नीम का पत्ता कड़वा है, राज ठाकरे भड़वा है

नीम का पत्ता कड़वा है, राज ठाकरे भड़वा है कुछ इस तरह का नारा लगाया जा रहा था समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी के एक सभा में खुले आम बाला साहव ठाकरे और राज ठाकरे को गाली दिया जा रहा था। अबू आजमी जैसे संदिग्ध चरित्र वाले व्यक्ति द्वारा "मराठी लोगों के खिलाफ़ जेहाद छेड़ा जायेगा, जरूरत पड़ी तो मुजफ़्फ़रपुर से बीस हजार लठैत लाकर रातोंरात मराठी और यह समस्या खत्म कर दूँगा" जैसी भरकाउ बाते कहा जा रहा था जिसे मिडीया बालेने आज तक नही दिखाये। जो कि सरासर गलत था। और यह भी गलत है कि निर्दोश धर्मपाल यादव को पीट-पीट कर मार दिया गया राहुल राज की तरह धर्मपाल यादव ने तो हाथ में बन्दुक नही उठाया था और ना किसी बस को हाइजैक किया था फिर क्यों मार दिया गया क्या महाराष्ट्र के गृ्हमंत्री के पास जवाब है।

सभी को लगता है यह लडा़ई राजनीतिक है या फिर दो राज्यों के बीच लडा़ जा रहा है। नही यह किसी तरह का राजनीतिक लडाई नही है यह तो लोकसभा का चुनावी जंग है। इस बात को हमें समझना होगा। हिन्दुस्तान का यह बदकिस्मती है कि यहा चुनाव जात-पात, अगडा और पिछडा़, क्षेत्रियता, आरक्षण, मुफ्त में समान या चुनाव में पैसा बाटने बालों के नाम पर लडा़ जाता है हिन्दुस्तान में आज तक कभी भी आतंकवाद, महगाई, विकास, गुण्डागर्दी, देशद्रोहीपना, अमेरिकापरस्ती, चीन चम्चागीरी के नाम पर नही लडा़ गया। अगर हम हिन्दुस्तान का जनता इतना जागरुक और समझदारी रहता तो आज राहुल राज महाराष्ट्रा में कही नौकरी कर रहा होता और धर्मपाल यादव अपने 14 महीने के बेटी के साथ मुम्बई से खरीदा खिलैना के साथ खेल रहा होता दोने आज मरते नही। हमें अपने मानसिकता को बदलना होगा। आज हिन्दुस्तान का हाल कितना खराब है हमें खुद सोचना होगा। हिन्दुस्तान के एक मंत्री को अपने देश से ज्यादा श्री लंका में रह रहे तमिल का चिन्ता सता रहा है कि बन्दुकधारी तमिल को श्री लंकाई सेना मारे नही। हिन्दुस्तान के नेता इस चिन्ता में दुबला हो रहा है कि अमेरिका चीन को हिन्दुस्तान के मदद से घेर रहा है। हाय रे हिन्दुस्तान का दुर्भाग्य आज तक किसी तमिल नेता ने संसद भवन में बिहारवासीयों को असाम में बाग्लादेश के घुसपैठियों के द्वारा हत्या पर चिन्ता नही जताया होगा नही किसी कम्यूनिस्ट ने चीन का चिन्ता छोड़ कभी काश्मिर का चिन्ता किया होगा। अगर बिहार वाले मर रहें हैं तो बिहार के नेता ही उसके लिये अवाज उठायेगें लेकिन नेता पहले पुरी तरह आस्वस्त हो लेगें कि मुद्दा उठाने से चुनाव में फायदा हो रहा है या नही, हमारे देश के प्रधानमंत्री को सिर्फ इस लिये निन्द नही आता है कि एक हिन्दुस्तानी मुस्लिम आतंकवादी को किसी दुसरे देश के पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है लेकिन हिन्दुस्तान में एक महिला साध्वि को बिना किसी सबुत के गिरफ्तार किया जाता है तो उन्हें सकून का नीन्द आता है क्यों साध्वि को पकड़ ने से उन्हे चुनाव में फायदा होगा। इस तरह के विकृत मानसिकता वाले नेता इस देश को चला रहें हैं। आज हिन्दुस्तान में सिर्फ महाराष्ट्रा में राज ठाकरे और अबु आजमी के द्वारा क्षेत्रियता के द्वारा नफरत नही फैला रहा है। हिन्दुस्तान का हर एक नेता इसी ताक में बैठा है कि किससे किसको लड़वा कर फायदा उठाया जाये। हमें इस बात को समझना होगा कि हमें आपस में लडवानें के हर मुहल्ले में एक यैसा नेता बैठा है जो हमारे वोट और वोट के लिये हमारे खुन का प्यासा है। हमें सर्तक रहना होगा।

बिहारवासीयों आज सबसे ज्यादा मेहनती होने के बावजुद सब जगह से तिरस्कार ही मिल रहा है। आज बिहार और उत्तर प्रदेश का अशिक्षा, रोजगार उद्योग की कमी और बढ़ता अपराध मुख्य समस्या है। जिसके कारण आम सीधा-सादा बिहारी यहाँ से पलायन करता है और दूसरे राज्यों में पनाह लेता है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि उत्तरप्रदेश और बिहार से आये हुए लोग बेहद मेहनती, कर्मठ और इमान्दार होते हैं। ये लोग कम से कम संसाधनों और अभावों में भी मुम्बई में जीवन-यापन करते हैं, लेकिन वे इस बात को जानते हैं कि यदि वे वापस बिहार चले गये तो जो दो रोटी यहाँ मुम्बई में मिल रही है, वहाँ वह भी नहीं मिलेगी। इस सब में दोष किसका है? जाहिर है गत बीस वर्षों में जिन्होंने इस देश और इन दोनो प्रदेशों पर राज्य किया? सवाल उठता है कि मुलायम, लालू, अमर सिंह, रामविलास पासवान जैसे संकीर्ण सोच वाले नेताओं को उप्र-बिहार के लोगों ने जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया? क्यों नहीं इन लोगों से जवाब-तलब हुए कि तुम्हारी घटिया नीतियों और लचर प्रशासन की वजह से हमें मुंबई क्यों पलायन करना पड़ता है? क्यों नहीं इन नेताओं का विकल्प तलाशा गया? क्या इसके लिये राज ठाकरे जिम्मेदार हैं? आज उत्तरप्रदेश और बिहार पिछड़े हैं, गरीब हैं, वहाँ विकास नहीं हो रहा तो इसमें किसकी गलती है? क्या कभी यह सोचने की और जिम्मेदारी तय करने की बात की गई? उत्तरप्रदेश का स्थापना दिवस मुम्बई में मनाने का तो कोई औचित्य ही समझ में नहीं आता? उत्तरप्रदेश का स्थापना दिवस सिर्फ मुम्बई में क्यों मनाया गया। कोलकत्ता, चेन्नई बैगलोर या अहमदाबाद में क्यों नही मनाया गया क्या कोलकत्ता, चेन्नई बैगलोर या अहमदाबाद में उत्तर प्रदेश के निवासी नही रहतें है। और क्या महाराष्ट्र का स्थापना दिवस लालू, रामविलास पासवान, मुलायम सिंह ने लखनऊ या पटना में कभी मनाया है? लगे हाथ में मिडीया बालों के उपर भी कुछ काहना चाहता हू जब मिडीया बाले राज ठाकरे के द्वारा दिया गया भाषण दिन भर अपने चैनल पर दिखाया तो उसने अबू आजमी का आग उगलने बाला भाषण क्यों नही दिखाया गया। बिहारीयों को महाराष्ट्रा में पिटा गया तो दिन भर ब्रेकिग न्यूज बना कर हेडलाइन्स के रुप में दिखाया गया लेकिन बिहार, झारखण्ड में जब मराठियों को पिटा गया तो क्यों नही दिखाया गया। मिडीया बाले बार बार यह क्यों दिखा रहें है कि बिहार में हमेशा से क्रान्ति का अगुआ रहा है बी.एन. कालेज पटना से विद्यार्थियों का अन्दोलन हुआ था। आखिर क्यों विद्यार्थियों को आन्दोलन के लिये उकसाया जा रहा है। आखिर कारण क्या है कौन है जो हमें आपस में लडवा रहा है आखिर किसे फायदा होगा हमारे आपस में लड़ने का। अंग्रेजो की नीति आजादी के बाद भी क्यों हम पर चलाया जा रहा है।

आज हिन्दुस्तान अपने आप को भुल गया है हम भुल गये हैं कि हिन्दुस्तान हमारा देश है आज हम अपने गली मुहल्ले, कस्बा, अपना शहर और अपना राज्य को अपना देश मान रहें हैं। आन्दोलन होना चाहिये बी.एन. कालेज पटना से अन्दोलन का सुरुआत होना चाहिये लेकिन किसी राज ठाकरे के लिये नही वैसे देशद्रोहियों के लिये जो हमें तोड़ना चाहते हैं वैसे नेताओं के लिये जो हमें इन्सान नही सिर्फ एक वोट मानते हैं। बी.एन. कालेज पटना से अन्दोलन सुरु हो और महाराष्ट्र के मुम्बई में जाकर इस आन्दोलन को सफलता मिले। हमें आपस की लडाइ को भुल कर हिन्दुस्तान के बारे में सोचना चाहिये।
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5 comments: on "नीम का पत्ता कड़वा है, राज ठाकरे भड़वा है"

Unknown said...

राज ठाकरे और अबू आजमी दोनों ही नफरत के सौदागर हैं. एक नफरत का सौदागर दूसरे नफरत के सौदागर को भड़वा कह रहा है. इन दोनों का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा बस आम आदमी मारे जायेंगे. इन जैसे लोगों को जेल में बंद करे चाबी समुन्दर में फेंक देनी चाहिए.

Hemant Pandey said...

कुछ लोग कहते हैं मुस्लिमों ने भारत में आकर हमें दर्द ही दर्द दिया. राज ठाकरे कहता है उत्तर भारतीयों ने मुंबई में आकर मराठियों को समस्या बढ़ा दी. दोनों ही बातें नफरत फैलाने वाली हैं. में कहूँ की हिंदुस्तान हिन्दुओं का है तब तो राज भी ठीक हैं महाराष्ट्र मराठियों का. जड़े तो एक ही हैं यदि में कहता हूँ हथियार पकड़े मुस्लिम को मार डालना ठीक है राज कहता है हथियार पकड़े राहुल को मरना ठीक है. बहाने अलग अलग हैं लक्ष्य एक किसी की मौत को जायज ठहराना. पहले राज उत्तर भारतीय हिंदू और मराठी हिंदू को भड़का कर मुस्लिमो को मारता था. अब मराठियों को भड़का कर उत्तर भारतियों को मार रहा है. धंदा ही बदला है..

Vikram Maurya said...

bilkul sahi vishleshan kiya aapne chandan bhai, main yahi kahana chahata hoon ki bihariyon ya up nivasiyon ko pitne se samasya ka hal nahi hoga.
Agar koi bihari Mumbai men aake kam karta hai to wah kisi majboori men hi yah karta hai. Doosari taraf wo khud bhi jimmedar hain apni is parasthiti ka une apne netaon se kade sawal puchhane honge ki bihar men pragati kyon nahi ho rahi. Unhe majboor hoke bahar kyon jana padata hai.

Vikram Maurya said...

बिलकुल सही विश्लेषण किया आपने चन्दन भाई, मैं यही कहना चाहता हूँ की बिहारियों या UP निवासियों को पीटने से समस्या का हल नहीं होगा.
अगर कोई बिहारी मुंबई में आके काम करता है तो वह किसी मजबूरी में ही यह करता है. दूसरी तरफ वो खुद भी जिम्मेदार हैं अपनी इस परस्थिति का उन्हें अपने नेताओं से कड़े सवाल पूछने होंगे की बिहार में प्रगति क्यों नहीं हो रही. उन्हें मजबूर होके बाहर क्यों जाना पड़ता है.

Unknown said...

हिंदुस्तान हिन्दुओं का है, ऐसी बातें करना भी एक तरह से नफरत फैलाना है. यह देश सब का है. इस देश की यही खासियत है कि जो यहाँ आया यहीं का होकर रह गया. अगर बात राज की है, उस की नफरत फैलाने की राजनीति की है, तो उसी की बात करनी चाहिए. इधर-उधर की कहानियाँ उस में जोड़ कर मुद्दे को उलझाना नहीं चाहिए.

प्रेम की बातें करो, नफरत की नहीं. नफरत से नफरत बढ़ती है. प्रेम से नफरत कम होती है. इसलिए प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से.