गृह मंत्रालय से संबंधित स्थायी समिति के इस निष्कर्ष से संभवत: सभी सहमत होंगे कि देश में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिक आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन गए हैं, लेकिन उन्हें निकाल बाहर करने के लिए कोई अभियान शायद ही सामने आए। संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थो के चलते न तो केंद्र सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालने की इच्छुक है और न ही राज्य सरकारें। राजनीतिक दलों के इसी रवैये के चलते बांग्लादेशी घुसपैठियों ने पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों में भी ठिकाना बना लिया है। अब तो राजधानी दिल्ली में भी उनकी अच्छी-खासी आबादी हो गई है। यद्यपि बांग्लादेशी नागरिक छोटे-मोटे अपराधों के साथ-साथ आतंकी वारदातों में भी लिप्त पाए जा रहे हैं, लेकिन उन्हें अवांछित घोषित करने का साहस कोई भी नहीं जुटा पा रहा है। ऐसे में गृहमंत्रालय की स्थायी समिति की उक्त रपट को ठंडे बस्ते में डालने के आसार ही अधिक हैं। यह कार्य पहले भी होता रहा है और एक बार फिर ऐसा होना इसलिए तय सा है, क्योंकि गृहमंत्री शिवराज पाटिल बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या को न केवल मानवीय दृष्टि से देखते हैं, बल्कि उसे इसी दृष्टि से हल भी करना चाहते हैं। यह दृष्टिकोण बांग्लादेशी नागरिकों को एक तरह से अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने के लिए निमंत्रित करने वाला है। नि:संदेह बात केवल केंद्रीय गृहमंत्री के ही विचित्र रवैये की नहीं, संपूर्ण केंद्रीय सत्ता के नजरिये की भी है। यदि संप्रग सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों को महज एक वोट बैंक के रूप में नहीं देख रही होती तो वह असम से संबंधित उस कानून को पिछले दरवाजे से लागू करने की कोशिश नहीं करती जिसे उच्चतम न्यायालय ने अनुचित और असंवैधानिक करार दिया था।
अवैध रूप से करोड़ों की संख्या में भारत में बस चुके बांग्लादेशी नागरिकों के प्रति जैसा नरम रवैया केंद्र सरकार का है वैसा ही कुछ सीमावर्ती राज्य सरकारों का भी है। अब यह कहने में हर्ज नहीं कि बांग्लादेश की सीमा से सटे ज्यादातर राज्यों के लगभग सभी राजनीतिक दल घुसपैठियों की आवभगत करने में लगे हुए हैं। यही कारण है कि बांग्लादेशी घुसपैठिये राशन कार्ड के साथ-साथ मतदाता पहचान पत्र हासिल करने में भी समर्थ हैं। बांग्लादेश आधारित आतंकी संगठन हुजी ने भारत में अपनी जड़ें इसीलिए जमा ली हैं, क्योंकि उन्हें शरण देने और मदद करने वाले बांग्लादेशी नागरिकों की कमी नहीं। अब तो यह काम देश के राजनेता भी करने लगे हैं। हुजी के एक आतंकी की मदद करने के मामले में त्रिपुरा सरकार के एक मंत्री का त्यागपत्र देने के लिए विवश होना यही बताता है कि हालात कितने बिगड़ चुके है? भारत में जो करोड़ों बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से रह रहे है उन सभी के आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने की आशंका नहीं है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उन्हे देश का नागरिक मान लिया जाए। आखिर भारत नार्वे, स्वीडन अथवा अमेरिका नहीं है। यदि गृहमंत्रालय की स्थायी समिति बांग्लादेशी नागरिकों को आंतरिक सुरक्षा के लिए सचमुच खतरा मान रही है तो फिर उसे ऐसे प्रयत्न करने चाहिए कि उसकी रपट पर न केवल ध्यान दिया जाए, बल्कि उसकी सिफारिशों पर अमल भी हो।
1 comments: on "बांग्लादेशी: देश की सुरक्षा के लिये खतरा"
सरकार अब बंगला देश के अलावा चीन से भी नागरिक आयात करने के चक्कर मे है और आप आयातित बंगला देशी (आयातित भारतीय वोटर नागरिक) नागरिको के विरुद्ध हो ,गलत बात है जी ..:)
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