रामसेतु मसला एक बार फिर केंद्र मे आ गया है। केंद्र सरकार पहले राम और उसके अस्तित्व को नकारते-नकारते आखिरकार यह स्वीकार करने लगी है कि राम पौराणिक काल में थे। कंब रामायण का सहारा लेकर सरकार यह बताने में लगी थी कि भगवान राम स्वयं इस पुल को तोड़ दिया था, केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, ' रामसेतु के अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं है। भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद रामसेतु को ध्वस्त कर दिया था।' जो कि सरकार द्वारा झूठ प्रचारित कर रही है कि राम ने लौटते हुए सेतु को तोड़ दिया था। रामायण के मुताबिक राम लंका से वायुमार्ग से लौटे थे, यह बात हिन्दुस्तान का बच्चा बच्चा जानता है सो वह पुल कैसे तुड़वा सकते थे। वाल्मीकि रामायण के अलावा कालिदास ने 'रघुवंश' के तेरहवें सर्ग में राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है। इस सर्ग में राम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है। इसलिए यह कहना गलत है कि राम ने लंका से लौटते हुए सेतु तोड़ दिया था। कालिदास सरीखे कवि को गलत मानकर कम्ब रामायण जैसे अविश्वसनीय स्त्रोत पर कैसे विश्वास कर किया जा सकता है? यह सर्वविदित है कि वाल्मिकी रामायण तक में इस तरह के प्रमाण नहीं दिए गए हैं। इसका मतलब साफ है कि सरकार इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए हर वह कदम उठाना चाहती है, जिससे इस विवादास्पद मुद्दे पर कहीं से कोई शोर नहीं सुनाए पड़े। सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट पर बनी १९ सदस्यीय समिति में से १८ ने इस प्रोजेक्ट के लिए दूसरे मार्ग अपनाने की सलाह दी थी। केवल एक ने यह सुझाव दिया है कि मार्ग छह का इस्तेमाल किया जाए। मार्ग छह के अपनाने से सेतु का तोड़ा जाना जरूरी हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को यह सलाह दी है कि वह मार्ग चार को अपनाए, जिससे यह पौराणिक तथ्य और विरासत को बचाया जा सके और करोड़ों लोगों के धार्मिक आस्था की रक्षा की जा सके।
2 comments: on "सरकार का एक और झुठ"
ऐतिहासिक तथ्यों मे ऐसा मैने भी पढ़ा था कि राम ने स्वयं इसको तोड़ दिया था । पर हमारे ऐतिहासिक तथ्य धार्मिक पुस्तकों में मिलते हैं जिनमें श्रद्धा अधिक है।
शायद इटली वालो को ठेका दिया होगा,यह सरकार वो सब करेगी जो आप को मुझे ओर भारत की जनता को मंजुर नही,एक अच्छी बहुं घर को बना सकती हे, तो एक बहूं घर का सत्यानाश कर सकती हे
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