जयपुर विस्फोट के सन्देश

13 मई को राजस्थान की राजधानी जयपुर में हुए आतंकवादी आक्रमण के तत्काल बाद इसके मूल कारणों पर विचार करते हुए लोकमंच ने एक लेख प्रकाशित किया था और इस समस्या के मूल में जाकर इसके कारणों पर विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया था। जयपुर विस्फोट के बाद जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं और सुरक्षा एजेंसियों को इस सम्बन्ध में नये सुराग मिल रहे हैं, वैसे- वैसे यह बात पुष्ट होती जा रही है कि इस्लामी आतंकवाद की इस समस्या को व्यापक सन्दर्भ में सम्पूर्ण समग्रता में देखने की आवश्यकता है।
विस्फोट के एक दिन बाद इण्डियन मुजाहिदीन नामक एक अप्रचलित इस्लामी संगठन ने इस आक्रमण का उत्तरदायित्व लेते हुये करीब 1800 शब्दों का एक बडा ई-मेल विभिन्न समाचार पत्रों और टीवी चैनलों को भेजा। देश के प्रसिद्ध अंग्रेजी समाचार पत्र हिन्दू ने इस ई-मेल के प्रमुख बिन्दुओं को अपने समाचार पत्र में स्थान दिया। वास्तव में यह ई-मेल केवल विस्फोट का दायित्व लेने तक सीमित नहीं था वरन यह भारत में हो रहे जिहाद का एक घोषणा पत्र था। इस ई-मेल में इण्डियन मुजाहिदीन ने जो प्रमुख बिन्दु उठाये हैं उसके अनुसार इस विस्फोट का उद्देश्य काफी व्यापक है।


इस संगठन के अनुसार जयपुर को निशाना बनाकर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों को यह सन्देश देने का प्रयास किया गया है कि भारत का मुसलमान वैश्विक जिहाद के साथ एकज़ुट है। दूसरा सन्देश हिन्दुओं को दिया गया है कि वे राम, सीता और हनुमान जैसे गन्दे ईश्वरों की उपासना बन्द कर दें अन्यथा उन्हें ऐसे ही आक्रमणों का सामना करना होगा। इन दो सन्देशों के बाद यह संगठन सीधे भारत में मुसलमानों के उत्पीडन की बात करता है और उसके अनुसार पिछ्ले 60 वर्षों से भारत में मुसलमानों को प्रताडित किया जा रहा है। सन्देश में 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराये जाने और 2002 में गुजरात में हुए दंगों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि मस्जिद गिरने के बाद जब नरमपंथी मुसलमानों ने अयोध्या जाकर विरोध करने का प्रयास किया गया तो उन्हें गिरफ्तार कर उनका उत्पीडन किया गया। जयपुर में विस्फोट के पीछे इस संगठन ने मुख्य कारण यह बताया है कि गुजरात में नरेन्द्र मोदी को दो बार भारी बहुमत से विधानसभा में पहुँचा कर हिन्दुओं ने स्वयं को ऐसे आक्रमणों का निशाना बना लिया है। साथ ही सन्देश में कहा गया है कि भारत में हिन्दू राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद और शिव सेना जैसे संगठनों को आर्थिक सहायता देते हैं। इसके साथ ही कहा गया है भारत के सभी नागरिक मुजाहिदीनों के निशाने पर हैं क्योंकि वे भारत की संसद में उन नेताओं को चुनकर भेजते हैं जो मुसलमानों के उत्पीडन का समर्थन करते हैं।
इण्डियन मुजाहिदीन ने भारत को सन्देश में कुफ्रे हिन्द ( काफिरों का स्थान) कहकर सम्बोधित किया है और कहा है कि यदि इस देश में इस्लाम और मुसलमान सुरक्षित नहीं है तो इस देश के लोगों के घर में भी जल्द ही अन्धेरा हो जायेगा।


इस सन्देश के अपने मायने हैं। देश के एक अन्य अंग्रेजी समाचार पत्र मेल टुडे में इण्डियन मुजाहिदीन के इस ई-मेल पर सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह की प्रतिक्रिया प्रकाशित की गयी है। श्री सिंह के अनुसार ऐसे मेल भेजकर इस्लामी संगठन शेष मुसलमानों को एक सन्देश देते हैं और उन्हें अपने विचारों से अवगत कराते हैं। श्री सिंह 1992 में बाबरी मस्जिद गिराये जाने या गुजरात में हुए दंगों के आधार पर ऐसे विस्फोटों को न्यायसंगत ठहराने की इस्लामी संगठनों की प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए कहते हैं कि अतीत में घटी घटनाओं को आधार बनाकर ऐसे आक्रमणों को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता। श्री सिंह मुस्लिम उत्पीडन की अवधारणा को भी खारिज करते हुए कह्ते हैं कि देश के राजनीतिक दल इसी दबाव में आ जाते हैं और सुरक्षा एजेंसियों का मनोबल गिराते हैं उनके अनुसार यह बकवास है कि अपराध या आतंकवाद को अंजाम देने वालों के विरुद्ध कार्रवाई करते समय सेकुलर सिद्धांत का पालन किया जाये और अपराधी मुसलमान हो तो उसके बराबर ही हिन्दुओं को भी गिरफ्तार किया जाये। सीमा सुरक्षा बल का पूर्व महानिदेशक यदि ऐसे निष्कर्ष निकालता है तो और कुछ कहने की आवश्यकता रह ही नहीं जाती।

जयपुर विस्फोटों के सम्बन्ध में एक और रोचक खोज प्रसिद्ध हिन्दी समाचार चैनल जी न्यूज ने की। 17 मई को रात 10 बजे इनसाइड स्टोरी नामक अपने कार्यक्रम में चैनल ने पूरी उत्तरदायित्व से उन चार प्रमुख चेहरों की विस्तार से जानकारी दी जिनका स्केच राजस्थान पुलिस ने तैयार किया है। इनमें प्रमुख शमीम है और शेष तीन के नाम अबू फजल, इमरान उर्फ अमजद और मुख्तार इलियास हैं। इनमें से केवल मुख्तार इलियास ही बांग्लादेशी है और शेष तीनों भारत के मुसलमान है। इनमें से एक शमीम तो जयपुर से 60 किलोमीटर दूर सीकर नामक स्थान पर नगीना मस्जिद में एक मदरसे में पढाता भी था। समाचार चैनल को एक लैण्ड लाइन दूरभाष नम्बर भी मिला जिसपर शमीम बात करता था और इस चैनल के संवाददाता ने जब इस नम्बर पर बात की तो पता चला कि यह नम्बर काम करता है और दशकों से अस्तित्व में है और इस घर में रहने वाला 16-17 वर्ष का बालक शमीम का विद्यार्थी भी रहा है। अब यदि शमीम मदरसे और मस्जिद में रह कर जयपुर से 60 किलोमीटर दूर किसी के घर के फोन का प्रयोग कर सारी रणनीति बना सकता है तो फिर सुरक्षा एजेंसियों को दोष कैसे दिया जाये। शमीम उसी वलीउल्लाह का राजस्थान का प्रभारी है जिसे उत्तर प्रदेश में हुए बम धमाकों का मास्टर माइण्ड माना गया है। इसी प्रकार अबू फजल मध्य प्रदेश में सिमी का कार्यकर्ता है और 2007 से इन्दौर से फरार है। इमरान उर्फ अमजद का पूर्वी उत्तर प्रदेश से सम्बन्ध है केवल मुख्तार इलियास ही बांग्लादेशी है और भारत में हूजी के लिये काम करता है।


इन तथ्यों को देखकर क्या निष्कर्ष निकाला जाये कि गडबड कहाँ है। वास्तव में इस्लामी आतंकवाद के प्रति हमारा दृष्टिकोण इस समस्या के लिये उत्तरदायी है। इस समस्या को हम 1990 के दशक के चश्मे से देख रहे हैं और उसी अवधारणा के आधार पर आगे बढ रहे हैं कि हमारा पडोसी पाकिस्तान ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहा है। यह बात कुछ अंशों में सत्य है पर अब यह पूरी तरह सत्य नहीं है। इस अवधारणा पर जब सख्त कदम उठाये जाने चाहिये थे तब उठाये नहीं गये और जब पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी शिविर ध्वस्त करने से इस समस्या का समाधान निकल सकता था तब हमने अवसर गँवा दिया और अब स्थिति वहीं तक सीमित नहीं है। आज भारत में इस्लामी आतंकवादी संगठनों का व्यापक नेटवर्क फैल चुका है और यदि इण्डियन मुजाहिदीन के सन्देश को हम अधिक ध्यान से देखें तो स्पष्ट होता है कि पिछ्ले डेढ दशक में आतंकवाद की इस लडाई में कुछ गुणात्मक परिवर्तन आया है। एक 1993 के आसपास भारत के जिहादी गुटों की शक्ति और उनका विस्तार सीमित था और बाबरी ढाँचे के ध्वस्त होने के बाद बदले की कार्रवाई में वे मुम्बई को ही निशाना बना सके। आज 15 वर्षों के बाद भारत में उनका नेटवर्क इतना व्यापक हो गया है कि वे अब महानगरों तक सीमित नहीं रह गये हैं वरन राज्यों की राजधानियों या छोटे-छोटे नगरों में भी आतंकी आक्रमण करने की उनकी क्षमता हो गयी है। 2005 से लेकर अब तक कुल 9 श्रृखलाबद्ध विस्फोट देश में हो चुके हैं और इनमें 500 से अधिक लोग मौत की नींद सो चुके हैं।


इन 15 वर्षों में ऐसा क्या परिवर्तन हुआ कि हम जिहाद की इस भावना को समझने में असफल रहे हैं। वास्तव में जिहादवाद ने एक वैश्विक स्वरूप ग्रहण कर लिया है और इस्लामी आतंकवादियों का उद्देश्य इस्लामी उम्मा के साथ एकाकार हो चुका है। अब देश की विदेश नीति, अमेरिका के साथ उसके सम्बन्ध, ईरान के सम्बन्ध में उसकी नीति, इजरायल के साथ सम्बन्धों का स्वरूप इस्लामी आतंकवादियों की रणनीति का आधार बनता है। जयपुर में हुए आतंकवादी आक्रमण की निन्दा कुछ इस्लामी संगठनों ने की है परंतु उन्होंने फिर सरकार को सावधान किया है कि यदि मुसलमानों की शिकायतों पर उचित ध्यान नहीं दिया गया और सुरक्षा एजेंसियाँ निर्दोष मुसलमानों को निशाना बनाती रहीं तो ऐसी घटनाओं को रोका नहीं जा सकेगा। यह सशर्त निन्दा एक व्यापक वैश्विक रूझान की ओर संकेत करती है। आज समस्त विश्व में इस्लामी संगठन आतंकवाद की निन्दा भी करते हैं और मुस्लिम उत्पीडन की एक काल्पनिक अवधारणा को प्रश्रय भी देते हैं। विश्व के जिन भी देशों में आतंकवाद प्रभावी है वहाँ की सरकार की मुस्लिम और इस्लाम विरोधी नीतियों को इसका उत्तरदायी बताया जाता है। परंतु यह कितना वास्तविक है इसकी जाँच कभी नहीं की गयी।


इण्डियन मुजाहिदीन ने अपने सन्देश में जिस प्रकार गुजरात में मोदी की दूसरी बार विजय और भारतीय संसद में उन नेताओं की विजय जो मुस्लिम उत्पीडन में सहायक हैं उसको आक्रमण का कारण बताया गया है वह भी वैश्विक जिहाद की ही एक प्रवृत्ति का संकेत है। अमेरिका ने जब इराक पर आक्रमण किया और वहाँ बहुराष्ट्रीय सेनायें तैनात कर दीं तो अनेक देशों के जनमत को प्रभावित करने के लिये और देशों को अपनी नीतियाँ बदलवाने के लिये इस्लामी आतंकवादियों ने विस्फोटों का सहारा लिया। स्पेन में मैड्रिड में रेल विस्फ़ोट के बाद हुए चुनावों में तत्कालीन सरकार पराजित हुई और जनता ने मतदान उस दल के पक्ष में किया जो इराक से स्पेन के सैनिकों को वापस बुलाने की पक्षधर थी। इसी प्रकार अनेक देशों के पत्रकारों का अपहरण करके भी इस्लामी आतंकवादी देशों की नीतियों को प्रभावित करने में सफल रहे हैं। यह नजारा हम 1999-2000 में देश ही चुके हैं जब भारत के एक विमान का अपहरण कर कुछ दुर्दांत आतंकवादियों को छुडा लिया गया था। उसमें से एक आतंकवादी मसूद अजहर ने छूटने के बाद पाकिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद का निर्माण किया और उसी संगठन ने 13 दिसम्बर 2001 को भारत की संसद पर आक्रमण किया। ये तथ्य इस बात की ओर संकेत करते हैं कि आज इस्लामी आतंकवाद का स्वरूप वैश्विक हो गया है और इस समस्या को उसी परिदृश्य में देखने की आवश्यकता है।


लेकिन भारत में क्या हो रहा है। आज यह बात किसी से छुपी नहीं है कि जिहादी एक इस्लामी एजेण्डे पर काम कर रहे हैं और उनका उद्देश्य कुरान और शरियत के आधार पर एक नयी विश्व व्यवस्था का निर्माण करना है और इसके लिये उन्होंने वैश्विक आधार पर मुस्लिम उत्पीडन की एक काल्पनिक अवधारणा का सृजन किया है और इस अवधारणा ने बडी मात्रा में ऐसे मुस्लिम बुद्धिजीवियों को भी आकर्षित किया है जो इस्लाम की हिंसक व्याख्या से सहमत न होते हुए भी मुस्लिम उत्पीडन की अवधारणा का समर्थन करते हैं और इस्लामी आतंकवाद की निन्दा सशर्त करते हैं। भारत में प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और वामपंथी इसी धारणा के शिकार हैं और भारत में इस्लामी आतंकवाद को हिन्दू कट्टरपंथ की प्रतिक्रिया मानते हैं। इस धारणा के चलते दोनों ही दल समस्या के मूल को समझने में असफल हैं। जुलाई 2005 को जब मुम्बई में लोकल रेल में धमाके हुए और 187 लोग मारे गये और इससे भी अधिक लोग घायल हुए तो कांग्रेस के अनेक नेताओं ने खुलेआम कहा कि ऐसे घटनायें इसलिये हुई हैं कि पिछ्ले कुछ वर्षों में देश में एक समुदाय विशेष की भावनाओं का ध्यान नहीं रखा गया है। कुछ नेताओं ने तो टीवी चैनल पर आकर कहा कि जब आप किसी की मस्जिद गिरायेंगे और उनकी महिलाओं और बच्चों का कत्ल करेंगे तो क्या आपके विरुद्ध प्रतिक्रिया नहीं होगी। इसी प्रकार जयपुर में हुए विस्फोटों के बाद कांग्रेस के प्रवक्ता शकील अहमद ने आतंकवाद के विषय में चर्चा करते हुए भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी की तुलना आतंकवादियों से कर दी और कहा कि वे देश में साम्प्रदायिक सद्भाव का वातावरण बिगाड कर वही काम कर रहे हैं जो आतंकवादी चाहते हैं। इसी प्रकार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अनुरोध किया कि राजनीतिक दल आतंकवाद को साम्प्रदायिक रंग न दें। अब ऐसी प्रतिक्रिया से क्या लगता है कि सरकार और कांग्रेस इस्लामी आतंकवाद को युद्ध मानने को तैयार ही नहीं है। क्योंकि यदि इसे युद्ध माना जाता तो शत्रु को पहचान कर उसे नाम दिया जाता और उसके विरुद्ध युद्ध की घोषणा की जाती। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इस विषय को पूरी तरह राजनीतिक सन्दर्भ में लिया जा रहा है।


2005 से लेकर अब तक हुए 9 श्रृखलाबद्ध विस्फोट एक ही कहानी कहते हैं कि भारत में मुसलमानों का एक वर्ग वैश्विक जिहाद की विचारधारा और उसके नेटवर्क से गहराई से जुड गया है और वह इस बात का संकेत भी दे रहा है कि अब ऐसे आक्रमणों के लिये पडोसी देशों को दोष देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेने के छोटे रास्ते से बचा जाये और भारत के देशी मुसलमानों के बीच पल रही इस नयी विचारधारा को पर प्रहार किया जाये। देश में एक समुदाय विशेष के तुष्टीकरण की नीतियों के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ जो समझौते किये गये हैं उसका परिणाम हमारे सामने है। जब बांग्लादेशी घुसपैठी भारत की सीमा में प्रवेश कर रहे थे उन्हें वोट बैंक माना गया, जब पाकिस्तान के आईएसआई एजेण्ट खुलेआम भारत में आकर अपनी अगली रणनीति पर काम कर रहे थे तो उन पर लगाम नहीं लगाई गयी। आज जब विश्व की परिस्थितियों में परिवर्तन आ गया और जिहाद एक वैश्विक स्वरूप धारण कर विचार के स्तर पर मुस्लिम जनसंख्या को प्रभावित और प्रेरित कर रहा है तो हम फिर भूल कर रहे हैं और डेढ दशक पुरानी भाषा में पाकिस्तान को दोष दे रहे हैं। जिस प्रकार इस्लामी आतंकवादी देश में अपना विस्तार करने में सफल हो रहे हैं और धार्मिक राजनीतिक अपील से देश में मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं वह एक खतरनाक संकेत है। जिस प्रकार पिछ्ले तीन वर्षों में वे अपने मन मुताबिक विभिन्न स्थानों पर आक्रमण करने में सफल रहे हैं उससे तो यही लगता है कि वे दिनोंदिन अपना नेटवर्क व्यापक ही करते जायेंगे और देश के छोटे कस्बों को भी शीघ्र ही अपना निशाना बनायेंगे।
Digg Google Bookmarks reddit Mixx StumbleUpon Technorati Yahoo! Buzz DesignFloat Delicious BlinkList Furl

0 comments: on "जयपुर विस्फोट के सन्देश"