मुम्बई पर आतंकवादी आक्रमण को आज चार दिन बीत गये हैं और आज कहीं जाकर मेरा कुछ लिखने का मन हो रहा है। कुछ भी न लिख पाने के पीछे दो मुख्य कारण हैं। एक तो इस घटना ने मुझे इतना दुखी और स्तब्ध कर दिया कि तीन दिन तक ठीक से सो भी नहीं सका। दूसरा कारण कुछ भी न लिखने के पीछे यह था कि प्रत्येक आतंकवादी आक्रमण के बाद चर्चायें होती हैं, मीडिया में बहस होती है, टीवी पर विशेषज्ञ आते हैं और सुझाव देते हैं और फिर यह कर्मकाण्ड कुछ दिनों बाद समाप्त हो जाता है और फिर सब कुछ सामान्य और प्रतीक्षा अगले आतंकवादी आक्रमण की होने लगती है। 26 नवम्बर को मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण के बाद से ताज होटल में अंतिम आतंकवादी के मार गिराये जाने तक मैं पूरा घटनाक्रम टीवी पर चिपक कर देखता रहा। इस घटनाक्रम को देखते हुए एक प्रश्न मेरे मस्तिष्क में बार बार कौंध रहा था कि क्या वास्तव में इससे कोई सबक लेगा और निश्चित रूप से मुझे यही लगा कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला। क्योंकि आतंकवादी आक्रमण कोई पहला नहीं है और मानवीय क्षति के सन्दर्भ में इससे भी बडी घटनायें हो चुकी हैं। तो फिर इस आतंकवादी आक्रमण के सन्दर्भ में नया क्या है? एक तो यह घटना देश के उस शहर में हुई जिसे देश की आर्थिक राजधानी माना जाता है और मुम्बई में हुई अन्य घटनाओं की अपेक्षा इस बार इसका अंतरराष्ट्रीय सन्देश अधिक था और यही वह कारण है जिसने इस आक्रमण को विश्वव्यापी स्तर पर चर्चा में ला दिया। जिस प्रकार विदेशी नागरिकों और विशेष रूप से अमेरिकी, ब्रिटिश और इजरायल और भारतीय यहूदियों को निशाना बनाया गया उसने इस बात की आशंका बढा दी कि इस आतंकवादी आक्रमण की पीछे कहीं न कहीं वैश्विक जेहादी आन्दोलन और नेटवर्क की भूमिका है।
मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण के बाद दो तीन दिनों तक पूरे विश्व का ध्यान भारत की ओर लगा रहा कि हम इस स्थिति से कैसे निपटते हैं। मुम्बई का यह संकट समाप्त होने के उपरांत इसकी समीक्षा आरम्भ हुई है। विश्व के अनेक देशों की खुफिया एजेंसियाँ इस बात पर एकमत हैं कि इस आक्रमण के पीछे पाकिस्तान स्थित इस्लामी आतंकवादियों की भूमिका है परंतु उनका यह भी मानना है कि यह आक्रमण कुछ नये संकेत भी दे रहा है। एक तो यह कि अल कायदा अब आतंकवादी आक्रमण करने वाला आतंकवादी संगठन मात्र ही नहीं रह गया है वरन वह एक विचारधारा बन चुका है जो विश्व के अनेक क्षेत्रों में विभिन्न इस्लामी उग्रवादी संगठनों को एक छतरी के नीचे लाकर उनसे घटनाओं को अंजाम दिलाता है और निर्णय और विचार उसका होता है और घटनायें विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय इस्लामी उग्रवादी संगठन करते हैं। मुम्बई में हुए आतंकवादी आक्रमण से यही संकेत मिलता है कि यह योजना अल कायदा की है और इसे अंजाम देने का दायित्व भारत में अपनी पैठ जमा चुके लश्कर-ए- तोएबा को दी गयी।
मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण से समस्त विश्व हिल गया है क्योंकि इस आक्रमण ने जेहादी इस्लामी आन्दोलन की विश्वव्यापी पहुँच को रेखाँकित किया है। अमेरिका के खुफिया एजेंसी के अधिकारी और आतंकवाद विषय के विशेषज्ञ मानते हैं कि अल कायदा अमरिका की वर्तमान स्थिति को देखते हुए किसी बडी घटना को क्रियान्वित करने की फिराक में है ताकि बुश को बिदाई दी जा सके और बराक ओबामा का स्वागत किया जा सके। इस आधार पर इस बात की आशंका व्यक्त की जा रही है कि मुम्बई का आतंकवादी आक्रमण अल कायदा की योजना का ही परिणाम है क्योंकि जिस लश्कर ने आतंकवादियों को प्रशिक्षित किया वह 1998 में ओसामा बिन लादेन द्वारा गठित किये गये इण्टरनेशनल इस्लामिक फ्रंट का घटक है।
इस्लामी आतंकवाद और अल कायदा विषयों के विशेषज्ञ डां रोहन गुणारत्ना के अनुसार अल कायदा अब एक विचार बन चुका है और मध्य पूर्व, एशिया, उत्तरी अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में अपनी गहरी पैठ बना चुका है। अब अल कायदा एक केन्द्रीय कमान के रूप में कार्य करने के स्थान पर विभिन्न इस्लामी उग्रवादी संगठनों को अपनी योजना और निर्णय को आउटसोर्स कर रहा है। अल कायदा ने जिस प्रकार मीडिया, इंटरनेट के सहारे मुस्लिम उत्पीडन की अवधारणा के द्वारा समस्त विश्व के मुसलमानों के मध्य एक वातावरण बना दिया है कि इस्लाम खतरे में है और उसे निशाना बनाया जा रहा है और इस प्रचार ने सामान्य मुसलमानों को ध्रुवीक्रत किया है और विशेष रूप से नयी पीढी के मुसलमानों को अधिक कट्टरपंथी और मुखर बनाने का कार्य किया है। अल कायदा के इसी अभियान का परिणाम है कि अमेरिका की विदेश नीति और इजरायल तथा अरब देशों का संघर्ष सभी मुसलमानों के मध्य न केवल चर्चा का विषय बन चुका है वरन इस्लामी आतंकवादियों के आक्रमणों को कुछ हद तक न्यायसंगत ठहराने का माध्यम भी बन चुका है।
भारत के प्रसिद्ध आतंकवाद प्रतिरोध के विशेषज्ञ बी रमन ने मुम्बई पर आतंकवादी आक्रमण के बाद अपने एक आलेख में इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि नवम्बर 2007 में उत्तर प्रदेश के न्यायालयों में श्रृखलाबद्ध विस्फोटों के बाद इसकी जिम्मेदारी लेनेवाले इंडियन मुजाहिदीन संगठन को लेकर भारत सरकार और खुफिया एजेंसियों के पास अत्यन्त कम सूचनायें हैं। जबकि इसने 2007 से 2008 के मध्य अनेक बडी घट्नायें अंजाम दी हैं। इंडियन मुजाहिदीन के कुछ लोग जब दिल्ली में हुए विस्फोटों के बाद पकडे गये तो उनका कार्य करने का ढंग, उनकी प्रेरणा और मीडिया का उनका उपयोग पूरी तरह अल कायदा से प्रभावित था और उनके पास से फिलीस्तीनी इस्लामी आतंकवादी अब्दुल्ला अज़्ज़ाम का साहित्य भी मिला था जो ओसामा बिन लादेन का गुरु है और अल कायदा उसी की जेहाद की भावना से प्रेरित है। इसी प्रकार मुम्बई पुलिस ने कुछ महीनों पूर्व जब इंडियन मुजाहिदीन के मीडिया विंग के लोगों को पकडा था तो उसमें भी अनेक तकनीक विशेषज्ञ पकडे गये थे। इंडियन मुजाहिदीन को जिस प्रकार से हल्के में लिया गया वह भारी पड सकता है क्योंकि इंडियन मुजाहिदीन के कार्य करने का तरीका पूरी तरह अल कायदा से प्रभावित है और यह इस आशंका को पुष्ट करता है कि विभिन्न देशों में विभिन्न इस्लामी संगठन सामने आ रहे हैं जो आवश्यक नहीं कि अल कायदा से सीधे सीधे निर्देश ग्रहण करते हों पर वे उसी इस्लामी जेहादी विचार को आगे बढाने के लिये कार्य कर रहे हैं।
मुम्बई में हुए आतंकवादी आक्रमण के बाद एक बात पूरी तरह स्पष्ट है कि अब इस समस्या से अनेक स्तरों पर लडना होगा। इस प्रकार के आतंकवाद से लड्ने में खुफिया विभाग की सक्षमता, आतंकवाद प्रतिरोध संस्थाओं का राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता प्रमुख तत्व हैं पर इसके अतिरिक्त इस समस्या से विचारधारागत स्तर पर भी लडना आवश्यक है। जिस प्रकार इस्लामी आतंकवादियों ने समस्त विश्व में 48 घण्टे से अधिक समय तक टीवी पर लोगों को अपनी ताकत देखने के लिये बाध्य किया उसके दो निहितार्थ हैं एक तो इससे सामान्य लोगों में आतंकवादियों के एजेण्डे को जानने की उत्सुकता होती है और दूसरा खौफ और अराजकता फैलती है जो राज्य को कमजोर बनाता है। इसके अतिरिक्त इस प्रकार के कार्य न केवल फिदायीन बन कर जन्नत प्राप्त करने की इस्लामी आतंकवादियों की मंशा को उजागर करते हैं वरन और अधिक युवकों के मुजाहिदीन के रूप में भर्ती होने को प्रेरित करते हैं। क्योंकि ऐसे आतंकवादियो के लिये वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के भरभराते भवन, मैरियट होटल का धू धू कर जलता दृश्य अधिक प्रेरित करता है। इस बात को समझने की आवश्यकता है और इसलिये इस्लामी जेहाद के इस आन्दोलन को उसकी समग्रता में समझ कर उसका समाधान करने की आवश्यता है।
आज इस बात पर बहस करने से कोई लाभ नहीं है कि इस्लाम शांति की शिक्षा देता है कि नहीं और इसका भी कोई मतलब नहीं है कि कितने इस्लामी संगठनों ने आतंकवाद के विरुद्ध फतवा जारी किया आज मानवता के अस्तित्व का प्रश्न है और इस अस्तित्व पर प्रश्न खडा किया है ऐसे इस्लामवादी आन्दोलन ने जो विश्व पर फिर से इस्लामी साम्राज्य स्थापित करने की आकाँक्षा लिये शरियत का शासन स्थापित करना चाहता है और इसके लिये कुरान और हदीथ का उपयोग कर रहा है। इस इस्लामवादी आन्दोलन ने प्रथम विश्व युद्ध से द्वितीय विश्व युद्ध के मध्य हुए नाजी आन्दोलन, फासीवादी आन्दोलन और शीत युद्ध में चले कम्युनिस्ट आन्दोलन से अधिनायकवादी विचार लेकर एक नया आन्दोलन खडा किया है जिसने इस्लाम के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण से एक सन्देश स्पष्ट है कि अब यदि समस्या को नही समझा गया और इसके जेहादी और इस्लामी पक्ष की अवहेलना की गयी तो शायद भारत को एक लोकतांत्रिक और खुले विचारों वाले देश के रूप में बचा पाना सम्भव न हो सकेगा और यही चिंता समस्त विश्व को हुई है कि कहीं इस्लामवादी आन्दोलन अब मध्य पूर्व के बाद दक्षिण एशिया में अपनी पैठ न बना ले क्योंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश पहले ही इस्लामी चरमपंथियों के हाथ में खेल रहे हैं और भारत सहित दक्षिण एशिया की मुस्लिम जनसंख्या कुल जनसंख्या के 57 प्रतिशत से भी अधिक है और यदि यह क्षेत्र इस्लामी कट्टरपंथियों के हाथ में आ गया तो विश्व का नक्शा क्या होगा?
अब पाकिस्तान और बांग्लादेश को दोष देने से ही काम नहीं चलेगा और इन देशों की खुफिया एजेंसियों द्वारा जिस प्रकार भारत में इस्लामी तत्वो में घुसपैठ की गयी है उस पर कठोर कदम उठाना होगा और विभिन्न इस्लामी विचारधाराओं चाहे वह अहले हदीस. बरेलवी, देवबन्द, सलाफी, वहाबी हो इनसे सम्बन्धित मस्जिदों, मदरसों, आर्थिक स्रोतों पर नजर रखते हुए इनके इस्लामवादी आन्दोलन के साथ सम्बन्धों की जाँच करते रहनी होगी। आज पाकिस्तान और बांग्लादेश की खुफिया एजेंसियों ने भारत के हर हिस्से में अपनी पैठ कर ली है फिर वह उत्तर पूर्व हो, दक्षिण भारत हो, उत्तर भारत हो, मध्य भारत हो या पश्चिम भारत हो। मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण ने हमें अंतिम अवसर दिया है कि हमारे राजनेता आतंकवाद को वोट बैंक की राजनीति से जोडकर देखने के बजाय समस्या की गहराई को समझें और जानें कि आतंकवाद क्या है? इसके पीछे सोच क्या है? इसे कौन सहायता दे रहा है? न कि इस्लामी आतंकवाद के समानांतर हिन्दू आतंकवाद को खडाकर स्थिति को और अधिक उलझायें।
मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को गहरा धक्का पहुँचाया है और हमारी कमजोरियों की पोल खोल दी है आज विश्व स्तर पर भारत सरकार की नरम नीतियों को लेकर लेख लिखे जा रहे हैं फिर भी लगता है कि कुछ ही दिनों में घटिया राजनीति फिर आरम्भ हो जायेगी और केन्द्र सरकार आतंकवाद को अल्पसंख्यक वोट से जोडकर बयानबाजी और आरोप प्रत्यारोप आरम्भ कर देगी।
2 comments: on "मुम्बई आक्रमण से क्या सीखें?"
bahut achchha article hai. shandar hai.
therajniti.blogspot.com
you are really very intelligent. and understand the innermost theory of their desire to establish islamicrajya all over the world as is desired by BUSH to establish christianity the world over.
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