चुनाव का मौसम आ गया है। सभी राजनीतिक पार्टीया लोकलुभावने घोषणापत्र के साथ मैदान में है। नित्य नये वायदों के साथ हिन्दुस्तान के तस्विर बदलने का ख्वाव दिखाया जा रहा हैं। लेकिन आज तक हिन्दुस्तान की जनता क्या चाहती है किसी ने जानने का कोशिश नही किया और शायद आगे भी नही करेगा जब तक कि जनता अपना घोषणा पत्र राजनीतिक पार्टीयों को ना बता दे। पिछले पाँच साल में सरकार ने क्या काम किया हम सभी को पता है। हमने पाँच साल पहले जो गलती कर दी वह इस चुनाव में ना ही दोहरायें तो आने बाला पाँच साल हिन्दुस्तान की जनता चैन से सो पायेगी अन्यथा फिर से पाँच साल तक मंहगाई, बम विस्फोट, भरष्टाचार बेरोजगारी में हमें पीसना परेगा।
वोट डालने से पहले कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखों तथा जो राजनीतिक दल इन सभी बातों पर खडा उतरे उसे ही अपना वोट दें।
जो हिन्दुस्तान के सभी नागरिकों को समान समझे समान नागरिक कानून लागु करे।
जो आतंकवाद, उग्रवाद एवं अलगाववाद से मुक्ति दिलाये।
जो बांग्लादेशी एवं अन्य घुसपैठियों को देश से बाहर करे।
जो सम्प्रदाय विशेष को आरक्षण ना देकर सभी गरीबों के बारे में सोचे।
जो प्रलोभन दे कर मतान्तर करे उसे कडी़ से कडी़ सजा दे।
जो रोजगार आधारीत शिक्षा का व्यवस्था करे एवं साक्षरता की दृष्टि से हिन्दुस्तान को जागरुक करें।
जो अपराधियों पर लगाम लगायें उसे किसी भी तरह का राजनैतिक संरक्षण ना दे।
जो मतान्तरित ईसाइयों को आरक्षण देना बन्द करे।
जो धर्मस्थल, सदग्रन्थ, साधु-संत, देवी-देवताओं का सम्मान करें।
जो गंगा, गोमाता और राम सेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करे।
जो हिन्दुस्तान के अध्यात्म का संरक्षण करे और हिन्दुस्तान को आध्यात्मिक राष्टृ घोषित करे।
जो किसी एक विशेष सम्प्रदाय के बारे में ना सोच कर सारे हिन्दुस्तान के बारे में सोचे।
जो आतंकवाद के पाढशाला को बन्द करे।
यही मौका है हमें समझदारी दिखाने का नही तो फिर पाँच साल किसी बम विस्फोट में अपनों के खोने के गम में रोना परेगा।
यही मौका है हमें समझदारी दिखाने का नही तो ज्यादा पढें लिखे बेरोजगार बनते रहेंगे और कम पढें लिखे सरकारी बाबु बन कर देश का बेरागर्क करेंगे।
यही मौका है हमें समझदारी दिखाने का नही तो आतंकवादियों का खातीरदारी होगा और निर्दोष को आतंकवादी बना कर जेल में डालेगें।
यही मौका है हमें समझदारी दिखाने का नही तो घुसपैठिये बाग्लादेशी सरकारी नौकरी करेंगे और जिनके बाप दादा इस देश के लिये मरे वह गुलामी करेंगे।
सोचों और अपना मताधिकार का प्रयोग राष्ट्र की सेवा के लिये करें
पहले मतदान फिर जलपान
वोट डालने से पहले कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखों तथा जो राजनीतिक दल इन सभी बातों पर खडा उतरे उसे ही अपना वोट दें।
जो हिन्दुस्तान के सभी नागरिकों को समान समझे समान नागरिक कानून लागु करे।
जो आतंकवाद, उग्रवाद एवं अलगाववाद से मुक्ति दिलाये।
जो बांग्लादेशी एवं अन्य घुसपैठियों को देश से बाहर करे।
जो सम्प्रदाय विशेष को आरक्षण ना देकर सभी गरीबों के बारे में सोचे।
जो प्रलोभन दे कर मतान्तर करे उसे कडी़ से कडी़ सजा दे।
जो रोजगार आधारीत शिक्षा का व्यवस्था करे एवं साक्षरता की दृष्टि से हिन्दुस्तान को जागरुक करें।
जो अपराधियों पर लगाम लगायें उसे किसी भी तरह का राजनैतिक संरक्षण ना दे।
जो मतान्तरित ईसाइयों को आरक्षण देना बन्द करे।
जो धर्मस्थल, सदग्रन्थ, साधु-संत, देवी-देवताओं का सम्मान करें।
जो गंगा, गोमाता और राम सेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करे।
जो हिन्दुस्तान के अध्यात्म का संरक्षण करे और हिन्दुस्तान को आध्यात्मिक राष्टृ घोषित करे।
जो किसी एक विशेष सम्प्रदाय के बारे में ना सोच कर सारे हिन्दुस्तान के बारे में सोचे।
जो आतंकवाद के पाढशाला को बन्द करे।
यही मौका है हमें समझदारी दिखाने का नही तो फिर पाँच साल किसी बम विस्फोट में अपनों के खोने के गम में रोना परेगा।
यही मौका है हमें समझदारी दिखाने का नही तो ज्यादा पढें लिखे बेरोजगार बनते रहेंगे और कम पढें लिखे सरकारी बाबु बन कर देश का बेरागर्क करेंगे।
यही मौका है हमें समझदारी दिखाने का नही तो आतंकवादियों का खातीरदारी होगा और निर्दोष को आतंकवादी बना कर जेल में डालेगें।
यही मौका है हमें समझदारी दिखाने का नही तो घुसपैठिये बाग्लादेशी सरकारी नौकरी करेंगे और जिनके बाप दादा इस देश के लिये मरे वह गुलामी करेंगे।
सोचों और अपना मताधिकार का प्रयोग राष्ट्र की सेवा के लिये करें
पहले मतदान फिर जलपान
3 comments: on "इस बार फिर मुर्ख मत बनना"
एक दम सही कहा आपने इस बार हमें कोई मुर्ख नही बना सकता। जिसे बनना हो बने हम तो सिर्फ देश के बारे में सोचेंगे
जो लोग पढेलिखे हैं, समझदार हैं, जिनकी छवी समाज में एक इमानदार व्यक्ति की है, जो अपने निजी जिवन में सफलता के सोपान पर हैं वो लोग राजनीति को गंदे लोगों का काम बताते हैं तथा राजनीति में नही आते। यही हमारे देश का बडा दुर्भाग्य है। जो लोग अपने घरों मे, कार्यालयों में तथा सार्वजनिक स्थानों में बैठकर राजनीति की चर्चा करते हैं उसे बुरा-भला कहते हैं, घोटालों व भष्टाचार पर गर्मागरम बहस करते हैं। उनसे यदि कोई पूछे कि आप राजनीति में क्यों नहीं आते तो कहेंगे कि यह तो गुन्डे बदमासों का काम है। उनसे पूछना चाहिये कि गुन्डों बदमाशों का काम किसने बनाया तो वो शायद वो ऊत्तर में गुन्डे बदमास नेताऔ को ही दोषी बतायेंगे, जब्कि वो लोग खुद ही दोषी हैं क्यों इमानदार समझदार कर्तव्यनिष्ठ लोग खुद राजनीति में न जाकर उन गुन्डे बदमाशों को राजनीति में आनेका अवसर देते हैं। 100% मतदान से भी क्या होगा, जब सारे प्रत्यासी ही एक जैसे खडे हों तो उनमें से एक तो हमारे उपर राज करेगा ही, अच्छे लोगों को दूसरों को कर्तव्यबोध कराने के बजाय अपना कर्तव्य समझना चाहिये व राजनीति में आना चाहिये।
सोंच तो लिया है ... बिल्कुल नहीं बनेंगे मूर्ख ... पर देखा जाए ... कहीं सच में मूर्ख ही न बन जाएं।
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