हिन्दु तो गली के कुत्ता जैसा है।

जब मुगलों ने हिन्दुस्तान पर हमला किया एक उनकें एक हाथ में तलवार और दुसरे हाथ में कुरान था बहुत ही भयावह आक्रमण था मुगलों का। मुगल शासक हिन्दुस्तान पर आक्रमण करके सिर्फ हिन्दुस्तान को लुटना ही नही चाहते थे हिन्दुस्तान की संस्कृ्ती को भी नाश करके इस्लाम का प्रचार प्रसार करना चाहते थे। मुगलों ने वैसा ही किया लेकिन जैसा वे चाहते थे लेकिन हिन्दु शासको विरोध भी झेलना परा । हिन्दुस्तान को जितने के लिये मुगलों को काफी मेहनत करना पर रहा था देशभक्त राजा मुगलों के रास्तों में किसी ना किसी तरह से परेशानी खरा कर रहे थे। आखिर मुगलों ने एक नया रास्ता निकाला हिन्दुओं के आपस में बाटनें का बिना हिन्दु को बाटें मुगल अपने मकसद में कभी कामयाब नही हो सकते थे। नतिजा कुछ युद्ध में हारे हुये, डरपोक, दलाल हिन्दु राजा मुगलों के साथ मिल गये तथा अपने राज्य सत्ता को बचाने के लिये किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार हो गये और अपने बहू-बेटीयों को नंगा करके बजार में खरा कर दिया मुगलों को खुसामद करने के लिये । नतीजा उन्हें सत्ता तो मील गया लेकिन हिन्दुस्तान का आत्मसम्मान नंगा हो गया। मुगलों द्वारा हिन्दुओं को तरह-तरह से यातना दिया जाने लगा और जो कोई भी इस्लाम कबुल नही करता उन्हें या तो जेल में सड़ने के लिये डाल दिया जाता या सडे़ आम तड़पा तड़पा के मार दिया जाता फिर भी मुगलों का विरोध इस धरती पर होता रहा जहा एक ओर यैसे राजा थे जो अपने बहू-बेटीयों का बोली लगवा दिया वही वैसे राजा भी थे जो जीवन भर मुगलें से लड़ते रहें और उनकी बहू-बेटीया मुगलों के हाथ में आने से पहले सामूहिक आत्मदाह करके अपने आपको धधकते आग के हवाले कर दिया और अपना तथा हिन्दुओं के आत्मसम्मान को कभी आँच नही आने दिया। हिन्दु समाज उस समय भी दो हिस्सों में बट था चापलुस हिन्दु और देशभक्त आत्मसम्मान के साथ जीने बाले हिन्दु।

जहाँगीर के शासन काल में अंग्रेज व्यापार करने के लिये हिन्दुस्तान में आये हिन्दुस्तान उनहें कभी भाय। सिर्फ 500 पाउण्ड लेकर हिन्दुस्तान में व्यापार करने आये अंग्रेज से जहाँगीर ने पुछा तुम हिन्दुस्तान में क्या बेचना चाहते हो तो अंग्रेज ने कहा कुछ नही तो क्या खरीदोंगे अंग्रेजों ने कहा कुछ नही। फिर भी अंग्रेज यहा व्यापर करने लगें। व्यापार करते-करते हिन्दुस्तान में शासन भी करने लगें और अंग्रेजो को साथ दिया यही के दलाल हिन्दुस्तानीयों नें। अंग्रेजो ने वही सब किया जो मुगलों ने किया था हिन्दुओं में कभी एकता मत आने दों| एक ओर तो राष्टृभक्त अंग्रेजो से लड़ते रहे दुसरी ओर दलालों की फौज अंग्रेजों के तलवें चाटते रहें और रायबहादुर, चौधरी साहब, जमीन्दार साहब बन कर अंग्रेजो के बीबीयों का चुम्बन लेते रहें और अपने बीबी का चुम्बन अंग्रेजो को दिलवाते रहें। उस समय भी हिन्दु समाज में आत्मसम्मान नही आने दिया गया नतीजा हमारा हिन्दुस्तान अंग्रेजो के गुलामी करता रहा।

समय बदला सुभाषचन्द्र बोष की आजाद हिन्द सेना से, वीर सावरकर आत्मबल से, डा. हेडगेवाल के खाकी निक्कर बाले देशभक्तों से, भगत सिह के हैसला से, चन्द्रशेखर आजाद के जुझारुपन से रामप्रसाद विस्मिल के निडरता के डर से अंग्रेज हिन्दुस्तान छोड कर भाग गये। देश आजाद हो गया। शासन करने बाले बदल गये शासकों का चमरा का रंग उजला से काला हो गया लेकिन शासन करने का पद्धती वही रहा कभी हिन्दुओं मे एकता नही आने दो हिन्दु को गली का कुत्ता बना कर रखो जब जिसका मन करे लतिया कर चला जाये आज समस्या इस कदर बढ गया है कि हिन्दुओं के आत्मसम्मान का बात करना सप्रदायीक हो गया। वरुण गाँधी ने भी हिन्दुओं के आत्मसम्मान की रक्षा करने का जिम्मा उठाया फिर क्या था रायबहादुर, चौधरी साहब, जमीन्दार साहब के वंशज को बुरा लग गया क्यों कि उनहें पता है जिस दिन हिन्दुओं में आत्मसम्मान जग जायेगा रायबहादुर, चौधरी साहब, जमीन्दार साहब के वंशजों को जुता लेकर दौरायेगा। इस लिये वरुण गाँधी के उपर एक साथ सभी ने हल्ला बोल दिया कि हिन्दु आत्मसम्मान की बात करना संप्रदायिक लगने लगा। हिन्दु आत्मसम्मान की बात करना संप्रदायिक हो गया दुसरे तरफ मुसलमान नेताओं के द्वारा हिन्दु को गाली देना संप्रदायिक नही है। पिलीभीत में हिन्दु औरतों का बलात्कार होना शर्म की बात नही है लेकिन वरुण गाँधी द्वारा उनके रक्षा की बात करना संप्रदायिक। मस्जिद के इमाम का फतवा जारी करके एक राजनितीक पार्टी को फायदा पहुचाना संप्रदायिक नही है। गुजरात में ट्रेन में मासुम बच्चों को जला कर मार देना संप्रदायिक नही है उसके प्रतीउत्तर देना संप्रदायिक हो गया है। मुम्बई में बम बिस्फोट करना संप्रदायिक नही है लेकिन हिन्दु इस के खिलाफ अवाज उठाये तो संप्रदायिक हो गया। भागलपुर में हिन्दुओं के देवी-देवता का मुर्ती तोड़ देना संप्रदायिक नही लेकिन हिन्दुओं मे इस बात का विरोध करना संप्रदायिक हो गया। हिन्दुओं के धार्मिक यात्रा में व्यवधान करना संप्रदायिक नही है लेकिन अगर कोई इसके खिलाफ आवाज उठाये तो वे संप्रदायिक हो गया। वरुण गाँधी का हिन्दु के पक्ष में बोलना संप्रदायिक है लेकिन कांग्रेसी नेता का हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगलना संप्रदायिक नही है। साध्वी प्राज़ा सिह आतकवादी है और अफजल गुरु को आंतकवादी कहना संप्रदायिक। आखिर कब तक इस देश में जयचन्द, मानसिंह, मिरजाफर, रायबहादुर, चौधरी साहब, जमीन्दार साहब के वंशजों का नीति चलता रहेगा।

एक देश में दो विधान जरुर डुबेगा हिन्दुस्तान।

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18 comments: on "हिन्दु तो गली के कुत्ता जैसा है।"

Anonymous said...

लिखने वाला गली का कुत्ता है, हिन्दू नहीं।

Anonymous said...

हिन्दुस्तान तो नहीं तुम जरूर डूब जाओगे

Unknown said...

बेनामी भाई को मिर्ची लगी है, जरूर ये कोई मुसलमान है या वामपंथी…

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

पता नहीं ये बेसिर पैर की बातें कहां से आपने अपने दिमाग में इकट्ठी कर ली हैं। मुगल यहां धर्म का प्रचार करने नहीं आए थे, बल्कि राज्य स्थापित करने के लिए आए थे। यदि आपने बाबर की आत्मकथा पढ़ी होती, जो हिंदी में बाबरनामा के नाम से उपलब्ध है, आपको मालूम होता कि वे तुर्किस्तान में अपना राज्य खोने से यहां नए राज्य की तलाश में आए थे। दो-एक पीढ़ियों में ही मुगल बादशाह इतने भारतीय हो गए थे, कि अकबर तुर्की भाषा बिलकुल न जानता था, और ब्रज भाषा ही उसकी मुख्य भाषा हो गई थी। अकबर स्वयं ब्रजभाषा में काव्य रचता था। अकबर की मां हिंदू थी। उसका बचपन मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ किले में एक हिंदू राजा के संरक्षण में बीता था। तब शेर शाह द्वारा पीछा किए जाने के कारण हुंमायूं मारा-मार फिर रहा था और ईरान में शरण लेने को मजबूर था। इसलिए संस्कार से अकबार बिलकुल भारतीय था। उसने भारत में अपना विशाल साम्राज्य राज मानसिंह जैसे हिंदू सिपाहसलारों की मदद से ही स्थापित की थी। उनके होम मिनिस्टर राजा टोडर मल थे। बीरबल आदि हिंदू राजा उनके नवरत्नों में थे। अकबर धर्म, साहित्य, संस्कृति, स्थापत्य कला आदि का बड़ा पारखी था। वह भारत के महानतम सम्राटों में से एक था, जिस पर हर भारतीय को, चाहे वह हिंदू हो, मुसलमान हो, सिक्ख हो, या ईसाई, उचित ही गर्व होना चाहिए। उसके बाद के मुगल बादशाहा, जहांगीर शाहजहां आदि ने भी अकबर की ही नीति जारी रखी। यहां तक कि ओरंगजेब ने भी मंदिरों के निर्माण के लिए भारी दान किए हैं। मुगलों का समय हमारी भाषा हिंदी के लिए बहुत महत्व रखती है। मुगलों के ही समय खड़ी बोली, जिसे आज हिंदी कहा जाता है, पूरे देश में फैल गई थी। तुलसी, सूर आदि महान हिंदी रचनाकार मुगलों के समय में ही हुए थे।

हर चीज को धर्म के चश्मे से देखने का रोग हमें अंग्रेजों ने लगाया। वे देश को बांटकर कमजोर रखना चाहते थे। संगठित भारत के शौर्य का परिचय उन्हें 1857 में लग चुका था, और वे जानते थे कि हिंदू और मुसलमान को अलग न करें, तो भारत में उनके दिन इने गिने ही हो सकते हैं। इसलिए उन्होंने एक सोची-समझी साजिश के अंतर्गत हिंदुओं और मुसलमानों के बीच खाई खोदना शुरू किया जिसका अंजाम देश के बंटवारे में हुआ। आज भी हम उनकी इस चाल का खामियाजा भर रहे हैं। मुंबई में जो हुआ वह उसी का नवीनतम मिसाल है।

जिस तरह के विचार आपने उगले हैं, वहेआपके अज्ञान के सूचक हैं। यदि आप सच्चाई जानना चाहें, तो डा. रामविलास शर्मा की पुस्तकों का अध्ययन कीजिए, उसमें सब कुछ बड़ी स्पष्टता से समझाया गया है।

भगत सिंह जिनका नाम आपने सावरकर और हेगड़े के साथ लिया है, नास्तिक थे और साम्यवादी थे। वे अंग्रेजों की चाल को भली-भांति समझ गए थे, और वे सशस्त्र क्रांति से अंग्रेजों को यहां से भगाने में विश्वास रखते थे।

थोड़ा अध्ययन कीजिए, आपकी आंखों से धर्म का यह विभेदी चश्मा उतर जाएगा, और आप देश का सच्चा हित साध सकेंगे।

Unknown said...

aapki bat men dam hai, nahi kisi se kam hai.

चौहान said...

Anonymous तुम्हारे बारे में कुछ नही कहूगा क्यों कि ये पुरा लेख तुम्हें ही समर्पित है। क्यों तुम्हारे सच्चाई से डर लगता है नाम छिपा कर गालि देना तुम्हारे खुन मैं है क्यों तुम्हारे शरीर में पता नही किसका खुन है। अगर तुम सच्चे हो तो तर्क करो अपना ज्ञान के द्वारा हमें बताओ कि हम गलत है ना कि नाम छिपा कर गालि दो है हिम्मत।

Dr. Manoj Jha said...

भाई साहब तहलका मचा दिया देखों कितने मान सिंह, जयचन्द, मिरजाफर के पुतों को मिर्ची लगा है।

बवाल said...

बहुत बेहतरीन लेख लिखा है जी वाह वाह हम भी इत्तिफ़ाक रखते हैं आपसे मगर बालसुब्रमनियम साहब भी बिल्कुल वाजिब बात कह रहे हैं ।
मगर आपको मालुम है के हिन्दुओं की यह हालत क्यूँ है ? बहुत सिंपल, हिन्दू सड़्कों के किनारे, नालियों के ऊपर, गन्दे स्थानों पर, अभूतपूर्व विसंगतियों से ग्रस्त होकर भगवान को घिनापन से घेरे रहते हैं। भगवान को मज़ाक बनाना ही हिन्दुओं को भारी पड़ रहा है भाई। हटाइए भी आप तो एन्जाय कीजिए । आपके पहले भी हिन्दुत्व था और आगे भी रहेगा हा हा हालत भले बदल जाए प्रारब्ध वही रहेगा। भगवान जी, अल्ला मियां और गा॓ड जी सभी की "जय हो"

ANAND TRIPATHI said...

very good yar kitne logo ki phat gayi tumhari sun ke

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

लेख में कुछ विसंगतियां हो सकती हैं पर इसके कारण तथ्य को नकारा नहीं जा सकता। यदि बाबर या आगे आने वाले अपने धर्म को बढाने का काम नहीं कर रहे थे तो काफिर के नाम पर हिंदु[हिंदुस्तान के रहने वाले] क्यों मारे जा रहे थे या सुरक्षित रहने के लिए धर्मपरिवर्तन क्यों कर रहे थे? धर्म के प्रचार के अपने अपने तरीके हैं। कोई तलवार की नोक पर अपने धर्म को बढा रहा था तो कोई सेवा और शिक्षा को माध्यम बना रहा था। ध्येय तो वही था। आज भी इस देश में एक सा कानून नहीं है। धर्म परिवर्तन करके चंद्र मोहन चांद खा बन कर चार शादियां कर सकता है! क्यों?????

Anonymous said...

बात तो आपने सही कहा है लेकिन यैसी बाते भारत में कम को समझ आता है।

Anonymous said...

पहला काम्य़ुनिष्ट देखा जो हिन्दु की बात करता है इस काम्युनिष्ट का इतना बुद्धी कहा से आ गया। भगवान करे आपके जैसा बुद्धी सभी वांमपन्थियों को आ जाये तब तो आने बाला समय में बी.जे.पी का सरकार बनेगा।
बधाई के पात्र है आप लिखते रहीये देश के अन्धे बहरे को जगाते रहीये

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

डॉ . हेडगेवार और उनकी खाकी नेकर वाले देशभक्तों का आज़ादी का योगदान के बारे मे जानना चाहता हूँ ?
हाँ वह हिन्दू कुत्ते है जो यह सुन कर चुप है कि राम मंदिर कभी भाजपा का मुद्दा नहीं था ऐसा वक्तव्य हमारे भाजपा के दामाद मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा .

Anonymous said...

Don't fight, Judge yourself who is right?

http://en.wikipedia.org/wiki/Akbar#Relation_with_Hindus

OR

http://en.wikipedia.org/wiki/Akbar#Early_conquests

OR

http://en.wikipedia.org/wiki/Akbar

विक्रांत said...

Sir, Good work. Some words may be wrong but overall your article is absolutely right. Keep writing.

Anonymous said...

जैसा नहीं, बिलकुल है १०० % ! अगर ऐंसा न होता तो तीन-तीन गुलामिया क्यों झेलता ? है, इस लिए तकदीर में मालिक की ही गुलामी लिखी है ! मालिक के आगे बस हिलाना लिखा है ! साथ साल पहले कहने को आजादी तो मिली मगर आज तक हिला रहा है! साला पानी में ही कुछ कमी है ! अब देखो न, जिन्होंने इन पर आकर्मण किया, इनको वर्बाद किया, सरेआम इनकी माँ बहिनों की इज्जत लूटी, ये आज उसी की जयजयकार कर रहे है ! अफ़सोस कि इसी बिरादरी से मैं भी हूँ !

Arun Arora said...

अगर आप स्लम डाग कहलाने से खुश है तो यखीन मानिये आप वाकई कुत्ते है १०० नही १०००% कुत्ते है आप , और आप जैसे लोगो के कारण ही हिंदू १००० साल का गुलामी का गौरव ढो रहा है शर्म करो

Anonymous said...

Balasubrama What reader Balasubramaniyam says is not right. He has studied the literature of communists. Communists writers are against the Indianisation. If one want to know the correct History, he should study the literatures of those, whose heart is filled with the love of Mother India. If Akbar is great, he should not be womanizer. Does Balasubramaniyam knows Akbar made victims more than 5000 thousand women in his Raniwas. How he could know the culture of any country and how could he make it progressive. Only with the "Chutkula" of Akbar Birbal, Akbar cannot be treated as great or Hinduwadi. If Akbar is great, then why Maharana Partap struggled against him. Why the Great Maharana Partap fought the war of Freedom and Self Respect.? You know all this? Ramvilas Sharma's history work should be burnt or should be thrown in the sea. These writers are the biggest enemies of India. Moreover Bhagat Singh was not "Naastic" He was great Aastik. To know the fact, you should know the what is Aasticwad.