भारत तेरी शामत आयी, लश्कर लायी, लश्कर लायी
नंगा-भूखा हिन्दुस्तान जान से प्यारा पाकिस्तान
पाकिस्तान से रिश्ता क्या, लालिल्लाह इललिल्लाह
कश्मीर की मंडी, रावलपिंडी, रावलपिंडी
खूनी लकीर तोड़ दो, आर-पार जोड़ दो
ऐ जबरियो, ऐ जुल्मियों, कश्मीर हमारा छोड़ दो
नंगा-भूखा हिन्दुस्तान जान से प्यारा पाकिस्तान
पाकिस्तान से रिश्ता क्या, लालिल्लाह इललिल्लाह
कश्मीर की मंडी, रावलपिंडी, रावलपिंडी
खूनी लकीर तोड़ दो, आर-पार जोड़ दो
ऐ जबरियो, ऐ जुल्मियों, कश्मीर हमारा छोड़ दो
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी सम्प्रभु देश के अंदर न सिर्फ उसके विरोध में नारे लगें बल्कि उसकें दुश्मन देश को सिर-आंखो पर उठाया जाये? कश्मीर में यही हो रहा है। जो लोग कह रहे हैं कि कश्मीर में हालात ९० दशक में पहुंच गए हैं, वो शायद बड़ी नर्मी बरत रहे हैं। क्योंकि हकीकत यह है कि कश्मीर में १९४७ के बाद से अब तक के सबसे खराब हालात हैं। देशद्रोही ,भारत विरोधी, भावनाएं उफान पर हैं। घाटी में चारों तरफ या तो पाकिस्तान या इस्लामी चिन्हों वाले हरे झंडों का बोलबाला है। अचानक हर मुसलमान की जुबान में भारत के लिए गाली और पाकिस्तान के लिए प्यार उमड़ रहा है।
६१ सालों से लगातार कश्मीर को सहलाए जाने का नतीजा है? १९४७ के बाद से अब तक दिल्ली की केन्द्र सरकार कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाए रखने के लिए और भारत विरोधियों की लल्लो-चप्पो करने के लिए कश्मीर को जो मुंह मांगी आथिक मदद देती रही है, वह ८६ खरब रुपये से भी ज्यादा है। अगर इतने पैसे में बिहार या मध्य प्रदेश का विकास किया गया होता तो ये प्रदेश देश के सबसे संपन्न राज्य बन गए होते। लेकिन कश्मीर में एक वर्ग की मानसिकता कभी नहीं बदलती है और जैसे जुल्फीकार अली भुट्टों कहते थे, घास खा लेंगे लेकिन इस्लामी बम बनाऐगें, उसी तरह इनकी भी सोच है कि भले कितनी ही बदहाली और अमानवीय स्थितियों में रहना पड़े मगर पाकिस्तान के साथ इसलिए जाएंगे क्योंकि पाकिस्तान से इनका रिश्ता लालिल्लाह इल्लिलाह का है। भारत के लिए कश्मीर एक स्थायी नासूर इसलिए बन गया है। अरूंधती राय कहती हैं कि कश्मीर को हिन्दुस्तान से आजादी चाहिए। लेकिन शायद वह इस पूरी तस्वीर को एक ही चश्में से देख रही हैं। हकीकत यह है कि भारत कोई कश्मीर से कम परेशान नही है। हकीकत तो यह है कि कश्मीर हमारे लिए एक स्थायी सिरदर्द बन चुका है। देश के लाखों फौजियों के लिए कश्मीर एक मानसिक संताप बन चुका है। जिस भी फौजी का तबादला कश्मीर किया जाता है, वह मानसिक रूप से परेशान हो जाता है। क्योंकि कश्मीर समस्या का वह इलाज ही नहीं है जो इलाज भारत सरकार करना चाहती है। वास्तव में कश्मीर अगर इस कदर साल दर साल भारत के लिए नासूर बनता गया है तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हमारी राजनीति ही है। लाचारी की बात यह है कि दिल्ली से सरकार जो गलतियां १९५० के दशक में कर रही थी, उन्हीं गलतियों को लगातार किए जा रही है। नतीजा यह निकल रहा है कि २ करोड़ की आबादी वाला कश्मीर ११२ करोड़ की आबादी वाले हिन्दुस्तान का सिरदर्द बन गया है। कश्मीर की वजह से हिन्दुस्तान की छवि पूरी दूनिया में धूमिल हो रही है। लेकिन राजनेता हैं कि वह कोई सबक ही नहीं ले रहे। हमारे राजनेता आम हिन्दुस्तानियों में एकता, अखंडता का भाव जगाने या बनाए रखने के संकोच में एक बात हमेशा छिपा जाते हैं कि कश्मीर का भारत में विलय कुछ शतो के साथ हुआ था। कश्मीर हिन्दुस्तान का उसी तरह से प्राकृतिक हिस्सा नहीं है जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार हैं। कश्मीर का भारत में कुछ विशष शतो के साथ विलय हुआ था जिसमें सीमित आजादी की भी शर्त थी। १९४७ के कश्मीर के हिन्दुस्तान में विलय में यह शर्त रखी गई थी कि विदेशी, मुद्रा , रक्षा और कानून की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की होगी। बाकी सभी दायित्व और अधिकार राज्य सरकार के पास होंगे। लेकिन उत्तरोत्तर घटनाक्रमों में भारत सरकार आम देशवासी से इस बारे में लगातार संवादहीनता और गोलमोल की स्थिति बनाए रखी। संविधान की जिस धारा -३७० के तहत कश्मीर को विशेषाधिकार दिए गए थे, लगातार कुछ राष्ट्रवादी पार्टियों के लिए वह कानूनी स्थिति लोगों की भावनाएं भड़काने का बहाना बन गयी। हैरत की बात तो यह है कि लंबे समय तक केन्द्र में शासन करने वाली कांग्रेस ने भी हिम्मत और स्पष्टता के साथ देशवासियों को कभी यह नहीं बताया कि धारा -३७० का विशेष दर्जा कश्मीर को क्यों दिया गया है? वह हमेशा इस मुद्दे को लेकर मामला रफा-दफा करने के फेर में ही रही। नतीजा यह है कि ज्यादातर भारतवासियों को कश्मीर की वस्तुस्थिति का पता ही नहीं है। झारखंड और बिहार में अगर कश्मीर को लेकर राष्ट्रवादी भावनाएं भड़काती हैं तो इसमें सिर्फ लोगों का उन्मादी राष्ट्रप्रेम ही नहीं है बल्कि नेताओं का वह ढुलमुल रवैय्या भी इसके लिए भरपूर रूप से जिम्मेदारी है जिसमें कभी देशवासियों को कश्मीर की राजनैतिक स्थिति को कभी साफ ही नहीं किया।
0 comments: on "भारत तेरी शामत आयी"
Post a Comment