मुम्बई में इस्लामिक आतंकवाद के बाद के घटनाकम्र पर अगर हम नजर डालें तो हमें क्या नजर आता है। क्या कुछ नया नजर आया । मुझे एक बात नया इस बार नजर आया कि इस इस्लामिक आतंकी घटना के बाद काग्रेस का कलह सतह पर आ गया काग्रेंसी नेता का देश की जगह कुर्सी प्रेम साफ झलक गया। बेचारे शिवराज पाटिल को कुर्सी पर से उठा कर पटक दिया गया। जैसे कि आज तक जितने आतंकी घटना हुआ उसका नैतिक जिम्मेदारी सिर्फ शिवराज पाटिल ही हैं और कोई नही। हमें याद है सिर्फ शिवराज पाटिल ही नही काग्रेंस के हर एक नेता ताल ठोक कर पोटा जैसा कानून हिन्दुस्तान में लागु नही करने का कसम खाते थें। उन सभी नेताओं को काग्रेंस बाहर का रास्ता नही दिखाया निकाला गया तो सिर्फ शिवराज पाटिल को। काग्रेंस के सहयोगी दल जो सरकार में काग्रेंस के साथ में गलवहिया डाले घुमतें हैं जिन्होंने तो खुल कर आतंकवाद का सर्मथन किया लालु प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, काग्रेंस के खुद सबसे बडें नेता अर्जुन सिंह, काम्यूनिष्ट के नेतागण , इन सबके तरफ काग्रेंस ने देखा तक नही, बेचारे शिवराज पाटिल को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया जिससें हम जनता समझें काग्रेंस आतंकवादीयों के खिलाफ भयानक कदम उठा रहा है। शिवराज पाटिल को निकाल बाहर करने के बाद अब हिन्दुस्तान में कभी किसी तरह की कोई आतंकी घटना होगा ही नही जैसे शिवराज पाटिल को निकाल कर हिन्दुस्तान में पोटा लगा दिया गया है। शिवराज पाटिल के बाहर निकालने का सिर्फ एक कारण है चार राज्यों में चुनाव है काग्रेस को वहा भी जाकर सभी को मूँह दिखाना है इस लिये शिवराज पाटिल को धन्यवाद कह दिया गया और जो असली समस्या है उसे अनदेखा कर दिया गया। काग्रेंस ने फिर से आतंकवादीयों के खिलाफ ठुलमुल नीति अपनाई और किसी तरह का कोई कठोर कानून कागज के पन्नों और मीटिंग से बाहर निकल कर नही आया। हमें अपने देश के नेताओं को और अमेरिका के नेताओं का मिलान करना चाहियें इस आतंकि घटना में अमेरिका के कुछ नागरीक भी मारे गयें हैं सिर्फ इस बात पर अमेरिका ने पाकिस्तान में अपने विदेश मंत्री को भेज कर वहा के प्रधानमंत्री का गिरेवान तक पकर लिया और कह दिया या तो तुम आतंकवादीयों के खिलाफ कठोर कदम उठाओ नही तो अमेंरिका खुद पाकिस्तानी आतंकियों को मार गिरायेगा। इस पुरी घटना कम्र में हिन्दुस्तान के नेताओं का कुर्सी प्रेम और अमेंरिकी नेताओं का देशप्रेम साफ झलक रहा है। हमारे देश में 1970 से अभी तक पुरे देश में 4100 आतंकि हमला हो चुका है। लेकिन अभी तक एक बार भी ठोस कदम नही उठाया गया। लेकिन अमेरीका में सिर्फ एक आतंकी घटना के कारण उसनें कई देशों मे घुस कर उसने आतंकियों के खात्मा करने का कसम खा लिया।
आतंक से बार-बार लहू-लुहान होने के बाद भी हम अपने तथाकथित विदेशनीतिक सिद्धांतों के पाखंड से चिपके रहते हैं। यह हमारी राजनीति ही नहीं अफसरशाही और कूटनीति का भी किस्सा है। अगर हम वास्तव में आंतक से लड़ने के लिए कटिबद्ध हैं। अगर दहशतगर्दी के विरूद्ध निर्णायक मुकाबला करना चाहते हैं तो हमें दोस्तों और दुश्मनों का अब वक्त आ गया है कि चुनाव साफ-साफ करना होगा। अपने दम पर किसी से मुकाबला करना गौरव की बात होती है लेकिन जब बार-बार हम मुकाबला करने के नाम पर सिर्फ चोटे ही खा रहे हों तो ऐसे में अकेले मुकाबले का पाखंड नहीं करना चाहिए। यह साबित करने की जरूरत है कि भारत आज दुनिया में आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीड़ित है हालांकि हाल के सालों में अमेरिका दहशतगर्दी का सबसे बड़ा हमला झेला है। ९/११ के रूप में। लेकिन तथ्य यह भी है कि अमेरिका ने इस हमले के बाद से आंतकवादियों की कमर तोड़ कर रख दी है। नौ व ग्यारह के बाद अमेरिका में बडी तो छोड़िए आतंक की छोटी वारदात भी नहीं हुई।
1 comments: on "हिन्दुस्ताने के नेता और अमेरिका के नेता"
हमारे हिन्दू शूरवीरों ने जिस योजनाबद्ध तरीके से एक राष्ट्रीय कलंक को 6 दिसम्बर 1992 को धोया उस योजना के पीछे दो सत्ता के लालची लोगों का हाथ था। एक ने तो सत्ता का पूर्ण सुख भोग लिया पर दूसरा अभी भी कतार में है। यह व्यक्ति 13 दिसम्बर 2001 की घटना के लिए सीधे तौर पर ज़िम्मेदार है। इस सत्तालोलुप व्यक्ति को आजकल भारत के प्रतीक्षारत प्रधानमन्त्री के नाम से भी जाना जा रहा है। असल में इसने भारत भूमि पर राज करने के लिए हिन्दुत्व का भी जमके सहारा लिया अपना उल्लू सीधा किया पर अब बदले माहौल को देखकर सेक्युलरवाद की राह पकड़ अपनी स्वार्थसिद्धि की कामना कर रखता है।
यदि यह हाल है आदर्शवादी और इमानदार माने जाने वाले नेताओं का तो तमाम सेक्युलरवादियों और अन्य दलों के नेताओं से कोई भी आशा रखना मूर्खता ही है।
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