन एन.डी.ए सरकार ने सिमी पर पहली बार प्रतिबन्ध लगाया तो उस समय विपक्ष की नेत्री श्रीमती सोनिया गाँधी ने इसकी आलोचना की और उनका साथ उनके ही दल की सदस्या अम्बिका सोनी ने दिया। फिर जब सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाली यू.पी.ए की सरकार केन्द्र में बनी तो इस सरकार ने भी सिमी पर प्रतिबन्ध को जारी रखा। यह उदाहरण संकेत करता है कि आतंकवाद जैसे मह्त्वपूर्ण मुद्दे पर भी राजनीतिक दलों में आम सहमति नहीं बन पायी है और इसे भी राजनीतिक मोल तोल के हिसाब से देखा जा रहा है। राजनीतिक दलों के इस रवैये का सीधा असर सुरक्षा एजेंसियों पर पड्ता है जो तमाम जानकारियों और प्रमाणों के बाद भी आरोपियों पर कार्रवायी करने में हिचकती हैं या उन्हें कार्रवायी धीरे धीरे करने का निर्देश दिया जाता है। दोनों ही दशाओं में इस्लाम के नाम पर आतंकवाद करने वालों का मनोबल बढता है और वे अवसर पाकर अपनी ताकत और अपना नेटवर्क बढा लेते हैं।

प्रतिबन्ध के बाद भी सिमी का इस मात्रा में सक्रिय रहना और ताकतवर रहना एक और मह्त्वपूर्ण तथ्य की ओर संकेत करता है जिसका उल्लेख ऊपर भी किया गया है कि इस्लामी धर्मगुरूओं और बुद्धिजीविओं की भूमिका इस सम्बन्ध में सन्दिग्ध है। अभी कुछ महीने पहले जब उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में स्थित प्रमुख इस्लामी संस्थान दारूल- उलूम – देवबन्द ने आतंकवाद के सम्बन्ध में एक बडा सम्मेलन आयोजित किया और उस सम्मेलन के द्वारा इस्लाम और आतंकवाद के मध्य किसी भी सम्बन्ध से इन्कार किया तो भी जैसे प्रस्ताव वहाँ पारित हुए उनमें राज्य, प्रशासन, पुलिस को ही निशाना बनाया गया और पूरे प्रस्ताव में सिमी जैसे संगठनों के बारे में एक भी शब्द नहीं बोला गया। पिछ्ले लेख में भी लोकमंच में इस बात को उठाया गया था कि एक ओर तो आतंकवाद के विरुद्ध फतवा जारी किया जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर सिमी का नेटवर्क फैलता जा रहा है। यहाँ तक कि सरकार ने संसद में स्वीकार किया है कि सिमी का नेटवर्क दक्षिण भारत और पश्चिमी भारत के अनेक प्रांतों में फैल चुका है। इससे तो यही संकेत मिलता है कि ऐसे संगठनों को रोकने की इच्छा शक्ति का अभाव है। सरकार जिसका नेतृत्व राजनीतिक दल कर रहे है उनमें ऐसे तत्वों को रोकने की शक्ति नहीं है क्योंकि उनके लिये मुस्लिम वोट अधिक महत्व रखते हैं और इस्लामी धर्मगुरूओं या बुद्धिजीवियों में इस्लाम के नाम पर आतंक फैला रहे तत्वों को रोकने की इच्छा नहीं है क्योंकि यदि उनमें ऐसी इच्छा होती तो वे मुस्लिम उत्पीडन की अवधारणा को सशक्त बनाकर या खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को निशाने पर लेकर इस्लामी आतंकवादियों को बचने का रास्ता नहीं प्रदान करते।

देश भर में सिमी के फैलते जाल ने हमारे समक्ष अनेक प्रश्न खडे कर दिये हैं जिनके प्रकाश में इस्लामी आतंकवाद के सम्बन्ध में नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। यह समस्या एक विचारधारा से जुडी है और उस विचारधारा की तह तक जाना होगा। इस समस्या को बेरोजगारी या अल्पसंख्यकों के देश की मुख्यधारा से अलग थलग रहने जैसे सतही निष्कर्षों से बाहर निकल कर पूरी समग्रता में लेने की आवश्यकता है। उन तथ्यों का पता लगाने की आवश्यकता है कि इस्लामी धर्मगुरु और बुध्दिजीवी आखिर क्योंकर इस्लाम के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाले संगठनों के विरुद्ध मुखर होकर उन्हें इस्लाम विरोधी घोषित नहीं करते।
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