बेंगलूर के बाद अहमदाबाद भी सीरियल बम धमाकों से दहल उठा हिन्दुस्तान। 24 घंटे में दुसरा हमला । देश में जब कभी कोई आतंकवादी हमला होता है, तो हमले के लिए जिम्मेदार लोगों या उनके संगठनों अथवा हमलावरों को पनाह देने वाले मुल्क या मुल्कों के नाम रेडिमेड तरीके से सामने आ जाते हैं। आतंकवादियों को कायर, पीठ में छुरा घोंपने वाले या बेगुनाहों का हत्यारा कहकर केंद्र और राज्य सरकारें तयशुदा प्रतिक्रिया व्यक्त कर देती हैं। हमारे नेता भी ऊंची आवाज में चीखकर कहते हैं कि आतंकवाद के साथ सख्ती से निपटा जाएगा। कुत्ता को घुमाने और ई-मेल कहा से आया बस यही तक खबर आती है। फिर मुआवजा देने का दौर चलता है अगर हिन्दु मरा है तो 1 लाख और मुस्लमान मरा है तो 5 से 10 लाख तक का मुआवजा मिलता है। सरकार के किसी मंत्री घटनास्थल के दौरे के साथ ही सभी बड़ी-बड़ी बातें खत्म हो जाया करती हैं और यह श्रंखला आतंकवादियों की अगली करतूत होने पर फिर शुरू हो जाती है, यही सिलसिला चलता रहता है। लोगों ने अब यह भी कहना शुरू कर दिया है कि बढ़-चढ़कर किए गए ऐसे दावों में कोई दम नहीं होता। कुछ लोगों ने मुझसे यहां तक कहा कि अखबारों में छपे ऐसे सियासी बयानों को हम पढ़ते तक नहीं।
आखीर कब रुकेगा आतंकवादियों का हमला। हिन्दुस्तान में आतंकवाद को सदैव वोट बैंक और मुस्लिम तुस्टीकरण की राजनीति से जोड्कर देखा जाता है और इसी का परिणाम है कि पहले 1991 में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी की सरकार के मुसलमानों के दबाव में आकर टाडा कानून वापस ले लिया और उसके बाद 2004 में सरकार में आते ही एक बार फिर कांग्रेस ने पोटा कानून वापस ले लिया। उच्चतम न्यायालय ने जब संसद पर हमले के मुख्य आरोपी अफजल गुरू को फांसी दिए जाने का आदेश दिया था तो तमाम 'सेकुलरवादी दलों' का राष्ट्रविरोधी चेहरा भी सामने आ गया था। जम्मू-कश्मीर के कांग्रेसी मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद सहित पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती उसके बचाव में आ खड़ी हुई थीं। यहा तक कह दिया कि अफजल को फांसी देने पर इस देश में दंगा भरक सकता है कांग्रेसी आजाद ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर फांसी की सजा नहीं दिए जाने की अपील की थी। अलगाववादी संगठनों के नेतृत्व में घाटी में व्यापक विरोध प्रदर्शन किया गया। इन सबका ही परिणाम है कि आज भी अफजल सरकारी दमाद बना हुआ है और सेकुलर संप्रग सरकार फांसी की सजा माफ करने की जुगत में लगी है। क्या एक आतंकवादी को फांसी देने से दंगा भरक सकता है तो इसमें हमे कहने से कोई गुरेज नही है कि दंगाई का राष्टृभक्ति कभी भी हिन्दुस्तान के साथ नही है और इसमें भी कांग्रेसी ही दोषी है जब देश आजाद हूआ था तभी कांग्रेसी जन यैसे देशद्रेही को गले लगा-लगा कर इस देश में रहने के लिये रोक रहे थे जो आज हमारे लिये नासूर बन गये हैं।
हिन्दुस्तान यैसा देश है जहा आतंकवादि सरकारी नैकरी करते हैं सरकार उन्हें पैसा भी देती है और आतंकवाद फैलाने के सहायता। "भारत बहुत बुरा देश है और हम भारत से घृणा करते है। हम भारत को नष्ट करना चाहते है और अल्लाह के फजल से हम ऐसा करेगे। अल्लाह हमारे साथ है और हम अपनी ओर से पूरी कोशिश करेगे।" गिलानी के ताजा बयान के बाद भी यदि सेकुलर खेमा गिलानी और अफजल जैसे देशद्रोहियों की वकालत करता है तो उनकी राष्ट्र निष्ठा पर संदेह स्वाभाविक है। गिलानी दिल्ली विश्वविद्यालय में अरबी और फारसी पढ़ाता है। उसके नियुक्ति पत्रों की जांच होनी चाहिए और यदि उसने अपनी नागरिकता भारतीय बताई है तो उसे अविलंब बर्खास्त कर देना चाहिए। क्या यही है आतंकवादियों से लड़ने क माद्दा, शायद नही।
आज भारत में एक भी ऐसा कानून नहीं है जो आतंकवाद की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए और आतंकवादियों के विशेष चरित्र को देखते हुए उन्हें तत्काल और प्रभावी प्रकार से दण्डित करने के लिये प्रयोग में आ सके। आज सभी राजनीतिक दलों के नेता केवल भाजपा को छोड्कर इस बात पर सहमत दिखते हैं कि सामान्य आपराधिक कानूनों के सहारे आतंकवाद से निपटा जा सकता है। हमारे सामने एक नवीनतम उदाहरण है कि किस प्रकार टाडा के विशेष न्यायालय में मुकदमा होते हुए भी मुम्बई बम काण्ड के अपराधियों को सजा मिलने में कुल 15 वर्ष लग गये और सजा मिलने के बाद भी एक के बाद एक आतंकवादियों जमानत पर छूटते जा रहे हैं। आखिर जब हमारी न्याय व्यवस्था जटिल तकनीकी खामियों का शिकार हो गयी है जो आतंकवादियों को बच निकलने का रास्ता देती है तो फिर कडे और ऐसे कानूनों के आवश्यकता और भी तीव्र हो जाती है जो तत्काल जमानत या फिर आतंकवाद के मामले में जमानत के व्यवस्था को ही समाप्त कर दे। यह कोई नयी बात नहीं है। पश्चिम के अनेक देशों ने ऐसे कठोर कानून बना रखे हैं और इसके परिणामस्वरूप वे अपने यहाँ आतंकवादी घटनायें रोकने में सफल भी रहे हैं। परंतु भारत के सम्बन्ध में हम ऐसी अपेक्षा नहीं कर सकते। अगर हिन्दुस्तान की सरकार आतंकवादियों से लड़ नही सकती है तो उसे अपना दमाद बना ले लफडा खत्म हो जायेगा। हम मुर्ख जनता जात-पात उँच-नीच के नाम पर दुबारा नपुसंको के हाथ में इस देश की बागडोर दे देंगे।
6 comments: on "आतंकवादीयों को दमाद क्यों नही बना लेते"
वह तो उन्होंने पहले ही बना लिया है. अफज़ल उनका दामाद ही तो है. मेरे विचार में, यह छद्म धर्म-निर्पेक्षवादी ज्यादा खतरनाक आतंकवादी हैं. आतंकवादियों को यकीन हो गया है कि अगर पकड़े भी गए तो कांग्रेस उनकी दामाद की तरह खातिर करेगी. कांग्रेस के रहते तो निर्दोष हिन्दुस्तानी इसी तरह आतंकवाद का शिकार होते रहेंगे.
kya aapko lagtaa hai we damaad nahi,aatankwadi to zamaane se awaidh damad hai
hindoo khud doshi hain, do apne hiton ke liye vote nahi karte, muslimon ne apne vote ki keemat achchi tarah pahchani hai, chuki unke voton se sarkaren banti hain isliye unhe tavajjo di jati hai, hindu hit ki baat karne walo ko log turant savarno se jod dete hai, shuturmurgi soch se kuchh haasil nahi hota
हम तो सुरेश जी के हर शव्द से सहमत हे. धन्यवाद
चन्दन जी आप के विचार पढ्कर मन आक्रोश से भर जाता है, मुझे अपने हिन्दु भाइयों की अक्रमण्यता पर क्षोभ होता है कि जो हमेशा मुस्लिम हितो की ही बात हे करते हैं। ऎसा कबतक चलता रहेगा, हिन्दुऔ की हक छीन कर कब तक मुस्लिम आतंकवादियों को पाला जाता रहेगा। जितने भी बम्ब फोडे जाते हैं सभी मुस्लिम आतंकवादी द्वार ही फोडे जाते हैं, क्या धर्म-निर्पेक्षवाद की बात करने वाले अंधे व बहरे हैं?
आज भारत ही नहीं पूरा विश्व आतंकवाद की चपेट में आ चुका है। इस तरह का घिनौना काम करने वाले इंसान कहलाने के लायक भी नहीं हैं। शर्म आती है जिस तरह से भारत में आतंकवादी हमलों में तेज़ी आई है और सुरक्षा तंत्र इसे रोक पाने में असमर्थ रहा है। दोष तो व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार का है। वैसे रही-सही कसर नेतागिरी पूरा कर देती है जो ऐसी घटनाओं का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करते हैं।
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