विश्व इतिहास देखें तो मुस्लमान के बाद सबसे ज्यादा धर्म के नाम पर अगर किसी ने खुन बहाया है तो ईसाइयत है इसमें कोई शक नही। ईसाइयत हिन्दुस्तान धर्मातरण के द्वारा राष्ट्रान्तरण करने के लिये सिद्धांत प्रेम, शांति तथा सत्य का छद्म का नकाब पहन रखा हैं किंतु संसार का इतिहास गवाह है ईसाइयत के नाम पर कितनी बार खुन की नदियां बहाई गई। धर्मयुद्ध के नाम पर, उसके पहले और उसके बाद शांति स्थापित करने के लिए ईसा के नाम पर कई घोर नृशंस कार्य किये गए।
हिन्दुस्तान में हिन्दु के मानस को पूरी तरह से बदलने के लिए विदेशी ताकतों से सीधा संरक्षण प्राप्त कर ईसाई मिशनरियां हिंदुओं के राष्ट्रातंरण का कार्य कर रही हैं जिससे भारत की भूमि पर हमेशा के लिए यूनियन जैक फहराया जा सके। मिशनरियों ने अनुभव किया कि हिंदुओं के लिए धर्म पर विश्वास से ज्यादा महत्वपूर्ण जीवित रहना है। उन्होंने हिन्दू समाज को दलित वर्ग और सवर्ण हिन्दू में बाँट कर तथा आर्य बाहर से आए हैं व द्रविड़ यहां के मूल निवासी हैं, ऐसा कह कर हिन्दू समाज को बाँटकर हिन्दुओं को ईसाइयत में राष्ट्रातंरण करने के अपने प्रयासों को जारी रखा। उन्होंने हिन्दुओं के बच्चों को मिथ्या इतिहास से परिचित कराने के उद्देश्य से स्कूलों की स्थापना की किंतु इस सबसे भी उन्हें सफलता नहीं मिली, तब उन्होंने बोर्डिंग स्कूल, अनाथालय स्थापित करने शुरू किये व तथाकथित दलित वर्ग एवं जनजातीय समुदायों के, जिन्हें वे यहां का मूल निवासी बतलाते थे, अनपढ़ व गरीब परिवारों से बच्चों को सीधे उन स्कूलों में भरना शुरू किया। इसके पश्चात् मिशनरी बोडिग स्कूलों में ऐसे ईसाई पादरी तैयार किये जो दलित व पिछड़े वगो के बीच धर्मांतरण का कार्य कर सकें। इन सभी प्रयास के तहत आज मिशनरी हिन्दुस्तान के लगभग सभी हिस्सों में राष्ट्रातंरण करवाने में जुटी हुई है। आज ये इतनें निरकुस हो गये हैं कि इनके रास्ते में आने बालों का हत्या तक करने से नही चुकते।
हिन्दुस्तान में पैसे के बल पर इन्सानीयत का पाठ पढा़ने बाले ईसाई चर्च के फादरों के चरित्र पर अगर ध्यान दें तो उजला कपडा़ के अन्दर का सच्च सामने आ जाता है। चर्च के फादरों के द्वारा नावालिक लड़कियों के यौन शोषण का मामला बार बार उठता रहा है इस मामलें में वेटिकन सिटी सिर्फ के पौप जाँन साल में आठ-दस बार माफी तो जरुर मांग लेता है। अभी कुछ दिन पहले अस्ट्रेलिया के दौरे पर गये पौप जॉंन का वहां के नागरिकों के द्वारा किया गया विरोध सिर्फ इस बात पर था कि चर्च धर्म का काम छोड़ कर हर एक अनैतिक कार्य में संलगन था चाहे वो नन का यौन शोषण हो या नाबालिक या बालिक लड़कियों को बहला फुसला कर किया गया यौन शोषण। इस मामलें में जाँन के द्वारा अस्ट्रेलिया में मांफी मांगने के बाद ही पौप जाँन को अस्ट्रेलिया में घुसने दिया गया। ईसाई मिशनरी को चाहिये कि इन्सानीयत का पाठ पढा़ने से पहले हिन्दुस्तानियों से आदमियता का पढ़ पढ ले नही तो बेचारे को पौप जाँन को गला में माफीनामा गला में लटका कर घुमना होगा।
2 comments: on "चर्च के फादरों के चरित्र"
समूचे विश्व में इस प्रकार की घटनायें लगातार सामने आती रहती हैं लेकिन तब "सेकुलरों" के मुँह में दही जम जाता है…
सही कहा.
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