दुनिया भर की आतंकी गतिविधियों को लेकर अमेरिकी संसद में पेश एक रपट के इस निष्कर्ष पर शायद ही कोई चकित हो कि भारत आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित देशों में से एक है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की उक्त रपट के अनुसार पिछले वर्ष भारत में 2300 से अधिक लोग आतंकी वारदातों का शिकार बनें। इराक, अफगानिस्तान सरीखे चंद देशों को छोड़ दें तो भारत शीर्ष पर ही खड़ा दिखाई देगा। एक समय था जब हम अपने को आतंकवाद से पीड़ित देश बताकर विश्व समुदाय की सहानुभूति अर्जित करने की कोशिश करते थे और उसमें एक हद तक सफल भी रहते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होने वाला। इसलिए नहीं होने वाला, क्योंकि दुनिया इससे अच्छी तरह अवगत हो चुकी है कि भारत अपनी कमजोरियों के कारण आतंकवाद का सामना नहीं कर पा रहा है। इनमें से कुछ कमजोरियों की ओर अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से संकेत भी किया है। उसने खास तौर पर भारत को एक ऐसे देश के रूप में रेखांकित किया है जहां न्याय प्रक्रिया सुस्त है, विधि का शासन स्थापित करने वाली एजेंसियां काम के बोझ से दबी हैं और पुलिस का ढांचा गया-गुजरा है। क्या ये सब वही बातें नहीं जिन पर देश में आए दिन चर्चा होती रहती है? अमेरिकी विदेश विभाग का आकलन दुनिया के सामने हमारी पोल खोलने और हमारे नीति-नियंताओं को शर्मिदा करने वाला है। उक्त रपट में पूर्वोत्तर के उग्रवाद और बेकाबू होते जा रहे नक्सलवाद का भी विस्तार से जिक्र है। भारत अब ऐसी स्थिति में नहीं कि आतंकवाद, उग्रवाद, नक्सलवाद आदि के लिए विदेशी ताकतों की ओर संकेत करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ले। ऐसा करना तथ्यात्मक रूप से सही भी नहीं होगा, क्योंकि देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को चुनौती दे रहे अनेक हथियारबंद संगठनों का उभार हमारी अपनी नीतियों का दुष्परिणाम है।
यह किसी से छिपा नहीं कि केंद्र और राज्य सरकारों को यह समझ नहीं आ रहा कि वे नक्सली संगठनों पर अंकुश कैसे लगाएं? उन्हे यह भी नहीं सूझ रहा कि नक्सलियों से बातचीत की जाए या फिर उनके साथ सख्ती से पेश आया जाए? कुछ ऐसी ही स्थिति पूर्वोत्तर में सक्रिय उग्रवादी एवं अलगाववादी संगठनों के संदर्भ में भी है। भले ही पाकिस्तान के अंदरूनी हालात के चलते सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ कम हुई हो, लेकिन उसमें कभी भी तेजी आ सकती है। वैसे इसमें संदेह नहीं कि बांग्लादेश और नेपाल के रास्ते आतंकियों का भारत में प्रवेश लगभग बेरोक-टोक जारी है। पहले भारत केवल पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों से त्रस्त था अब वह बांग्लादेश आधारित संगठनों से भी परेशान है। भारत सरकार आतंकवाद से अपने बलबूते लड़ने और उसे परास्त करने की बातें तो खूब करती है, लेकिन आवश्यक रणनीति बनाने से बच रही है। इसके दुष्परिणाम सामने है। आतंकी तत्वों और उनके समर्थकों का दुस्साहस लगातार बढ़ रहा है। इसी के साथ दुनिया में भारत की गिनती एक नरम एवं ढुलमुल राष्ट्र के रूप में होने लगी है।
2 comments: on "नपुंसक राष्ट्र हिन्दुस्तान"
दुश्मन राज्य के धन के बगैर आप 5 आदमीयो की भी आतंकवादी सेना नही खडी कर सकते है. यह हकिकत है. कोई अगर यह कहता है की नक्सल आतंक या इस्लामी आतंक स्व-स्फुर्त रुप से किसी सिद्धांतीय आधार पर ईस देश मे पनप गया है, तो मै ईस बात को बिल्कुल नही मानता. आतंकवादी संगठन के लिए बहुत बडी धंनराशी की आवश्यकता होती है. नक्सली और इस्लामी, दोनो आतंकवाद के पीछे विश्व के दो प्रचारवादी (प्रोपोगेंडीस्ट) विस्तारवादी सम्प्रदाय खडे है. क्या हम इस तथ्य को कभी समझ पाएंगे. एसिया मे इन साम्रज्यवादीयो को नियंत्रित करने के लिए भारत और चीन को सह-कार्य करना चाहिए.
@mahadev
हम भारत के लोग सच में नपुंसक और नाकारा हैं, जो चीन, कभी अफीम खा कर सुस्त पड़ा था, वह कब हमसे सदियों आगे निकल गया, तिब्बत छीन लिया, चौथाई कश्मीर हथिया लिया, अरुणाचल पर दावा ठोंक दिया, पाकिस्तान जैसे संपोले को किंग कोबरा बना दिया, हम छक्के आज अपनी पुलिस सुधारने और आतंकवाद से लड़ने उसी का मुंह ताक रहे हैं. कल हममें से ही कुछ लोग कहेंगे की भारत में प्रशासन तंत्र बेकार हो चुका है, राज करने चीन की सरकार को भारत का अधिग्रहण कर लेना चाहिए.
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